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मात्रा :- इमली का लगभग 6 से 24 ग्राम फल का गूदा तथा 1 से 3 ग्राम बीज का चूर्ण लेना चाहिए।
मात्रा :- इमली का लगभग 6 से 24 ग्राम फल का गूदा तथा 1 से 3 ग्राम बीज का चूर्ण लेना चाहिए।
चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है। भारतीय खाने में इसका उपयोग सदियों से हो रहा है। इसका गूदा जैम, सीरप और मिठाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। इसमें कैरोटीन, विटामिन सी और बी पाया जाता है। पित्त विकार, पीलिया और सर्दी के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है।
;फायदे ही फायदे
* यह एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होने के कारण कैंसर से लड़ने में सक्षम है।
* विटामिन सी के कारण स्कर्वी रोग से बचाती है।
* यह पाचन में काफी उपयोगी होती है।
* बुखार में फायदेमंद होती है।
* इमली कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करने में मदद करती है।
* दिल के मरीजों के लिए इमली फायदेमंद है।
* इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इससे लाभ मिलता है।
* गर्मियों में इसके नियमित सेवन से लू की आशंका कम हो जाती है।
* इमली के बीज का उपयोग आंखों के ड्राप तैयार करने में किया जाता है।
* इमली की पत्तियों का प्रयोग हर्बल चाय बनाने में किया जाता है।
* इमली के फूलों के रस का उपयोग बवासीर के उपचार में किया जाता है।
दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्रवासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ टमाटर भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं।
कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि दाँतों पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं। गर्मियों में ताजगीदायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं।
गर्मियों में इसके नियमित सेवन से लू की संभावना खत्म होती है। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है। पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है। इसके अलावा इसे हृदय का टॉनिक भी माना जाता है।
पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा।
इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। आयुर्वेद में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें।
इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है।
इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग खासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है।


;विभिन्न भाषाओं में इमली के नाम
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07:59, 19 अगस्त 2012 का अवतरण

चित्र:इमली
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इमली (Tamarind Tree)

परिचय

इमली का पेड़ सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाता है। इसके अलावा यह अमेरिका, अफ्रीका और कई एशियाई देशों में पाया जाता है। इमली के पेड़ बहुत बड़े होते हैं। 8 वर्ष के बाद इमली का पेड़ फल देने लगता है। फरवरी और मार्च के महीनों में इमली पक जाती है। इमली शाक (सब्जी), दाल, चटनी आदि कई चीजों में डाली जाती है। इमली का स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। पुरानी इमली नई इमली से अधिक गुणकारी होती है। इमली के पत्तों का शाक (सब्जी) और फूलों की चटनी बनाई जाती है। इमली की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इस कारण लोग इसकी लकड़ी से कुल्हाड़ी आदि के दस्ते भी बनाते हैं।

हानिकारक प्रभाव

कच्ची इमली भारी, गर्म और अधिक खट्टी होती है। जिन्हें इमली अनुकूल नहीं होती है, उन्हें भी पकी इमली से दान्तों का खट्टा होना, सिर और जबडे़ में दर्द, सांस की तकलीफ, खांसी और बुखार जैसे दुष्परिणाम हो सकते हैं।

मात्रा :- इमली का लगभग 6 से 24 ग्राम फल का गूदा तथा 1 से 3 ग्राम बीज का चूर्ण लेना चाहिए।

चटखारेदार और मुँह में पानी लाने वाली इमली स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है। इसलिए इसे विभिन्न स्थानों पर विशेष तौर से भोजन में सम्मिलित किया जाता है। भारतीय खाने में इसका उपयोग सदियों से हो रहा है। इसका गूदा जैम, सीरप और मिठाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। स्वाद खट्टा होने के कारण यह मुंह को साफ करती है। इसमें कैरोटीन, विटामिन सी और बी पाया जाता है। पित्त विकार, पीलिया और सर्दी के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है।

फायदे ही फायदे
  • यह एंटीआक्सीडेंट का अच्छा स्रोत होने के कारण कैंसर से लड़ने में सक्षम है।
  • विटामिन सी के कारण स्कर्वी रोग से बचाती है।
  • यह पाचन में काफी उपयोगी होती है।
  • बुखार में फायदेमंद होती है।
  • इमली कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करने में मदद करती है।
  • दिल के मरीजों के लिए इमली फायदेमंद है।
  • इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इससे लाभ मिलता है।
  • गर्मियों में इसके नियमित सेवन से लू की आशंका कम हो जाती है।
  • इमली के बीज का उपयोग आंखों के ड्राप तैयार करने में किया जाता है।
  • इमली की पत्तियों का प्रयोग हर्बल चाय बनाने में किया जाता है।
  • इमली के फूलों के रस का उपयोग बवासीर के उपचार में किया जाता है।

दक्षिण भारत में दालों में रोजाना कुछ खट्टा डाला जाता है, ताकि वह सुपाच्य हो जाए। इसलिए आंध्रवासी भी इमली का भोजन में बेइंतहा इस्तेमाल करते थे, पर 400 वर्ष पूर्व जब पुर्तगालियों ने भारत में प्रवेश किया तब वे अपने साथ टमाटर भी लाए, अतः धीरे-धीरे इमली की जगह टमाटर का इस्तेमाल होने लगा। तब से टमाटर का इस्तेमाल चल ही रहा है, लेकिन कुछ समय से इस संबंध में नई व चौंकाने वाली जानकारियाँ मिल रही हैं। इसके अनुसार एक बार आंध्रप्रदेश का एक पूरा गाँव फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया। इस रोग में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों में प्रवेश कर जाती है, जिससे हड्डियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहाँ पीने के पानी में फ्लोराइड अधिक मात्रा में मौजूद है, अतः यह रोग फैला। पहले इमली इस फ्लोराइड से क्रिया कर शरीर में इसका अवशोषण रोक देती थी, लेकिन टमाटर में यह गुण नहीं था, अतः यह रोग उभरकर आया। तब पता चला कि इमली के क्या फायदे हैं।

कच्ची इमली बच्चों को बड़ी प्रिय होती है। हालाँकि आधुनिक बच्चों का प्रकृति से संपर्क लगभग खत्म ही हो गया है। बड़े होने पर चूँकि दाँतों पर से इनेमल निकल जाता है अतः हम इमली नहीं खा पाते हैं। तब भी इमली के उपयोग के अनेक तरीके हैं। गर्मियों में ताजगीदायक पेय बनाने के लिए इमली को पानी में कुछ देर के लिए भिगोएँ व मसलकर इसका पानी छान लें। अब उसमें स्वादानुसार गुड़ या शकर, नमक व भुना जीरा डाल लें। इसमें डले ताजे पुदीने की पत्तियाँ स्फूर्ति की अनुभूति बढ़ाती हैं।

गर्मियों में इसके नियमित सेवन से लू की संभावना खत्म होती है। यह पेय हल्के विरेचक का कार्य भी करता है। साथ ही धूप में रहने से पैदा हुए सिरदर्द को भी दूर करता है। पकी इमली अपच को दूर कर मुँह का स्वाद ठीक करती है। यह क्षुधावर्धक भी है। इमली पेट के कीड़ों से छुटकारा पाने के लिए भी उपयोगी है। इसके अलावा इसे हृदय का टॉनिक भी माना जाता है।

पित्त समस्याओं के लिए रोजाना रात को एक बेर के बराबर मात्रा इमली कुल्हड़ में भिगो दें। सुबह मसलकर छान लें। थोड़ा मीठा डालकर खाली पेट पी जाएँ। छः-सात दिन में लाभ नजर आने लगेगा।

इसके अलावा इमली की पत्तियों का पेस्ट सूजन के अलावा दाद पर भी लगाया जाता है। इसके फूलों से भूख बढ़ने के अलावा व्यंजनों का स्वाद भी बढ़ता है। आयुर्वेद में इमली के बीजों के भी औषधीय उपयोग हैं। इसके बीजों का पावडर पानी में घोलकर बिच्छू के काटे पर लगाया जाता है। इमली के बीजों को रातभर पानी में भिगोकर सुबह छील लें व पीठ दर्द के लिए खूब चबाकर खा लें।

इमली ऊतकों में जमा यूरिक अम्ल निष्कासित करती है, जिससे जोड़ों के दर्द व रह्यूमेटिज्म में आराम मिलता है। समाज में यह भ्रांति है कि इस तरह के रोगियों को इमली से पूर्ण परहेज करना चाहिए, क्योंकि इमली से जोड़ों में जकड़न बढ़ती है। तथ्य यह है कि जोड़ों से यूरिक अम्ल निष्कासन के दौरान दर्द बढ़ जाता है, जिसका जिम्मेदार इमली को मान लिया जाता है।

इमली के निरंतर सेवन से जोड़ों का दर्द दूर हो जाता है। आजकल 30 वर्ष की उम्र में ही लोग खासकर महिलाएँ इस रोग से पीड़ित हो रही हैं, अतः इमली के निरंतर प्रयोग से इस रोग पर काबू पाया जा सकता है।

विभिन्न भाषाओं में इमली के नाम
भाषा नाम
हिन्दी इमली।
अंग्रेज़ी Tamarind।
मराठी चिंच।
गुजराती आंबली।
बंगाली तेतुला।
फारसी तिमिर।
अरबी तमर।



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