"करौली ज़िला": अवतरणों में अंतर

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'''ऐतिहासिक पृष्ठभूमि'''<br />
'''करौली ज़िला''' [[भारत]] के [[राजस्थान]] राज्य का प्रमुख ज़िला है जो ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है।
==इतिहास==
ज़िला करौली का क्षेत्र पुराने करौली राज्य तथा [[जयपुर]] राज्य की गंगापुर एवं हिण्डौन निजामतों में आता है। कल्याणपुरी नामक इस क्षेत्र को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने का श्रेय यदुवंशी राजाओं को जाता है। [[कार्ल मार्क्स]] और [[कर्नल टॉड]] ने अपनी पुस्तक में भी इसका वर्णन किया है। करौली राज्य [[अप्रैल]] [[1949]] को मत्स्य संघ में सम्मिलित हुआ बाद में जयपुर राज्य के साथ मिलकर वृहत संयुक्त राज्य राजस्थान का भाग बना। राजस्थान सरकार द्वारा 1 मार्च 1997 को [[सवाईमाधोपुर ज़िला|सवाईमाधोपुर ज़िले]] की पांच तहसीलों को मिलाकर एक अलग ज़िला करौली का गठन किया। [[15 जुलाई]] [[1997]] को करौली ज़िला निर्माण की अधिसूचना जारी करते हुए तत्कालीन [[मुख्यमंत्री]] श्री भैंरोसिंह शेखावत ने 19 जुलाई 1997 को इस ज़िले का उद्घाटन किया। 2011 की जनगणना के अनुसार ज़िले की जनसंख्या 1458459 तथा क्षेत्रफल 5043 वर्ग किलोमीटर है। राज्य की प्रमुख नदी [[चम्बल नदी|चम्बल]] इस ज़िले को [[मध्यप्रदेश]] राज्य से अलग करती है। इस ज़िले में बहुसंख्या में पाये जाने वाले क़िले एवं गढ इसके पुराने गौरव की ओर संकेत करते है। इनमें से तिमनगढ, उटगिरी, मण्डरायल के किलों का देश के [[मध्यकालीन भारत|मध्यकालीन इतिहास]] में प्रमुख स्थान रहा है।
==भौगोलिक स्थिति==
करौली अपनी भौगोलिक विशिष्टताओं के लिए भी विख्यात है। यह ज़िला प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर एवं विध्याचंल व अरावली पर्वत मालाओं से आच्छादित है। ज़िले का कुछ भाग समतल एवं कुछ भाग उचा नीचा एवं पहाडियों वाला है। करौली मण्डरायल उपखण्ड को पहाडी इलाका कहा जाता है जबकि बाकी क्षेत्र सामान्यता समतल एवं मैदानी है। मैदानी क्षेत्र उपजाऊ है तथा यहा की [[मिटटी]] हल्की एवं रेतीली है। करौली एवं मण्डरायल उपखण्ड का क्षेत्र, जो स्थानीय भाषा में डांग कहलाता है, पहाडियों एवं नदियों से भरा है। ज़िले की ऊँचाई समुद्र की सतह से 400 से 600 मीटर तक है। ज़िले के पशिचम में दौसा, दक्षिण पश्चिम में [[सवाई माधोपुर]], उत्तर पूर्व में [[धौलपुर]] तथा पश्चिम उत्तर में [[भरतपुर]] ज़िले की सीमाएं लगती है। यह ज़िला 26
डिग्री 3 सै. से 49 डिग्री उत्तर पशिचम अक्षाश तथा 76 डिग्री 35 से 77 डिग्री 26 पूर्व देशान्तरों के मध्य स्थित है। ज़िले में अल्पकालीन मौसम के अलावा शेष समय जलवायु शुष्क रहती है। सर्दी [[नवम्बर]] माह के प्रथम सप्ताह से [[मार्च]] तक रहती है, जबकि गर्मी मार्च के अन्त से [[जून]] के तीसरे सप्ताह तक रहती है। ज़िले की सामान्य वार्षिक वर्ष 668.86 मि.मी. है। ज़िले में औसतन 35 दिन वर्षा होती है। ज़िले का दैनिक अधिकतम तापमान का औसत मई माह में 49 डिग्री सेल्सियस रहता है तथा न्यूनतम 2.00 डिग्री सेल्सियस जनवरी में रहता है।
==प्रशासनिक व्यवस्था==
प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत ज़िला कलेक्टर ज़िले का सर्वोच्च अधिकारी होने के साथ-साथ समस्त प्रशासनिक एवं कानून व्यवस्थाओं के लिए उत्तरदायी है। ज़िले को छ: उपखण्डो करौली, हिण्डौन, सपोटरा, मण्डरायल, टोडाभीम एवं नादौती में विभाजित किया हुआ है। इन उपखण्डों को 5 पंचायत समिति एवं 6 तहसीलों में विभाजित कर क्षेत्राधिकारी निर्धारण किया हुआ है। ज़िलें में तीन नगरपालिका क्रमश: करौली, हिण्डौन एवं टोडाभीम है। ज़िले के प्रशासनिक स्वरूप में जनभागीदारी के रूप में एक लोकसभा सदस्य तथा चार विधानसभा सदस्य है।
==भूगर्भ एवं खनिज==
ज़िला करौली एक तरफ से चम्बल तथा तीन तरफ से मैदानों से घिरा हुआ है। इसके मैदान कैमबिरयन-पूर्व की आग्नेय चट्टानों तथा उनकी तलछट से बनी चट्टानों के रूपान्तरण से बने है। अरावली की पूर्व चट्टानें स्फटिक, अभ्रक, नाइसिस्ट, मिग्मा टाइटस आदि की बनी हुई है। महान विंध्य श्रेणी की चट्टाने जिनमें कैमूल, रीवा, भाण्डेर प्रमुख है, विभिन्न प्रकार के सलेटी पत्थर, बालू पत्थर तथा चूना पत्थर से परिपूर्ण है। ज़िला अनेक प्रकार के धात्विक एवं अधात्विक खनिजों से परिपूर्ण है। धातुओं में शीशा, [[तांबा]], [[लौह अयस्क|लोह अयस्क]] आदि तथा
अधातुओं में चूना, पत्थर, चिकनी मिट्टी, सिलिका, सैलरूडा आदि प्रमुख रूप से पाये जाते है। इसके अलावा ज़िले में लेट्रार्इट, रेड आक्सार्इड, बैनेटोनार्इट, बेरार्इट, मैगनीज मिट्टी तथा काली मिट्टी पाई जाती है। ज़िले में विभिन्न प्रकार की चट्टानों से मिलने वाले खनिज जैसे इमारत बनाने के पत्थर, सजावट के पत्थर आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। भाण्डेर श्रेणी का गुलाबी पत्थर एवं सफेद निषानों वाला पत्थर करौली एवं हिण्डौन क्षेत्र में काफी मात्रा में पाया जाता है। सीमेन्ट श्रेणी का चूना पत्थर एवं सिलिकासैण्ड सपोटरा, नादौती क्षेत्र मे पाया जाता है। खनिज अभियन्ता करौली के अन्तर्गत इस ज़िलें की छ: तहसीलों के अलावा सवाईमाधोपुर ज़िले की दो तहसील गंगापुर एंव बामनवास आती है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से खनिज, सेण्ड स्टोन, मैषनरी स्टेशन, सोप स्टोन, सिलिका सेण्ड इत्यादि का खनन होता है। इस खण्ड में कुल 260 खनन पटटे स्वीकृत है। जिनका क्षेत्रफल 15568 हैक्टर है। जिसमें से करीब 13210 हैक्टर क्षेत्र में खनिज सेण्ड स्टोन का है। उक्त 260 खनन पटटों से स्थिर भाटक रू 11059000 प्राप्त होता है एंव अधिक अधिशुल्क रायल्टी कलेक्टषन ठेंको को शामिल करते हुए वित्तीय वर्ष 2001-02 में कुल 381.06 लाख की आय विभाग को हुई थी ।<br />


|जिला करौली का क्षेत्र पुराने करौली राज्य तथा जयपुर राज्य की गंगापुर एवं हिण्डौन निजामतों में आता
===='वनस्पति एवं वन सम्पदा'====
है। कल्याणपुरी नामक इस क्षेत्र को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने का श्रेय यदुवंसी राजाओं को जाता है। कार्ल
ज़िले मे पाये जाने वाले महत्वपूर्ण पेड़ नीम बबूल, बेरी, धौंक, रोंझ, तेन्दु, सालर, खैर, सनथा, जामुन, आम, घनेरी, बास, खेजडा, बरगद, पीपल आदि है। इस क्षेत्र में पार्इ जाने वाली प्रमुख जडी बूटिया ओधीझाडा, चीचड़ा, पोलर, कालीलम्प, लपला, कंैच, गूगल आदि है। ज़िले में सिथत वनों से इमारती लकड़ी, र्इधन, लकड़ी का कोयला, पशुओं के लिए चारा, घास-फूस, तेन्दूपत्ता, गोंद, धौक के पत्ते, शहद, मोम, जड़ी बूटिया फल, कत्था, कंरज तथा दूसरी अन्य उपयोगी वस्तुप्राय प्राप्त होती है।
माक्र्स और कर्नल टाड ने अपनी पुस्तक में भी इसका वर्णन किया है। करौली राज्य अप्रैल 1949 को मत्स्य संघ में
समिमलित हुआ बाद में जयपुर राज्य के साथ मिलकर वृहत संयुक्त राज्य राजस्थान का भाग बना। राजस्थान
सरकार द्वारा 1 मार्च 1997 को सवार्इमाधोपुर जिले की पांच तहसीलों को मिलाकर एक अलग जिला करौली का
गठन किया। 15 जुलार्इ 1997 को करौली जिला निर्माण की अधिसूचना जारी करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री
भैराेंसिंह शेखावत ने 19 जुलार्इ 1997 को इस जिले का उदधाटन
किया। 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की जनसंख्या 1458459
तथा क्षेत्रफल 5043 वर्ग किलोमीटर है। राज्य की प्रमुख नदी चम्बल
इस जिले को मध्यप्रदेश राज्य से अलग करती है। इस जिले में
बहुसंख्या में पाये जाने वाले किले एवं गढ इसके पुराने गौरव की ओर
संकेत करते है। इनमें से तिमनगढ, उटगिरी, मण्डरायल के किलों का
देश के मध्यकालीन इतिहास
में प्रमुख स्थान रहा है।<br />
 
तिमनगढ के किले पर यदुवंश<br />
 
की प्रमुखता रही है। सन 1093 से 1159 में राजा तिमनपाल इस वंश का
शकितशाली राजा था, जिसने अपनी शकित को बढाकर तिमनगढ का
निर्माण कराया। ऐतिहासिक महापुरूषों के नाम की अनेक छतरियां इस
क्षेत्र में आज भी मौजूद है। तिमनगढ, करौली, हिण्डौन आदि स्थानों में
पाये गये प्रारभिभक तथा मध्ययुग के मूर्तिकला एवं वास्तुकला के नमूने
पुराने समय में भव्य मंदिरों का होना सि़द्ध करते है। राजा मोरध्वज की
नगरी गढमोरा करौली जिले में है, जहां आज भी पुराने अवशेष मौजूद है।<br />
 
'''भौगोलिक सिथति एवं जलवायु'''<br />
 
करौली अपनी भौगोलिक विशिष्टताओं के लिए भी विख्यात है। यह जिला प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर एवं
विध्याचंल व अरावली पर्वत मालाओं से आच्छादित है। जिले का कुछ भाग समतल एवं कुछ भाग उचा नीचा एवं
पहाडियों वाला है। करौली मण्डरायल उपखण्ड को पहाडी इलाका कहा जाता है जबकि बाकी क्षेत्र सामान्यता
समतल एवं मैदानी है। मैदानी क्षेत्र उपजाऊ है तथा यहा की मिटटी हल्की एवं रेतीली है। करौली एवं मण्डरायल
उपखण्ड का क्षेत्र, जो स्थानीय भाषा में डांग कहलाता है, पहाडियों एवं नदियों से भरा है।
जिले की ऊचार्इ समुन्द्र की सतह से 400 से 600 मीटर तक है। जिले के पशिचम में दौसा, दक्षिण पशिचम में
सवार्इमाधोपुर, उत्तर पूर्व में धौलपुर तथा पशिचम उत्तर में भरतपुर जिले की सीमाएं लगती है। यह जिला 26
डिग्री 3 सै. से 49 डिग्री उत्तर पशिचम अक्षाश तथा 76 डिग्री 35 से 77 डिग्री 26 पूर्व देशान्तरों के मध्य सिथत
है।
जिले में अल्पकालीन मौसम के अलवा शेष समय जलवायु शुष्क रहती है। सर्दी नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह से
मार्च तक रहती है, जबकि गर्मी मार्च के अन्त से जून के तीसरे सप्ताह तक रहती है। जिले की सामान्य वार्षिक
वर्ष 668.86 मि.मी. है। जिले में औसतन 35 दिन वर्षा होती है। जिले का दैनिक अधिकतम तापमान का औसत मर्इ
माह में 49 डिग्री सेल्सीयस रहता है तथा न्यूनतम 2.00 डिग्री सैलिस. जनवरी में रहता है।<br />
 
'''प्रशासनिक व्यवस्था'''<br />
 
प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत जिला कलेक्टर जिले का सर्वोच्च अधिकारी होने के साथ-साथ समस्त प्रशासनिक
एवं कानून व्यवस्थाओं के लिए उत्तरदायी है। जिले को छ: उपखण्डो करौली, हिण्डौन, सपोटरा, मण्डरायल,
टोडाभीम एवं नादौती में विभाजित किया हुआ है। इन उपखण्डों को 5 पंचायत समिति एवं 6 तहसीलों में
विभाजित कर क्षेत्राधिकारी निर्धारण किया हुआ है। जिलें में तीन नगरपालिका क्रमश: करौली, हिण्डौन एवं
टोडाभीम हंै। जिले के प्रशासनिक स्वरूप में जनभागीदारी के रूप में एक लोकसभा सदस्य तथा चार विधानसभा
सदस्य है।<br />
 
'''भूगर्भ एवं खनिज'''<br />
 
जिला करौली एक तरफ से चम्बल तथा तीन तरफ से मैदानों से घिरा हुआ है। इसके मैदान
कैमबि्रयन-पूर्व की आग्नेय चêानों तथा उनकी तलछट से बनी चêानों के रूपान्तरण से बने है । अरावली की पूर्व
चêाने स्फटिक, अभ्रक, नार्इसिस्ट, मिग्मा टाइटस आदि की बनी हुर्इ है। महान विंध्य श्रेणी की चêाने जिनमें
कैमूल, रीवा, भाण्डेर प्रमुख है, विभिन्न प्रकार के सलेटी पत्थर, बालू पत्थर तथा चूना पत्थर से परिपूर्ण है। जिला
अनेक प्रकार के धातिवक एवं अधातिवक खनिजों से परिपूर्ण है। धातुओं में शीषा, तांबा, लोहा अयस्क आदि तथा
अधातुओं में चूना, पत्थर, चिकनी मिêी, सिलिका ,सैलरूडा आदि प्रमुख रूप से पाये जाते है।
इसके अलावा जिले में लेट्रार्इट, रेड आक्सार्इड, बैनेटोनार्इट, बेरार्इट, मैगनीज मिêी तथा काली मिêी पार्इ
जाती है । जिले में विभिन्न प्रकार की चêानों से मिलने वाले खनिज जैसे र्इमारत बनाने के पत्थर, सजावट के
पत्थर आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । भाण्डेर श्रेणी का गुलाबी पत्थर एवं सफेद निषानों वाला पत्थर करौली
एवं हिण्डौन क्षेत्र में काफी मात्रा में पाया जाता है । सीमेन्ट श्रेणी का चूना पत्थर एवं सिलिकासैण्ड सपोटरा
,नादौती क्षेत्र मे पाया जाता है। खनिज अभियन्ता करौली के अन्तर्गत इस जिलें की छ: तहसीलों के अलावा सवार्इ
माधोपुर जिले की दो तहसील गंगापुर एंव बामनवास आती है । इस क्षेत्र में मुख्यरूप से खनिज , सेण्ड स्टोन ,
मैषनरी स्टेान , सोप स्टोन , सिलिका सेण्ड इत्यादि का खनन होता है । इस खण्ड में कुल 260 खनन पटटे
स्वीकृत है । जिनका क्षेत्रफल 15568 हैक्टर है । जिसमें से करीब 13210 हैक्टर क्षेत्र में खनिज सेण्ड स्टोन का है
। उक्त 260 खनन पटटों से सिथर भाटक रू 11059000 प्राप्त होता है एंव अधिक अधिषुल्क रायल्टी कलेक्टषन
ठेंको को शामिल करते हुए वित्तीय वर्ष 2001-02 में कुल 381.06 लाख की आय विभाग को हुर्इ थी ।<br />
 
'''वनस्पति, वन सम्पदा'''<br />
 
जिले मे पाये जाने वाले महत्वपूर्ण पेड़ नीम बबूल ,बेरी, धौंक, रोंझ,तेन्दु, सालर, खैर, सनथा, जामुन, आम, घनेरी,
बास, खेजडा, बरगद, पीपल आदि है। इस क्षेत्र में पार्इ जाने वाली प्रमुख जडी बूटिया ओधीझाडा, चीचड़ा, पोलर,
कालीलम्प, लपला, कंैच, गूगल आदि है। जिले में सिथत वनों से इमारती लकड़ी, र्इधन, लकड़ी का कोयला, पशुओं
के लिए चारा, घास-फूस, तेन्दूपत्ता, गोंद, धौक के पत्ते, शहद, मोम, जड़ी बूटिया फल, कत्था, कंरज तथा दूसरी
अन्य उपयोगी वस्तुएें प्राप्त होती है।<br />


'''जीव जन्तु'''<br />
'''जीव जन्तु'''<br />


जिला करौेली वन्य प्राणियों के मामले में सम्पन्न है इसमें विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाये जाते है जिनमें तेन्दुएें,
ज़िला करौेली वन्य प्राणियों के मामले में सम्पन्न है इसमें विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाये जाते है जिनमें तेन्दुएें,
जंगली कुत्ता, सांभर, नील गाय, चीतल, चिंकारा, जंगली सुअर, रीछ प्रमुख हैं। जिलें में कैलादेवी वन्य अभ्यारण्य
जंगली कुत्ता, सांभर, नील गाय, चीतल, चिंकारा, जंगली सुअर, रीछ प्रमुख हैं। ज़िलें में कैलादेवी वन्य अभ्यारण्य
सन 1983 में स्थापित किया गया था, जिसको सन 1991 में रणथम्भौर रिजर्व के नजदीक मानते हुए संरक्षित वन
सन 1983 में स्थापित किया गया था, जिसको सन 1991 में रणथम्भौर रिजर्व के नजदीक मानते हुए संरक्षित वन
क्षेत्र एवं वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया गया है जिसमे यदा कदा बाघ देखे जा सकते है। अभ्यारण्य का
क्षेत्र एवं वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया गया है जिसमे यदा कदा बाघ देखे जा सकते है। अभ्यारण्य का
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'''फसल पद्धति:'''<br />
'''फसल पद्धति:'''<br />


जिले मे तीनों मौसमों में फसल की बुबार्इ का कार्य होता है खरीफ वर्षा पर आधारित है। जो जुलार्इ माह में
ज़िले मे तीनों मौसमों में फसल की बुबार्इ का कार्य होता है खरीफ वर्षा पर आधारित है। जो जुलार्इ माह में
प्रारम्भ होता है । इसमें बोर्इ जाने वाली मुख्य फसलें बाजरा, मक्का, तिल, ज्वार, ग्वार आदि हैं। रबी की बुवार्इ
प्रारम्भ होता है । इसमें बोर्इ जाने वाली मुख्य फसलें बाजरा, मक्का, तिल, ज्वार, ग्वार आदि हैं। रबी की बुवार्इ
अक्टूबर से प्रारम्भ होती है, जिसमें मुख्यतया जौ, चना, गेहू , सरसों की बुवार्इ होती है। यहा के लोगो का मुख्य
अक्टूबर से प्रारम्भ होती है, जिसमें मुख्यतया जौ, चना, गेहू , सरसों की बुवार्इ होती है। यहा के लोगो का मुख्य
व्यवसाय कृषि एवं खनन कार्य है। भूमिगत पानी की कमी एवं सिंचार्इ सुविधा की कमी के कारण कृषि मुख्यतया
व्यवसाय कृषि एवं खनन कार्य है। भूमिगत पानी की कमी एवं सिंचार्इ सुविधा की कमी के कारण कृषि मुख्यतया
वर्षा पर निर्भर है। कृषि विपणन के लिए जिले में हिण्डौन में कृषि उपज मण्डी एवं करौली, टोडाभीम में गौण मंडी
वर्षा पर निर्भर है। कृषि विपणन के लिए ज़िले में हिण्डौन में कृषि उपज मण्डी एवं करौली, टोडाभीम में गौण मंडी
हैं।<br />
हैं।<br />


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करौली की हस्तकला में प्रमुख स्थान लाख की चूडियों का है लगभग एक लाख रूपये की चूडियों का
करौली की हस्तकला में प्रमुख स्थान लाख की चूडियों का है लगभग एक लाख रूपये की चूडियों का
प्रतिवर्ष अन्य प्रांतों में निर्यात किया जाता है। चूडियों बनाने का काराबार जिले में हिण्डौन एवं करौली शहरों में
प्रतिवर्ष अन्य प्रांतों में निर्यात किया जाता है। चूडियों बनाने का काराबार ज़िले में हिण्डौन एवं करौली शहरों में
स्थानीय लखेरा एवं मुसिलम सम्प्रदाय के लोगों द्वारा किया जाता है। इस कार्य में करीब पांच सौ लोगों को
स्थानीय लखेरा एवं मुसिलम सम्प्रदाय के लोगों द्वारा किया जाता है। इस कार्य में करीब पांच सौ लोगों को
रोजगार मिला हुआ है। इसके अलावा करौली जिले मेें लकडी के खिलौने, घरेलू उपयोग की सामगि्रयों में
रोजगार मिला हुआ है। इसके अलावा करौली ज़िले मेें लकडी के खिलौने, घरेलू उपयोग की सामगि्रयों में
चकला-बेलन, दही बिलौने की रर्इ, लकके चम्मच एवं चारपार्इ व दीवान आदि भी बनाएं जाते हैं। वर्तमान में पत्थर
चकला-बेलन, दही बिलौने की रर्इ, लकके चम्मच एवं चारपार्इ व दीवान आदि भी बनाएं जाते हैं। वर्तमान में पत्थर
तराषी कर मूर्तियों एवं जाली झरोखे बनाने का कार्य भी रीको क्षेत्र हिण्डौन व करौली में किये जाने लगा है।<br />
तराषी कर मूर्तियों एवं जाली झरोखे बनाने का कार्य भी रीको क्षेत्र हिण्डौन व करौली में किये जाने लगा है।<br />
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'''सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां'''<br />
'''सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां'''<br />


जिले मे लोगों के सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में मेले एवं त्यौहारों का महत्वपूर्ण स्थान है। अधिकांष
ज़िले मे लोगों के सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में मेले एवं त्यौहारों का महत्वपूर्ण स्थान है। अधिकांष
मौसमी एवं धार्मिक महत्व के है। इन मेलों का व्यापारिक, पर्यटन एवं सांस्कृतिक दृषिट से एकता के लिए महत्वपूर्ण
मौसमी एवं धार्मिक महत्व के है। इन मेलों का व्यापारिक, पर्यटन एवं सांस्कृतिक दृषिट से एकता के लिए महत्वपूर्ण
स्थान हैं। जिले के मुख्य मेले कैलादेवी मेला, महावीरजी, मेहन्दीपुर बालाजी एवं मदनमोहनजी के है, जिनमें लाखों
स्थान हैं। ज़िले के मुख्य मेले कैलादेवी मेला, महावीरजी, मेहन्दीपुर बालाजी एवं मदनमोहनजी के है, जिनमें लाखों
की संख्या में दर्षनार्थी आते है। राज्य के अन्य हिस्सों की तरह इस जिले में भी हिन्दुओं के रक्षाबन्धन, होली,
की संख्या में दर्षनार्थी आते है। राज्य के अन्य हिस्सों की तरह इस ज़िले में भी हिन्दुओं के रक्षाबन्धन, होली,
दीपावली, जन्माष्टमी, दषहरा, गणगौर तथा मुसलमानों के इदुलजुहा, रमजान, इदुलफितर त्योहार प्रमुख हैं।
दीपावली, जन्माष्टमी, दषहरा, गणगौर तथा मुसलमानों के इदुलजुहा, रमजान, इदुलफितर त्योहार प्रमुख हैं।
ऐतिहासिक एवं पुरातातिवक स्थल जिले में निम्नलिखित विषेष महत्व के स्थान है
ऐतिहासिक एवं पुरातातिवक स्थल ज़िले में निम्नलिखित विषेष महत्व के स्थान है
वर्तमान जिला मुख्यालय करौली राजपूतानें की प्राचीन रियासतों में से एक प्रमुख रियासत थी। यहां के षासकों
वर्तमान ज़िला मुख्यालय करौली राजपूतानें की प्राचीन रियासतों में से एक प्रमुख रियासत थी। यहां के षासकों
का सन 1100 से लेकर सन 1947 तक का गौरवषाली इतिहास रहा है। रियासत के यदुवंषी राजाओं ने अपनी
का सन 1100 से लेकर सन 1947 तक का गौरवषाली इतिहास रहा है। रियासत के यदुवंषी राजाओं ने अपनी
गरिमा की सुरक्षा, प्रजा के संरक्षण व प्राकृतिक आपदाओं के संधारण हेतु अनेक महल, किले व गढियों का निर्माण
गरिमा की सुरक्षा, प्रजा के संरक्षण व प्राकृतिक आपदाओं के संधारण हेतु अनेक महल, क़िले व गढियों का निर्माण
कराया। इन महलों किलों व गढियों में वास्तु विषेषज्ञता, स्थापत्य कला और चित्रकारी के दुर्लभ नमूने देखने को
कराया। इन महलों किलों व गढियों में वास्तु विषेषज्ञता, स्थापत्य कला और चित्रकारी के दुर्लभ नमूने देखने को
मिलते है। एक प्राचीन राज्य होने के कारण करौली में ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटक महत्व के स्थानों की बहुलता
मिलते है। एक प्राचीन राज्य होने के कारण करौली में ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटक महत्व के स्थानों की बहुलता
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'''करौली शहर'''<br />
'''करौली शहर'''<br />


करौली जिला मुख्यालय पूर्व में करौली राज्य की राजधानी थी। करौली कस्बे की स्थापना 1348 में यादववंश के
करौली ज़िला मुख्यालय पूर्व में करौली राज्य की राजधानी थी। करौली कस्बे की स्थापना 1348 में यादववंश के
राजा अजर्ुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था जो कल्याणजी के मनिदर के कारण प्रसिद्व था।
राजा अजर्ुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था जो कल्याणजी के मनिदर के कारण प्रसिद्व था।
इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण भद्रावती नगरी भी कहा जाता था। करौली कस्बा चारों तरफ से
इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण भद्रावती नगरी भी कहा जाता था। करौली कस्बा चारों तरफ से
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'''हिण्डौन सिटी:'''<br />
'''हिण्डौन सिटी:'''<br />


हिण्डौन नगर करौली जिले की सबसे बडी नगरपालिका है। इस पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगर की स्थापना
हिण्डौन नगर करौली ज़िले की सबसे बडी नगरपालिका है। इस पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगर की स्थापना
किसने की इसके सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नही हैं। सम्भवत: यह भूमि हिरण्यकश्यप व भक्त प्रहलाद की
किसने की इसके सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नही हैं। सम्भवत: यह भूमि हिरण्यकश्यप व भक्त प्रहलाद की
कर्म भूमि रही है। यहां पर आज भी नृसिंह मनिदर, प्रहलाद कुण्ड, हिरण्यकश्यप के महल, बावडि़यों के अवशेष हैं।
कर्म भूमि रही है। यहां पर आज भी नृसिंह मनिदर, प्रहलाद कुण्ड, हिरण्यकश्यप के महल, बावडि़यों के अवशेष हैं।
यहां से कुछ दूरी पर कुण्डेवा, जगर, दानघाटी पौराणिक स्थान है। जनश्रुतियो के अनुसार महाभारत कालीन
यहां से कुछ दूरी पर कुण्डेवा, जगर, दानघाटी पौराणिक स्थान है। जनश्रुतियो के अनुसार महाभारत कालीन
हिडिम्बा नामक राक्षसी की कर्मस्थली भी यही क्षेत्रा रहा था। हिण्डौन वर्तमान में जिले का प्रमुख औधोगिक
हिडिम्बा नामक राक्षसी की कर्मस्थली भी यही क्षेत्रा रहा था। हिण्डौन वर्तमान में ज़िले का प्रमुख औधोगिक
वाणिजियक नगर है यहां से उत्तर-मध्य रेलवे का दिल्ली मुम्बर्इ मार्ग गुजरता है साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग 11 से
वाणिजियक नगर है यहां से उत्तर-मध्य रेलवे का दिल्ली मुम्बर्इ मार्ग गुजरता है साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग 11 से
दूरी 41 कि0मी0 है। यहां पर पत्थर तरासी, स्लेट उधोग का करोबार बडे स्तर पर किया जाता है<br />
दूरी 41 कि0मी0 है। यहां पर पत्थर तरासी, स्लेट उधोग का करोबार बडे स्तर पर किया जाता है<br />


'''तिमनगढ़ का किला'''<br />
'''तिमनगढ़ का क़िला'''<br />


यह किला जिला मुख्यालय करौली से 42 किलोमीटर दूर
यह क़िला ज़िला मुख्यालय करौली से 42 किलोमीटर दूर
मासलपुर कस्बे के पास सिथत है। यहां बेजोड़ पुरातत्व संबंधी मूर्तिया
मासलपुर कस्बे के पास सिथत है। यहां बेजोड़ पुरातत्व संबंधी मूर्तिया
हैं। प्रचलित मान्यता के अनुसार संवत 1244 में यदुवंशी शासक
हैं। प्रचलित मान्यता के अनुसार संवत 1244 में यदुवंशी शासक
तिमनपाल ने इस किले का निर्माण कराया थां। कुछ इतिहासकार इस
तिमनपाल ने इस क़िले का निर्माण कराया थां। कुछ इतिहासकार इस
किले को 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन बताते है किले के अन्दर कर्इ
क़िले को 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन बताते है क़िले के अन्दर कर्इ
शिलालेखाें, उपलब्ध प्राचीन कृतियों से पता चलता है कि इसे किसी
शिलालेखाें, उपलब्ध प्राचीन कृतियों से पता चलता है कि इसे किसी
शिल्पी व कलाप्रेमी ने बसाया था, जो बाद में शासकों के कब्जे मे
शिल्पी व कलाप्रेमी ने बसाया था, जो बाद में शासकों के कब्जे मे
चला गया। किले के चारों ओर पांच फीट मोटा तथा करीब 30 फीट
चला गया। क़िले के चारों ओर पांच फीट मोटा तथा करीब 30 फीट
ऊंचा परकोटा स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है। किले के भीतर बाजार, फर्श, बगीची, मनिदर, कुंए कि अवशेष
ऊंचा परकोटा स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है। क़िले के भीतर बाजार, फर्श, बगीची, मनिदर, कुंए कि अवशेष
आज भी मौजूद हैं। पूरा किला अपने अन्दर एक पूरा नगर समेटे हुए हैं। प्रवेश द्वार पर अक्सर ब्रहमा, गणेश की
आज भी मौजूद हैं। पूरा क़िला अपने अन्दर एक पूरा नगर समेटे हुए हैं। प्रवेश द्वार पर अक्सर ब्रहमा, गणेश की
मूर्तिया नजर आती है, लेकिन यहा प्रेत व राक्षसों के चित्र देखने को मिलते है। किले मे जगह -जगह खणिडत
मूर्तिया नजर आती है, लेकिन यहा प्रेत व राक्षसों के चित्र देखने को मिलते है। क़िले मे जगह -जगह खणिडत
मूर्तियाें को देखने से ऐसा लगता है कि यहा मूर्तियों की बहुत बडी मण्डी थी। दुर्ग में छोटे - छोटे कमरे भी हैं,
मूर्तियाें को देखने से ऐसा लगता है कि यहा मूर्तियों की बहुत बडी मण्डी थी। दुर्ग में छोटे - छोटे कमरे भी हैं,
जो संभवत: स्नानघर के काम आते होंगे।<br />
जो संभवत: स्नानघर के काम आते होंगे।<br />


'''मण्डरायल का किला'''<br />
'''मण्डरायल का क़िला'''<br />


करौली शहर से 40 किलो मीटर दूर दक्षिण पूर्व में पहाडों के मध्य एक आयताकार पहाडी के नीचे बसी एक
करौली शहर से 40 किलो मीटर दूर दक्षिण पूर्व में पहाडों के मध्य एक आयताकार पहाडी के नीचे बसी एक
पंक्ति 235: पंक्ति 171:
दो गोलाकार गुबंद है । दूसरा दरवाजा सूर्यपोल नाम हैं, जो रानीपुरा इलाके की तरफ उतरता है। इस दरवाजें
दो गोलाकार गुबंद है । दूसरा दरवाजा सूर्यपोल नाम हैं, जो रानीपुरा इलाके की तरफ उतरता है। इस दरवाजें
की खासियत है कि पौर से प्रात: से साय तक सूर्य का प्रकाष रहता है । इसके अन्दर एक सुरक्षित टांका ओर
की खासियत है कि पौर से प्रात: से साय तक सूर्य का प्रकाष रहता है । इसके अन्दर एक सुरक्षित टांका ओर
बाहर दो तालाब है । तालाब के किनारे त्रिदेव भगवान के मनिदर ओर बारहदारी है । पूर्व में इस किले की दीवारों
बाहर दो तालाब है । तालाब के किनारे त्रिदेव भगवान के मनिदर ओर बारहदारी है । पूर्व में इस क़िले की दीवारों
पर उर्दु में कुछ घटनायें लिपिबद्व थी , जो अब नष्ट हो चुकी है ।<br />
पर उर्दु में कुछ घटनायें लिपिबद्व थी , जो अब नष्ट हो चुकी है ।<br />


पंक्ति 242: पंक्ति 178:
सिथत है। लगभग 4 कि0मी0 क्षेत्र में फेले इस दुर्ग में 100 फुट की ऊंचार्इ से नीचे षिवलिंगों पर पानी गिरता है।
सिथत है। लगभग 4 कि0मी0 क्षेत्र में फेले इस दुर्ग में 100 फुट की ऊंचार्इ से नीचे षिवलिंगों पर पानी गिरता है।
इस पानी में बडी मात्रा में षिलाजीत मिलता है। यह दुर्ग भी सामरिक दृषिट से महत्वपूर्ण रहा है। 1506-07 र्इ. में
इस पानी में बडी मात्रा में षिलाजीत मिलता है। यह दुर्ग भी सामरिक दृषिट से महत्वपूर्ण रहा है। 1506-07 र्इ. में
सिकन्दर लोदी ने इस पर आक्रमण किया था उस समय इसे ग्वालियर किले की कुंजी कहा जाता था। अंतिम
सिकन्दर लोदी ने इस पर आक्रमण किया था उस समय इसे ग्वालियर क़िले की कुंजी कहा जाता था। अंतिम
मुगल सल्तनत तक इस किले पर यदुवंषियों का ही आधिपत्य रहा।<br />
मुगल सल्तनत तक इस क़िले पर यदुवंषियों का ही आधिपत्य रहा।<br />


'''देव गिरि'''<br />
'''देव गिरि'''<br />


उंट गिरि के पूर्व में चम्बल नदी के किनारे सिथत यह किला खण्डहर होते हुए भी अतीत की अनेक घटनाओं का
उंट गिरि के पूर्व में चम्बल नदी के किनारे सिथत यह क़िला खण्डहर होते हुए भी अतीत की अनेक घटनाओं का
साक्षी है। परकोटे के नाम पर आज कुछ भी नही मिलता साथ ही अन्दर के सभी आवासीय भागों को नष्ट किया
साक्षी है। परकोटे के नाम पर आज कुछ भी नही मिलता साथ ही अन्दर के सभी आवासीय भागों को नष्ट किया
जा चुका है। सन 1506-07 र्इ. में सिकन्दर लोदी के आक्रमण के समय इस किले को सबसे अधिक नुकसान
जा चुका है। सन 1506-07 र्इ. में सिकन्दर लोदी के आक्रमण के समय इस क़िले को सबसे अधिक नुकसान
पहुचाया गया। वर्तमान में यहां एक बावडी, जर्जर होता षिलालेख तथा कुछ हवेलियों के अवषेष है।<br />
पहुचाया गया। वर्तमान में यहां एक बावडी, जर्जर होता षिलालेख तथा कुछ हवेलियों के अवषेष है।<br />


'''बहादुरपुर का किला'''<br />
'''बहादुरपुर का क़िला'''<br />


करौली जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर मण्डरायल मार्ग पर ससेड गांव के पास जंगल और सुनसान
करौली ज़िला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर मण्डरायल मार्ग पर ससेड गांव के पास जंगल और सुनसान
वातावरण में अटल योद्वा सा खडा बहादुरपुर का किला मुगलकालीन स्थापत्य कला का बेजोड नमूना है। दो
वातावरण में अटल योद्वा सा खडा बहादुरपुर का क़िला मुगलकालीन स्थापत्य कला का बेजोड नमूना है। दो
मंजिला नृप गोपाल भवन, सहेली की बाबडी कलात्मक झरोखे 18 फीट लम्बी चीरियों की आमखास कचहरी,
मंज़िला नृप गोपाल भवन, सहेली की बाबडी कलात्मक झरोखे 18 फीट लम्बी चीरियों की आमखास कचहरी,
पंचवीर, मगधराय की छतरी दर्षनीय है। यदुवंषी राजा तिमनपाल के पुत्र नागराज द्वारा निर्मित इस किले का
पंचवीर, मगधराय की छतरी दर्षनीय है। यदुवंषी राजा तिमनपाल के पुत्र नागराज द्वारा निर्मित इस क़िले का
विस्तार सन 1566 से 1644 तक होता रहा। जयपुर के राजा सवार्इ जयंिसह ने इस किले में तीन माह तक प्रवास
विस्तार सन 1566 से 1644 तक होता रहा। जयपुर के राजा सवार्इ जयंिसह ने इस क़िले में तीन माह तक प्रवास
किया था।<br />
किया था।<br />


'''शहर किला एवं छतरी'''<br />
'''शहर क़िला एवं छतरी'''<br />


नादौती तहसील के ग्राम शहर में यह किला उंची पहाडी पर बना हुआ है तथा आज भी सुरक्षित एवं आबाद है।
नादौती तहसील के ग्राम शहर में यह क़िला उंची पहाडी पर बना हुआ है तथा आज भी सुरक्षित एवं आबाद है।
यहा के ठिकानेदार आमेर के राजा पृथ्वीराज के पुत्र पच्चाण के वंषज है। इसमें देवी का प्राचीन मंदिर है।<br />
यहा के ठिकानेदार आमेर के राजा पृथ्वीराज के पुत्र पच्चाण के वंषज है। इसमें देवी का प्राचीन मंदिर है।<br />


'''फतेहपुर किला'''<br />
'''फतेहपुर क़िला'''<br />


करौली जिला मुख्यालय से लगभग 30 कि.मी. दूर कंचनपुर जाने वाले मार्ग पर सिथत यह किला यदु शासकों के
करौली ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 कि.मी. दूर कंचनपुर जाने वाले मार्ग पर सिथत यह क़िला यदु शासकों के
एक बडे जागीरदार हरनगर के ठाकुर घासीराम द्वारा 1702 र्इ. में निर्मित किया गया। यह किला सुरक्षित अवस्था
एक बडे जागीरदार हरनगर के ठाकुर घासीराम द्वारा 1702 र्इ. में निर्मित किया गया। यह क़िला सुरक्षित अवस्था
में है।<br />
में है।<br />


'''किला नारौली डांग'''<br />
'''क़िला नारौली डांग'''<br />


सपोटरा उपखण्ड मुख्यालय से .... दूरी पर सिथत यह किला पहाडी के उपर बना हुआ है। तत्कालीन करौली एवं
सपोटरा उपखण्ड मुख्यालय से .... दूरी पर सिथत यह क़िला पहाडी के उपर बना हुआ है। तत्कालीन करौली एवं
जयपुर रियासतों की सीमा पर सिथत नारौली डांग गांव में स्थानीय जागीरदार द्वारा इसका निर्माण कराया गया
जयपुर रियासतों की सीमा पर सिथत नारौली डांग गांव में स्थानीय जागीरदार द्वारा इसका निर्माण कराया गया
था।<br />
था।<br />
पंक्ति 289: पंक्ति 225:
से प्रभावित हुए बिना नही रह सकता।<br />
से प्रभावित हुए बिना नही रह सकता।<br />


'''रामठरा किला'''<br />
'''रामठरा क़िला'''<br />


भारत के प्रमुख वन्य जीव अम्भारण्य रगथम्भोर एवं घना पक्षी बिहार भरतपुर के बीच करौली जिले के सपोटरा
भारत के प्रमुख वन्य जीव अम्भारण्य रगथम्भोर एवं घना पक्षी बिहार भरतपुर के बीच करौली ज़िले के सपोटरा
उपखण्ड में सिथत रामठरा फोर्ट कैलादेवी राष्ट्रीय अम्भारण्य से मात्र 15 किलोमीटर दूर है।<br />
उपखण्ड में सिथत रामठरा फोर्ट कैलादेवी राष्ट्रीय अम्भारण्य से मात्र 15 किलोमीटर दूर है।<br />


'''सुख विलास बाग एवं शाही कुण्ड'''<br />
'''सुख विलास बाग एवं शाही कुण्ड'''<br />


जिला मुख्यालय सिथत भ्रदावती नदी के किनारे एक सुन्दर महलनुमा चारदिवारी के अन्दर बाग लगाया गया था
ज़िला मुख्यालय सिथत भ्रदावती नदी के किनारे एक सुन्दर महलनुमा चारदिवारी के अन्दर बाग लगाया गया था
जिसका उपयोग रानिया अपने आमोद-प्रमोद के लिए करती थी इसे सुख विलास बाग कहते है। शहर के पर
जिसका उपयोग रानिया अपने आमोद-प्रमोद के लिए करती थी इसे सुख विलास बाग कहते है। शहर के पर
कोटे के बहार सुखविलास के पास भव्य शाही कुण्ड बना हुआ है तीन मंजिला बावडीनुमा इस कुण्ड की बनावट
कोटे के बहार सुखविलास के पास भव्य शाही कुण्ड बना हुआ है तीन मंज़िला बावडीनुमा इस कुण्ड की बनावट
अद्वितीय है इसमें प्रत्येक मंजिल पर बरामदे एवं उतरने हेतू चारो तरफ सिढियां बनी है। रियासत काल में इस
अद्वितीय है इसमें प्रत्येक मंजिल पर बरामदे एवं उतरने हेतू चारो तरफ सिढियां बनी है। रियासत काल में इस
कुण्ड का उपयोग शहर में पेयजल सप्लार्इ के लिए किया जाता था।<br />
कुण्ड का उपयोग शहर में पेयजल सप्लार्इ के लिए किया जाता था।<br />
पंक्ति 319: पंक्ति 255:


करौली में महाराजा गोपालसिंहजी की छतरी, रणगमा तालाब, सुख विलास कुण्ड, एवं षिकारगंज आदि करौली के
करौली में महाराजा गोपालसिंहजी की छतरी, रणगमा तालाब, सुख विलास कुण्ड, एवं षिकारगंज आदि करौली के
पुरा वैभव प्रतीक है। साथ ही जिले के सपोटरा में नारौली डांग का किला, गढमोरा (नादौती) में राजा मोरध्वज का
पुरा वैभव प्रतीक है। साथ ही ज़िले के सपोटरा में नारौली डांग का क़िला, गढमोरा (नादौती) में राजा मोरध्वज का
महल व मनिदर, षहर सोप का ऊची पहाडी पर निर्मित किला, हिण्डौन की पुरानी कचहरी व प्रहलाद कुण्ड जैसे
महल व मनिदर, षहर सोप का ऊची पहाडी पर निर्मित क़िला, हिण्डौन की पुरानी कचहरी व प्रहलाद कुण्ड जैसे
दर्षनीय ऐतिहासिक स्थल हमारी संस्कृति की पहचान है।<br />
दर्षनीय ऐतिहासिक स्थल हमारी संस्कृति की पहचान है।<br />


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'''बालाजी'''<br />
'''बालाजी'''<br />


यह एक छोटा सा गांव टोडाभीम तहसील से 5 कि0मी0 दूर है तथा जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राज्यमार्ग से जुडा
यह एक छोटा सा गांव टोडाभीम तहसील से 5 कि.मी. दूर है तथा जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राज्यमार्ग से जुडा
हुआ है। हिन्दुओ की आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर पहाडी की तलहटी मे निर्मित हनुमानजी का बहुत
हुआ है। हिन्दुओ की आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर पहाडी की तलहटी मे निर्मित हनुमानजी का बहुत
पुराना मनिदर है। लोग काफी दूर-दूर से यहां आते है। ऐसी मान्यता है कि हिस्टीरिया एवं डिलेरियम के रोगी
पुराना मनिदर है। लोग काफी दूर-दूर से यहां आते है। ऐसी मान्यता है कि हिस्टीरिया एवं डिलेरियम के रोगी
पंक्ति 370: पंक्ति 306:
'''शिल्प एवं उधोग'''<br />
'''शिल्प एवं उधोग'''<br />


करौली जिलें में षिल्प के उत्कृष्ट नमूने पाये जाते है । वास्तुषिल्प
करौली ज़िलें में षिल्प के उत्कृष्ट नमूने पाये जाते है । वास्तुषिल्प
के रूप में महाराजा गोपाल सिंह के शासन काल से षिल्प के क्षेत्र
के रूप में महाराजा गोपाल सिंह के शासन काल से षिल्प के क्षेत्र
में भारी विकास हुआ है । जिसका साक्षात प्रमाण करौली दुर्ग के
में भारी विकास हुआ है । जिसका साक्षात प्रमाण करौली दुर्ग के
रूप में है । 14वीं शताब्दी में निर्मित यह महल जहा साधारण
रूप में है । 14वीं शताब्दी में निर्मित यह महल जहा साधारण
दिखार्इ देते है । वही इस किले का बाहरी हिस्सा जो 17वी शताब्दी
दिखार्इ देते है । वही इस क़िले का बाहरी हिस्सा जो 17वी शताब्दी
में बनाया गया था । षिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है । बैहरदह में
में बनाया गया था । षिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है । बैहरदह में
बौहरों की हवेली एंव करौली नगर के कर्इ कलापूर्ण एंव भवनों का
बौहरों की हवेली एंव करौली नगर के कर्इ कलापूर्ण एंव भवनों का
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हवेलियां एंव रतियापुरा एंव कसारा की परेंडी विषेष षिल्पकला के नमूने है ।<br />
हवेलियां एंव रतियापुरा एंव कसारा की परेंडी विषेष षिल्पकला के नमूने है ।<br />


'''जिला एक दृषिट में'''<br />
'''ज़िला एक दृषिट में'''<br />


भौगोलिक सिथति 26 डिग्री 3 से 26 डिग्री 49 उत्तरी अक्षांष
भौगोलिक सिथति 26 डिग्री 3 से 26 डिग्री 49 उत्तरी अक्षांष
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समुद्रतल से ऊंचार्इ 400 से 600 मीटर
समुद्रतल से ऊंचार्इ 400 से 600 मीटर
तापमान अधिकतम 49 डिग्री न्यूनतम 2 डिग्री
तापमान अधिकतम 49 डिग्री न्यूनतम 2 डिग्री
जिले की औसत वर्षा 668.86 मिलीमीटर 1 जनवरी 05 से आज तक की
ज़िले की औसत वर्षा 668.86 मिलीमीटर 1 जनवरी 05 से आज तक की
वर्षा
वर्षा
555.23 मि.मी.
555.23 मि.मी.
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मेला
मेला
अंजनी माता का मेला
अंजनी माता का मेला
ऐतिहासिक स्थल तिमनगढ़ का किला मण्डरायल का किला
ऐतिहासिक स्थल तिमनगढ़ का क़िला मण्डरायल का क़िला
श्री महावीर जी कैलादेवी
श्री महावीर जी कैलादेवी
पर्यटन स्थल
पर्यटन स्थल

07:54, 29 जून 2012 का अवतरण

करौली ज़िला
[[चित्र:|करौली|200px|center]]
राज्य -राजस्थान
मुख्यालय करौली
स्थापना -1 मार्च 1997
जनसंख्या -1458459
क्षेत्रफल -5070 वर्ग कि. मी.
भौगोलिक निर्देशांक -
तहसील -6
मंडल -
खण्डों की सँख्या -6
आदिवासी -
विधान सभा क्षेत्र -
लोकसभा -
नगर पालिका -3
नगर निगम -
नगर -
क़स्बे -
कुल ग्राम -881
विद्युतीकृत ग्राम -
मुख्य ऐतिहासिक स्थल -
मुख्य पर्यटन स्थल -कैला देवी,श्री महावीर जी
वनक्षेत्र -172459 हैक्‍ट
बुआई क्षेत्र -201819 हैक्‍ट
सिंचित क्षेत्र -
नगरीय जनसंख्या -
ग्रामीण जनसंख्या -
राजस्व ग्राम -
आबादी रहित ग्राम -
आबाद ग्राम -
नगर पंचायत -
ग्राम पंचायत -
जनपद पंचायत -
सीमा -
अनुसूचित जाति -
अनुसूचित जनजाति -
प्रसिद्धि -
लिंग अनुपात - ♂/♀
साक्षरता - %
· स्त्री - %
· पुरुष - %
ऊँचाई - समुद्रतल से
तापमान -
· ग्रीष्म -
· शरद -
वर्षा - मिमि
दूरभाष कोड -
वाहन पंजी. -34
इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव"

करौली ज़िला भारत के राजस्थान राज्य का प्रमुख ज़िला है जो ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों ही दृष्टि से महत्त्वपूर्ण स्थान है।

इतिहास

ज़िला करौली का क्षेत्र पुराने करौली राज्य तथा जयपुर राज्य की गंगापुर एवं हिण्डौन निजामतों में आता है। कल्याणपुरी नामक इस क्षेत्र को वर्तमान स्वरूप प्रदान करने का श्रेय यदुवंशी राजाओं को जाता है। कार्ल मार्क्स और कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक में भी इसका वर्णन किया है। करौली राज्य अप्रैल 1949 को मत्स्य संघ में सम्मिलित हुआ बाद में जयपुर राज्य के साथ मिलकर वृहत संयुक्त राज्य राजस्थान का भाग बना। राजस्थान सरकार द्वारा 1 मार्च 1997 को सवाईमाधोपुर ज़िले की पांच तहसीलों को मिलाकर एक अलग ज़िला करौली का गठन किया। 15 जुलाई 1997 को करौली ज़िला निर्माण की अधिसूचना जारी करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैंरोसिंह शेखावत ने 19 जुलाई 1997 को इस ज़िले का उद्घाटन किया। 2011 की जनगणना के अनुसार ज़िले की जनसंख्या 1458459 तथा क्षेत्रफल 5043 वर्ग किलोमीटर है। राज्य की प्रमुख नदी चम्बल इस ज़िले को मध्यप्रदेश राज्य से अलग करती है। इस ज़िले में बहुसंख्या में पाये जाने वाले क़िले एवं गढ इसके पुराने गौरव की ओर संकेत करते है। इनमें से तिमनगढ, उटगिरी, मण्डरायल के किलों का देश के मध्यकालीन इतिहास में प्रमुख स्थान रहा है।

भौगोलिक स्थिति

करौली अपनी भौगोलिक विशिष्टताओं के लिए भी विख्यात है। यह ज़िला प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर एवं विध्याचंल व अरावली पर्वत मालाओं से आच्छादित है। ज़िले का कुछ भाग समतल एवं कुछ भाग उचा नीचा एवं पहाडियों वाला है। करौली मण्डरायल उपखण्ड को पहाडी इलाका कहा जाता है जबकि बाकी क्षेत्र सामान्यता समतल एवं मैदानी है। मैदानी क्षेत्र उपजाऊ है तथा यहा की मिटटी हल्की एवं रेतीली है। करौली एवं मण्डरायल उपखण्ड का क्षेत्र, जो स्थानीय भाषा में डांग कहलाता है, पहाडियों एवं नदियों से भरा है। ज़िले की ऊँचाई समुद्र की सतह से 400 से 600 मीटर तक है। ज़िले के पशिचम में दौसा, दक्षिण पश्चिम में सवाई माधोपुर, उत्तर पूर्व में धौलपुर तथा पश्चिम उत्तर में भरतपुर ज़िले की सीमाएं लगती है। यह ज़िला 26 डिग्री 3 सै. से 49 डिग्री उत्तर पशिचम अक्षाश तथा 76 डिग्री 35 से 77 डिग्री 26 पूर्व देशान्तरों के मध्य स्थित है। ज़िले में अल्पकालीन मौसम के अलावा शेष समय जलवायु शुष्क रहती है। सर्दी नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह से मार्च तक रहती है, जबकि गर्मी मार्च के अन्त से जून के तीसरे सप्ताह तक रहती है। ज़िले की सामान्य वार्षिक वर्ष 668.86 मि.मी. है। ज़िले में औसतन 35 दिन वर्षा होती है। ज़िले का दैनिक अधिकतम तापमान का औसत मई माह में 49 डिग्री सेल्सियस रहता है तथा न्यूनतम 2.00 डिग्री सेल्सियस जनवरी में रहता है।

प्रशासनिक व्यवस्था

प्रशासनिक व्यवस्था के अन्तर्गत ज़िला कलेक्टर ज़िले का सर्वोच्च अधिकारी होने के साथ-साथ समस्त प्रशासनिक एवं कानून व्यवस्थाओं के लिए उत्तरदायी है। ज़िले को छ: उपखण्डो करौली, हिण्डौन, सपोटरा, मण्डरायल, टोडाभीम एवं नादौती में विभाजित किया हुआ है। इन उपखण्डों को 5 पंचायत समिति एवं 6 तहसीलों में विभाजित कर क्षेत्राधिकारी निर्धारण किया हुआ है। ज़िलें में तीन नगरपालिका क्रमश: करौली, हिण्डौन एवं टोडाभीम है। ज़िले के प्रशासनिक स्वरूप में जनभागीदारी के रूप में एक लोकसभा सदस्य तथा चार विधानसभा सदस्य है।

भूगर्भ एवं खनिज

ज़िला करौली एक तरफ से चम्बल तथा तीन तरफ से मैदानों से घिरा हुआ है। इसके मैदान कैमबिरयन-पूर्व की आग्नेय चट्टानों तथा उनकी तलछट से बनी चट्टानों के रूपान्तरण से बने है। अरावली की पूर्व चट्टानें स्फटिक, अभ्रक, नाइसिस्ट, मिग्मा टाइटस आदि की बनी हुई है। महान विंध्य श्रेणी की चट्टाने जिनमें कैमूल, रीवा, भाण्डेर प्रमुख है, विभिन्न प्रकार के सलेटी पत्थर, बालू पत्थर तथा चूना पत्थर से परिपूर्ण है। ज़िला अनेक प्रकार के धात्विक एवं अधात्विक खनिजों से परिपूर्ण है। धातुओं में शीशा, तांबा, लोह अयस्क आदि तथा अधातुओं में चूना, पत्थर, चिकनी मिट्टी, सिलिका, सैलरूडा आदि प्रमुख रूप से पाये जाते है। इसके अलावा ज़िले में लेट्रार्इट, रेड आक्सार्इड, बैनेटोनार्इट, बेरार्इट, मैगनीज मिट्टी तथा काली मिट्टी पाई जाती है। ज़िले में विभिन्न प्रकार की चट्टानों से मिलने वाले खनिज जैसे इमारत बनाने के पत्थर, सजावट के पत्थर आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। भाण्डेर श्रेणी का गुलाबी पत्थर एवं सफेद निषानों वाला पत्थर करौली एवं हिण्डौन क्षेत्र में काफी मात्रा में पाया जाता है। सीमेन्ट श्रेणी का चूना पत्थर एवं सिलिकासैण्ड सपोटरा, नादौती क्षेत्र मे पाया जाता है। खनिज अभियन्ता करौली के अन्तर्गत इस ज़िलें की छ: तहसीलों के अलावा सवाईमाधोपुर ज़िले की दो तहसील गंगापुर एंव बामनवास आती है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से खनिज, सेण्ड स्टोन, मैषनरी स्टेशन, सोप स्टोन, सिलिका सेण्ड इत्यादि का खनन होता है। इस खण्ड में कुल 260 खनन पटटे स्वीकृत है। जिनका क्षेत्रफल 15568 हैक्टर है। जिसमें से करीब 13210 हैक्टर क्षेत्र में खनिज सेण्ड स्टोन का है। उक्त 260 खनन पटटों से स्थिर भाटक रू 11059000 प्राप्त होता है एंव अधिक अधिशुल्क रायल्टी कलेक्टषन ठेंको को शामिल करते हुए वित्तीय वर्ष 2001-02 में कुल 381.06 लाख की आय विभाग को हुई थी ।

'वनस्पति एवं वन सम्पदा'

ज़िले मे पाये जाने वाले महत्वपूर्ण पेड़ नीम बबूल, बेरी, धौंक, रोंझ, तेन्दु, सालर, खैर, सनथा, जामुन, आम, घनेरी, बास, खेजडा, बरगद, पीपल आदि है। इस क्षेत्र में पार्इ जाने वाली प्रमुख जडी बूटिया ओधीझाडा, चीचड़ा, पोलर, कालीलम्प, लपला, कंैच, गूगल आदि है। ज़िले में सिथत वनों से इमारती लकड़ी, र्इधन, लकड़ी का कोयला, पशुओं के लिए चारा, घास-फूस, तेन्दूपत्ता, गोंद, धौक के पत्ते, शहद, मोम, जड़ी बूटिया फल, कत्था, कंरज तथा दूसरी अन्य उपयोगी वस्तुप्राय प्राप्त होती है।

जीव जन्तु

ज़िला करौेली वन्य प्राणियों के मामले में सम्पन्न है इसमें विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाये जाते है जिनमें तेन्दुएें, जंगली कुत्ता, सांभर, नील गाय, चीतल, चिंकारा, जंगली सुअर, रीछ प्रमुख हैं। ज़िलें में कैलादेवी वन्य अभ्यारण्य सन 1983 में स्थापित किया गया था, जिसको सन 1991 में रणथम्भौर रिजर्व के नजदीक मानते हुए संरक्षित वन क्षेत्र एवं वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित किया गया है जिसमे यदा कदा बाघ देखे जा सकते है। अभ्यारण्य का क्षेत्रफल 674 वर्ग कि0मी0 है।

फसल पद्धति:

ज़िले मे तीनों मौसमों में फसल की बुबार्इ का कार्य होता है खरीफ वर्षा पर आधारित है। जो जुलार्इ माह में प्रारम्भ होता है । इसमें बोर्इ जाने वाली मुख्य फसलें बाजरा, मक्का, तिल, ज्वार, ग्वार आदि हैं। रबी की बुवार्इ अक्टूबर से प्रारम्भ होती है, जिसमें मुख्यतया जौ, चना, गेहू , सरसों की बुवार्इ होती है। यहा के लोगो का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं खनन कार्य है। भूमिगत पानी की कमी एवं सिंचार्इ सुविधा की कमी के कारण कृषि मुख्यतया वर्षा पर निर्भर है। कृषि विपणन के लिए ज़िले में हिण्डौन में कृषि उपज मण्डी एवं करौली, टोडाभीम में गौण मंडी हैं।

हस्तकला

करौली की हस्तकला में प्रमुख स्थान लाख की चूडियों का है लगभग एक लाख रूपये की चूडियों का प्रतिवर्ष अन्य प्रांतों में निर्यात किया जाता है। चूडियों बनाने का काराबार ज़िले में हिण्डौन एवं करौली शहरों में स्थानीय लखेरा एवं मुसिलम सम्प्रदाय के लोगों द्वारा किया जाता है। इस कार्य में करीब पांच सौ लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इसके अलावा करौली ज़िले मेें लकडी के खिलौने, घरेलू उपयोग की सामगि्रयों में चकला-बेलन, दही बिलौने की रर्इ, लकके चम्मच एवं चारपार्इ व दीवान आदि भी बनाएं जाते हैं। वर्तमान में पत्थर तराषी कर मूर्तियों एवं जाली झरोखे बनाने का कार्य भी रीको क्षेत्र हिण्डौन व करौली में किये जाने लगा है।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियां

ज़िले मे लोगों के सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक जीवन में मेले एवं त्यौहारों का महत्वपूर्ण स्थान है। अधिकांष मौसमी एवं धार्मिक महत्व के है। इन मेलों का व्यापारिक, पर्यटन एवं सांस्कृतिक दृषिट से एकता के लिए महत्वपूर्ण स्थान हैं। ज़िले के मुख्य मेले कैलादेवी मेला, महावीरजी, मेहन्दीपुर बालाजी एवं मदनमोहनजी के है, जिनमें लाखों की संख्या में दर्षनार्थी आते है। राज्य के अन्य हिस्सों की तरह इस ज़िले में भी हिन्दुओं के रक्षाबन्धन, होली, दीपावली, जन्माष्टमी, दषहरा, गणगौर तथा मुसलमानों के इदुलजुहा, रमजान, इदुलफितर त्योहार प्रमुख हैं। ऐतिहासिक एवं पुरातातिवक स्थल ज़िले में निम्नलिखित विषेष महत्व के स्थान है वर्तमान ज़िला मुख्यालय करौली राजपूतानें की प्राचीन रियासतों में से एक प्रमुख रियासत थी। यहां के षासकों का सन 1100 से लेकर सन 1947 तक का गौरवषाली इतिहास रहा है। रियासत के यदुवंषी राजाओं ने अपनी गरिमा की सुरक्षा, प्रजा के संरक्षण व प्राकृतिक आपदाओं के संधारण हेतु अनेक महल, क़िले व गढियों का निर्माण कराया। इन महलों किलों व गढियों में वास्तु विषेषज्ञता, स्थापत्य कला और चित्रकारी के दुर्लभ नमूने देखने को मिलते है। एक प्राचीन राज्य होने के कारण करौली में ऐतिहासिक, धार्मिक व पर्यटक महत्व के स्थानों की बहुलता के साथ क्षेत्र में पुरा वैभव विखरा पडा है।

करौली शहर

करौली ज़िला मुख्यालय पूर्व में करौली राज्य की राजधानी थी। करौली कस्बे की स्थापना 1348 में यादववंश के राजा अजर्ुनपाल ने की थी। इसका मूलत: नाम कल्याणपुरी था जो कल्याणजी के मनिदर के कारण प्रसिद्व था। इसको भद्रावती नदी के किनारे होने के कारण भद्रावती नगरी भी कहा जाता था। करौली कस्बा चारों तरफ से लाल स्टोन से निर्मित है, जिसकी परिधि 3.7 कि0मी0 है जिसमें 6 दरवाजे 12 खिडकिया है। महाराज गोपालसिंह के समय का एक खूबसूरत महल है जिसके रंगमहल एवं दीवाने आम को शीशाओं से बडी खूबसूरती से बनाया गया है। इस कस्बे में काफी संख्या में मनिदर है जिसमें प्रमुख मनिदर मदनमोहनजी का है। यह मनिदर सेन्दर बरामदे एवं सुसजिजत पेनिटंग से निर्मित है तथा महाराजा गोपालसिंह जी के द्वारा जयपुर से लायी गयी काले मार्बल से निर्मित मदनमोहनजी की मूर्ति है। प्रत्येक अमावस्या को मेला लगता है, जिसमें हजारो की संख्य में लोग दर्शनार्थ आते है करौली मे जैन मनिदर, जामा मसिजद, र्इदगाह अंजनी माता मनिदर,गोविन्द देव जी मनिदर आदि भी धार्मिक आस्था के स्थान है।

हिण्डौन सिटी:

हिण्डौन नगर करौली ज़िले की सबसे बडी नगरपालिका है। इस पौराणिक एवं ऐतिहासिक नगर की स्थापना किसने की इसके सम्बन्ध में इतिहासकार एकमत नही हैं। सम्भवत: यह भूमि हिरण्यकश्यप व भक्त प्रहलाद की कर्म भूमि रही है। यहां पर आज भी नृसिंह मनिदर, प्रहलाद कुण्ड, हिरण्यकश्यप के महल, बावडि़यों के अवशेष हैं। यहां से कुछ दूरी पर कुण्डेवा, जगर, दानघाटी पौराणिक स्थान है। जनश्रुतियो के अनुसार महाभारत कालीन हिडिम्बा नामक राक्षसी की कर्मस्थली भी यही क्षेत्रा रहा था। हिण्डौन वर्तमान में ज़िले का प्रमुख औधोगिक वाणिजियक नगर है यहां से उत्तर-मध्य रेलवे का दिल्ली मुम्बर्इ मार्ग गुजरता है साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग 11 से दूरी 41 कि0मी0 है। यहां पर पत्थर तरासी, स्लेट उधोग का करोबार बडे स्तर पर किया जाता है

तिमनगढ़ का क़िला

यह क़िला ज़िला मुख्यालय करौली से 42 किलोमीटर दूर मासलपुर कस्बे के पास सिथत है। यहां बेजोड़ पुरातत्व संबंधी मूर्तिया हैं। प्रचलित मान्यता के अनुसार संवत 1244 में यदुवंशी शासक तिमनपाल ने इस क़िले का निर्माण कराया थां। कुछ इतिहासकार इस क़िले को 1000 वर्ष से अधिक प्राचीन बताते है क़िले के अन्दर कर्इ शिलालेखाें, उपलब्ध प्राचीन कृतियों से पता चलता है कि इसे किसी शिल्पी व कलाप्रेमी ने बसाया था, जो बाद में शासकों के कब्जे मे चला गया। क़िले के चारों ओर पांच फीट मोटा तथा करीब 30 फीट ऊंचा परकोटा स्थापत्य कला का अनूठा नमूना है। क़िले के भीतर बाजार, फर्श, बगीची, मनिदर, कुंए कि अवशेष आज भी मौजूद हैं। पूरा क़िला अपने अन्दर एक पूरा नगर समेटे हुए हैं। प्रवेश द्वार पर अक्सर ब्रहमा, गणेश की मूर्तिया नजर आती है, लेकिन यहा प्रेत व राक्षसों के चित्र देखने को मिलते है। क़िले मे जगह -जगह खणिडत मूर्तियाें को देखने से ऐसा लगता है कि यहा मूर्तियों की बहुत बडी मण्डी थी। दुर्ग में छोटे - छोटे कमरे भी हैं, जो संभवत: स्नानघर के काम आते होंगे।

मण्डरायल का क़िला

करौली शहर से 40 किलो मीटर दूर दक्षिण पूर्व में पहाडों के मध्य एक आयताकार पहाडी के नीचे बसी एक मध्यकालीन बस्ती है, जो दो प्रान्तों को विभक्त करते हुए चम्बल नदीं के किनारे मण्डरायल नाम से जानी जाती है । एतिहासिक दृषिट से एक गजिटयर के अनुसार यह दुर्ग यादवों के इस क्षेत्र में प्रवेष से पूर्व का है । करौली रियासत की विलेज डायरेक्ट्री में इसके निर्माणकर्ता के रूप में बीजाबहादुर को दर्षाया गया है, जिसकी कौम एंव काल का कोर्इ जिक्र नही है । किदवतियों के अनुसार पूर्व में इस दुर्ग पर मियां मकन का आधिपत्य होने के कारण उसी के नाम से कालान्तर में अपभ्रषं होकर दुर्ग का नाम मण्डरायल हो गया । यहां मुख्य दरवाजें के रूप में दो गोलाकार गुबंद है । दूसरा दरवाजा सूर्यपोल नाम हैं, जो रानीपुरा इलाके की तरफ उतरता है। इस दरवाजें की खासियत है कि पौर से प्रात: से साय तक सूर्य का प्रकाष रहता है । इसके अन्दर एक सुरक्षित टांका ओर बाहर दो तालाब है । तालाब के किनारे त्रिदेव भगवान के मनिदर ओर बारहदारी है । पूर्व में इस क़िले की दीवारों पर उर्दु में कुछ घटनायें लिपिबद्व थी , जो अब नष्ट हो चुकी है ।

उंट गिरि दुर्ग
15 वी षताब्दी में स्थापित यह दुर्ग करणपुर के कल्याण पुरा गांव की ऊंची पर्वत श्रृंखला की सुरंगनुमा पहाडी पर सिथत है। लगभग 4 कि0मी0 क्षेत्र में फेले इस दुर्ग में 100 फुट की ऊंचार्इ से नीचे षिवलिंगों पर पानी गिरता है। इस पानी में बडी मात्रा में षिलाजीत मिलता है। यह दुर्ग भी सामरिक दृषिट से महत्वपूर्ण रहा है। 1506-07 र्इ. में सिकन्दर लोदी ने इस पर आक्रमण किया था उस समय इसे ग्वालियर क़िले की कुंजी कहा जाता था। अंतिम मुगल सल्तनत तक इस क़िले पर यदुवंषियों का ही आधिपत्य रहा।

देव गिरि

उंट गिरि के पूर्व में चम्बल नदी के किनारे सिथत यह क़िला खण्डहर होते हुए भी अतीत की अनेक घटनाओं का साक्षी है। परकोटे के नाम पर आज कुछ भी नही मिलता साथ ही अन्दर के सभी आवासीय भागों को नष्ट किया जा चुका है। सन 1506-07 र्इ. में सिकन्दर लोदी के आक्रमण के समय इस क़िले को सबसे अधिक नुकसान पहुचाया गया। वर्तमान में यहां एक बावडी, जर्जर होता षिलालेख तथा कुछ हवेलियों के अवषेष है।

बहादुरपुर का क़िला

करौली ज़िला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर मण्डरायल मार्ग पर ससेड गांव के पास जंगल और सुनसान वातावरण में अटल योद्वा सा खडा बहादुरपुर का क़िला मुगलकालीन स्थापत्य कला का बेजोड नमूना है। दो मंज़िला नृप गोपाल भवन, सहेली की बाबडी कलात्मक झरोखे 18 फीट लम्बी चीरियों की आमखास कचहरी, पंचवीर, मगधराय की छतरी दर्षनीय है। यदुवंषी राजा तिमनपाल के पुत्र नागराज द्वारा निर्मित इस क़िले का विस्तार सन 1566 से 1644 तक होता रहा। जयपुर के राजा सवार्इ जयंिसह ने इस क़िले में तीन माह तक प्रवास किया था।

शहर क़िला एवं छतरी

नादौती तहसील के ग्राम शहर में यह क़िला उंची पहाडी पर बना हुआ है तथा आज भी सुरक्षित एवं आबाद है। यहा के ठिकानेदार आमेर के राजा पृथ्वीराज के पुत्र पच्चाण के वंषज है। इसमें देवी का प्राचीन मंदिर है।

फतेहपुर क़िला

करौली ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 कि.मी. दूर कंचनपुर जाने वाले मार्ग पर सिथत यह क़िला यदु शासकों के एक बडे जागीरदार हरनगर के ठाकुर घासीराम द्वारा 1702 र्इ. में निर्मित किया गया। यह क़िला सुरक्षित अवस्था में है।

क़िला नारौली डांग

सपोटरा उपखण्ड मुख्यालय से .... दूरी पर सिथत यह क़िला पहाडी के उपर बना हुआ है। तत्कालीन करौली एवं जयपुर रियासतों की सीमा पर सिथत नारौली डांग गांव में स्थानीय जागीरदार द्वारा इसका निर्माण कराया गया था।

भवरविलास पैलेस

करौली के पूर्व शासक रहे राजा भंवर पाल के नाम से पूर्व नरेषों का यह आवास उत्कृष्ट वास्तु एवं षिल्प समेटे हुए नगर के दक्षिण में मंडरायल रोड पर सिथत है। वर्तमान में इसे होटल का रूप दिया हुआ है।

हरसुख विलास

करौली में आने वाला प्रत्येक अतिथि हरसुख विलास की वास्तु एवं षिल्प से प्रभावित हुए बिना नही रह सकता।

रामठरा क़िला

भारत के प्रमुख वन्य जीव अम्भारण्य रगथम्भोर एवं घना पक्षी बिहार भरतपुर के बीच करौली ज़िले के सपोटरा उपखण्ड में सिथत रामठरा फोर्ट कैलादेवी राष्ट्रीय अम्भारण्य से मात्र 15 किलोमीटर दूर है।

सुख विलास बाग एवं शाही कुण्ड

ज़िला मुख्यालय सिथत भ्रदावती नदी के किनारे एक सुन्दर महलनुमा चारदिवारी के अन्दर बाग लगाया गया था जिसका उपयोग रानिया अपने आमोद-प्रमोद के लिए करती थी इसे सुख विलास बाग कहते है। शहर के पर कोटे के बहार सुखविलास के पास भव्य शाही कुण्ड बना हुआ है तीन मंज़िला बावडीनुमा इस कुण्ड की बनावट अद्वितीय है इसमें प्रत्येक मंजिल पर बरामदे एवं उतरने हेतू चारो तरफ सिढियां बनी है। रियासत काल में इस कुण्ड का उपयोग शहर में पेयजल सप्लार्इ के लिए किया जाता था।

दरगाह कबीरषाह

करौली पषिचम द्वार पर वजीरपुर गेट एवं सायनाथ खिडकियां के मध्य आज से लगभग 120 वर्ष पूर्व बनार्इ गर्इ एक सूफी संत की दरगाह उत्कृष्ट षिल्प का नमूना है। इसकी खासियत यह है कि इसमें दरवाजे भी पत्थर के बनाये हुए है। पत्थर पर की गर्इ नक्कासी बरबस ही दर्षको का मन मोह लेती है।

रावल पैलेस (राजमहल)

तेरहवी षताब्दी में स्थापित राजमहल (रावल पैलेस) लाल व सफेद पत्थर के षिल्प का बेजोड नमूना है। नक्कषी व कलात्मक चितराम से सुसजिजत विषाल द्वार, जालीदार झरोखे, तोपखाना, नाहर कटहरा, सुर्री गुर्ज, गोपालसिंह अखाडा, भवर बैंक, नजर बगीची, मानिक महल, फब्बारा कण्ड, बारह दरी, गोपाल मनिदर, दीवान ए आम, फौज कचहरी, किरकिरी खाना, ज्ञान बगला, षीष महल, मोतीमहल, हरविलास, रंगलाल, गेंदघर, टेडा कुआ, जनानी डयौढी आदि कुषल स्थापत्य के साथ-साथ यहां की सभ्यता व संस्कृति के परिचायक है।

अन्य

करौली में महाराजा गोपालसिंहजी की छतरी, रणगमा तालाब, सुख विलास कुण्ड, एवं षिकारगंज आदि करौली के पुरा वैभव प्रतीक है। साथ ही ज़िले के सपोटरा में नारौली डांग का क़िला, गढमोरा (नादौती) में राजा मोरध्वज का महल व मनिदर, षहर सोप का ऊची पहाडी पर निर्मित क़िला, हिण्डौन की पुरानी कचहरी व प्रहलाद कुण्ड जैसे दर्षनीय ऐतिहासिक स्थल हमारी संस्कृति की पहचान है।

धार्मिक स्थल

महावीर जी

दिगम्बर जैन संप्रदाय का भारत का एक प्रमुख स्थान है। यहा पर भगवान महावीर की 400 वर्ष पुरानी मूर्ति है। महावीर जी में निर्मित मनिदर आधुनिक एवं प्राचीन शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है। मनिदर को एक बहुत बडे प्लेटफार्म पर सफेद मार्बल से बनाया गया है। इसकी छतरी दूर से दिखायी देती है, जो लाल बलुआ पत्थर की है। मनिदर पर नक्काशी का कार्य भी अति सुन्दर है। मनिदर के ठीक सामने मान स्तम्भ बना हुआ है। जिसमें जैन तीर्थकर की प्रतिमा है। मनिदर के पीछ कटला एवं चरण मनिदर है, जहां पर दर्शनार्थी श्रद्वापूर्वक दर्शन को जाते है। प्रतिवर्ष चैत्र सुदी 11 से बैशाख सुदी 2 तक (मार्च-अप्रैल) मेला लगता है, जिसमें लाखों लोग विभिन्न क्षेत्रों से यहां आते हैं। मेले के अन्त में रथया़त्रा का आयोजन किया जाता है।

कैलादेवी मनिदर

करौली से 24 कि0मी0 दूर यह प्रसिद्व धार्मिक स्थल है। जहां प्रतिवर्ष मार्च - अपै्रल माह मे एक बहुत बडा मेला लगता है। इस मेले में राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, मध्यप्रदेष, उत्तर प्रदेष के तीर्थ यात्री आते है। मुख्य मनिदर संगमरमर से बना हुआ है जिसमें कैला (महालक्ष्मी) एवं चामुण्डा देवी की प्रतिमाऐं हैं। कैलादेवी की आठ भुजाऐं एवं सिंह पर सवारी करते हुए बताया है। यहां क्षेत्रीय लांगुरियां के गीत विषेष रूप से गाये जाते है। जिसमें लागुरियां के माध्यम से कैलादेवी को अपनी भकित-भाव प्रदर्षित करते है।

बालाजी

यह एक छोटा सा गांव टोडाभीम तहसील से 5 कि.मी. दूर है तथा जयपुर-आगरा राष्ट्रीय राज्यमार्ग से जुडा हुआ है। हिन्दुओ की आस्था का महत्वपूर्ण स्थान है। यहां पर पहाडी की तलहटी मे निर्मित हनुमानजी का बहुत पुराना मनिदर है। लोग काफी दूर-दूर से यहां आते है। ऐसी मान्यता है कि हिस्टीरिया एवं डिलेरियम के रोगी दर्षन लाभ से स्वस्थ होकर लोैटते है। होली एवं दीपावली के त्यौहार पर काफी संख्या मे लोग यहां दर्षन के लिए आते है।

मदनमोहन जी

श्री मदन मोहन देवालय मुख्यालय के आंचल में महलों के पास वृहद भव्य परिसर के धेरे मे सिथत है जहां भगवान राधा मदनमोहन के साथ श्रीगोपालजी की मनमोहनी प्रतिमाएं प्रतिषिठत है। जिनकी सेवा गौड सम्प्रदायी गुसार्इयों के माध्यम से बहुत सुन्दर तरीकों से होती आ रही है। मंगला से शयन तक हजारो भक्तों का समुह प्रत्येक झांकी पर उपसिथत रहता है। मदनमोहनजी की कुल आठ झांकी सकल मनोरथ पूर्ण करने वाली हैं । मूलरूप से इन दोनो प्रतिमाओं को उडीसा और वृदावन में प्रतिषिठत कराया गया था। कालान्तर में यही प्रतिमाएं विभिन्न श्रोतों के माध्यम से आज इस पावन नगरी में भक्तों के वास्ते प्रेरणा की श्रोत बनी हुर्इ है।

शिल्प एवं उधोग

करौली ज़िलें में षिल्प के उत्कृष्ट नमूने पाये जाते है । वास्तुषिल्प के रूप में महाराजा गोपाल सिंह के शासन काल से षिल्प के क्षेत्र में भारी विकास हुआ है । जिसका साक्षात प्रमाण करौली दुर्ग के रूप में है । 14वीं शताब्दी में निर्मित यह महल जहा साधारण दिखार्इ देते है । वही इस क़िले का बाहरी हिस्सा जो 17वी शताब्दी में बनाया गया था । षिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है । बैहरदह में बौहरों की हवेली एंव करौली नगर के कर्इ कलापूर्ण एंव भवनों का षिल्प दर्षन अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । इनके अतिरिक्त मा साहब का मनिदर, दीवान साहब की हवेली, पदम तालाब की हवेलियां एंव रतियापुरा एंव कसारा की परेंडी विषेष षिल्पकला के नमूने है ।

ज़िला एक दृषिट में

भौगोलिक सिथति 26 डिग्री 3 से 26 डिग्री 49 उत्तरी अक्षांष 76 डिग्री 35 से 77 डिग्री 26 पूर्वी देषान्तर के मध्य भौगोलिक क्षेत्रफल 5069.64 वर्ग किमी0 वन क्षेत्र के अन्तर्गत 1658.19 कि0मी0 समुद्रतल से ऊंचार्इ 400 से 600 मीटर तापमान अधिकतम 49 डिग्री न्यूनतम 2 डिग्री ज़िले की औसत वर्षा 668.86 मिलीमीटर 1 जनवरी 05 से आज तक की वर्षा 555.23 मि.मी. भौगोलिक क्षेत्रफल 505217 वन 172499 अकृषि योग्य भूमि 19361 स्थार्इ चरागाह 30818 भूमि उपयोग (हैक्टर में) कृषि योग्य भूमि 185871 115076 हैक्टर नहरो से 19761 तालाबों से 5471 नलकूपो से 29320 कुएं से 60470 शुद्ध ंिसंचित क्षेत्र (हैक्टर में) अन्य से 54 लोक सभा क्षेत्र करौली-धौलपुर विधान सभा क्षेत्र 4 (करौली, हिण्डौन, टोडाभीम, सपोटरा) उप खण्ड 6 (करौली, हिण्डौन, टोडाभीम, सपोटरा, मंडरायल, नादौती) तहसील 6 (करौली, हिण्डौन, टोडाभीम, सपोटरा,मंडरायल, नादौती) उप तहसील 2 (करनपुर, मासलपुर) पंचायत समिति 5 (करौली, हिण्डौन, टोडाभीम, सपोटरा, नादौती) नगरपालिका 3 (करौली, हिण्डौन, टोडाभीम) पटवार मंडल 254 ग्राम पंचायत 223 ( 101 ग्रा.प. डांग क्षेत्र में ) राजस्व ग्राम 878 आवाद ग्राम 836 मुख्य व्यवसाय खनिज, बीड़ी उधोग मुख्य नदियां भद्रावती, गम्भीर, बरखेड़ा, चम्बल पषु गणना 8,14,427 कुल 1458459 पुरुष 784943 जनसंख्या महिला 673516 लिंग अनुपात ( प्रति 1000 पु. ) 858 जनसंख्या घनत्व 264 प्रति वर्ग कि.मीकुल 67.34 प्रतिषत साक्षरता महिला 49.18 प्रति. पुरुष 82.96 प्रतिकैलादेवी मेला श्री महावीर जी मेला मदन मोहन जी का मेला मेले एवं त्यौहार बाला जी का लक्खी मेला अंजनी माता का मेला ऐतिहासिक स्थल तिमनगढ़ का क़िला मण्डरायल का क़िला श्री महावीर जी कैलादेवी पर्यटन स्थल आध्यातिमक स्थल मदन मोहन जी का मंदिर मेहन्दीपुर बाला जी पुलिस उपअधीक्षक वृत 4 पुलिस थाना 16 पुलिस चौकी 16 जेल 2