"आपस्तम्ब स्मृति": अवतरणों में अंतर
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*अन्तिम अध्याय में अध्यात्मज्ञान एवं मोक्षप्राप्ति के साधन वर्णित हैं। | *अन्तिम अध्याय में अध्यात्मज्ञान एवं मोक्षप्राप्ति के साधन वर्णित हैं। | ||
*प्रारम्भ में गोपालन का महत्व एवं उत्तमता वर्णित है। | *प्रारम्भ में गोपालन का महत्व एवं उत्तमता वर्णित है। | ||
*गोहत्या महापाप है, गोचिकित्सा महापुण्य किन्तु यदि उपकार दृष्टि से गो-चिकित्सा में गो को हानि हो जाए, तो चिकित्सक को पाप नहीं लगता--'यन्त्रेण गो चिकित्सार्थे मृतगर्भ विमोचने/ यत्नेकृते विपत्तिश्चेत प्रायश्चित्तं न विद्यते'।< | *गोहत्या महापाप है, गोचिकित्सा महापुण्य किन्तु यदि उपकार दृष्टि से गो-चिकित्सा में गो को हानि हो जाए, तो चिकित्सक को पाप नहीं लगता--'यन्त्रेण गो चिकित्सार्थे मृतगर्भ विमोचने/ यत्नेकृते विपत्तिश्चेत प्रायश्चित्तं न विद्यते'।<ref>1/32</ref> | ||
*आगे के अध्यायों में शुद्धि-अशुद्धि का विवेचन, स्पर्शास्पर्श, खाद्याखाद्य-उच्छिष्ट भोजन का प्रायश्चित्त, रजस्वला स्पर्शास्पर्श मीमांसा, दूषित वस्तुओं का शुद्धि विधान आदि वर्णित है। | *आगे के अध्यायों में शुद्धि-अशुद्धि का विवेचन, स्पर्शास्पर्श, खाद्याखाद्य-उच्छिष्ट भोजन का प्रायश्चित्त, रजस्वला स्पर्शास्पर्श मीमांसा, दूषित वस्तुओं का शुद्धि विधान आदि वर्णित है। | ||
*इसमें कहा गया है कि जो सांसारिक पदार्थों, इन्द्रिय भोगों में राग न रखते हुए अध्यात्म-शास्त्र में निष्ठा रखता है, नित्य अहिंसा में तत्पर रहकर मनसा वाचा कर्मणा समस्त प्राणियों के प्रति कल्याण हेतु प्रयास रत रहता है, वही वास्तविक अर्थ में मोक्ष प्राप्त करता है- | *इसमें कहा गया है कि जो सांसारिक पदार्थों, इन्द्रिय भोगों में राग न रखते हुए अध्यात्म-शास्त्र में निष्ठा रखता है, नित्य अहिंसा में तत्पर रहकर मनसा वाचा कर्मणा समस्त प्राणियों के प्रति कल्याण हेतु प्रयास रत रहता है, वही वास्तविक अर्थ में मोक्ष प्राप्त करता है- | ||
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मोक्षो भवेत् प्रीति निवर्तकस्य अध्यात्मयोगैकरतस्य सम्यक्। | मोक्षो भवेत् प्रीति निवर्तकस्य अध्यात्मयोगैकरतस्य सम्यक्। | ||
मोक्षो भवेन्नित्यमहिंसकस्य स्वाध्याययोगागत मानसस्य॥< | मोक्षो भवेन्नित्यमहिंसकस्य स्वाध्याययोगागत मानसस्य॥<ref>10-7</ref> | ||
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06:35, 1 जून 2010 का अवतरण
- निम्न स्मृतियों में यह एक स्मृति है।
- आपस्तम्ब प्रणीत स्मृति 10 अध्यायों एवं 200 श्लोकों में निबद्ध है।
- मुख्यरूपेण विविध प्रायश्चित्त विधानों का इसमें निरूपण है।
- अन्तिम अध्याय में अध्यात्मज्ञान एवं मोक्षप्राप्ति के साधन वर्णित हैं।
- प्रारम्भ में गोपालन का महत्व एवं उत्तमता वर्णित है।
- गोहत्या महापाप है, गोचिकित्सा महापुण्य किन्तु यदि उपकार दृष्टि से गो-चिकित्सा में गो को हानि हो जाए, तो चिकित्सक को पाप नहीं लगता--'यन्त्रेण गो चिकित्सार्थे मृतगर्भ विमोचने/ यत्नेकृते विपत्तिश्चेत प्रायश्चित्तं न विद्यते'।[1]
- आगे के अध्यायों में शुद्धि-अशुद्धि का विवेचन, स्पर्शास्पर्श, खाद्याखाद्य-उच्छिष्ट भोजन का प्रायश्चित्त, रजस्वला स्पर्शास्पर्श मीमांसा, दूषित वस्तुओं का शुद्धि विधान आदि वर्णित है।
- इसमें कहा गया है कि जो सांसारिक पदार्थों, इन्द्रिय भोगों में राग न रखते हुए अध्यात्म-शास्त्र में निष्ठा रखता है, नित्य अहिंसा में तत्पर रहकर मनसा वाचा कर्मणा समस्त प्राणियों के प्रति कल्याण हेतु प्रयास रत रहता है, वही वास्तविक अर्थ में मोक्ष प्राप्त करता है-
मोक्षो भवेत् प्रीति निवर्तकस्य अध्यात्मयोगैकरतस्य सम्यक्।
मोक्षो भवेन्नित्यमहिंसकस्य स्वाध्याययोगागत मानसस्य॥[2]