"सम्मितीय निकाय": अवतरणों में अंतर

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[[बौद्ध धर्म]] में सम्मितीय निकाय की परिभाषा:-<br />
इस निकाय के प्रवर्तक आर्य महाकात्यायन माने जाते हैं। ये वे ही आचार्य हैं, जिन्होंने दक्षिणापथ (अवन्ती) में सर्वप्रथम सद्धर्म की स्थापना की। उस प्रदेश के निवासियों के आचार में बहुत भिन्नता देखकर विनय के नियमों में कुछ संशोधनों का भी इन्होंने सुझाव रखा था। इसी निकाय से आवन्तक और कुरुकुल्लक निकाय विकसित हुए। कभी-कभी सम्मितीयों का संग्रह वात्सीपुत्रीयों में और कभी वात्सीपुत्रीयों का संग्रह सम्मितीयों में भी देखा जाता है। इसका कारण उनके समान सिद्धान्त हो सकते हैं।  
इस निकाय के प्रवर्तक आर्य महाकात्यायन माने जाते हैं। ये वे ही आचार्य हैं, जिन्होंने दक्षिणापथ (अवन्ती) में सर्वप्रथम सद्धर्म की स्थापना की। उस प्रदेश के निवासियों के आचार में बहुत भिन्नता देखकर विनय के नियमों में कुछ संशोधनों का भी इन्होंने सुझाव रखा था। इसी निकाय से आवन्तक और कुरुकुल्लक निकाय विकसित हुए। कभी-कभी सम्मितीयों का संग्रह वात्सीपुत्रीयों में और कभी वात्सीपुत्रीयों का संग्रह सम्मितीयों में भी देखा जाता है। इसका कारण उनके समान सिद्धान्त हो सकते हैं।  


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07:14, 28 मई 2010 का अवतरण

बौद्ध धर्म में सम्मितीय निकाय की परिभाषा:-
इस निकाय के प्रवर्तक आर्य महाकात्यायन माने जाते हैं। ये वे ही आचार्य हैं, जिन्होंने दक्षिणापथ (अवन्ती) में सर्वप्रथम सद्धर्म की स्थापना की। उस प्रदेश के निवासियों के आचार में बहुत भिन्नता देखकर विनय के नियमों में कुछ संशोधनों का भी इन्होंने सुझाव रखा था। इसी निकाय से आवन्तक और कुरुकुल्लक निकाय विकसित हुए। कभी-कभी सम्मितीयों का संग्रह वात्सीपुत्रीयों में और कभी वात्सीपुत्रीयों का संग्रह सम्मितीयों में भी देखा जाता है। इसका कारण उनके समान सिद्धान्त हो सकते हैं।