"राज की नीति -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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ज़ाहिर है पाँच राज्यों के चुनावों से राजनीति का विषय भी गर्म रहा। इस बार अपराधियों की भागीदारी सत्ता में कम से कम हो; इस बात का काफ़ी प्रचार रहा। कई नेताओं ने अपने-अपने ज़ोर आज़माए हैं... ये सब तो ठीक लेकिन ये 'नेता' होता क्या है? जिस तरह किसी नौकरी के लिए बहुत सारी अहर्ताएँ पूरी होनी चाहिए, उसी तरह नेता बनने के लिए भी किसी योग्यता अथवा 'क्वालिफ़िकेशन' की ज़रूरत है? ये सवाल अनेक बार उठते हैं। | ज़ाहिर है पाँच राज्यों के चुनावों से राजनीति का विषय भी गर्म रहा। इस बार अपराधियों की भागीदारी सत्ता में कम से कम हो; इस बात का काफ़ी प्रचार रहा। कई नेताओं ने अपने-अपने ज़ोर आज़माए हैं... ये सब तो ठीक लेकिन ये 'नेता' होता क्या है? जिस तरह किसी नौकरी के लिए बहुत सारी अहर्ताएँ पूरी होनी चाहिए, उसी तरह नेता बनने के लिए भी किसी योग्यता अथवा 'क्वालिफ़िकेशन' की ज़रूरत है? ये सवाल अनेक बार उठते हैं। | ||
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भारतवासियों ने महात्मा गांधी को यदि नेता माना तो नेताजी सुभाष को भी गांधी जी के उम्मीदवार के ख़िलाफ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। नेहरू जी को नेता माना तो सरदार पटेल को भी प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा करोड़ों भारतवासियों के मन में आज भी है कि काश! पटेल बने होते प्रधानमंत्री...। आज भी दिल में कराह उठती है कि काश सरदार भगतसिंह को फांसी न लगी होती। लाल बहादुर शास्त्री को ईमानदारी और पारदर्शिता का प्रतीक माना गया तो इंदिरा गांधी को लौह महिला का ख़िताब दिया गया। अब्दुल कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी जनता में अपनी अलग विशेषताओं से लोकप्रिय हो गये... लेकिन क्यों... क्या ख़ास बात है इन नेताओं में? जिसमें नेता के कुछ ख़ास गुण हों, वही नेता बनता है। | भारतवासियों ने महात्मा गांधी को यदि नेता माना तो नेताजी सुभाष को भी गांधी जी के उम्मीदवार के ख़िलाफ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। नेहरू जी को नेता माना तो सरदार पटेल को भी प्रधानमंत्री के रूप में देखने की इच्छा करोड़ों भारतवासियों के मन में आज भी है कि काश! पटेल बने होते प्रधानमंत्री...। आज भी दिल में कराह उठती है कि काश सरदार भगतसिंह को फांसी न लगी होती। लाल बहादुर शास्त्री को ईमानदारी और पारदर्शिता का प्रतीक माना गया तो इंदिरा गांधी को लौह महिला का ख़िताब दिया गया। अब्दुल कलाम और अटल बिहारी वाजपेयी जनता में अपनी अलग विशेषताओं से लोकप्रिय हो गये... लेकिन क्यों... क्या ख़ास बात है इन नेताओं में? जिसमें नेता के कुछ ख़ास गुण हों, वही नेता बनता है। | ||
कम से कम चार गुण तो मुख्य हैं- सबसे पहले तो वह 'जननेता' हो; उसके भाषणों में इतनी जान हो कि वह भाषण सुनने आई हुई भीड़ को वोटों में बदलने की शक्ति रखता हो। दूसरे वह 'राजनेता' हो; उसे संसदीय गरिमा का पता हो; पढ़ा लिखा हो और विद्वानों के बीच में कुछ बोलने की क्षमता रखता हो। तीसरे वह 'अच्छा प्रबन्धक' हो; उसका प्रबन्धन अच्छा हो और विपरीत परिस्थिति में भी सफल राजनैतिक गठजोड़ की क्षमता हो। चौथे वह 'कुशल प्रशासक' हो; उसे शासन प्रशासन आता हो। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि इन गुणों में कहीं भी त्याग करने की क्षमता, सत्य बोलना, भावुक या दयालु होना आदि नहीं है। | कम से कम चार गुण तो मुख्य हैं- सबसे पहले तो वह 'जननेता' हो; उसके भाषणों में इतनी जान हो कि वह भाषण सुनने आई हुई भीड़ को वोटों में बदलने की शक्ति रखता हो। दूसरे वह 'राजनेता' हो; उसे संसदीय गरिमा का पता हो; पढ़ा लिखा हो और विद्वानों के बीच में कुछ बोलने की क्षमता रखता हो। तीसरे वह 'अच्छा प्रबन्धक' हो; उसका प्रबन्धन अच्छा हो और विपरीत परिस्थिति में भी सफल राजनैतिक गठजोड़ की क्षमता हो। चौथे वह 'कुशल प्रशासक' हो; उसे शासन प्रशासन आता हो। यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि इन गुणों में कहीं भी त्याग करने की क्षमता, सत्य बोलना, भावुक या दयालु होना आदि नहीं है। |
09:24, 17 मार्च 2012 का अवतरण
'राज की नीति' -आदित्य चौधरी -क्या आप मुझे, अपने मकान में किराए पर एक कमरा दे सकते हैं? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ Niccolò Machiavelli. जो 'पुनर्जागरण काल' (Renaissance 14वीं से 17वीं शताब्दी) में अपनी विवादास्पद पुस्तक 'द प्रिंस' के कारण बहुत चर्चित भी रहा और घृणा का पात्र भी बना