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'''ठाकुर केसरी सिंह''' [[राजस्थान]] के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। इनका जन्म 1892 ई. में हुआ था। ठाकुर केसरी सिंह के [[उत्तर प्रदेश]], [[दिल्ली]] तथा [[पंजाब]] के क्रान्तिकारियों से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। इन्होंने देशी रियासतों के अत्याचारों के विरुद्ध भी अपनी आवाज़ उठाई थी, लेकिन इनका अंतिम उद्देश्य [[अंग्रेज़]] हुकूमत से देश को आज़ाद कराना ही था। 1917 ई. में इनके पुत्र को 'बनारस षडयंत्र केस' में फ़ाँसी की सज़ा हुई थी।
'''ठाकुर केसरी सिंह''' [[राजस्थान]] के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। इनका जन्म 1892 ई. में हुआ था। ठाकुर केसरी सिंह के [[उत्तर प्रदेश]], [[दिल्ली]] तथा [[पंजाब]] के क्रान्तिकारियों से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। इन्होंने देशी रियासतों के अत्याचारों के विरुद्ध भी अपनी आवाज़ उठाई थी, लेकिन इनका अंतिम उद्देश्य [[अंग्रेज़]] हुकूमत से देश को आज़ाद कराना ही था। 1917 ई. में इनके पुत्र को 'बनारस षडयंत्र केस' में फ़ाँसी की सज़ा हुई थी।
==क्रान्तिकारी परिवार==
==क्रान्तिकारी परिवार==
ठाकुर केसरी सिंह के जीवन पर [[लोकमान्य तिलक]], श्यामजी कृष्ण वर्मा और [[अरविन्द घोष]] के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा था। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारी आंदोलन से जुड़ गए और राजस्थान से उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पंजाब के क्रातिकारियों की हर प्रकार से सहायता करने लगे। इनके परिवार के सदस्यों ने देश को स्वतंत्रता प्रदान कराने के लिए कई बलिदान दिए। उनके छोटे भाई जोरावर सिंह भी इन्हीं गतिविधियों में लिप्त थे और जीवन-भर भूमिगत रहे। उनके पुत्र प्रताप सिंह ने भी [[पिता]] का ही मार्ग अपनाया और 'बनारस षडयंत्र केस' में उन्हें 1917 में फ़ाँसी की सजा हो गई।
ठाकुर केसरी सिंह के जीवन पर [[लोकमान्य तिलक]], श्यामजी कृष्ण वर्मा और [[अरविन्द घोष]] के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा था। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारी आंदोलन से जुड़ गए और राजस्थान से उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पंजाब के क्रातिकारियों की हर प्रकार से सहायता करने लगे। इनके परिवार के सदस्यों ने देश को स्वतंत्रता प्रदान कराने के लिए कई बलिदान दिए। उनके छोटे भाई जोरावर सिंह भी इन्हीं गतिविधियों में लिप्त थे और जीवन-भर भूमिगत रहे। उनके पुत्र प्रताप सिंह ने भी [[पिता]] का ही मार्ग अपनाया और 'बनारस षडयंत्र केस' में उन्हें 1917 में फ़ाँसी की सज़ा हो गई।
====पुत्र का बलिदान====
====पुत्र का बलिदान====
ठाकुर केसरी की गतिविधियाँ प्रकटतः देशी रियासतों के अत्याचारों के विरूद्ध थीं, पर उनका अंतिम उद्देश्य ब्रिटिश शासन का विरोध करना था। यह बात रियासत के अंग्रेज़ एजेंटों से छिपी नहीं रही। वे गिरफ़्तार कर लिए गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजीवन कारावास की सज़ा देकर उन्हें [[बिहार]] की हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिया गया। 1917 में उनके पुत्र को भी फ़ाँसी हुई, पर [[पिता]] को अपील के बाद 1919 में जेल से छूटने के बाद ही उन्हें इसकी जानकारी हो पाई थी।
ठाकुर केसरी की गतिविधियाँ प्रकटतः देशी रियासतों के अत्याचारों के विरूद्ध थीं, पर उनका अंतिम उद्देश्य ब्रिटिश शासन का विरोध करना था। यह बात रियासत के अंग्रेज़ एजेंटों से छिपी नहीं रही। वे गिरफ़्तार कर लिए गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजीवन कारावास की सज़ा देकर उन्हें [[बिहार]] की हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिया गया। 1917 में उनके पुत्र को भी फ़ाँसी हुई, पर [[पिता]] को अपील के बाद 1919 में जेल से छूटने के बाद ही उन्हें इसकी जानकारी हो पाई थी।

13:42, 9 अप्रैल 2012 का अवतरण

ठाकुर केसरी सिंह राजस्थान के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। इनका जन्म 1892 ई. में हुआ था। ठाकुर केसरी सिंह के उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पंजाब के क्रान्तिकारियों से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। इन्होंने देशी रियासतों के अत्याचारों के विरुद्ध भी अपनी आवाज़ उठाई थी, लेकिन इनका अंतिम उद्देश्य अंग्रेज़ हुकूमत से देश को आज़ाद कराना ही था। 1917 ई. में इनके पुत्र को 'बनारस षडयंत्र केस' में फ़ाँसी की सज़ा हुई थी।

क्रान्तिकारी परिवार

ठाकुर केसरी सिंह के जीवन पर लोकमान्य तिलक, श्यामजी कृष्ण वर्मा और अरविन्द घोष के विचारों का व्यापक प्रभाव पड़ा था। शीघ्र ही वे क्रान्तिकारी आंदोलन से जुड़ गए और राजस्थान से उत्तर प्रदेश, दिल्ली तथा पंजाब के क्रातिकारियों की हर प्रकार से सहायता करने लगे। इनके परिवार के सदस्यों ने देश को स्वतंत्रता प्रदान कराने के लिए कई बलिदान दिए। उनके छोटे भाई जोरावर सिंह भी इन्हीं गतिविधियों में लिप्त थे और जीवन-भर भूमिगत रहे। उनके पुत्र प्रताप सिंह ने भी पिता का ही मार्ग अपनाया और 'बनारस षडयंत्र केस' में उन्हें 1917 में फ़ाँसी की सज़ा हो गई।

पुत्र का बलिदान

ठाकुर केसरी की गतिविधियाँ प्रकटतः देशी रियासतों के अत्याचारों के विरूद्ध थीं, पर उनका अंतिम उद्देश्य ब्रिटिश शासन का विरोध करना था। यह बात रियासत के अंग्रेज़ एजेंटों से छिपी नहीं रही। वे गिरफ़्तार कर लिए गए। राजद्रोह का मुकदमा चला और आजीवन कारावास की सज़ा देकर उन्हें बिहार की हज़ारीबाग़ जेल में डाल दिया गया। 1917 में उनके पुत्र को भी फ़ाँसी हुई, पर पिता को अपील के बाद 1919 में जेल से छूटने के बाद ही उन्हें इसकी जानकारी हो पाई थी।

सामाजिक सुधार

पिता द्वारा की गई अपील से छूटने के बाद सरकार ने ठाकुर केसरी सिंह को फिर गिरफ़्तार नहीं किया और वे कोटा रियासत में रहने लगे। जमनालाल बजाज की सहायता से उन्होंने ‘राजस्थान केसरी’ नामक पत्रिका प्रकाशित की और उसके माध्यम से राजपूतों में शिक्षा तथा सामाजिक सुधारों का कार्य करते रहे। राजस्थान की सभी रियासतों में उनका बड़ा सम्मान था।

मृत्यु

इस महान क्रान्तिकारी तथा देश-भक्त का निधन 1941 में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 348 |


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