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| {{सूचना बक्सा कलाकार
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| |चित्र=Ustad-Baba-Allaudin-Khan.jpg
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| |चित्र का नाम=अलाउद्दीन ख़ाँ
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| |पूरा नाम=उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ
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| |प्रसिद्ध नाम=अलाउद्दीन ख़ाँ
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| |अन्य नाम=बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ
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| |जन्म=सन [[1881]]
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| |जन्म भूमि=[[बांग्लादेश]]
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| |मृत्यु=[[6 सितम्बर]], [[1972]]
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| |मृत्यु स्थान=
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| |अविभावक=हुसैन ख़ाँ
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| |पति/पत्नी=
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| |संतान=[[अली अकबर ख़ाँ]]
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| |कर्म भूमि=
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| |कर्म-क्षेत्र=[[संगीत|शास्त्रीय संगीत]]
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| |मुख्य रचनाएँ=
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| |मुख्य फ़िल्में=
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| |विषय=
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| |शिक्षा=
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| |विद्यालय=
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| |पुरस्कार-उपाधि=सन [[1958]] में [[पद्म भूषण]]
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| |प्रसिद्धि=[[सरोद]] वादक
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| |विशेष योगदान=अलाउद्दीन ख़ाँ [[सरोद]] वादक थे और उन्होंने [[संगीत|भारतीय संगीत]] के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की भी नींव रखी थी।
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| |नागरिकता=
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| |संबंधित लेख=
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| |शीर्षक 1=
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| |पाठ 1=
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| |शीर्षक 2=
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| |पाठ 2=
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| |अन्य जानकारी=अलाउद्दीन ख़ाँ ने [[पंडित रविशंकर]] और अल्लारखा ख़ाँ को भी शास्त्रीय संगीत सिखाया था फिर इन्होंने संगीत को देश के बाहर पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार करने का काम किया था।
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| |बाहरी कड़ियाँ=
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| |अद्यतन=
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| '''अलाउद्दीन ख़ाँ''' (जन्म सन [[1881]], मृत्यु [[6 सितम्बर]], [[1972]]) को सन 1958 में [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया गया था। अलाउद्दीन ख़ाँ [[सरोद]] वादक थे और उन्होंने [[संगीत|भारतीय संगीत]] के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की भी नींव रखी थी।
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| ==जीवन परिचय==
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| अलाउद्दीन ख़ाँ का जन्म सन 1881 में शिवपुर गांव में हुआ था जो देश की आजादी के बाद [[बांग्लादेश]] में चला गया था। उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ के पिता का नाम हुसैन ख़ाँ था, जिसे लोग साधू ख़ाँ के नाम से भी जानते थे। महान उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की नींव रखी थी। इस घराने का का नाम मैहर राज्य की वजह से पड़ा जहाँ उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ ने अपना ज़्यादातर जीवन बिताया था।
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| ==लोकप्रिय संगीतकार==
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| उस्ताद अलाउद्दीन ख़ाँ दरबारी संगीतकार होने के बावजूद आमजनों में संगीत को लोकप्रिय बनाने का जतन करते रहते थे। उन्होंने कुछ लोगों को विविध वाद्ययंत्र बजाना सिखाना शुरु किया, इन वाद्ययंत्रों में कई तो उन्होंने ही बनाए थे। [[सितार]] और सरोद के मेल से बैंजो सितार, बंदूक की नलियों से नलतरंग, उनकी मौलिक रचनाओं में शामिल हैं। 90 साल पुराने मैहर बैंड को अब 'वाद्य-वृंद' के रूप में जाना जाता है, वाद्य-वृंद में [[हारमोनियम]], [[वायलिन]], सितार, [[तबला]], नलतरंग, इसराज जैसे वाद्ययंत्र बजाए जाते हैं।
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| उस्ताद [[अली अकबर ख़ाँ]] [[भारत]] में शास्त्रीय संगीत परंपरा के पितामह कहे जाने वाले बाबा अलाउद्दीन ख़ाँ साहेब के बेटे हैं, उन्हीं के संरक्षण में मैहर घराने की विरासत संभालते हुए अली अकबर ख़ान ने अपने पिता से संगीत सीखा। अलाउद्दीन ख़ाँ ने [[पंडित रविशंकर]] और अल्लारखा ख़ाँ को भी शास्त्रीय संगीत सिखाया था फिर इन्होंने संगीत को देश के बाहर पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार करने का काम किया था।
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| ==सम्मान और पुरस्कार==
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| अलाउद्दीन ख़ाँ को सन 1958 में पद्म भूषण, [[1952]] में [[संगीत नाटक अकादमी|संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार]] और [[पद्म विभूषण]] से सम्मानित किया गया था।
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| {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
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| ==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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| <references/>
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| ==बाहरी कड़ियाँ==
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| ==संबंधित लेख==
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| {{शास्त्रीय वादक कलाकार}}
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