"वार्ता:ग्रीष्म ऋतु": अवतरणों में अंतर
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भारत को भूलोक का गौरव तथा प्रकृति का पुण्य लीलास्थल कहा गया है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां समय-समय पर छः ऋतुएं अपनी छटा बिखेरती हैं। | |||
प्रत्येक ऋतु दो मास की होती है। चैत और बैसाख़ में बसंत ऋतु अपनी शोभा का परिचय देती है।इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गयी है। धरती का सौंदर्य इस प्राकृतिक आनंद के स्त्रोत में बढ़ जाता है। रंगों का त्यौहार होली बसंत ऋतु की शोभा को द्विगुणित कर देता है। हमारा जीवन चारों ओर के मोहक वातावरण को देखकर मुस्करा उठता है। ज्येष्ठ और आषाण ग्रीष्म ऋतु के मास है। इसमें सू्र्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणी मात्र के लिये कष्टकारी अवश्य है पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि गर्मी न पड़े तो हमें पका हुआ अन्न भी प्राप्त न हो। क्ष्रावण और भाद्र पद वर्षा ऋतु के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है।मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। तीज और रक्षाबंधन जैसे त्यौहार भी इस ऋतु में आते हैं। अश्विन और कातिर्क के मास शरद ऋतु के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृश्र्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रुप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखा़ई पड़ता है। दशहरा और दीपावली के त्यौहार इसी ऋतु में आते हैं। मार्गशीर्ष और पौष हेमन्त ऋतु के मास हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। माघ और फाल्गुन शिशिर अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरम्भ मकर संक्राति से होता है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। | |||
इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रुपी फलक के भिन्न- भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता,सरसता और पूर्णता लाती हैं[[Category:1857]] |
14:09, 23 जून 2012 का अवतरण
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भारत की छः ऋतुएं
--Prabodhpandya 19:39, 23 जून 2012 (IST)prabodh
भारत को भूलोक का गौरव तथा प्रकृति का पुण्य लीलास्थल कहा गया है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां समय-समय पर छः ऋतुएं अपनी छटा बिखेरती हैं। प्रत्येक ऋतु दो मास की होती है। चैत और बैसाख़ में बसंत ऋतु अपनी शोभा का परिचय देती है।इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गयी है। धरती का सौंदर्य इस प्राकृतिक आनंद के स्त्रोत में बढ़ जाता है। रंगों का त्यौहार होली बसंत ऋतु की शोभा को द्विगुणित कर देता है। हमारा जीवन चारों ओर के मोहक वातावरण को देखकर मुस्करा उठता है। ज्येष्ठ और आषाण ग्रीष्म ऋतु के मास है। इसमें सू्र्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणी मात्र के लिये कष्टकारी अवश्य है पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि गर्मी न पड़े तो हमें पका हुआ अन्न भी प्राप्त न हो। क्ष्रावण और भाद्र पद वर्षा ऋतु के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है।मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। तीज और रक्षाबंधन जैसे त्यौहार भी इस ऋतु में आते हैं। अश्विन और कातिर्क के मास शरद ऋतु के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृश्र्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रुप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखा़ई पड़ता है। दशहरा और दीपावली के त्यौहार इसी ऋतु में आते हैं। मार्गशीर्ष और पौष हेमन्त ऋतु के मास हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। माघ और फाल्गुन शिशिर अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरम्भ मकर संक्राति से होता है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रुपी फलक के भिन्न- भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता,सरसता और पूर्णता लाती हैं