"बिहू नृत्य": अवतरणों में अंतर
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प्रत्येक बिहू कृषि कलेन्डर के विशिष्ट अवसर पर पड़ता है। तीनों बिहू उत्सवों में सबसे आकर्षक, बसंत ऋतु का उत्सव 'बोहाग बिहू' अथवा रंगाली बिहू होता है जो मध्य अप्रैल में मनाया जाता है, जिससे कृषि ऋतु का प्रारम्भ होता है। बिहू असम के सबसे ज्यादा प्रचलित [[लोक नृत्य]] को दिया गया नाम है, जिसका सभी जवान व बूढ़े, अमीर व गरीब आनन्द लेते हैं। नृत्य बिहू उत्सव का अंग हैं, जो मध्य अप्रैल में पड़ता है। जब फसल कटाई होती है और जो लगभग एक महीने तक चलती है। इससे असम के कलेन्डर की भी शुरूआत होती है। | प्रत्येक बिहू कृषि कलेन्डर के विशिष्ट अवसर पर पड़ता है। तीनों बिहू उत्सवों में सबसे आकर्षक, बसंत ऋतु का उत्सव 'बोहाग बिहू' अथवा रंगाली बिहू होता है जो मध्य अप्रैल में मनाया जाता है, जिससे कृषि ऋतु का प्रारम्भ होता है। बिहू असम के सबसे ज्यादा प्रचलित [[लोक नृत्य]] को दिया गया नाम है, जिसका सभी जवान व बूढ़े, अमीर व गरीब आनन्द लेते हैं। नृत्य बिहू उत्सव का अंग हैं, जो मध्य अप्रैल में पड़ता है। जब फसल कटाई होती है और जो लगभग एक महीने तक चलती है। इससे असम के कलेन्डर की भी शुरूआत होती है। | ||
05:53, 31 मई 2010 का अवतरण
बिहू असम का प्राचीनतम व अत्यधिक महत्वपूर्ण उत्सव है। असम में तीन बिहू मनाए जाते हैं-
- बोहाग (बैसाख-अप्रैल के मध्य में)
- माघ (जनवरी के मध्य में), और
- काति (कार्तिक, अक्टूबर के मध्य में)।
प्रत्येक बिहू कृषि कलेन्डर के विशिष्ट अवसर पर पड़ता है। तीनों बिहू उत्सवों में सबसे आकर्षक, बसंत ऋतु का उत्सव 'बोहाग बिहू' अथवा रंगाली बिहू होता है जो मध्य अप्रैल में मनाया जाता है, जिससे कृषि ऋतु का प्रारम्भ होता है। बिहू असम के सबसे ज्यादा प्रचलित लोक नृत्य को दिया गया नाम है, जिसका सभी जवान व बूढ़े, अमीर व गरीब आनन्द लेते हैं। नृत्य बिहू उत्सव का अंग हैं, जो मध्य अप्रैल में पड़ता है। जब फसल कटाई होती है और जो लगभग एक महीने तक चलती है। इससे असम के कलेन्डर की भी शुरूआत होती है।
बिहू नृत्य युवा लड़के व लड़कियों द्वारा खुले मैदान में किया जाता है, तथापि वे आपस में नहीं मिलते हैं। पूरा गांव नृत्य में हिस्सा लेता है, चूंकि नर्तक घर-घर में जाते हैं। इस नृत्य की पहचान तेजी से कदम उठाना, हाथों को उछालना व चुटकी बजाना तथा कूल्हे मटकाना है जो कि युवाओं के मनोभाव का द्योतक है। कलाकार कभी-कभी गीत गाते हैं। नृत्य धीमी गति से आरंभ होता है, और जैसे-जैसे नृत्य आगे बढ़ता है इसकी गति तेज होती जाती है। 'ढोल' की सम्मोहक थाप और 'पेपा' (भैंसे के सींग से बनी तुरही) इस नृत्य का अंग हैं। बिहू नृत्य करते समय पारंपरिक वेशभूषा जैसे धोती, गमछा और चादर व मेखला पहनना अनिवार्य होता है। बिहू नृत्य, इसके विभिन्न रूपों में, फसल कटाई के विभिन्न स्तरों पर व नए मौसम के आगमन पर भी किया जाता है। इसकी सबसे सामान्य रचना गोलाकार अथवा समानान्तर पंक्तियों में होती है। बिहू के नृत्य व संगीत द्वारा असम वासियों की जीवन शक्ति के सर्वश्रेष्ठ रूप का दिग्दर्शन होता है।