"मंदाकिनी नदी": अवतरणों में अंतर
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*[[कालिदास]] ने [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]<ref>[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] 13,48</ref> में मंदाकिनी का विमानारूढ़ राम से ([[चित्रकूट]] के निकट) कितना ह्रदयग्राही वर्णन करवाया है- | *[[कालिदास]] ने [[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]]<ref>[[रघुवंश महाकाव्य|रघुवंश]] 13,48</ref> में मंदाकिनी का विमानारूढ़ राम से ([[चित्रकूट]] के निकट) कितना ह्रदयग्राही वर्णन करवाया है- | ||
:'एषा प्रसन्नस्तिमितप्रवाहा सरिद विदूरांतरभावतंवी, मंदाकिनी भाति नगोपकंठे मुक्तावली कंठगतैव भूमे:'। | :'एषा प्रसन्नस्तिमितप्रवाहा सरिद विदूरांतरभावतंवी, मंदाकिनी भाति नगोपकंठे मुक्तावली कंठगतैव भूमे:'। | ||
[[चित्र:Mandakini-River-And-Alakananda-River.jpg|thumb|250px|मंदाकिनी नदी और [[अलकनंदा नदी]] का संगम, | [[चित्र:Mandakini-River-And-Alakananda-River.jpg|thumb|250px|मंदाकिनी नदी और [[अलकनंदा नदी]] का संगम, [[रुद्रप्रयाग]]]] | ||
*अध्यात्मरामायण अयोध्या<ref>[[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्या]] 63</ref> में मंदाकिनी को [[गंगा]] कहा गया है- | *अध्यात्मरामायण अयोध्या<ref>[[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्या]] 63</ref> में मंदाकिनी को [[गंगा]] कहा गया है- | ||
:'ऊचुरग्रे गिरे: पश्चाद गंगाया उत्तरतटे विविक्तं रामसदनं रम्यं काननमंडित'। | :'ऊचुरग्रे गिरे: पश्चाद गंगाया उत्तरतटे विविक्तं रामसदनं रम्यं काननमंडित'। |
07:51, 26 जुलाई 2012 का अवतरण
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मंदाकिनी नदी उत्तराखण्ड राज्य के केदारनाथ के निकट से गुजरती है और यह अलकनंदा नदी की सहायक नदी है। वाल्मीकि रामायण अयोध्याकांड में इसका कई स्थानों पर उल्लेख है-
'अयं गिरिश्चित्रकूटस्तथा मंदाकिनी नदी, एकत प्रकाशते दूरान्नीलमेघनिभंवनम्'; 'अथ शैलाद्विनिष्कम्य मैथिलीं कोशलेश्वर:, अदर्शयच्छुभजलां रम्यां मंदाकिनी नदीम्। विचित्र पुलिनां रम्यां हंससारससेविताम् कुसुमैरुपसंपन्नां पश्य मंदाकिनीं नदीम्। नानाविधैस्तीररुहैर्वुतां पुष्पफलमद्रुमै: राजंती राजराजस्य नलिनीमिव सर्वत:। क्वचिन् मणिनिकाशोदां क्वचित् पुलिनशालिनीम्, क्वचित्सिद्धजनाकीर्ण पश्य मंदाकिनी नदीम्। दर्शनं चित्रकूटस्य मदांकिन्याश्च शोभने अधिक पुरवासाच्च मन्ये तव च दर्शनात्। सखोवच्च विगाहस्व सोते मदांकिनींनदीम् कमलान्यवमज्जंती पुष्कराणि च भामिनि'।[1]
- श्रीमद्भागवत[2] में मदांकिनी का नामोल्लेख इस प्रकार है-
- 'कौशिकी मंदाकिनी यमुना.......'।
- कालिदास ने रघुवंश[3] में मंदाकिनी का विमानारूढ़ राम से (चित्रकूट के निकट) कितना ह्रदयग्राही वर्णन करवाया है-
- 'एषा प्रसन्नस्तिमितप्रवाहा सरिद विदूरांतरभावतंवी, मंदाकिनी भाति नगोपकंठे मुक्तावली कंठगतैव भूमे:'।
- 'ऊचुरग्रे गिरे: पश्चाद गंगाया उत्तरतटे विविक्तं रामसदनं रम्यं काननमंडित'।
- तुलसीदास जी ने (रामचरितमानस, अयोध्या कांड) में मंदाकिनी को सुरसरि की धारा कहा है-
- 'सुरसरि धार नाम मंदाकिनी जो सब पातक-पोतक डाकिनी'।
- तुलसीदास ने मंदाकिनी के संबंध में प्रसिद्ध पौराणिक कथा का भी निर्देश किया है जिसमें इस नदी को अविऋषि की पत्नी अनसूया द्वारा चित्रकूट में लाए जाने का वर्णन है-
- 'नदी पुनीत पुरान बखानी, अत्रिप्रिया निज तपबल आनी'।
- मंदाकिनी और पयास्विनी नदियों के संगम पर राघवप्रयाग नामक स्थान हैं।
- अर्थ
मंदाकिनी शब्द का अर्थ 'मंद-मंद बहने वाली' है। इसके इस विशिष्टि गुण का वर्णन कालिदास ने उपर्युक्त श्लोक में 'स्तिमित प्रवाहा' कह कर किया है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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