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'''हंसा मेहता''' एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में [[भारत]] में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। हंसा मेहता का जन्म [[3 जुलाई]], [[1897]] ई. को हुआ था। उनके [[पिता]] मनुभाई मेहता [[बड़ौदा]] और [[बीकानेर]] रियासतों के [[दीवान]] थे।
'''हंसा मेहता''' एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में [[भारत]] में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। इनका जन्म [[3 जुलाई]], [[1897]] ई. को हुआ था। इनके [[पिता]] मनुभाई मेहता [[बड़ौदा]] और [[बीकानेर]] रियासतों के [[दीवान]] थे। हंसा मेहता का [[विवाह]] देश के प्रमुख चिकित्सकों में से एक तथा [[गाँधी जी]] के निकट सहयोगी [[जीवराज मेहता]] जी के साथ हुआ था।
==शिक्षा==
==शिक्षा==
हंसा की शिक्षा आरम्भ में बड़ौदा में हुई। [[1919]] में वे पत्रकारिता और समाजशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गईं। वहाँ उनका परिचय [[सरोजनी नायडू]] और राजकुमारी अमृत कौर से हुआ। इसी परिचय का प्रभाव था कि आगे चलकर हंसा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।
हंसा की शिक्षा आरम्भ में बड़ौदा में हुई। [[1919]] में वे पत्रकारिता और समाजशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए [[इंग्लैण्ड]] चले गईं। वहाँ उनका परिचय [[सरोजनी नायडू]] और राजकुमारी अमृत कौर से हुआ। इसी परिचय का प्रभाव था कि आगे चलकर हंसा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।
==देश व समाज सेवा==
==देश व समाज सेवा==
अध्ययन पूरा करके हंसा मेहता [[1923]] में [[भारत]] वापस आ गईं और [[मुम्बई]] के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. जीवराज मेहता से उनका विवाह हो गया। हंसा ने [[साइमन कमीशन]] के बहिष्कार में आगे बढ़कर भाग लिया और [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] में शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने में महिलाओं का नेतृत्व किया। महिलाओं को संगठित करके उनके माध्यम से समाज में जागृति उत्पन्न करने के काम में भी वे अग्रणी थीं। इन्हीं सब कारणों से विदेशी सरकार ने [[1930]] और [[1932]] ई. में उन्हें जेल में बन्द कर दिया था।
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==प्रतिनिधित्व==
==प्रतिनिधित्व==
महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया। [[1931]] में वे 'मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल' की सदस्य चुनी गईं। वे देश की संविधान परिषद की भी सदस्य थीं। [[1941]] से [[1958]] तक 'बड़ौदा विश्वविद्यालय' की वाइस चांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में भी अपनी छाप छोड़ी।
महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के 'अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन' में [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया। [[1931]] में वे 'मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल' की सदस्य चुनी गईं। वे देश की संविधान परिषद की भी सदस्य थीं। [[1941]] से [[1958]] तक 'बड़ौदा विश्वविद्यालय' की वाइस चांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में भी अपनी छाप छोड़ी।


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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08:02, 28 मार्च 2012 का अवतरण

हंसा मेहता एक समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद के रूप में भारत में काफ़ी प्रसिद्ध रही हैं। इनका जन्म 3 जुलाई, 1897 ई. को हुआ था। इनके पिता मनुभाई मेहता बड़ौदा और बीकानेर रियासतों के दीवान थे। हंसा मेहता का विवाह देश के प्रमुख चिकित्सकों में से एक तथा गाँधी जी के निकट सहयोगी जीवराज मेहता जी के साथ हुआ था।

शिक्षा

हंसा की शिक्षा आरम्भ में बड़ौदा में हुई। 1919 में वे पत्रकारिता और समाजशास्त्र की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड चले गईं। वहाँ उनका परिचय सरोजनी नायडू और राजकुमारी अमृत कौर से हुआ। इसी परिचय का प्रभाव था कि आगे चलकर हंसा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया।

देश व समाज सेवा

अध्ययन पूरा करके हंसा मेहता 1923 में भारत वापस आ गईं और मुम्बई के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. जीवराज मेहता से उनका विवाह हो गया। हंसा ने साइमन कमीशन के बहिष्कार में आगे बढ़कर भाग लिया और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने में महिलाओं का नेतृत्व किया। महिलाओं को संगठित करके उनके माध्यम से समाज में जागृति उत्पन्न करने के काम में भी वे अग्रणी थीं। इन्हीं सब कारणों से विदेशी सरकार ने 1930 और 1932 ई. में उन्हें जेल में बन्द कर दिया था।

प्रतिनिधित्व

महिलाओं की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हंसा मेहता ने जेनेवा के 'अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन' में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1931 में वे 'मुम्बई लेजिस्लेटिव कौंसिल' की सदस्य चुनी गईं। वे देश की संविधान परिषद की भी सदस्य थीं। 1941 से 1958 तक 'बड़ौदा विश्वविद्यालय' की वाइस चांसलर के रूप में उन्होंने शिक्षा जगत में भी अपनी छाप छोड़ी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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