"सुदामा चरित भाग-2": अवतरणों में अंतर

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(सुदामा)  
(सुदामा)  
तीन दिवस चलि विप्र के, दूखि उठे जब पॉय।
तीन दिवस चलि विप्र के, दूखि उठे जब पॉय।
एक ठौर सोए कहॅू, घास पयार बिछाय।।26।।
एक ठौर सोए कहूँ, घास पयार बिछाय।।26।।
 


अन्तरयामी आपु हरि, जानि भगत की पीर।
अन्तरयामी आपु हरि, जानि भगत की पीर।
सोवत लै ठाढौ कियो, नदी गोमती तीर।।27।।
सोवत लै ठाढौ कियो, नदी गोमती तीर।।27।।


इतै गोमती दरस तें, अति प्रसन्न भौ चित।
इतै गोमती दरस तें, अति प्रसन्न भौ चित।
बिप्र तहॉ  असनान करि, कीन्हो नित्त निमित्त।।28।।
बिप्र तहॉ  असनान करि, कीन्हो नित्त निमित्त।।28।।


भाल तिलक घसि कै दियो, गही सुमिरनी हाथ,
भाल तिलक घसि कै दियो, गही सुमिरनी हाथ,
देखि दिव्य द्वारावती, भयो अनाथ सनाथ।।29।।
देखि दिव्य द्वारावती, भयो अनाथ सनाथ।।29।।


दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमईए
दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमईए
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कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं।
कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं।
धीरज अधीर के हरन पर पीर केए
धीरज अधीर के हरन पर पीर केए
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैंघ्॥३०॥
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं॥30॥


दीन जानि काहू पुरूस, कर गहि लीन्हों आय।
दीन जानि काहू पुरूस, कर गहि लीन्हों आय।
दीन द्वार ठाढो कियो, दीनदयाल के जाय।।31।।
दीन द्वार ठाढो कियो, दीनदयाल के जाय।।31।।


द्वारपाल द्विज जानि कै, कीन्हीं दण्ड प्रनाम।
द्वारपाल द्विज जानि कै, कीन्हीं दण्ड प्रनाम।
विप्र कृपा करि भाषिये, सकुल आपनो नाम।।32।।
विप्र कृपा करि भाषिये, सकुल आपनो नाम।।32।।


नाम सुदामा, कृस्न हम, पढे. एकई साथ।
नाम सुदामा, कृस्न हम, पढे. एकई साथ।
कुल पाँडे वृजराज सुति, सकल जानि हैं गाथ।।33।।
कुल पाँडे वृजराज सुति, सकल जानि हैं गाथ।।33।।


द्वारपाल चलि तहँ गयो, जहाँ कृस्न यदुराय।
द्वारपाल चलि तहँ गयो, जहाँ कृस्न यदुराय।
हाथ जोडि. ठाढो भयो, बोल्यो सीस नवाय।।34।।
हाथ जोडि. ठाढो भयो, बोल्यो सीस नवाय।।34।।


;श्रीकृष्ण का द्वारपालद् सुदामा  से)  
;श्रीकृष्ण का द्वारपालद् सुदामा  से)  
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द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एकए रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एकए रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धामए बतावत आपनो नाम सुदामा।।35।।
पूछत दीन दयाल को धामए बतावत आपनो नाम सुदामा।।35।।


बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनिए
बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनिए
छाँड़े राज.काज ऐसे जी की गति जानै कोघ्
छाँड़े राज.काज ऐसे जी की गति जानै को?
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँयए
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय
भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै कोघ्
भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को?
नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरिए
नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि
बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने कोघ्
बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को
जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधुए
जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु
ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने कोघ्प्प् ३६प्प्
ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?।।36।।
 


लोचन पूरि रहे जल सों, प्रभु दूरिते देखत ही दुख मेट्यो।
लोचन पूरि रहे जल सों, प्रभु दूरिते देखत ही दुख मेट्यो।
सोच भयो सुुरनायक के कलपद्रुम के हित माँझ सखेट्यो।
सोच भयो सुरनायक के कलपद्रुम के हित माँझ सखेट्यो।
कम्प कुबेर हियो सरस्यो, परसे पग जात सुमेरू ससेट्यो।
कम्प कुबेर हियो सरस्यो, परसे पग जात सुमेरू ससेट्यो।
रंक ते राउ भयो तबहीं, जबहीं भरि अंक रमापति भेट्यो।।37।।
रंक ते राउ भयो तबहीं, जबहीं भरि अंक रमापति भेट्यो।।37।।


भेंटि भली विधि विप्र सों, कर गहिं त्रिभुवन राय।
भेंटि भली विधि विप्र सों, कर गहिं त्रिभुवन राय।
अन्तःपुर माँ लै गए, जहाँ न दूजो जाय।।38।।
अन्तःपुर माँ लै गए, जहाँ न दूजो जाय।।38।।


मनि मंडित चौकी कनक, ता ऊपर बैठाय।
मनि मंडित चौकी कनक, ता ऊपर बैठाय।
पानी धर्यो परात में, पग धोवन को लाय।।39।।
पानी धर्यो परात में, पग धोवन को लाय।।39।।


राजरमनि सोरह सहस, सब सेवकन सनीति।
राजरमनि सोरह सहस, सब सेवकन सनीति।
आठो पटरानी भई चितै चकित यह प्रीति।40।।
आठो पटरानी भई चितै चकित यह प्रीति।40।।


जिनके चरनन को सलिल, हरत गत सन्ताप।
जिनके चरनन को सलिल, हरत गत सन्ताप।
पाँय सुदामा विप्र के धोवत , ते हरि आप।।41।।
पाँय सुदामा विप्र के धोवत, ते हरि आप।।41।।
 


ऐसे बेहाल बेवाइन सों पगए कंटक.जाल लगे पुनि जोये।
ऐसे बेहाल बेवाइन सों पगए कंटक.जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुमए आये इतै न किते दिन खोये॥
हाय! महादुख पायो सखा तुमए आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसाए करुना करिके करुनानिधि रोये।
देखि सुदामा की दीन दसाए करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिंए नैनन के जल सौं पग धोये॥ प्प्४2प्प् 
पानी परात को हाथ छुयो नहिंए नैनन के जल सौं पग धोये॥।।42।।
 


धोइ चरन पट-पीत सों, पोंछत भे जदुराय।
धोइ चरन पट-पीत सों, पोंछत भे जदुराय।
सतिभामा सों यों कह्यो, करो रसोई जाय।।43।।
सतिभामा सों यों कह्यो, करो रसोई जाय।।43।।


तन्दुल तिय दीन्हें हुते, आगे धरियो जाय।
तन्दुल तिय दीन्हें हुते, आगे धरियो जाय।
देखि राज -सम्पति विभव, दै नहिं सकत लजाय।।44।।
देखि राज -सम्पति विभव, दै नहिं सकत लजाय।।44।।


अन्तरजामी आपु हरि, जानि भगत की रीति।
अन्तरजामी आपु हरि, जानि भगत की रीति।
सुहृद सुदामा विप्र सों, प्रगट जनाई प्रीति।।45।।
सुहृद सुदामा विप्र सों, प्रगट जनाई प्रीति।।45।।


(प्रभु श्री कृष्ण सुदामा से)  
(प्रभु श्री कृष्ण सुदामा से)  
कछु भाभी हमको दियौए सो तुम काहे न देत।
कछु भाभी हमको दियौए सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख मेंए रहे कहौ केहि हेत॥प्प् ४६प्प्
चाँपि पोटरी काँख मेंए रहे कहौ केहि हेत॥।।46।।
 
 


आगे चना गुरु.मातु दिये तए लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
आगे चना गुरु.मातु दिये तए लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सोंए चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सोंए चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुमए खोलत नाहिं सुधा.रस भीने।
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुमए खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुमए तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥ प्प्४७प्प्
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुमए तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥।।47।।
   
   
छोरत सकुचत गॉठरी, चितवत हरि की ओर।
छोरत सकुचत गॉठरी, चितवत हरि की ओर।
जीरन पट फटि छुटि पर्यो, बिथिर गये तेहि ठोर।।48।।
जीरन पट फटि छुटि पर्यो, बिथिर गये तेहि ठोर।।48।।


एक मुठी हरि भरि लई, लीन्हीं मुख में डारि।
एक मुठी हरि भरि लई, लीन्हीं मुख में डारि।
चबत चबाउ करन लगे, चतुरानन त्रिपुरारि।।४9।।   
चबत चबाउ करन लगे, चतुरानन त्रिपुरारि।।४9।।   


कांपि उठी कमला मन सोचति, मोसोंकह हरि को मन औंको।
कांपि उठी कमला मन सोचति, मोसोंकह हरि को मन औंको।
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सोच भयो सुर-नायक के, जब दूसरि बार लिया भरि झोंको।
सोच भयो सुर-नायक के, जब दूसरि बार लिया भरि झोंको।
मेरू डर्यो बकसै जनि मोहिं, कुबेर चबावत चाउर चौंको।।50।।
मेरू डर्यो बकसै जनि मोहिं, कुबेर चबावत चाउर चौंको।।50।।


हूल हियरा मैं सब काननि परी है टेर,  
हूल हियरा मैं सब काननि परी है टेर,  
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हाल्यो पर्यो थोकन में लाल्यो पर्यो,
हाल्यो पर्यो थोकन में लाल्यो पर्यो,
चाल्यो पर्यो चौकन में, चाउर चबात ही।।51।।
चाल्यो पर्यो चौकन में, चाउर चबात ही।।51।।


भौन भरो पकवान मिठाइन, लोग कहैं निधि हैं सुखमा के।
भौन भरो पकवान मिठाइन, लोग कहैं निधि हैं सुखमा के।
सँाझ सबेरे पिता अभिलाखत , दाख न चाखत सिंधु छमा के।
साँझ सबेरे पिता अभिलाखत , दाख न चाखत सिंधु छमा के।
बँाभन एक कोऊ दुखिया सेर-पावैक चाउर लायो समाँ के।
बाँभन एक कोऊ दुखिया सेर-पावैक चाउर लायो समाँ के।
प््रीति की रीति कहा कहिये, तेहि बैठि चबात हैं कन्त रमा के।।52।।
प्रीति की रीति कहा कहिये, तेहि बैठि चबात हैं कन्त रमा के।।52।।
 


मूठी तीसरी भरत ही, रूकुमनि पकरी बाँह।
मूठी तीसरी भरत ही, रूकुमनि पकरी बाँह।
ऐसी तुम्हैं कहा भई, सम्पति की अनचाह।।53।।
ऐसी तुम्हैं कहा भई, सम्पति की अनचाह।।53।।


 
कह्यो रूकुमिनी कान मैं, यह धौ कौन मिलाप।
कह्यो रूकुमिनी कान मैं , यह धौ कौन मिलाप।
कहत सुदामहिं आपसों, होत सुदामा आप।।54।।
कहत सुदामहिं आपसों, होत सुदामा आप।।54।।


यहि कौतुक के समय में , कही सेवकनि आय।
यहि कौतुक के समय में , कही सेवकनि आय।
भई रसोई सिद्ध प्रभु, भोजन करिये आय।।55।।
भई रसोई सिद्ध प्रभु, भोजन करिये आय।।55।।


 
थ्वप्र सुदामहिं न्हाय कर, धोती पहरि बनाय।
थ्वप्र सुदामहिं न्हृाय कर, धोती पहरि बनाय।
सन्ध्या करि मध्यान्ह की, चौका बैठे जाय।।56।।
सन्ध्या करि मध्यान्ह की, चौका बैठे जाय।।56।।


रूपे के रूचिर धार पायस सहित सिता,
रूपे के रूचिर धार पायस सहित सिता,
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दूसरे परोसा भात सोधों सुरभी को घृत,
दूसरे परोसा भात सोधों सुरभी को घृत,
फूले फूले फुलका प्रफुल्ल दुति मन्द की।
फूले फूले फुलका प्रफुल्ल दुति मन्द की।
पपर-मुंगौरी - बरी व्यंजन अनेक भँाति,
पपर-मुंगौरी - बरी व्यंजन अनेक भाँति,
देवता बिलोकि छवि देवकी के नन्द की।
देवता बिलोकि छवि देवकी के नन्द की।
या विधि सुदामा जू को आछे  कैं जँवाएँ प्रभु,
या विधि सुदामा जू को आछे  कैं जँवाएँ प्रभु,
पाछै केै पछ्यावरि परोसी आनि कन्द की।।57।।
पाछै केँ पछ्यावरि परोसी आनि कन्द की।।57।।




दाहिने वबद पढैं चतुरानन, सामुहें ध्यान महेस धर्यो है।
दाहिने वबद पढैं चतुरानन, सामुहें ध्यान महेस धर्यो है।
बाएँ दोऊ कर जोरि सुसेवक, देवन साथ सुरेश खर्यो है।
बाएँ दोऊ कर जोरि सुसेवक, देवन साथ सुरेश खर्यो है।
एतेई बीच अनेक लिये धन, पायन आय कुबेर पर्यो है।
एतेई बीच अनेक लिये धन, पायन आय कुबेर पर्यो है।
छेखि विभौ अपनो सपनो, बपुरो वह बाभन चौंकि पर्यो है।।58।।  
छेखि विभौ अपनो सपनो, बपुरो वह बाभन चौंकि पर्यो है।।58।।  


सात दिवस यहि विधि रहे, दिन आदर भाव।
सात दिवस यहि विधि रहे, दिन आदर भाव।
चित्त चल्यौ घर चलन कौं, ताकर सुनौं बनाव।।59।।
चित्त चल्यौ घर चलन कौं, ताकर सुनौं बनाव।।59।।


देनो हुतौ सो दै चुकेए बिप्र न जानी गाथ।
देनो हुतौ सो दै चुकेए बिप्र न जानी गाथ।
चलती बेर गोपाल जूए कछू न दीन्हौं हाथ॥।।60।।  
चलती बेर गोपाल जूए कछू न दीन्हौं हाथ॥।।60।।  


वह पुलकनि वह उठ मिलनिए वह आदर की भाँति।
वह पुलकनि वह उठ मिलनिए वह आदर की भाँति।
यह पठवनि गोपाल कीए कछू ना जानी जाति॥।।61।।  
यह पठवनि गोपाल कीए कछू ना जानी जाति॥।।61।।  


घर.घर कर ओड़त फिरेए तनक दही के काज।
घर.घर कर ओड़त फिरेए तनक दही के काज।
कहा भयौ जो अब भयौए हरि को राज.समाज॥।।62।।  
कहा भयौ जो अब भयौए हरि को राज.समाज॥।।62।।  


हौं कब इत आवत हुतौए वाही पठ्यौ ठेलि।
हौं कब इत आवत हुतौए वाही पठ्यौ ठेलि।
कहिहौं धनि सौं जाइकैए अब धन धरौ सकेलि॥।।63।।  
कहिहौं धनि सौं जाइकैए अब धन धरौ सकेलि॥।।63।।  


बालापन के मित्र हैं, कहा देउँ मैं सराप।
बालापन के मित्र हैं, कहा देउँ मैं सराप।
जैसी हरि हमको दियौ, तैसों पइहैं आप।।64।।
जैसी हरि हमको दियौ, तैसों पइहैं आप।।64।।


नौगुन धारी छगुन सों, तिगुने मध्ये में आप।
नौगुन धारी छगुन सों, तिगुने मध्ये में आप।
लायो चापल चौगुनी, आठौं गुननि गँवाय।।65।।
लायो चापल चौगुनी, आठौं गुननि गँवाय।।65।।


और कहा कहिए दसा, कंचन ही के धाम।
और कहा कहिए दसा, कंचन ही के धाम।
निपट कठिन हरि को हियों, मोको दियो न दाम।।66।।
निपट कठिन हरि को हियों, मोको दियो न दाम।।66।।


बहु भंडार रतनन भरे, कौन करे अब रोष।
बहु भंडार रतनन भरे, कौन करे अब रोष।
लाग आपने भाग को, काको दीजै दोस।।67।।
लाग आपने भाग को, काको दीजै दोस।।67।।


इमि सोचत सोचत झींखत, आयो निज पुर तीर।
इमि सोचत सोचत झींखत, आयो निज पुर तीर।
पंक्ति 250: पंक्ति 207:


हरि दरसन से दूरि दुख भयो, गये निज देस।
हरि दरसन से दूरि दुख भयो, गये निज देस।
गैतम ऋषि को नाऊ लै, कीन्हो^ नगर प्रवेस।।69।।
गौतम ऋषि को नाऊ लै, कीन्हों नगर प्रवेस।।69।।
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08:41, 8 सितम्बर 2012 का अवतरण

सुदामा चरित भाग-2
सुदामा चरित
सुदामा चरित
कवि नरोत्तमदास
जन्म सन 1493 (संवत- 1550)
जन्म स्थान वाड़ी, सीतापुर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ सुदामा चरित, ध्रुव-चरित
भाषा अवधी, हिन्दी, ब्रजभाषा
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

सुदामा चरित

भाग-1 | भाग-2 | भाग-3 | भाग-4

भाग-2 सुदामा का द्वारिका गमन

(सुदामा)
तीन दिवस चलि विप्र के, दूखि उठे जब पॉय।
एक ठौर सोए कहूँ, घास पयार बिछाय।।26।।

अन्तरयामी आपु हरि, जानि भगत की पीर।
सोवत लै ठाढौ कियो, नदी गोमती तीर।।27।।

इतै गोमती दरस तें, अति प्रसन्न भौ चित।
बिप्र तहॉ असनान करि, कीन्हो नित्त निमित्त।।28।।

भाल तिलक घसि कै दियो, गही सुमिरनी हाथ,
देखि दिव्य द्वारावती, भयो अनाथ सनाथ।।29।।

दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमईए
एक तें सरस एक द्वारिका के भौन हैं।
पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बातए
देवता से बैठे सब साधि.साधि मौन हैं।
देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँयए
कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं।
धीरज अधीर के हरन पर पीर केए
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं॥30॥

दीन जानि काहू पुरूस, कर गहि लीन्हों आय।
दीन द्वार ठाढो कियो, दीनदयाल के जाय।।31।।

द्वारपाल द्विज जानि कै, कीन्हीं दण्ड प्रनाम।
विप्र कृपा करि भाषिये, सकुल आपनो नाम।।32।।

नाम सुदामा, कृस्न हम, पढे. एकई साथ।
कुल पाँडे वृजराज सुति, सकल जानि हैं गाथ।।33।।

द्वारपाल चलि तहँ गयो, जहाँ कृस्न यदुराय।
हाथ जोडि. ठाढो भयो, बोल्यो सीस नवाय।।34।।

श्रीकृष्ण का द्वारपालद् सुदामा से)

सीस पगा न झगा तन में प्रभुए जानै को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोति फटी.सी लटी दुपटी अरुए पाँय उपानह की नहिं सामा॥
द्वार खड्यो द्विज दुर्बल एकए रह्यौ चकिसौं वसुधा अभिरामा।
पूछत दीन दयाल को धामए बतावत आपनो नाम सुदामा।।35।।

बोल्यौ द्वारपाल सुदामा नाम पाँड़े सुनिए
छाँड़े राज.काज ऐसे जी की गति जानै को?
द्वारिका के नाथ हाथ जोरि धाय गहे पाँय
भेंटत लपटाय करि ऐसे दुख सानै को?
नैन दोऊ जल भरि पूछत कुसल हरि
बिप्र बोल्यौं विपदा में मोहि पहिचाने को
जैसी तुम करौ तैसी करै को कृपा के सिंधु
ऐसी प्रीति दीनबंधु! दीनन सौ माने को?।।36।।

लोचन पूरि रहे जल सों, प्रभु दूरिते देखत ही दुख मेट्यो।
सोच भयो सुरनायक के कलपद्रुम के हित माँझ सखेट्यो।
कम्प कुबेर हियो सरस्यो, परसे पग जात सुमेरू ससेट्यो।
रंक ते राउ भयो तबहीं, जबहीं भरि अंक रमापति भेट्यो।।37।।

भेंटि भली विधि विप्र सों, कर गहिं त्रिभुवन राय।
अन्तःपुर माँ लै गए, जहाँ न दूजो जाय।।38।।

मनि मंडित चौकी कनक, ता ऊपर बैठाय।
पानी धर्यो परात में, पग धोवन को लाय।।39।।

राजरमनि सोरह सहस, सब सेवकन सनीति।
आठो पटरानी भई चितै चकित यह प्रीति।40।।

जिनके चरनन को सलिल, हरत गत सन्ताप।
पाँय सुदामा विप्र के धोवत, ते हरि आप।।41।।

ऐसे बेहाल बेवाइन सों पगए कंटक.जाल लगे पुनि जोये।
हाय! महादुख पायो सखा तुमए आये इतै न किते दिन खोये॥
देखि सुदामा की दीन दसाए करुना करिके करुनानिधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिंए नैनन के जल सौं पग धोये॥।।42।।

धोइ चरन पट-पीत सों, पोंछत भे जदुराय।
सतिभामा सों यों कह्यो, करो रसोई जाय।।43।।

तन्दुल तिय दीन्हें हुते, आगे धरियो जाय।
देखि राज -सम्पति विभव, दै नहिं सकत लजाय।।44।।

अन्तरजामी आपु हरि, जानि भगत की रीति।
सुहृद सुदामा विप्र सों, प्रगट जनाई प्रीति।।45।।

(प्रभु श्री कृष्ण सुदामा से)
कछु भाभी हमको दियौए सो तुम काहे न देत।
चाँपि पोटरी काँख मेंए रहे कहौ केहि हेत॥।।46।।

आगे चना गुरु.मातु दिये तए लिये तुम चाबि हमें नहिं दीने।
श्याम कह्यौ मुसुकाय सुदामा सोंए चोरि कि बानि में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुमए खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौं न तजी तुमए तैसइ भाभी के तंदुल कीने॥।।47।।
 
छोरत सकुचत गॉठरी, चितवत हरि की ओर।
जीरन पट फटि छुटि पर्यो, बिथिर गये तेहि ठोर।।48।।

एक मुठी हरि भरि लई, लीन्हीं मुख में डारि।
चबत चबाउ करन लगे, चतुरानन त्रिपुरारि।।४9।।

कांपि उठी कमला मन सोचति, मोसोंकह हरि को मन औंको।
ऋद्धि कॅपी, सबसिद्धि कॅपी, नव निद्धि कॅपी बम्हना यह धौं को।।
सोच भयो सुर-नायक के, जब दूसरि बार लिया भरि झोंको।
मेरू डर्यो बकसै जनि मोहिं, कुबेर चबावत चाउर चौंको।।50।।

हूल हियरा मैं सब काननि परी है टेर,
भेंटत सुदामै स्याम चाबि न अघातहीं।
कहै नरात्तम रिद्धि सिद्धिन में सोर भयो,
डाढी थरहरक और सोचें कमला तहीं।
नाकलोक नागलोक ओक ओक थोकथोक,
ठाढे थारहरै मुचा सूखे सब गात ही।
हाल्यो पर्यो थोकन में लाल्यो पर्यो,
चाल्यो पर्यो चौकन में, चाउर चबात ही।।51।।

भौन भरो पकवान मिठाइन, लोग कहैं निधि हैं सुखमा के।
साँझ सबेरे पिता अभिलाखत , दाख न चाखत सिंधु छमा के।
बाँभन एक कोऊ दुखिया सेर-पावैक चाउर लायो समाँ के।
प्रीति की रीति कहा कहिये, तेहि बैठि चबात हैं कन्त रमा के।।52।।

मूठी तीसरी भरत ही, रूकुमनि पकरी बाँह।
ऐसी तुम्हैं कहा भई, सम्पति की अनचाह।।53।।

कह्यो रूकुमिनी कान मैं, यह धौ कौन मिलाप।
कहत सुदामहिं आपसों, होत सुदामा आप।।54।।

यहि कौतुक के समय में , कही सेवकनि आय।
भई रसोई सिद्ध प्रभु, भोजन करिये आय।।55।।

थ्वप्र सुदामहिं न्हाय कर, धोती पहरि बनाय।
सन्ध्या करि मध्यान्ह की, चौका बैठे जाय।।56।।

रूपे के रूचिर धार पायस सहित सिता,
सोभा सब जीती जिन सरद के चन्द की।
दूसरे परोसा भात सोधों सुरभी को घृत,
फूले फूले फुलका प्रफुल्ल दुति मन्द की।
पपर-मुंगौरी - बरी व्यंजन अनेक भाँति,
देवता बिलोकि छवि देवकी के नन्द की।
या विधि सुदामा जू को आछे कैं जँवाएँ प्रभु,
पाछै केँ पछ्यावरि परोसी आनि कन्द की।।57।।


दाहिने वबद पढैं चतुरानन, सामुहें ध्यान महेस धर्यो है।
बाएँ दोऊ कर जोरि सुसेवक, देवन साथ सुरेश खर्यो है।
एतेई बीच अनेक लिये धन, पायन आय कुबेर पर्यो है।
छेखि विभौ अपनो सपनो, बपुरो वह बाभन चौंकि पर्यो है।।58।।

सात दिवस यहि विधि रहे, दिन आदर भाव।
चित्त चल्यौ घर चलन कौं, ताकर सुनौं बनाव।।59।।

देनो हुतौ सो दै चुकेए बिप्र न जानी गाथ।
चलती बेर गोपाल जूए कछू न दीन्हौं हाथ॥।।60।।

वह पुलकनि वह उठ मिलनिए वह आदर की भाँति।
यह पठवनि गोपाल कीए कछू ना जानी जाति॥।।61।।

घर.घर कर ओड़त फिरेए तनक दही के काज।
कहा भयौ जो अब भयौए हरि को राज.समाज॥।।62।।

हौं कब इत आवत हुतौए वाही पठ्यौ ठेलि।
कहिहौं धनि सौं जाइकैए अब धन धरौ सकेलि॥।।63।।

बालापन के मित्र हैं, कहा देउँ मैं सराप।
जैसी हरि हमको दियौ, तैसों पइहैं आप।।64।।

नौगुन धारी छगुन सों, तिगुने मध्ये में आप।
लायो चापल चौगुनी, आठौं गुननि गँवाय।।65।।

और कहा कहिए दसा, कंचन ही के धाम।
निपट कठिन हरि को हियों, मोको दियो न दाम।।66।।

बहु भंडार रतनन भरे, कौन करे अब रोष।
लाग आपने भाग को, काको दीजै दोस।।67।।

इमि सोचत सोचत झींखत, आयो निज पुर तीर।
दीठि परी इक बार ही, अय गयन्द की भीर।।68।।


हरि दरसन से दूरि दुख भयो, गये निज देस।
गौतम ऋषि को नाऊ लै, कीन्हों नगर प्रवेस।।69।।

सुदामा चरित

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टीका टिप्पणी और संदर्भ