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'''निर्मला शुक्ला''' की गिनती छत्तीसगढ़, भारत की प्रतिभाशाली महिलाओं में होती है। उनका जन्म रायपुर के दीवान परिवार में हुआ था और [[विवाह]] [[1957]] में हुआ। जीविकोपार्जन हेतु निर्मला  
'''निर्मला शुक्ला''' की गिनती छत्तीसगढ़, भारत की प्रतिभाशाली महिलाओं में होती है। उनका जन्म रायपुर के दीवान परिवार में हुआ था और [[विवाह]] [[1957]] में हुआ। जीविकोपार्जन हेतु निर्मला  

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चित्र:निर्मला शुक्ला

निर्मला शुक्ला की गिनती छत्तीसगढ़, भारत की प्रतिभाशाली महिलाओं में होती है। उनका जन्म रायपुर के दीवान परिवार में हुआ था और विवाह 1957 में हुआ। जीविकोपार्जन हेतु निर्मला

जो व्यक्ति हिंदी-साहित्य में एम.ए.है वह भला अमेरिका जाकर कौन सा तीर मार लेगा ? याने कि जहां की राष्ट्रभाषा ही अंग्रेजी है । इस व्यंगपूर्ण प्रश्न का करारा व मधुर दोनों ही शैली का सम्मिश्रित उत्तर देने वाली छत्तीसगढ़ की एक प्रतिभाशाली महिला हैं - निर्मला शुक्ला. महासमुंद-रायपुर के दीवान-परिवार में जन्मी निर्मला के हाईस्कूल पास होने के एक साल बाद ही उनका विवाह विद्यानगर, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के शुक्ला-परिवार में जून 1957 में हो गया था। उस ज़माने में लड़कियों की शादी जल्दी ही हो जाया करती थी।निर्मला में बचपन से ही आगे पढने के लिए लगन व कुछ नया सीखने की तीव्रेछा थी जो विवाहोपरांत व कालांतर में अमेरिका जाने के बाद भी जारी रही । अतः शादी के बाद उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर से बी. ए. व गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय,हरिद्वार (वर्तमान उत्तराखंड) से हिंदी साहित्य में एम. ए. किया । निर्मला की शादी के पांच वर्ष ही हुए थे कि उनके पति श्याम नारायण शुक्ल (जो तब रायपुर में असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे) 1962 में उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए विदेश (कैनेडा) चले गए । एक साल बाद याने 1963 में निर्मला भी अपने दो बच्चों के साथ पति के पास कैनेडा पहुंचीं । विद्यार्थी पति के स्कालरशिप की रकम से गृहस्थी और पढाई दोनों की गाड़ी न चलती थी । अतः निर्मला ने भी काम करने का निर्णय लिया सौभाग्य से उन्हें पति के ही ' यूनिव्हर्सिटी आफ न्यूब्रन्सविक' फ्रेडेरिक्टन में लायब्रेरी-असिस्टेंट की नौकरी मिल गई । गृहस्थी, नौकरी और पति की डिग्री से सम्बंधित थीसिस को टाइप करना - ये सभी काम निर्मला ने कुशलता से किया । उनके पति ने 1964 में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होकर एम.एस-सी. इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की । निर्मला अपने परिवार के साथ 1964 में कैनेडा से अमेरिका (U.S.A.) चली गईं जब उनके पति को वहां 'ओहायो स्टेट यूनिव्हर्सिटी' कोलंबस में आर्थिक सहायता के साथ पी-एच.डी. की पढाई के लिए प्रवेश मिल गया । यहां भी वे यूनिव्हर्सिटी के स्पीच डिपार्टमेंट में नौकरी करती थीं । अपने पति के शोध-प्रबंध को यहां भी उन्होंने टाइप किया. उनके पति ने 1968 में सिविल इंजीनियरिंग में 'ओहायो स्टेट यूनिव्हर्सिटी' से पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की ।


1974 में निर्मला का परिवार जीविकोपार्जन के उद्देश्य से अमेरिका के केलिफोर्निया प्रान्त में जा बसा । तब यहां के 'सिलिकान व्हेली' की कंप्यूटर कंपनियों में कंप्यूटर-विशेषज्ञों की जबरदस्त मांग थी ।जैसा कि पहले बताया निर्मला में सदा से ही आगे पढने और कुछ नया सीखने के लिए लगन था। अपने पति से प्रेरणा पाकर निर्मला ने भी एक संस्थान में कंप्यूटर-प्रशिक्षण के लिए प्रवेश ले लिया । निर्मला ने कंप्यूटर-ट्रेनिंग पूरा कर डिप्लोमा हासिल किया । भारत में सदैव हिंदी माध्यम से पढ़ी निर्मला ने कंप्यूटर-साइंस की पढाई अंग्रेजी माध्यम से की और डिप्लोमा की परीक्षा में ए ग्रेड (प्रथम श्रेणी) से पास हुईं। 1978 में एक दिन निर्मला और उनके परिवार के सदस्यों की ख़ुशी की सीमा न रही जब उन्हें एक कंप्यूटर- कम्पनी से 'साफ्टवेयर इंजीनियर' के पद पर नौकरी का आफर मिला । फिर तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा । निर्मला सिलिकान व्हेली की प्रमुख हाईटेक कम्पनियों- टैन्डम,(एच.पी.),मैकडानल्ड डग्लस, नोवेल तथा सिस्को सिस्टम्स में नेटवर्किंग के क्षेत्र में 'सीनियर साफ्टवेयर इंजीनियर एंड मैनेजर' के पद पर 25 वर्षों तक कार्यरत रहीं जहां वे अपनी कार्यक्षमता के लिए अनेक बार सम्मानित हुईं Iउनकी योग्यता को देखते हुए 'कंप्यूटर-क्लासेज़' पढाने के लिए अपनी कम्पनी की तरफ से उन्हें एक बार अमेरिका से लन्दन भी भेजा गया. अब वे अवकाश प्राप्त कर चुकी हैं I निर्मला के पति डाo श्याम नारायण शुक्ल अमेरिका में सिविल इंजीनियरिंग के ख्यातिप्राप्त वैज्ञानिक, इंजीनियर व प्रोफ़ेसर रहे I उन्होंने यहां के 'सैनहोज़े स्टेट यूनिव्हर्सिटी' व 'लारेंस लीव्हरमोर नैशनल लेबोर्टरी, यूनिव्हर्सिटी आफ केलिफोर्निया' में बरसों काम किया. अब वे भी अवकाश प्राप्त कर चुके हैं.


निर्मला केलिफोर्निया की स्थानीय सामाजिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक संस्थाओं से भी जुडी हैं I अमेरिका में हिंदी के प्रचार-प्रसार और कवि- सम्मेलनों के आयोजन में भी वे सक्रीय रहती हैं।अमेरिका से प्रकाशित हिंदी के प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं- हिंदी-जगत, विश्वविवेक, मानस भारती, ब्रह्मवाणी तथा भारत के विवेक ज्योति में उनकी रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।'स्मृतियां' नामक उनका एक काव्य-संग्रह भी प्रकाशित हो चुका है।अमेरिका से प्रकाशित 'प्रवासिनी के बोल' नामक कविता-संग्रह में भी उनकी कुछ कविताएं प्रकाशित हुई हैं तथा वे अमेरिका की एक लोकप्रिय हिंदी कवियित्री भीहैं। वे 'विश्व हिंदी न्यास' नामक संस्था से भी जुडी हैं और वे दो कार्यकाल उसकी सैन फ्रांसिस्को शाखा की निर्देशिका के रूप में भी कार्य कर चुकी हैं। केलिफोर्निया में उन्होंने चार वर्षों तक बच्चों को हिंदी पढ़ाने का सफल कार्य भी किया । 1999 में लन्दन में हुए विश्व हिंदी सम्मलेन में 'अमेरिका में हिंदी प्रशिक्षण' पर उन्होंने अपना एक पत्र भी प्रस्तुत किया था जिसे काफी सराहा गया । न्यूयार्क में 2007 में हुए विश्व हिंदी सम्मलेन की स्मारिका पत्रिका में भी उनका लेख 'अमेरिका में हिंदी की स्थिति' प्रकाशित हुआ है. उन्होंने अमेरिका से प्रकाशित 'ब्रह्म भारती' नामक एक पत्रिका का दो वर्षों तक कुशल संपादन भी किया।

निर्मला-श्याम नारायण शुक्ल के तीन पुत्रियां व एक पुत्र हैं। उनकी बड़ी पुत्री आभा यूनिव्हर्सिटी आफ केलिफोर्निया, बर्कले से शिक्षा प्राप्त मैकेनिकल इंजीनियर है. शेष दो पुत्रियां विभा व शुभा तथा पुत्र विवेक केलिफोर्निया स्टेट यूनिव्हर्सिटी से कंप्यूटर साइंस (जिसे भारत सहित कुछ देशों में 'कंप्यूटर इंजीनियरिंग' भी कहते हैं) के ग्रेजुएट हैं। शुभा जर्मनी में तथा आभा, विभा व विवेक अमेरिका में ही कार्यरत हैं । चार दशक से भी अधिक अमेरिका में रहने बाद भी अंग्रेजी के साथ छत्तीसगढ़ी बोली व हिंदी भाषा पर निर्मला का सामान अधिकार है। छत्तीसगढ़ - जिसे कभी भारत का सबसे पिछड़ा राज्य कहा जाता था, जहां लड़कियों की शादियां आज भी अक्सर जल्दी हो जाती हैं और उनमें से बहुतों के उच्च शिक्षा प्राप्ति के अवसर बंद हो जाते हैं - निर्मला एक प्रेरणा हैं।

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