"बात का घाव -आदित्य चौधरी": अवतरणों में अंतर
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>'बात का घाव' -आदित्य चौधरी</font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>'बात का घाव' -आदित्य चौधरी</font></div><br /> | ||
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एक दिन शेर और रघु जंगल में बैठे बात कर रहे थे तो रघु ने कहा- "मित्र! तुम मेरे घर कभी नहीं आते... कभी मुझे भी मौक़ा दो कि मैं तुम्हारी आवभगत कर सकूँ। मेरे परिवार के साथ चलकर रहो, वे भी तुमसे मिलना चाहते हैं... तुमसे मिलकर बहुत प्रसन्न होंगे।" शेर ने कहा- "देखो भाई रघु! भले ही मैं तुम्हारा दोस्त हूँ लेकिन हूँ तो मैं जानवर ही...। कैसे निभा पायेंगे मुझको तुम्हारे घरवाले ? मैं जंगली हूँ और जंगल में ही ठीक हूँ" रघु नहीं माना और शेर को अपने घर ले ही गया। | एक दिन शेर और रघु जंगल में बैठे बात कर रहे थे तो रघु ने कहा- "मित्र! तुम मेरे घर कभी नहीं आते... कभी मुझे भी मौक़ा दो कि मैं तुम्हारी आवभगत कर सकूँ। मेरे परिवार के साथ चलकर रहो, वे भी तुमसे मिलना चाहते हैं... तुमसे मिलकर बहुत प्रसन्न होंगे।" शेर ने कहा- "देखो भाई रघु! भले ही मैं तुम्हारा दोस्त हूँ लेकिन हूँ तो मैं जानवर ही...। कैसे निभा पायेंगे मुझको तुम्हारे घरवाले ? मैं जंगली हूँ और जंगल में ही ठीक हूँ" रघु नहीं माना और शेर को अपने घर ले ही गया। | ||
घरवाले पहले डरे फिर शेर के साथ सहज हो गये लेकिन महीने भर में ही शेर की ख़ुराक ने लकड़हारे के घर का बजट और उसकी बीवी का दिमाग़ ख़राब कर दिया। असल में शेर खायेगा भी तो अपने शरीर और आदत के हिसाब से। एक बार में तीस चालीस किलो मांस और वह भी रोज़ाना। बाज़ार से मांस और दूध ख़रीदने में रघु के घर के बर्तन तक बिकने की नौबत आ गई। रघु की पत्नी इस 'जंगली दोस्त' से बहुत परेशान थी। आख़िरकार रघु की पत्नी ने रघु से कहा- "तुम्हारे दोस्त को अब वापस जंगल में ही चला जाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इसे खिलाने को जब कुछ भी न हो तो ये हमारे बच्चों को ही खा जाय? तुम इससे कहो कि ये यहाँ से चला जाय।" "लेकिन वो मेरा दोस्त है, मैं उसे जाने के लिए नहीं कह सकता..." रघु ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। | घरवाले पहले डरे फिर शेर के साथ सहज हो गये लेकिन महीने भर में ही शेर की ख़ुराक ने लकड़हारे के घर का बजट और उसकी बीवी का दिमाग़ ख़राब कर दिया। असल में शेर खायेगा भी तो अपने शरीर और आदत के हिसाब से। एक बार में तीस चालीस किलो मांस और वह भी रोज़ाना। बाज़ार से मांस और दूध ख़रीदने में रघु के घर के बर्तन तक बिकने की नौबत आ गई। रघु की पत्नी इस 'जंगली दोस्त' से बहुत परेशान थी। आख़िरकार रघु की पत्नी ने रघु से कहा- "तुम्हारे दोस्त को अब वापस जंगल में ही चला जाना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इसे खिलाने को जब कुछ भी न हो तो ये हमारे बच्चों को ही खा जाय? तुम इससे कहो कि ये यहाँ से चला जाय।" "लेकिन वो मेरा दोस्त है, मैं उसे जाने के लिए नहीं कह सकता..." रघु ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। | ||
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इस कहानी का जुड़ाव भारतकोश बनाने से है। मथुरा-वृन्दावन में अक्सर अंग्रेज़ पर्यटक मिल जाते हैं। एक बार बातों ही बातों में भारत के इतिहास पर चर्चा शुरू हो गयी। मैंने और मेरे मित्र ने कहा कि हम इंटरनेट पर भारत का एन्साक्लोपीडिया बनाने की सोच रहे हैं, तो उसने कहा कि आपका इतिहास तो हम अंग्रेज़ों ने लिखा है और आपका एन्साक्लोपीडिया इंटरनेट पर भी अंग्रेज़ ही बनाएँगे। ये आपके बस की बात नहीं है। बस यही बात मुझे चुभ गयी और भारतकोश का काम शुरू हो गया... | इस कहानी का जुड़ाव भारतकोश बनाने से है। मथुरा-वृन्दावन में अक्सर अंग्रेज़ पर्यटक मिल जाते हैं। एक बार बातों ही बातों में भारत के इतिहास पर चर्चा शुरू हो गयी। मैंने और मेरे मित्र ने कहा कि हम इंटरनेट पर भारत का एन्साक्लोपीडिया बनाने की सोच रहे हैं, तो उसने कहा कि आपका इतिहास तो हम अंग्रेज़ों ने लिखा है और आपका एन्साक्लोपीडिया इंटरनेट पर भी अंग्रेज़ ही बनाएँगे। ये आपके बस की बात नहीं है। बस यही बात मुझे चुभ गयी और भारतकोश का काम शुरू हो गया... | ||
इस सप्ताह इतना ही... अगले सप्ताह कुछ और... | |||
-आदित्य चौधरी | -आदित्य चौधरी | ||
<small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small> | <small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> |
12:55, 31 मार्च 2012 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ