आदित्य चौधरी (वार्ता | योगदान) No edit summary |
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"हाँ एक बात तो बताना भूल गई कि पूनम की सास की एक सहेली है... उसका दामाद आजकल कुछ कर नहीं रहा है, बड़ा अपसॅट रहता है आजकल... अगर उसे खिलाड़ी बना कर ओलम्पिक में ले चलें तो..." | "हाँ एक बात तो बताना भूल गई कि पूनम की सास की एक सहेली है... उसका दामाद आजकल कुछ कर नहीं रहा है, बड़ा अपसॅट रहता है आजकल... अगर उसे खिलाड़ी बना कर ओलम्पिक में ले चलें तो..." | ||
"इतना आसान समझ रखा है तुमने ! ऐसे कैसे किसी को भी खिलाड़ी बना कर ले जाऊँ ? तुम्हें मालूम भी है कि ओलम्पिक में जाने के लिए कितनी मेहनत होती है ?" लुट्टनवाला दहाड़े | "इतना आसान समझ रखा है तुमने ! ऐसे कैसे किसी को भी खिलाड़ी बना कर ले जाऊँ ? तुम्हें मालूम भी है कि ओलम्पिक में जाने के लिए कितनी मेहनत होती है ?" लुट्टनवाला दहाड़े | ||
"अब मुझे क्या पता तुम बताओगे तभी तो पता चलेगा... " | "अब मुझे क्या पता तुम बताओगे तभी तो पता चलेगा... " मिसेज़ लुट्टनवाला से फुसलाते हुए पूछा | ||
"देखो एक तो खिलाड़ी वो हैं जो दिन-रात प्रॅक्टिस करके हैं। अपनी ट्रेनिंग ख़र्च ख़ुअद ही उठाते हैं और मॅडल भी ले ही आते हैं, दूसरे वो हैं जिन्हें हम तैयार क्रते हैं। | |||
03:20, 31 जुलाई 2012 का अवतरण
मौसम है ओलम्पिकाना
ओलम्पिक समिति के सदस्य लुट्टनवाला गाना गुनगुना रहे हैं।
मौसम है ओलम्पिकाना
ऐ दिल कहीं से कोई मॅडल ना जीत लाना
"अजी सुनिए तो सही ! ज़रा इधर आइए..." 'सुनिए जी' से 'सुनती हो' ने कहा।
"क्या हो गया ?" लुट्टनवाला बोले।
"ओलम्पिक शुरू होने वाले हैं... आपने कुछ तैयारी भी की है कि पिछली बार की तरह सब सत्यानाश ही करवाएँगे" मिसेज़ लुट्टनवाला ने ताना दिया।
"तुम तो मुझे कुछ समझती ही नहीं हो ना... अरे! पिछली बार की बात और थी, वो चीन का मामला था... इस बार देखना यूरोप में क्या कमाल करता हूँ... लंदन की बात ही कुछ और है" लुट्टनवाला ने गर्व से घोषणा की।
"देखो जी इस बार मैं सिर्फ़ उन्हीं रिश्तेदारों को ले जाऊँगी जिन्होंने पिंकी की शादी में गोल्ड के गिफ़्ट दिए थे... पिछली बार की तरह नहीं करना है कि जो भी मिला उसी को न्यौता दे दिया कि चल ओलम्पिक में" मिसेज़ लुट्टनवाला बोलीं।
"तुम अपने ही रिश्तेदारों को ले जाती हो... जितने ज़्यादा तुम रिश्तेदार ले जाओगी, उतने ही ज़्यादा खिलाड़ी भी तो ले जाने पड़ेंगे... हरेक रिश्तेदार के लिए खिलाड़ी भी तो बढ़ाने पड़ते हैं। अब ज़्यादा खिलाड़ी जाएंगे तो मॅडल भी ज़्यादा आएंगे... मॅडल ज़्यादा आएँगे तो सरकार सोचेगी कि ओलम्पिक में खिलाड़ी मॅडल भी जीत सकते हैं... इससे हमारा तो चौपट ही होना है ना... अभी तो सरकार यह सोचती है कि ओलम्पिक में मॅडल-वॅडल तो मिलने नहीं है, इसलिए खिलाड़ी पर क्या बेकार खर्चा करना। इससे अच्छा तो सरकारी अधिकारी, कोच और मंत्रियों को भेजा जाए... कम से कम दूसरे देशों के कल्चर की जानकारी तो हो जाती है... तुम नहीं समझोगी, ये सरकारी बातें हैं।"
"हाँ एक बात तो बताना भूल गई कि पूनम की सास की एक सहेली है... उसका दामाद आजकल कुछ कर नहीं रहा है, बड़ा अपसॅट रहता है आजकल... अगर उसे खिलाड़ी बना कर ओलम्पिक में ले चलें तो..."
"इतना आसान समझ रखा है तुमने ! ऐसे कैसे किसी को भी खिलाड़ी बना कर ले जाऊँ ? तुम्हें मालूम भी है कि ओलम्पिक में जाने के लिए कितनी मेहनत होती है ?" लुट्टनवाला दहाड़े
"अब मुझे क्या पता तुम बताओगे तभी तो पता चलेगा... " मिसेज़ लुट्टनवाला से फुसलाते हुए पूछा
"देखो एक तो खिलाड़ी वो हैं जो दिन-रात प्रॅक्टिस करके हैं। अपनी ट्रेनिंग ख़र्च ख़ुअद ही उठाते हैं और मॅडल भी ले ही आते हैं, दूसरे वो हैं जिन्हें हम तैयार क्रते हैं।