"चिपको आंदोलन": अवतरणों में अंतर

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यह आंदोलन सैकड़ों विकेंद्रित तथा स्थानीय स्वत: स्फूर्त प्रयासों का परिणाम था। इस आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मुख्यत: ग्रामीण महिलाएँ थीं, जो अपने जीवनयापन के साधन व समुदाय को बचाने के लिए तत्पर थीं। पर्यावरणीय विनाश के ख़िलाफ़ शांत अहिंसक विरोध प्रदर्शन इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता थी।  
यह आंदोलन सैकड़ों विकेंद्रित तथा स्थानीय स्वत: स्फूर्त प्रयासों का परिणाम था। इस आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मुख्यत: ग्रामीण महिलाएँ थीं, जो अपने जीवनयापन के साधन व समुदाय को बचाने के लिए तत्पर थीं। पर्यावरणीय विनाश के ख़िलाफ़ शांत अहिंसक विरोध प्रदर्शन इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता थी।  
==आंदोलन का प्रभाव==  
==आंदोलन का प्रभाव==  
उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गाँधी]] ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के [[वर्ष|वर्षों]] में यह आंदोलन उत्तर में [[हिमाचल प्रदेश]], दक्षिण में [[कर्नाटक]], पश्चिम में [[राजस्थान]], पूर्व में [[बिहार]] और मध्य भारत में विंध्य तक फैला।  
उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन ने [[1980]] में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन [[प्रधानमंत्री]] [[इंदिरा गाँधी]] ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के [[वर्ष|वर्षों]] में यह आंदोलन उत्तर में [[हिमाचल प्रदेश]], दक्षिण में [[कर्नाटक]], पश्चिम में [[राजस्थान]], पूर्व में [[बिहार]] और मध्य भारत में विंध्य तक फैला।  


उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और [[विंध्य पर्वतमाला]] में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।   
उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और [[विंध्य पर्वतमाला]] में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।   

12:20, 23 मई 2012 का अवतरण

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चिपको आंदोलन 1973 में उत्तर प्रदेश के वनों में शांत और अहिंसक विरोध प्रदर्शन किया था, इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य व्यावसाय के लिए हो रही वनों की कटाई को रोकना था और इसे रोकने के लिए महिलाएँ वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं।

मुख्य कार्यकर्ता

यह आंदोलन सैकड़ों विकेंद्रित तथा स्थानीय स्वत: स्फूर्त प्रयासों का परिणाम था। इस आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मुख्यत: ग्रामीण महिलाएँ थीं, जो अपने जीवनयापन के साधन व समुदाय को बचाने के लिए तत्पर थीं। पर्यावरणीय विनाश के ख़िलाफ़ शांत अहिंसक विरोध प्रदर्शन इस आंदोलन की अद्वितीय विशेषता थी।

आंदोलन का प्रभाव

उत्तर प्रदेश में इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आंदोलन उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक, पश्चिम में राजस्थान, पूर्व में बिहार और मध्य भारत में विंध्य तक फैला।

उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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