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'''नालदुर्ग''' [[उसमानाबाद]], [[महाराष्ट्र]] में स्थित है। यह अपने प्राचीन सुदृढ़ क़िले के लिए विख्यात है। बोरी नदी के एक नाले के निकट मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों के बीच यह स्थित है। मीडोज टेलर नामक एक [[अंग्रेज़]] लेखक ने 19वीं शती में इसका वर्णन अपनी पुस्तक 'ए स्टोरी ऑफ़ माई लाइफ़' में किया था।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=497|url=}}</ref>
[[चित्र:Naldurg-Fort.jpg|thumb|250px|नालदुर्ग क़िला]]
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;इतिहास
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14वीं शती से पहले नालदुर्ग एक स्थानीय राजा के अधिकार में था, जो शायद [[चालुक्य|चालुक्यों]] का सामंत था। कालक्रम में [[बहमनी वंश|बहमनी]] और [[बीजापुर]] के सुल्तानों का यहाँ अधिकार हुआ। 1558 ई. में [[अली आदिलशाह द्वितीय]] ने नालदुर्ग को क़िलाबंदियों से सुदृढ़ करने के अतिरिक्त यहाँ स्थित सेना के लिए [[जल]] की व्यवस्था करने के लिए बोरी नदी पर एक बांध भी बनवाया था। बांध तथा पानी महल की रचना एक ईरानी वास्तुविशारद 'मीर इमादीन' ने की थी। इस तथ्य का उल्लेख 1613 ई. के एक [[अभिलेख]] में है।
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07:42, 27 जून 2012 के समय का अवतरण

नालदुर्ग क़िला

नालदुर्ग उसमानाबाद, महाराष्ट्र में स्थित है। यह अपने प्राचीन सुदृढ़ क़िले के लिए विख्यात है। बोरी नदी के एक नाले के निकट मनोहारी प्राकृतिक दृश्यों के बीच यह स्थित है। मीडोज टेलर नामक एक अंग्रेज़ लेखक ने 19वीं शती में इसका वर्णन अपनी पुस्तक ए स्टोरी ऑफ़ माई लाइफ़ में किया था।[1]

इतिहास

14वीं शती से पहले नालदुर्ग एक स्थानीय राजा के अधिकार में था, जो शायद चालुक्यों का सामंत था। कालक्रम में बहमनी और बीजापुर के सुल्तानों का यहाँ अधिकार हुआ। 1558 ई. में अली आदिलशाह द्वितीय ने नालदुर्ग को क़िलाबंदियों से सुदृढ़ करने के अतिरिक्त यहाँ स्थित सेना के लिए जल की व्यवस्था करने के लिए बोरी नदी पर एक बांध भी बनवाया था। बांध तथा पानी महल की रचना एक ईरानी वास्तुविशारद 'मीर इमादीन' ने की थी। इस तथ्य का उल्लेख 1613 ई. के एक अभिलेख में है।

मुग़ल आधिपत्य

मध्य काल के इस समय मुग़लों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब का दक्षिण भारत की रियासतों पर अधिकार होने पर नालदुर्ग भी मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 497 |

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