"अनमोल वचन 15": अवतरणों में अंतर

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* श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है।  ~ महात्मा गांधी  
* श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है।  ~ महात्मा गांधी  
* श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी  
* श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं।  ~ महात्मा गांधी  
==अज्ञात==
* जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। मन से अभ्यास करने से हर कार्य संभव हो जाता है।  ~ अज्ञात
* जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है।  ~ अज्ञात
* जीवन एक प्रयोगशाला के समान है जिसमें मनुष्य निरंतर प्रयोग करता रहता है।  ~ अज्ञात
* जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है।  ~ अज्ञात
* जाति से कोई पतित नहीं है। पतित वह है जो चोरी, व्यभिचार, ब्रह्महत्या, भ्रूण-हत्या आदि दुष्ट कृत्यों को करता है और उनको गुप्त रखने के लिए झूठ बोलता है।  ~ अज्ञात
* जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं।  ~ अज्ञात
* जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख स्वयं को भी प्राप्त होता है।  ~ अज्ञात
* जिस तरह एक जवान स्त्री बूढ़े पुरुष का आलिंगन करना नहीं चाहती, उसी तरह लक्ष्मी भी आलसी, भाग्यवादी और साहसविहीन व्यक्ति को नहीं चाहती।  ~ अज्ञात
* जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं का त्याग कर निस्पृह हो जाता है और ममता तथा अहंकार को छोड़ देता है, वही शांति पाता है।  ~ अज्ञात
* जब मनुष्य स्वयं आत्मविश्वास खो बैठता है तो उसके पतन का सिरा खोजने से भी नहीं मिलता।  ~ अज्ञात
* जैसा चित्त में है, वैसी वाणी है। जैसा वाणी में है, वैसी ही क्रियाएं हैं। सज्जनों के चित्त, वाणी और क्रिया में एकरूपता होती है।  ~ अज्ञात
* जो गुणज्ञ न हो, उसके सामने गुण नष्ट हो जाता है और कृतघ्न के साथ की गई उदारता नष्ट हो जाती है।  ~ अज्ञात
* अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे।  ~ अज्ञात
* आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता।  ~ अज्ञात
* आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है।  ~ अज्ञात
* आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक।  ~ अज्ञात
* आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है।  ~ अज्ञात
* अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~  अज्ञात
* सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है।  ~ अज्ञात
* सबसे सुखी समाज वह है जहां परस्पर सम्मान का भाव हो।  ~ अज्ञात
* सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं।  ~ अज्ञात
* सदैव शुभ बोलना चाहिए। सदैव शुभ का ध्यान करना चाहिए और सदैव शुभ इच्छा करनी चाहिए।  ~ अज्ञात
* सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं।  ~ अज्ञात
* सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है।  ~ अज्ञात
* सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है।  ~ अज्ञात
* सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ- पीछे प्रशंसा की जाए।  ~ अज्ञात
* सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है।  ~ अज्ञात
* सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता।  ~ अज्ञात
* संसार रूपी विष - वृक्ष के दो फल अमृततुल्य हैं - काव्यामृत के रस का आस्वादन और सज्जनों की संगति।  ~ अज्ञात
* सबसे निकृष्ट मित्र वह है जो अच्छे दिनो मे पास आता है और मुसीबत के दिनो मे त्याग देता है।  ~ अज्ञात
* समय गंवाना सभी खर्चों से कीमती और व्यर्थ होता है।  ~ अज्ञात
* स्थान प्रधान है, बल नहीं। स्थान पर स्थित कायर पुरुष भी शूर हो जाता है।  ~ अज्ञात
* मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है।  ~ अज्ञात
* मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं।  ~ अज्ञात
* मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनों में अंतर रहता है।  ~ अज्ञात
* माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है।  ~ अज्ञात
* मानव जाति को यूं तो अनेक उपहार मिले हैं, लेकिन हंसी उसे दिए गए सर्वोत्तम दिव्य उपहारों में से एक है।  ~ अज्ञात
* कला की कसौटी सौंदर्य है। जो सुंदर है, वही कला है।  ~ अज्ञात
* क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता।  ~ अज्ञात
* कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है।  ~ अज्ञात
* कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है।  ~ अज्ञात
* कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है।  ~ अज्ञात
* क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है दुख भी, भय भी है तिरस्कार भी, घमंड भी है और अविवेकता भी।  ~ अज्ञात
* कभी न लौटने वाला समय जा रहा है।  ~ अज्ञात
* हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं।  ~ अज्ञात
* हमारी शिक्षा तब तक अधूरी रहेगी जब तक उसमें धार्मिक विचारों का समावेश नहीं किया जाता।  ~ अज्ञात
* पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं।  ~ अज्ञात
* पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं।  ~ अज्ञात
* प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या?  ~ अज्ञात
* प्रत्येक पर्वत पर जिस तरह माणिक्य नहीं होते और जिस तरह चंदन हर जगह नहीं पाया जाता, सज्जन लोग भी सब जगह नहीं होते।  ~ अज्ञात
* पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता।  ~ अज्ञात
* विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो।  ~ अज्ञात
* व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते।  ~ अज्ञात
* विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं।  ~ अज्ञात
* विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं।  ~ अज्ञात
* विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं।  ~ अज्ञात
* विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता?  ~ अज्ञात
* विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है। भाग्य का नाश होने के बावजूद यह मनुष्य का आश्रय बनी रहती है।  ~ अज्ञात
* विद्या के लिए मोमबत्ती की तरह पिघलना चाहिए।  ~ अज्ञात
* वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है।  ~ अज्ञात
* दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है।  ~ अज्ञात
* दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है।  ~ अज्ञात
* दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है।  ~ अज्ञात
* दुर्जन व्यक्ति बिना दूसरों की निंदा किए बिना प्रसन्न नहीं हो सकता।  ~ अज्ञात
* उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।  ~ अज्ञात
* उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते।  ~ अज्ञात
* उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण।  ~ अज्ञात
* उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है।  ~ अज्ञात
* उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता।  ~ अज्ञात
* उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया।  ~ अज्ञात
* गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान गुण है कि यह परोपकार का साधन है।  ~ अज्ञात
* गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं।  ~ अज्ञात
* गलती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम गलती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है।  ~ अज्ञात
* गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल जानता है, निर्बल नहीं। कोयल ही वसंत के गुण जानती है, कौआ नहीं।  ~ अज्ञात
* यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो।  ~ अज्ञात
* याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है।  ~ अज्ञात
* यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते।  ~ अज्ञात
* धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है।  ~ अज्ञात
* धन की कमी होने पर कोमलता रहती है, पर उसके बढ़ते ही उसकी जगह कठोरता लेने लगती है।  ~ अज्ञात
* ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है।  ~ अज्ञात
* इच्छाओं के सामने आते ही सभी प्रतिज्ञाएं ताक पर धरी रह जाती हैं।  ~ अज्ञात
* शक्ति का उपयोग परोपकार मेें करना चाहिए। शत्रु को पीडि़त कर देना मात्र ही शक्ति का सदुपयोग नहीं है।  ~ अज्ञात
* शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना।  ~ अज्ञात
* शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है।  ~ अज्ञात
* बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी।  ~ अज्ञात
* बिना अभ्यास के विद्या विष समान है।  ~ अज्ञात
* भोले बनने का नाटक न करो। तुम्हारे मन का मैल तुम्हारे चेहरे पर चमक रहा है।  ~ अज्ञात
* घाव पर बार-बार चोट लगती है, अन्न की कमी होने पर भूख बढ़ जाती है, विपत्ति में बैर बढ़ जाते हैं- विपत्तियों में अनर्थ बहुलता होती है।  ~ अज्ञात
* एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।।  ~ अज्ञात
* निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता।  ~ अज्ञात
* चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता।  ~ अज्ञात


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22:32, 17 जुलाई 2012 का अवतरण

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अनमोल वचन

महात्मा गांधी

  • अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है। जरा सी गफलत हुई कि नीचे आ गिरे। घोर अन्याय करने वाले पर भी गुस्सा न करें, बल्कि उसे प्रेम करें, उसका भला चाहें। लेकिन प्रेम करते हुए भी अन्याय के वश में न हो। ~ महात्मा गांधी
  • अशुद्ध साधनों का परिणाम अशुद्ध ही होता है। ~ गांधी
  • अपने अहंकार पर विजय पाना ही प्रभु की सेवा है। ~ महात्मा गांधी
  • आशा अमर है, उसकी आराधना कभी निष्फल नहीं होती। ~ महात्मा गांधी
  • आचरण रहित विचार कितने अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • आपका कोई भी काम महत्वहीन हो सकता है पर महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कुछ करें। ~ महात्मा गांधी
  • 'आशारहित होकर कर्म करो' यह गीता की वह ध्वनि है जो भुलाई नहीं जा सकती। जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है। कर्म करते हुए भी जो उसका फल छोड़ता है वह चढ़ता है। ~ महात्मा गांधी
  • आवेश और क्रोध को वश में कर लेने से शक्ति बढ़ती और आवेश को आत्मबल के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • आत्मा से संबंध रखने वाली बातों में पैसे का कोई स्थान नहीं है। ~ महात्मा गांधी
  • आदमी को अपने को धोखा देने की शक्ति दूसरों को धोखा देने की शक्ति से कहीं अधिक है। इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हरेक समझदार व्यक्ति है। ~ महात्मा गांधी
  • अशांति के बिना शांति नहीं मिलती। लेकिन अशांति हमारी अपनी हो। हमारे मन का जब खूब मंथन हो जाएगा, जब हम दुख की अग्नि में खूब तप जाएंगे, तभी हम सच्ची शांति पा सकेंगे। ~ महात्मा गांधी
  • स्वस्थ आलोचना मनुष्य को जीवन का सही मार्ग दिखाती है। जो व्यक्ति उससे परेशान होता है, उसे अपने बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • सही चीज के पीछे वक्त देना हमको खटकता है, निकम्मी चीज के पीछे ख्वार हैं, और खुश होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं, जिनकी कठिन परिस्थितियों में आ पड़ने पर बड़ी आवश्यकता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • सच्चे संस्कृति सुधार और सभ्यता का लक्षण परिग्रह की वृद्धि नहीं, बल्कि विचार और इच्छापूर्वक उसकी कमी है। जैसे-जैसे परिग्रह कम करते हैं वैसे-वसे सच्चा सुख और संतोष बढ़ता है। ~ महात्मा गांधी
  • सत्याग्रह एक ऐसी तलवार है जिसके सब ओर धार है। उसे काम में लाने वाला और जिस पर वह काम में लाई जाती है, दोनों सुखी होते हैं। खून न बहाकर भी वह बड़ी कारगर होती है। उस पर न तो कभी जंग ही लगता है आर न कोई चुरा ही सकता है। ~ महात्मा गांधी
  • सच पर विश्वास रखो, सच ही बोलो, सच ही करो। असत्य जीतता क्यों न लगे, सत्य का मुकाबला नहीं कर सकता। ~ महात्मा गांधी
  • सच्चा प्रेम स्तुति से प्रकट नहीं होता, सेवा से प्रकट होता है। ~ गांधी
  • सदाचार और निर्मल जीवन सच्ची शिक्षा का आधार है। ~ महात्मा गांधी
  • सत्य सर्वदा स्वाबलंबी होता है और बल तो उसके स्वभाव में ही होता है। ~ महात्मा गांधी
  • सच्चा मूल्य तो उस श्रद्धा का है, जो कड़ी-से-कड़ी कसौटी के समय भी टिकी रहती है। ~ महात्मा गांधी
  • संगीत गले से ही निकलता है, ऐसा नहीं है। मन का संगीत है, इंद्रियों का है, हृदय का है। ~ महात्मा गांधी
  • जिज्ञासा बिना ज्ञान नहीं होता। दुख बिना सुख नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
  • जिस तरह अध्ययन करना अपने आप में कला है उसी प्रकार चिन्तन करना भी एक कला है। ~ महात्मा गांधी
  • जिसने अपने आप को वश मे कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार मे नहीं बदल सकते। ~ महात्मा बुद्ध
  • जो मनुष्य जाति की सेवा करता है वह ईश्वर की सेवा करता है। ~ महात्मा गांधी
  • जातिवाद आत्मा और राष्ट्र, दोनों के लिए नुक्सानदेह है। ~ महात्मा गांधी
  • जिस देश को राजनीतिक उन्नति करनी हो, वह यदि पहले सामाजिक उन्नति नहीं कर लेगा तो राजनीतिक उन्नति आकाश में महल बनाने जैसी होगी। ~ महात्मा गांधी
  • जहां धर्म नहीं, वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति में बिल्कुल शुष्कता होती है, शून्यता होती है। ~ महात्मा गांधी
  • जिस आदमी की त्याग की भावना अपनी जाति से आगे नहीं बढ़ती, वह स्वयं स्वार्थी होता है और अपनी जाति को भी स्वार्थी बनाता है। ~ महात्मा गांधी
  • जब हम अपने पैर की धूल से भी अधिक अपने को नम्र समझते हैं तो ईश्वर हमारी सहायता करता है। ~ महात्मा गांधी
  • जैसे सूर्य सबको एक सा प्रकाश देता है, बादल जैसे सबके लिए समान बरसते हैं, इसी तरह विद्या-वृष्टि सब पर बराबर होनी चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • जो जमीन पर बैठता है, उसे कौन नीचे बिठा सकता है, जो सबका दास है, उसे कौन दास बना सकता है? ~ महात्मा गांधी
  • जहां बड़े-बड़े विद्वानों की बुद्धि काम नहीं करती, वहां एक श्रद्धालु की श्रद्धा काम कर जाती है। ~ महात्मा गांधी
  • जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी, प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन में चले जाना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • जो हुकूमत अपना गान करती है, वह चल नहीं सकती। ~ महात्मा गांधी
  • हर सुधार का कुछ न कुछ विरोध अनिवार्य है। परंतु विरोध और आंदोलन, एक सीमा तक, समाज में स्वास्थ्य के लक्षण होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • हम ऐसा मानने की गलती कभी न करें कि गुनाह में कोई छोटा-बड़ा होता है। ~ महात्मा गांधी
  • हर व्यक्ति को जो चीज हृदयंगम हो गई है, वह उसके लिए धर्म है। धर्म बुद्धिगम्य वस्तु नहीं, हृदयगम्य है। इसलिए धर्म मूर्ख लोगों के लिए भी है। ~ महात्मा गांधी
  • हमारी श्रद्धा अखंड ज्योति जैसी होनी चाहिए जो हमें प्रकाश देने के अलावा आसपास को भी रोशन करे। ~ महात्मा गांधी
  • हंसी मन की गांठें बड़ी आसानी से खोल देती है - मेरे मन की ही नहीं, तुम्हारे मन की भी। ~ महात्मा गांधी
  • मेरा लक्ष्य संसार से मैत्री है ओर मैं अन्याय का प्रबलतम विरोध करते हुए भी दुनिया को अधिक से अधिक स्नेह दे सकता हूं। ~ महात्मा गांधी
  • मुट्ठी भर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • मनुष्य की सच्ची परीक्षा विपत्ति में ही होती है। ~ महात्मा गांधी
  • मांगना एक लज्जास्पद कार्य है। अपने उद्योग से कोई वस्तु प्राप्त करना ही सच्चे मनुष्य का कर्त्तव्य है। ~ महात्मा गांधी
  • शौर्य किसी में बाहर से पैदा नहीं किया जा सकता। वह तो मनुष्य के स्वभाव में होना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • शंका के मूल में श्रद्धा का अभाव रहता है। ~ महात्मा गांधी
  • शक्ति भय के अभाव में रहती है, न कि मांस या पुट्ठों के गुणों में, जो कि हमारे शरीर में होते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • शांतिमय लड़ाई लड़नेवाला जीत से कभी फूल नहीं उठता और न मर्यादा ही छोड़ता है। ~ महात्मा गांधी
  • शरीर आत्मा के रहने की जगह होने के कारण तीर्थ जैसा पवित्र है। ~ गांधी
  • प्रेम हमें अपने पड़ोसी या मित्र पर ही नहीं बल्कि जो हमारे शत्रु हों, उन पर भी रखना है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है। प्रेम हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रार्थना आत्मशुद्धि का आह्वान है, यह विनम्रता को निमंत्रण देना है, यह मनुष्यों के दु:खों में भागीदार बनने की तैयारी है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रजातंत्र का अर्थ मैं यह समझता हूं कि इसमें नीचे से नीचे और ऊंचे से ऊंचे आदमी को आगे बढ़ने का समान अवसर मिले। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम से भरा हृदय अपने प्रेम पात्र की भूल पर दया करता है और खुद घायल हो जाने पर भी उससे प्यार करता है। ~ महात्मा गांधी
  • प्रार्थना या भजन जीभ से नहीं होता है। इसी से गूंगे, तोतले और मूढ़ भी प्रार्थना कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी
  • प्रेम द्वेष को परास्त करता है। ~ गांधी
  • एक स्थिति ऐसी होती है जब मनुष्य को विचार प्रकट करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसके विचार ही कर्म बन जाते हैं, वह संकल्प से कर्म कर लेता है। ऐसी स्थिति जब आती है तब मनुष्य अकर्म में कर्म देखता है, अर्थात अकर्म से कर्म होता है। ~ महात्मा गांधी
  • कोई भी संस्कृति जीवित नहीं रह सकती यदि वह अपने को अन्य से पृथक रखने का प्रयास करे। ~ महात्मा गांधी
  • कोई असत्य से सत्य नहीं पा सकता। सत्य को पाने के लिए हमेशा सत्य का आचरण करना ही होगा। ~ महात्मा गांधी
  • कवि के अर्थ का अंत ही नहीं है। जैसे मनुष्य का वैसे ही महाकाव्यों के अर्थ का भी विकास होता ही रहता है। ~ महात्मा गांधी
  • दुनिया में रहते हुए भी सेवाभाव से और सेवा के लिए जो जीता है, वह संन्यासी है। ~ महात्मा गांधी
  • दुनिया का अस्तित्व शस्त्रबल पर नहीं, बल्कि सत्य, दया और आत्मबल पर है। ~ महात्मा गांधी
  • गलतियां करके, उनको मंजूर करके और उन्हें सुधार कर ही मैं आगे बढ़ सकता हूं। पता नहीं क्यों, किसी के बरजने से या किसी की चेतावनी से मैं उन्नति कर ही नहीं सकता। ठोकर लगे और दर्द उठे तभी मैं सीख पाता हूं। ~ महात्मा गांधी
  • तपस्या धर्म का पहला और आखिरी क़दम है। ~ महात्मा गांधी
  • तुम्हारी जेब में एक पैसा है, वह कहां से और कैसे आया है, वह अपने से पूछो। उस कहानी से बहुत सीखोगे। ~ महात्मा गांधी
  • निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है। ~ महात्मा गांधी
  • धर्म का पालन धैर्य से होता है। ~ महात्मा गांधी
  • धनवान लोगों के मन में हमेशा शंका रहती है, इसलिए यदि हम लक्ष्मी देवी को खुश रखना चाहते हैं तो हमें अपनी पात्रता सिद्ध करनी होगी। ~ महात्मा गांधी
  • चोरी का माल खाने से कोई शूरवीर नहीं, दीन बनता है। ~ महात्मा गांधी
  • बिना अपनी स्वीकृति के कोई मनुष्य आत्म-सम्मान नहीं गंवाता। ~ महात्मा गांधी
  • बड़प्पन सिर्फ उम्र में ही नहीं, उम्र के कारण मिले हुए ज्ञान, अनुभव और चतुराई में भी है। ~ महात्मा गांधी
  • ब्रह्मा ज्ञान मूक ज्ञान है, स्वयं प्रकाश है। सूर्य को अपना प्रकाश मुंह से नहीं बताना पड़ता। वह है, यह हमें दिखाई देता है। यही बात ब्रह्मा-ज्ञान के बारे में भी है। ~ महात्मा गांधी
  • विचारपूर्वक किया गया श्रम उच्च से उच्च प्रकार की समाजसेवा है। ~ महात्मा गांधी
  • विचार ही कार्य का मूल है। विचार गया तो कार्य गया ही समझो। ~ महात्मा गांधी
  • विजय के लिए केवल एक सत्याग्रही ही काफ़ी है। ~ महात्मा गांधी
  • वैर लेना या करना मनुष्य का कर्तव्य नहीं है- उसका कर्तव्य क्षमा है। ~ महात्मा गांधी
  • विश्वास करना एक गुण है। अविश्वास दुर्बलता की जननी है। ~ महात्मा गांधी
  • विश्वास के बिना काम करना सतहविहीन गड्ढे में पहुंचने के प्रयत्नों के समान है। ~ महात्मा गांधी
  • वीर वह है जो शक्ति होने पर भी दूसरों को डराता नहीं और निर्बल की रक्षा करता है। ~ महात्मा गांधी
  • व्यक्ति की पूजा की बजाय गुण-पूजा करनी चाहिए। व्यक्ति तो गलत साबित हो सकता है और उसका नाश तो होगा ही, गुणों का नाश नहीं होता। ~ महात्मा गांधी
  • यदि सुंदर दिखाई देना है तो तुम्हें भड़कीले कपड़े नहीं पहनना चाहिए। बल्कि अपने सदगुणों को बढ़ाना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • यदि हमारी इच्छाशक्ति ही कमजोर होने लगेगी तो मानसिक शक्तियां भी उसी तरह काम करने लगेंगी। ~ महात्मा गांधी
  • ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। ~ महात्मा गांधी
  • श्रद्धा में निराशा का कोई स्थान नहीं। ~ महात्मा गांधी
  • श्रद्धा के अनुसार ही बुद्धि सूझती है। ~ महात्मा गांधी
  • श्रम पूंजी से कहीं श्रेष्ठ है। मैं श्रम और पूंजी का विवाह करा देना चाहता हूं। वे दोनों मिलकर आश्चर्यजनक काम कर सकते हैं। ~ महात्मा गांधी

अज्ञात

  • जीवन में कोई भी कार्य कठिन नहीं होता। मन से अभ्यास करने से हर कार्य संभव हो जाता है। ~ अज्ञात
  • जिसमें दया नहीं है, वह तो जीते जी ही मुर्दे के समान है। दूसरे का भला करने से ही अपना भला होता है। ~ अज्ञात
  • जीवन एक प्रयोगशाला के समान है जिसमें मनुष्य निरंतर प्रयोग करता रहता है। ~ अज्ञात
  • जीवन के युद्ध में चोटें और आघात बर्दाश्त करने से ही उसमें विजय प्राप्त होती है, उसमें आनंद आता है। ~ अज्ञात
  • जाति से कोई पतित नहीं है। पतित वह है जो चोरी, व्यभिचार, ब्रह्महत्या, भ्रूण-हत्या आदि दुष्ट कृत्यों को करता है और उनको गुप्त रखने के लिए झूठ बोलता है। ~ अज्ञात
  • जिसका मन संतुष्ट है, सभी संपत्तियां उसकी हैं। ~ अज्ञात
  • जैसा सुख-दुख दूसरे को दिया जाता है, वैसा ही सुख-दुख स्वयं को भी प्राप्त होता है। ~ अज्ञात
  • जिस तरह एक जवान स्त्री बूढ़े पुरुष का आलिंगन करना नहीं चाहती, उसी तरह लक्ष्मी भी आलसी, भाग्यवादी और साहसविहीन व्यक्ति को नहीं चाहती। ~ अज्ञात
  • जो पुरुष संपूर्ण कामनाओं का त्याग कर निस्पृह हो जाता है और ममता तथा अहंकार को छोड़ देता है, वही शांति पाता है। ~ अज्ञात
  • जब मनुष्य स्वयं आत्मविश्वास खो बैठता है तो उसके पतन का सिरा खोजने से भी नहीं मिलता। ~ अज्ञात
  • जैसा चित्त में है, वैसी वाणी है। जैसा वाणी में है, वैसी ही क्रियाएं हैं। सज्जनों के चित्त, वाणी और क्रिया में एकरूपता होती है। ~ अज्ञात
  • जो गुणज्ञ न हो, उसके सामने गुण नष्ट हो जाता है और कृतघ्न के साथ की गई उदारता नष्ट हो जाती है। ~ अज्ञात
  • अपना केंद्र अपने से बाहर मत बनाओ, अन्यथा ठोकरें खाते रहोगे। ~ अज्ञात
  • आलस्य ही मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है। उद्यम के समान मनुष्य का कोई बंधु नहीं है जिसके करने से मनुष्य दुखी नहीं होता। ~ अज्ञात
  • आचरण के अभाव में ज्ञान नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • आलसी आदमी ही चिंताग्रस्त रहा करता है। वह आलस्य चाहे शारीरिक कष्ट से बचने के लिए हो या मानसिक। ~ अज्ञात
  • आंखों में मनुष्य की आत्मा का प्रतिबिम्ब होता है। ~ अज्ञात
  • अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। ~ अज्ञात
  • सफल मनुष्य वह है जो दूसरे लोगों द्वारा अपने पर फेंकी गई ईंटों से एक सुदृढ़ नींव डाल सकता है। ~ अज्ञात
  • सबसे सुखी समाज वह है जहां परस्पर सम्मान का भाव हो। ~ अज्ञात
  • सज्जनों की यह कोई बड़ी कठोर चित्तता है कि वे उपकार करके, प्रत्युपकार के भय से बहुत दूर हट जाते हैं। ~ अज्ञात
  • सदैव शुभ बोलना चाहिए। सदैव शुभ का ध्यान करना चाहिए और सदैव शुभ इच्छा करनी चाहिए। ~ अज्ञात
  • सज्जन लोग चाहे दूर भी रहें पर उनके गुण उनकी ख्याति के लिए स्वयं दूत का कार्य करते हैं। केवड़ा पुष्प की गंध सूंघकर भ्रमर स्वयं उसके पास चले जाते हैं। ~ अज्ञात
  • सुख-दुख को देनेवाला अन्य कोई नहीं है। इन्हें कोई अन्य देता है, यह कहना कुबुद्धि है। यह अपने ही कर्मों से मिलता है। ~ अज्ञात
  • सब शुद्धियों में दिल की शुद्धि श्रेष्ठ है। जो धन के बारे में पवित्रता रखता है, वही वस्तुत: पवित्र है। मिट्टी-पानी द्वारा प्राप्त पवित्रता वास्तविक पवित्रता नहीं है। ~ अज्ञात
  • सच्चा सौहार्द वह होता है जब पीठ- पीछे प्रशंसा की जाए। ~ अज्ञात
  • सुदिन सबके लिए आते हैं, किंतु टिकते उसी के पास हैं जो उनको पहचान कर आदर देता है। ~ अज्ञात
  • सुंदर वस्तु सर्वदा आनंद देने वाली होती है। उसका आकर्षण निरंतर बढ़ता जाता है। उसका कभी ह्रास नहीं होने पाता। ~ अज्ञात
  • संसार रूपी विष - वृक्ष के दो फल अमृततुल्य हैं - काव्यामृत के रस का आस्वादन और सज्जनों की संगति। ~ अज्ञात
  • सबसे निकृष्ट मित्र वह है जो अच्छे दिनो मे पास आता है और मुसीबत के दिनो मे त्याग देता है। ~ अज्ञात
  • समय गंवाना सभी खर्चों से कीमती और व्यर्थ होता है। ~ अज्ञात
  • स्थान प्रधान है, बल नहीं। स्थान पर स्थित कायर पुरुष भी शूर हो जाता है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य की सबसे बड़ी महानता विपत्तियों को सह लेने में है। ~ अज्ञात
  • मनुष्य के संपूर्ण कार्य उसकी इच्छा के प्रतिबिंब होते हैं। ~ अज्ञात
  • मन से किया गया कर्म ही यथार्थ होता है, शरीर से किया गया नहीं। जिस शरीर से पत्नी को गले लगाया जाता है उसी शरीर से पुत्री को भी गले लगाते हैं, पर मन का भाव भी भिन्न होने के कारण दोनों में अंतर रहता है। ~ अज्ञात
  • माया सबको मोहित करती है, परंतु भगवान के भक्त से वह हारी हुई है। ~ अज्ञात
  • मानव जाति को यूं तो अनेक उपहार मिले हैं, लेकिन हंसी उसे दिए गए सर्वोत्तम दिव्य उपहारों में से एक है। ~ अज्ञात
  • कला की कसौटी सौंदर्य है। जो सुंदर है, वही कला है। ~ अज्ञात
  • क्रांति का उदय सदा पीड़ितों के हृदय और त्रस्त अंत:करण में हुआ करता है। उसके पीछे कोई निहित स्वार्थ नहीं होता। ~ अज्ञात
  • कपट से धर्म नष्ट हो जाता है, क्रोध से तप नष्ट हो जाता है और प्रमाद करने से पढ़ा- सुना नष्ट हो जाता है। ~ अज्ञात
  • कुपठित विद्या विष है। असाध्य रोग विष है। दरिद्रता का रोग विष है और वृद्ध पुरुष के लिए तरुणी विष है। ~ अज्ञात
  • कभी-कभी आलोचना अपने मित्र को भी शत्रु के शिविर में भेज देती है। ~ अज्ञात
  • क्रोध बुरे विचारों की खिचड़ी है। उसमें द्वेष भी है दुख भी, भय भी है तिरस्कार भी, घमंड भी है और अविवेकता भी। ~ अज्ञात
  • कभी न लौटने वाला समय जा रहा है। ~ अज्ञात
  • हम अपने बारे में जो दृढ़ चिंतन करते हैं, जिन विचारों में संलग्न रहते हैं क्रमश: वैसे ही बनते जाते हैं। ~ अज्ञात
  • हमारी शिक्षा तब तक अधूरी रहेगी जब तक उसमें धार्मिक विचारों का समावेश नहीं किया जाता। ~ अज्ञात
  • पर्वतों को उखाड़ने में यदि हाथी के दांत टूट भी जाएं, तो भी वे प्रशंसा के योग्य हैं। ~ अज्ञात
  • पुण्यवान लोग जिसको स्वीकृत कर लेते हैं, उसका पालन करते हैं। ~ अज्ञात
  • प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी संतुष्ट हो जाते हैं, अत: प्रिय वचन ही बोलना चाहिए। वचन में दरिद्रता क्या? ~ अज्ञात
  • प्रत्येक पर्वत पर जिस तरह माणिक्य नहीं होते और जिस तरह चंदन हर जगह नहीं पाया जाता, सज्जन लोग भी सब जगह नहीं होते। ~ अज्ञात
  • पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता। ~ अज्ञात
  • विश्राम करने का समय वही होता है, जब तुम्हारे पास उसके लिए समय न हो। ~ अज्ञात
  • व्यथा और वेदना की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं, वे पुस्तकों तथा विश्वविद्यालयों में नहीं मिलते। ~ अज्ञात
  • विष पीकर शिव सुख से जागते हैं, जबकि लक्ष्मी का स्पर्श पाकर विष्णु निद्रा से मूर्च्छाग्रस्त हो जाते हैं। ~ अज्ञात
  • विपत्ति में ही लोगों की असल परीक्षा होती है, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
  • विपत्तियों में ही लोग अपनी शक्ति से परिचित होते हैं, समृद्धि में नहीं। ~ अज्ञात
  • विद्वानों की संगति से ज्ञान मिलता है, ज्ञान से विनय, विनय से लोगों का प्रेम और लोगों के प्रेम से क्या नहीं प्राप्त होता? ~ अज्ञात
  • विद्या मनुष्य की अतुल कीर्ति है। भाग्य का नाश होने के बावजूद यह मनुष्य का आश्रय बनी रहती है। ~ अज्ञात
  • विद्या के लिए मोमबत्ती की तरह पिघलना चाहिए। ~ अज्ञात
  • वही वास्तव में राजा है जो अनाथों का नाथ, निरुपायों का अवलंब, दुष्टों को दंड देनेवाला, डरों हुओं को अभय देनेवाला और सभी का उपकारक, मित्र, बंधु, स्वामी, आश्रयस्थल, श्रेष्ठ गुरु, पिता, माता तथा भाई है। ~ अज्ञात
  • दूसरों को दुख दिए बिना, दुष्टों की विनय किए बिना और सज्जनों के मार्ग का त्याग किए बिना अत्यल्प जो कुछ भी है, वही बहुत है। ~ अज्ञात
  • दूसरे का अप्रिय वचन सुन कर भी उत्तम व्यक्ति सदा प्रिय वाणी ही बोलता है। ~ अज्ञात
  • दूसरों के धन का अपहरण करना सबसे बड़ा पाप है। ~ अज्ञात
  • दुर्जन व्यक्ति बिना दूसरों की निंदा किए बिना प्रसन्न नहीं हो सकता। ~ अज्ञात
  • उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं। ~ अज्ञात
  • उद्धार वही कर सकते हैं जो उद्धार के अभिमान को हृदय में आने नहीं देते। ~ अज्ञात
  • उपकार मित्र होने का फल है तथा अपकार शत्रु होने का लक्षण। ~ अज्ञात
  • उपकार करने का साहसी स्वभाव होने के कारण गुणी लोग अपनी हानि की भी चिंता नहीं करते। दीपक की लौ अपना अंग जलाकर ही प्रकाश उत्पन्न करती है। ~ अज्ञात
  • उग्रता और मृदुता समय देखकर अपनानी चाहिए। अंधकार को मिटाए बिना ही सूर्य उग्र (अग्निवर्षा) नहीं हो जाता। ~ अज्ञात
  • उच्च और निम्न की योग्यता का विचार वस्त्र देख कर भी होता है। समुद्र ने विष्णु को पीताम्बरधारी देख कर अपनी कन्या दे दी तथा शिव को दिगम्बर देख कर विष दिया। ~ अज्ञात
  • गुण-रहित शरीर प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। इसका एक ही महान गुण है कि यह परोपकार का साधन है। ~ अज्ञात
  • गुण ही गुण को परखते हैं जैसे हीरे की परख जौहरी ही करते हैं। ~ अज्ञात
  • गलती ज्ञान की शिक्षा है। जब तुम गलती करो तो उसे बहुत देर तक मत देखो, उसके कारण को ले लो और आगे की ओर देखो। भूत बदला नहीं जा सकता। भविष्य अब भी तुम्हारे हाथ में है। ~ अज्ञात
  • गुणी ही गुण जानता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल जानता है, निर्बल नहीं। कोयल ही वसंत के गुण जानती है, कौआ नहीं। ~ अज्ञात
  • यदि दूसरों से अपने प्रतिकूल नहीं चाहते हो तो अपने मन को दूसरों के प्रतिकूल कामों से हटा लो। ~ अज्ञात
  • याद पंख है, जो प्राण के परिंदे को जीवन के उच्चतर आकाश में उड़ने का पुरुषार्थ देती है। ~ अज्ञात
  • यौवन, जीवन, मन, शरीर की छाया, धन और स्वामित्व, ये चंचल हैं। ये स्थिर होकर नहीं रहते। ~ अज्ञात
  • धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है। ~ अज्ञात
  • धन की कमी होने पर कोमलता रहती है, पर उसके बढ़ते ही उसकी जगह कठोरता लेने लगती है। ~ अज्ञात
  • ईश्वर प्रत्येक मस्तिष्क को सच और झूठ में एक को चुनने का अवसर देता है। ~ अज्ञात
  • इच्छाओं के सामने आते ही सभी प्रतिज्ञाएं ताक पर धरी रह जाती हैं। ~ अज्ञात
  • शक्ति का उपयोग परोपकार मेें करना चाहिए। शत्रु को पीडि़त कर देना मात्र ही शक्ति का सदुपयोग नहीं है। ~ अज्ञात
  • शिष्टाचार का मूल सिद्धांत है दूसरे को अपने प्रेम और आदर का परिचय देना और किसी को असुविधा और कष्ट न पहुंचाना। ~ अज्ञात
  • शिक्षा केवल ज्ञान-दान नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पालन भी करती है। ~ अज्ञात
  • बंईमानी से जमा की हुई संपत्ति ऐसे है जैसे मृग के लिए कस्तूरी। ~ अज्ञात
  • बिना अभ्यास के विद्या विष समान है। ~ अज्ञात
  • भोले बनने का नाटक न करो। तुम्हारे मन का मैल तुम्हारे चेहरे पर चमक रहा है। ~ अज्ञात
  • घाव पर बार-बार चोट लगती है, अन्न की कमी होने पर भूख बढ़ जाती है, विपत्ति में बैर बढ़ जाते हैं- विपत्तियों में अनर्थ बहुलता होती है। ~ अज्ञात
  • एक कृष्ण वसुदेव का बेटा, एक कृष्ण घट-घट में लेटा। एक कृष्ण जो सकल पसारा, एक कृष्ण जो सबसे न्यारा।। ~ अज्ञात
  • निर्माण सदैव बलिदानों पर टिकता है। और जब तक निर्माण के लिए बलिदान की खाद नहीं दी जाती तब तक विकास अंकुरित नहीं होता। ~ अज्ञात
  • चंदन घिसे जाने पर पुन: पुन: अधिक गंध छोड़ता है। गन्ना चूसने पर पुन: पुन: स्वादिष्ट रहता है। सोना जलाने पर पुन: पुन: सुंदर वर्ण ही रहता है। प्राणांत होने पर भी उत्तम व्यक्तियों का स्वभाव विकृत नहीं होता। ~ अज्ञात



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