"भूपेन हज़ारिका": अवतरणों में अंतर

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'''भूपेन हज़ारिका''' (अंग्रेज़ी: ''Bhupen Hazarika'', जन्म:- [[8 सितंबर]], 1926 - मृत्यु: [[5 नवंबर]], 2011) [[भारत]] के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। भूपेन हज़ारिका को दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फ़िल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया है। भूपेंद्र हज़ारिका पहले शख़्सियत थे जिन्होंने असमिया संस्कृति को विश्व मंच तक पहुंचाया था।
==जीवन परिचय==
डॉ. भूपेन हज़ारिका बहु–आयामी व्यक्तित्व के धनी थे। असम–रत्न हज़ारिका जी असम अथवा भारत के ही नहीं पूरे संसार के लिए वे एक विश्व रत्न थे। वे संगीत रचनाकार, सुरकार, संगीतकार, संगीत–निर्देशक, वाद्य–यंत्र वादक, अभिनेता, सिनेमा निर्देशक तो थे ही साथ ही साथ एक अच्छे कवि, गद्यकार, निबंधकार, नाट्यकार आदि भी थे। वे समन्वयवादी थे, कल्याणकारी थे, शांतिदूत थे। वे मानवतावादी थे, मानव के कल्याण के लिए स्वप्नदृष्टा थे।<ref name="Gyankosh">{{cite web |url=http://kosh.khsindia.org/hindi/%E0%A4%B8.%E0%A4%AA%E0%A5%82.%E0%A4%85%E0%A4%82%E0%A4%95-13,%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%82-%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B8-2011,%E0%A4%AA%E0%A5%83-4 |title=भूपेन हज़ारिका का जीवन-दर्शन और व्यक्तित्व |accessmonthday=8 सितम्बर |accessyear=2012 |last=मेधि |first=डॉ. दिलीप  |authorlink= |format=पी.एच.पी |publisher=ज्ञानकोश |language=हिन्दी }}</ref>
====जन्म====
भूपेन हज़ारिका का जन्म सन 1926 के [[8 सितम्बर]] को शदिया (असम) में हुआ था। नीलकांत हज़ारिका उनके पिता थे। वे स्कूल उप–परिदर्शक थे। बाद में वे एस.डी.सी. बने थे। माँ का नाम था शांतिप्रिया हज़ारिका। भूपेन हज़ारिका के सात भाई और तीन बहने थीं। वे ज्येष्ठ थे।<ref name="Gyankosh"/>
====शिक्षा====
बचपन में भूपेन हज़ारिका की शिक्षा [[गुवाहाटी]] के सेणाराम हाईस्कूल में, धुबुरी की एक पाठशाला में, फिर गुवाहाटी के कॉटन कलेजियेट स्कूल में और अंत में छठी कक्षा में (सन 1935 में) तेजपुर सरकारी उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में हुई। सन 1940 में तेजपुर से वे मैट्रिक की परीक्षा पास करते हैं। सन 1941 में कॉटन कॉलेज में (उच्चत्तर माध्यमिक़ कला शाखा में) दाख़िला लिया। सन 1942 में [[बनारस हिंदू विश्वविद्यालय]] में स्नातक में उनका दाखिला होता है। सन 1944 में सम्मानसह (honours) शिक्षा में स्नातक की उपाधि मिलती है। सन 1946 में उसी विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि मिलती है। सन 1949 को वे पी.एच.डी. हेतु अमरीका की यात्रा करते हैं। सन 1952 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त होती है। उनकी गवेषणा का विषय था– "Roll of Mass Communication in India's Adult Education"<ref name="Gyankosh"/>
====दाम्पत्य जीवन====
भूपेन हज़ारिका की 23 वर्ष की उम्र में ही सन 1950 में [[1 अगस्त]] को न्यूयार्क शहर में प्रियम पटेल के साथ उनकी शादी होती है। प्रियम काम्पला, यूगांडार के प्रसिद्ध चिकित्सक मूलजी भाई पटेल और उनकी पत्नी मणिबेन पटेल की बेटी हैं। इनका मूल निवास स्थान [[गुजरात]] है। गुजरात के नियम के हिसाब से औरत के स्वामी का नाम और बेटा–बेटी को बाप का नाम बीच में लिखने की परम्परा है। इसी कारण पत्नी का नाम शादी के पश्चात् प्रियम भूपेन हज़ारिका (अथवा प्रियम बि. हज़ारिका) और बेटे का नाम कोल्लाक भूपेन्द्र हज़ारिका (अथवा कोल्लाक बि. हज़ारिका/पूर्णांग भूपेन्द्र हज़ारिका/तेज भूपेन्द्र हज़ारिका) पड़ा। कोल्लाक को असम के लोग तेज हज़ारिका से ही जानते हैं। कोल्लाक न्यूयार्क में तथा प्रियम कनाडा में रहती हैं। कोल्लाक व्यवसाय करते हैं।<ref name="Gyankosh"/>
====प्रारंभिक जीवन====
हज़ारिका की पहचान न सिर्फ उत्तर- पूर्वी भारत के मशहूर गायक, लेखक, संगीत निर्देशक बल्कि फ़िल्मकार के रूप में भी होती है। अद्भुत प्रतिभा वाले इस कलाकार का जन्म 8 सितंबर, 1926 को भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के सादिया में हुआ। उनके पिता नीलकांत हज़ारिका तब सादिया के कमिश्नर साहब की पत्नी को असमिया भाषा सिखाते थे। वहीं के एक स्थानीय स्कूल में वो शिक्षण का कार्य भी करते थे। घर पर उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हुई। मां के गले की आवाज़ अद्भुत थी। छोटे भूपेन उस समय मां से बंग संगीत सुनते थे। वो भी अपनी मां के साथ गला मिलाकर गाते थे। कुछ दिनों बाद पिता को गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में नौकरी मिल गई। वहां के सोनाराम स्कूल में पहली बार तीसरी कक्षा में भूपेन का दाखिला हुआ। वैसे बीच में साल भर के लिए उन्हें धूबरी में जाना पड़ा था। उस समय प्रमथेश बड़ुवा धूबरी में अपनी फ़िल्म "मुक्ति" की शूटिंग के सिलसिले में आए थे। प्रमथेश उनके पिता के अच्छे मित्र थे, इसलिए भूपेन को उन्हें बहुत क़रीब से देखने का मौक़ा मिला था। 1940 में बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपने हज़ारिका ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा तेजपुर से की। धूबरी के बाद वो लोग फिर गुवाहटी वापस आ गए। तब तक गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में उनकी पढ़ाई भी शुरू हो गई थी, साथ में शुरू हो गया था गायन और चित्रकारी भी। यहां उन्होंने अपने मामा के घर में रह कर पढ़ाई की। इस बीच यहां के आईपीटीए के दो सदस्य विष्णुप्रसाद आभा और ज्योतिप्रसाद अग्रवाल से इनका परिचय हुआ। इनके सानिध्य में रहकर किशोर भूपेन के दिलो-दिमाग में आम आदमी के गीत-संगीत की बात छा गई। इस उम्र में ही आम आदमी के लिए कुछ करने की बात वो सोचने लगे। इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। फिर अचानक उन्हें ऎसा लगा कि वो असम में और पढ़ाई जारी नहीं रखेंगे। यह सोचने के बाद ही वो तत्काल कोलकता चले आए। सन् 1942 के कोलकता के डलहौजी में जापान ने बम गिराया। एक दहशत से कांप उठा कोलकता। अनगिनत लोगों ने पलायन किया, उन्हीं की तरह भूपेन भी बनारस चले आए। यहां उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां से उन्होंने 1946 में स्नातक और फिर राजनीतिक विज्ञान में स्नात्तोकत्तर किया। उस समय यहां के आचार्य पंडित जवाहरलाल नेहर और उपाचार्य सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णण थे। राधाकृण्णजी के क्लास में गीता का व्याख्यान सुनने का सौभाग्य भूपेन को भी मिला था। यही नहीं उस्ताद बिस्मिल्ला के घर के पास के रास्ते पर खड़े होकर शहनाई पर उनकी भैरवी सुनने का सौभाग्य भी उन्हें मिला। मगर तब तक उनके घर की हालात बहुत बदल चुकी थी। पिताजी नौकरी से रिटायर हो गए थे। 145 रूपए पेंशन मिलता था। तब दस भाई-बहनों में सबसे बड़े भूपेन को बाध्य होकर गुवाहाटी आना पड़ा। बीबीआर कॉलेज में अध्यापन की नौकरी शुरू कर दी। शुरुआती वेतन था 125 रुपये प्रतिमाह। कुछ दिन बाद ही उन्हें गुवाहाटी रेडियो में मौक़ा मिल गया। साल होते-होते उनका तबादल दिल्ली हो गया, वहीं उनका परिचय डॉक्टर नारायण मेनन के साथ हुआ। उनकी मदद से उन्हें अमेरिका में मॉस कम्युनिकेशन पर शोध करने की स्कॉलरशिप मिल गई। घर की हालत अच्छी नहीं थी। ऎसे में नौकरी छोड़कर फिर से पढ़ाई शुरू करने में बड़ा जोखिम था, लेकिन उनके अंदर शायद छिपा हुआ था किसी यायावर का मन। 12 सितंबर 1949 को वो अमेरिका चले गए। न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और उन्होंने पीएचडी (डॉक्टरेट) की डिग्री प्राप्त की। यहां पर अचानक पॉल राबसन के साथ उनका परिचय हुआ। भूपेन को उनका घनिष्ठ सानिध्य मिला। यहीं पर उन्होंने पॉल से सीखा मिसीमिपी नदी को कोसते हुए एक गाना,"वल्र्ड मैन रीवर,यू डोंट सी नथिंग...। बस उन्होंने लिख डाला, "विस्तीर्ण दुपारे, असंख्यो मानुषेर हाहाकार सुने, निशब्दे निरवे ओ गंगा तुमी, ओ गंगा बहिचो केनो..." (विस्तृत फैले हुए दो किनारे, असंख्य लोगों की वेदनापूर्ण हाहाकार सुनकर भी ओ गंगा तुम नि:शब्द होकर बहती हो क्यों...) वैसे तब तक शांतिनिकेतन में पढ़ी-लिखी बरोदरा की लड़की प्रियवंदा से भूपेन का परिचय हो गया था। प्रियवंदा रहती थीं न्यूयॉर्क में। उन दोनों की शादी 1950 में हुई। अब यह अलग बात है कि यह शादी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकी। 


भूपेन हज़ारिका (Bhupen Hazarika) भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। उन्हें दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फ़िल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया है। भूपेंद्र हज़ारिका पहले शख़्सियत थे जिन्होंने असमिया संस्कृति को विश्व के मंच तक पहुंचाया था। उनके कई लोक गीत बॉलीवुड को भी धन्य कर चुके हैं।
अमेरिका से लौटते समय अफ्रीका भी घूमकर लौटे थे भूपेन दा। जहाज़ से प्रशांत महासागर का रूप देखकर वो भावुक हो गए। लिख डाला, "सागर संगमे सातार केटेचि केतो, कखनो तो होई नेई... (सागर-संगम में कितनी बार तैरा हूं, पर कभी भी थकान महसूस नहीं किया है ...)। अपने एक इंटरव्यू में भूपेन दा ने कहा है, "मेरे अंतिम यात्रा में मेरे इस गाने को ही बजाया जाए। यही मेरे जीवन यात्रा का गाना है। भूपेन हज़ारिका ने अपने जीवन में बहुत कम गाने गाए हैं, लेकिन जो गाने गाए है, वो मनुष्य के दिल को छू गया है। उस दौर के सारे धाकड़ संगीतज्ञ हेमांग विश्वास, सचिनदेव बर्मन, हेमंत मुखर्जी का प्यार उन्हें मिला था। उन्ही दिनों वो गण नाट्य संघ के साथ जुड़ गए। अपने गानों को लेकर वो विश्व भ्रमण कर चुके थे। कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के एकमात्र प्रिय अमियकुमार चक्रवर्ती से भी भूपेन दा को बहुत मदद मिली थी।  
 
;प्रारंभिक जीवन
हजारिका की पहचान न सिर्फ उत्तर- पूर्वी भारत के मशहूर गायक, लेखक, संगीत निर्देशक बल्कि फ़िल्मकार के रूप में भी होती है। अद्भुत प्रतिभा वाले इस कलाकार का जन्म 8 सितंबर, 1926 को भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के सादिया में हुआ। उनके पिता नीलकांत हजारिका तब सादिया के कमिश्नर साहब की पत्नी को असमिया भाषा सिखाते थे। वहीं के एक स्थानीय स्कूल में वो शिक्षण का कार्य भी करते थे। घर पर उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हुई। मां के गले की आवाज़ अद्भुत थी। छोटे भूपेन उस समय मां से बंग संगीत सुनते थे। वो भी अपनी मां के साथ गला मिलाकर गाते थे। कुछ दिनों बाद पिता को गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में नौकरी मिल गई। वहां के सोनाराम स्कूल में पहली बार तीसरी कक्षा में भूपेन का दाखिला हुआ। वैसे बीच में साल भर के लिए उन्हें धूबरी में जाना पड़ा था। उस समय प्रमथेश बड़ुवा धूबरी में अपनी फ़िल्म "मुक्ति" की शूटिंग के सिलसिले में आए थे। प्रमथेश उनके पिता के अच्छे मित्र थे, इसलिए भूपेन को उन्हें बहुत क़रीब से देखने का मौक़ा मिला था। 1940 में बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपने हजारिका ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा तेजपुर से की। धूबरी के बाद वो लोग फिर गुवाहटी वापस आ गए। तब तक गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में उनकी पढ़ाई भी शुरू हो गई थी, साथ में शुरू हो गया था गायन और चित्रकारी भी। यहां उन्होंने अपने मामा के घर में रह कर पढ़ाई की। इस बीच यहां के आईपीटीए के दो सदस्य विष्णुप्रसाद आभा और ज्योतिप्रसाद अग्रवाल से इनका परिचय हुआ। इनके सानिध्य में रहकर किशोर भूपेन के दिलो-दिमाग में आम आदमी के गीत-संगीत की बात छा गई। इस उम्र में ही आम आदमी के लिए कुछ करने की बात वो सोचने लगे। इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। फिर अचानक उन्हें ऎसा लगा कि वो असम में और पढ़ाई जारी नहीं रखेंगे। यह सोचने के बाद ही वो तत्काल कोलकता चले आए। सन् 1942 के कोलकता के डलहौजी में जापान ने बम गिराया। एक दहशत से कांप उठा कोलकता। अनगिनत लोगों ने पलायन किया, उन्हीं की तरह भूपेन भी बनारस चले आए। यहां उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां से उन्होंने 1946 में स्नातक और फिर राजनीतिक विज्ञान में स्नात्तोकत्तर किया। उस समय यहां के आचार्य पंडित जवाहरलाल नेहर और उपाचार्य सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णण थे। राधाकृण्णजी के क्लास में गीता का व्याख्यान सुनने का सौभाग्य भूपेन को भी मिला था। यही नहीं उस्ताद बिस्मिल्ला के घर के पास के रास्ते पर खड़े होकर शहनाई पर उनकी भैरवी सुनने का सौभाग्य भी उन्हें मिला। मगर तब तक उनके घर की हालात बहुत बदल चुकी थी। पिताजी नौकरी से रिटायर हो गए थे। 145 रूपए पेंशन मिलता था। तब दस भाई-बहनों में सबसे बड़े भूपेन को बाध्य होकर गुवाहाटी आना पड़ा। बीबीआर कॉलेज में अध्यापन की नौकरी शुरू कर दी। शुरुआती वेतन था 125 रुपये प्रतिमाह। कुछ दिन बाद ही उन्हें गुवाहाटी रेडियो में मौक़ा मिल गया। साल होते-होते उनका तबादल दिल्ली हो गया, वहीं उनका परिचय डॉक्टर नारायण मेनन के साथ हुआ। उनकी मदद से उन्हें अमेरिका में मॉस कम्युनिकेशन पर शोध करने की स्कॉलरशिप मिल गई। घर की हालत अच्छी नहीं थी। ऎसे में नौकरी छोड़कर फिर से पढ़ाई शुरू करने में बड़ा जोखिम था, लेकिन उनके अंदर शायद छिपा हुआ था किसी यायावर का मन। 12 सितंबर 1949 को वो अमेरिका चले गए। न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और उन्होंने पीएचडी (डॉक्टरेट) की डिग्री प्राप्त की। यहां पर अचानक पॉल राबसन के साथ उनका परिचय हुआ। भूपेन को उनका घनिष्ठ सानिध्य मिला। यहीं पर उन्होंने पॉल से सीखा मिसीमिपी नदी को कोसते हुए एक गाना,"वल्र्ड मैन रीवर,यू डोंट सी नथिंग...। बस उन्होंने लिख डाला, "विस्तीर्ण दुपारे, असंख्यो मानुषेर हाहाकार सुने, निशब्दे निरवे ओ गंगा तुमी, ओ गंगा बहिचो केनो..." (विस्तृत फैले हुए दो किनारे, असंख्य लोगों की वेदनापूर्ण हाहाकार सुनकर भी ओ गंगा तुम नि:शब्द होकर बहती हो क्यों...) वैसे तब तक शांतिनिकेतन में पढ़ी-लिखी बरोदरा की लड़की प्रियवंदा से भूपेन का परिचय हो गया था। प्रियवंदा रहती थीं न्यूयॉर्क में। उन दोनों की शादी 1950 में हुई। अब यह अलग बात है कि यह शादी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकी। 
 
अमेरिका से लौटते समय अफ्रीका भी घूमकर लौटे थे भूपेन दा। जहाज़ से प्रशांत महासागर का रूप देखकर वो भावुक हो गए। लिख डाला, "सागर संगमे सातार केटेचि केतो, कखनो तो होई नेई... (सागर-संगम में कितनी बार तैरा हूं, पर कभी भी थकान महसूस नहीं किया है ...)। अपने एक इंटरव्यू में भूपेन दा ने कहा है, "मेरे अंतिम यात्रा में मेरे इस गाने को ही बजाया जाए। यही मेरे जीवन यात्रा का गाना है। भूपेन हजारिका ने अपने जीवन में बहुत कम गाने गाए हैं, लेकिन जो गाने गाए है, वो मनुष्य के दिल को छू गया है। उस दौर के सारे धाकड़ संगीतज्ञ हेमांग विश्वास, सचिनदेव बर्मन, हेमंत मुखर्जी का प्यार उन्हें मिला था। उन्ही दिनों वो गण नाट्य संघ के साथ जुड़ गए। अपने गानों को लेकर वो विश्व भ्रमण कर चुके थे। कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के एकमात्र प्रिय अमियकुमार चक्रवर्ती से भी भूपेन दा को बहुत मदद मिली थी।  


भूपेन की गायकी से जुड़ा एक मजेदार वाक्या है। एक बार उन्हें कॉलेज में आए नए विद्यार्थियों के लिए रखे गए स्वागत समारोह में एक भाषण पढ़ना था। भूपेन के पिता ने उन्हें वो भाषण लिख कर भी दिया था। लेकिन स्टेज पर आते ही भूपेन वह भाषण भूल गए और वहां उन्होंने एक गाना सुनाया। वहां उपस्थित सभी लोगों को भूपेन ने अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर दिया और इसके बाद वो अपने कॉलेज में लोकप्रिय हो गए। इसके बाद भूपेन ने संगीत से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। और धीरे-धीरे संगीत के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया।
भूपेन की गायकी से जुड़ा एक मजेदार वाक्या है। एक बार उन्हें कॉलेज में आए नए विद्यार्थियों के लिए रखे गए स्वागत समारोह में एक भाषण पढ़ना था। भूपेन के पिता ने उन्हें वो भाषण लिख कर भी दिया था। लेकिन स्टेज पर आते ही भूपेन वह भाषण भूल गए और वहां उन्होंने एक गाना सुनाया। वहां उपस्थित सभी लोगों को भूपेन ने अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर दिया और इसके बाद वो अपने कॉलेज में लोकप्रिय हो गए। इसके बाद भूपेन ने संगीत से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। और धीरे-धीरे संगीत के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया।


;गीत संगीत का सफर
;गीत संगीत का सफर
भूपेन हजारिका एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार थे। बचपन में ही उन्होंने अपना पहला गीत लिखा और 10 वर्ष की आयु में उसे गाया भी। असमिया भाषा की फ़िल्मों से भी उनका नाता बचपन में ही जुड़ गया था। उन्होंने असमिया भाषा में निर्मित दूसरी फ़िल्म इंद्रमालती के लिए 1939 में बारह वर्ष की आयु मॆं काम भी किया। सुर सम्राट हजारिका ने क़रीब 70 साल तक अपनी आवाज़ से पूर्वोत्तर के साथ बॉलीवुड में भी छाए रहे। हजारिका ने अपनी फ़िल्म का निर्देशन 1956 में किया। उन्होंने एरा बतर सुर से अपनी फ़िल्म का पहला निर्देशन किया।  
भूपेन हज़ारिका एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार थे। बचपन में ही उन्होंने अपना पहला गीत लिखा और 10 वर्ष की आयु में उसे गाया भी। असमिया भाषा की फ़िल्मों से भी उनका नाता बचपन में ही जुड़ गया था। उन्होंने असमिया भाषा में निर्मित दूसरी फ़िल्म इंद्रमालती के लिए 1939 में बारह वर्ष की आयु मॆं काम भी किया। सुर सम्राट हज़ारिका ने क़रीब 70 साल तक अपनी आवाज़ से पूर्वोत्तर के साथ बॉलीवुड में भी छाए रहे। हज़ारिका ने अपनी फ़िल्म का निर्देशन 1956 में किया। उन्होंने एरा बतर सुर से अपनी फ़िल्म का पहला निर्देशन किया।  


हजारिका ने होश संभालते ही गीत संगीत को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बना लिया और 60 साल तक लगातार भारतीय संगीत जगत में सक्रिय योगदान दिया। उनके गंगा नदी पर लिखे और गाए गीत काफ़ी प्रसिद्ध हुए। हजारिका ने बंगाली, असमिया और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में गीत गाए हैं। आज भूपेन हजारिका के गाए कई प्रसिद्ध गीत है। फ़िल्म रूदाली के गीत 'दिल हूं हूं करे' के जरिए हजारिका हिंदी फ़िल्म जगत में छा गए। इसके अलावा हजारिका ने दमन फ़िल्म में 'गुम सुम' गाना भी गाया। भूपेन ने 'मैं और मेरा साया, एक कली दो पत्तियां, हां आवारा हूं, उस दिन की बात है' जैसे कई सारे हिंदी गानों को गाया था। 'ओ गंगा बहती हो क्यों' को अपनी आवाज़ और संगीत दी है। बिहू के गीतों में भूपेन हजारिका ने अपनी चिरजीवी आवाज़ दी है। यही नहीं, ‘गांधी टू हिटलर’ फ़िल्म में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन’ को उन्होंने ही अपनी आवाज़ दी।
हज़ारिका ने होश संभालते ही गीत संगीत को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बना लिया और 60 साल तक लगातार भारतीय संगीत जगत में सक्रिय योगदान दिया। उनके गंगा नदी पर लिखे और गाए गीत काफ़ी प्रसिद्ध हुए। हज़ारिका ने बंगाली, असमिया और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में गीत गाए हैं। आज भूपेन हज़ारिका के गाए कई प्रसिद्ध गीत है। फ़िल्म रूदाली के गीत 'दिल हूं हूं करे' के जरिए हज़ारिका हिंदी फ़िल्म जगत में छा गए। इसके अलावा हज़ारिका ने दमन फ़िल्म में 'गुम सुम' गाना भी गाया। भूपेन ने 'मैं और मेरा साया, एक कली दो पत्तियां, हां आवारा हूं, उस दिन की बात है' जैसे कई सारे हिंदी गानों को गाया था। 'ओ गंगा बहती हो क्यों' को अपनी आवाज़ और संगीत दी है। बिहू के गीतों में भूपेन हज़ारिका ने अपनी चिरजीवी आवाज़ दी है। यही नहीं, ‘गांधी टू हिटलर’ फ़िल्म में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन’ को उन्होंने ही अपनी आवाज़ दी।


हजारिका ने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति, एक पल, सिराज, प्रतिमूर्ति, दो राहें, साज, गजगामिनी, दमन, क्यों और चिंगारी जैसी हिंदी फ़िल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। यही नहीं उन्होंने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति और सिराज जैसी फ़िल्मों को निर्देशित कर फ़िल्म निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाया। हजारिका ने हिंदी फ़िल्म एक पल में बतौर अभिनेता के तौर पर भी काम किया। हजारिका ने 2006 में फ़िल्म 'चिंगारी' में भी गाना गाया।
हज़ारिका ने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति, एक पल, सिराज, प्रतिमूर्ति, दो राहें, साज, गजगामिनी, दमन, क्यों और चिंगारी जैसी हिंदी फ़िल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। यही नहीं उन्होंने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति और सिराज जैसी फ़िल्मों को निर्देशित कर फ़िल्म निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाया। हज़ारिका ने हिंदी फ़िल्म एक पल में बतौर अभिनेता के तौर पर भी काम किया। हज़ारिका ने 2006 में फ़िल्म 'चिंगारी' में भी गाना गाया।


;पुरस्कार
;पुरस्कार
दो-दो बार लौटा कर तीसरी बार उन्हें पद्मश्री सम्मान ग्रहण किया था। "चमेली मेमसाहब" के संगीत के लिए उन्हें राष्ट्रपति का सम्मान भी मिल चुका है और कभी कम्युनिस्ट होने की वजह से अपने निवास स्थान से भी दूर होना पड़ा है, जबकि इसमें उनका कोई दोष नहीं था। 1993 में असोम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2004 में उन्हें राजनीति में शिरकत की तथा भाजपा की तरफ से 2004 में चुनाव भी लड़ा।
दो-दो बार लौटा कर तीसरी बार उन्हें पद्मश्री सम्मान ग्रहण किया था। "चमेली मेमसाहब" के संगीत के लिए उन्हें राष्ट्रपति का सम्मान भी मिल चुका है और कभी कम्युनिस्ट होने की वजह से अपने निवास स्थान से भी दूर होना पड़ा है, जबकि इसमें उनका कोई दोष नहीं था। 1993 में असोम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2004 में उन्हें राजनीति में शिरकत की तथा भाजपा की तरफ से 2004 में चुनाव भी लड़ा।


हजारिका को असमिया फ़िल्मों उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इसके अलावा उन्हें नेशनल अवॉर्ड एज दि बेस्ट रीजनल फ़िल्म (1975), कला क्षेत्र में पद्म भूषण (2001), असोम रत्न (2009) और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (2009) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।   
हज़ारिका को असमिया फ़िल्मों उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इसके अलावा उन्हें नेशनल अवॉर्ड एज दि बेस्ट रीजनल फ़िल्म (1975), कला क्षेत्र में पद्म भूषण (2001), असोम रत्न (2009) और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (2009) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।   


;निधन
;निधन
प्रख्यात गायक और संगीतकार भूपेन हजारिका का 5 नवंबर 2011 को मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया था। उनका निधन शाम लगभग 4:37 बजे हुआ था। वह 86 वर्ष के थे। भूपेन हजारिका लम्बे समय से निमोनिया से बीमार थे।  
प्रख्यात गायक और संगीतकार भूपेन हज़ारिका का 5 नवंबर 2011 को मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया था। उनका निधन शाम लगभग 4:37 बजे हुआ था। वह 86 वर्ष के थे। भूपेन हज़ारिका लम्बे समय से निमोनिया से बीमार थे।  


==फ़िल्म जगत में भूपेन हजारिका==
==फ़िल्म जगत में भूपेन हज़ारिका==


;फिल्म के गायक एवं अभिनेता के रूप में सर्वप्रथम काम किया :
;फिल्म के गायक एवं अभिनेता के रूप में सर्वप्रथम काम किया :
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12. मिरि जियरी : 1990 <br>
12. मिरि जियरी : 1990 <br>


==भूपेन हजारिका को दी गयी विविध उपाधियां==
==भूपेन हज़ारिका को दी गयी विविध उपाधियां==
1. सुधाकण्ठ <br>
1. सुधाकण्ठ <br>
2. पद्मश्री <br>
2. पद्मश्री <br>
पंक्ति 106: पंक्ति 112:
14. विश्वकण्ठ <br>
14. विश्वकण्ठ <br>


==भूपेन हजारिका ने जिन फ़िल्मों में संगीत दिया==
==भूपेन हज़ारिका ने जिन फ़िल्मों में संगीत दिया==
;असमिया :
;असमिया :
1. सती बेउला : 1948 <br>
1. सती बेउला : 1948 <br>
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;जिन मशहूर कलाकारों ने भूपेन हजारिका के लिखे गीतों को उनके ही संगीत निर्देशन में गाया :
;जिन मशहूर कलाकारों ने भूपेन हज़ारिका के लिखे गीतों को उनके ही संगीत निर्देशन में गाया :


;लता मंगेशकर
;लता मंगेशकर
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==भूपेन हजारिका का साहित्यिक योगदान==
==भूपेन हज़ारिका का साहित्यिक योगदान==


;गद्य
;गद्य
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5. प्रतिध्वनि (मासिक पत्रिका) - गुवाहाटी <br>
5. प्रतिध्वनि (मासिक पत्रिका) - गुवाहाटी <br>


==भूपेन हजारिका की छह कविताएँ==
;1. बिन्दु
निंदिया बिन रैना - <br>
कोमल चांद पिघला <br>
मुंह अंधेरे ओस की बूंदें उतरी <br>
मेघ को चीरते हुए राजहंस <br>
सूरज के सातों <br>
घोड़ों की मंथर गति की आवाज़ <br>
मेरी चेतना में प्रवेश करते हैं <br>
सीने का स्पर्श करता है <br>
एक नया गहरा सागर <br>
लहर विहीन <br>
जिसकी एक बिन्दु <br>
हौले से लटक रही है <br>
मेरे आंगन में <br>
झड़े हुए <br>
रातरानी की सफेद पंखुड़ी पर <br>
शायद शरत आ गया <br>
एक गुप्तांग <br>
दो स्तन <br>
कुछ अल्टरनेट सेक्स <br>
छिप न सके, इसके लिए <br>
डिजाइनर की तमाम कोशिश <br>
हर आदमी एक द्वीप की तरह <br>
एके फोर्टी सेवन ज़िन्दाबाद <br>
आदिम छन्द हेड हंटर का। <br>
बैलून/मूल्यबोध/उपभोक्तावाद <br>
जीवन जाए <br>
जडहीन शून्यता में। <br>
मुमकिन हो तो टिकट कटा लें <br>
मंगल ग्रह पर जाने के लिए <br>
मनुष्य की खोज में <br>
मनुष्य की खोज में <br>
;2. मग्न
क्षण-क्षण करते हुए <br>
क्षण का विश्लेषण <br>
क्षण होता ध्यानमग्न <br>
मग्न ज्योति की बेडियां तोड़कर <br>
चमकता स्फुर्लिंग <br>
वहीं तुमसे मिला <br>
;3. विदेह
अदृश्य आंधी <br>
क्षण के पश्चात् क्षण <br>
वायु का संतरण <br>
प्रेयसी <br>
तुम क्या हो ? <br>
;4. आईना
चाह की ऊंचाई पर <br>
मन भी कैसा है <br>
कैसा है आईना <br>
पूरी तरह कोई <br>
मन को ही बना देता है आईना <br>
आईना को सौंपोगे कुछ <br>
न इंकार करेगा न स्वीकार। <br>
आईना से मांगोगे कुछ <br>
लेगा नहीं कुछ, न ही देगा <br>
फेंकेगा नहीं कुछ <br>
कैसा है आईना <br>
मन कैसा है <br>
चाह की ऊंचाई पर ... <br>
;5. बन्धु
(कैमरामैन संतोष शिवन के लिए) <br>
बन्धु <br>
कुछ शराब <br>
कुछ सिगरेट <br>
कुछ लापरवाही <br>
कुछ धुआं <br>
कुछ दायित्वहीनता <br>
सोचते हो यही है सुकून <br>
मगर बन्धु <br>
मरोगे मरोगे <br>
उम्र शून्य - <br>
मृत्यु के बाद <br>
तुम क्या <br>
तुम रह जाओगे, बन्धु - <br>
दृश्य अदृश्य होता है <br>
देह सौन्दर्य पहेली बनता है <br>
बची रहती है <br>
आग की चमक <br>
बन्द दुर्ग <br>
जीवन रंगशाला है <br>
तुम कहां हो <br>
गजदन्त मीनार पर या <br>
किसी बन्द दुर्ग के भीतर <br>
मीनार को ढंक दिया है बादल ने <br>
मीनार जीर्ण-शीर्ण हो गया है <br>
दुर्ग धंस रहा है <br>
टूट रहा है आदर्श का दुर्ग <br>
और तुम <br>
नर्सिसस, अपने-आप में <br>
व्यस्त <br>
झूठा <br>
झूठा स्वर्ग। <br>
;6. दशमी
एक सुर <br>
दो सुर, सुर के पंछियों का झुण्ड <br>
झुण्ड के झुण्ड सुर बसेरे बनाते हैं <br>
मन-शिविर में <br>
आवाजाही जारी रहती है <br>
शब्द का पताका तूफ़ान <br>
कुछ लोग गीतों के जरिए <br>
सामने आते हैं <br>
कण्ठरुद्घ प्रकाश <br>
कण्ठहीन कण्ठ से <br>
अनगिनत अन्तराएं <br>
आबद्घ होता है नाद ब्रह्म <br>
एक सुर दो सुर <br>
सुर के पंछियों का झुण्ड <br>
शून्य में उड़ता है <br>
विसर्जन की प्रतिमा की तरह <br>
==भूपेन हजारिका के गीतों के कैसेट और रिकार्ड==
1938 : कासते कलसी लै जाय रसकी बाई, सेनोला कम्पनी
उलाहरे नाचि बागि होलि वियाफुल
(विष्णुप्रसाद राभा के सहयोग से)
1945 : परहि पूवाते टुलूंगा नावते ।।एच.एम.वी./4ई २५७११
बहु दिनर आगते
1948 : महात्मार महाप्रयाण ।।एच.एम.वी./4ई ७२२८
ओ ओनाली दीपान्विता
सुर नगरीर सुरर कुमार ।।एच.एम.वी./4ई ७८०३
1955 : दोला दोला ।।एच.एम.वी./4ई २५७०७
भांग शिल भांग
लुइतर भूटूंगाई उलाल शिहू ।।एच.एम.वी./4ई २५७०९
जिलिकाब लुइतरे पार ।।एच.एम.वी./4ई २५७१०
रंग किनिवा कोने
एटि फली दूटी पात
1960 : हे कानाई पार कराहे ।।एच.एम.वी./4ई २५७१३
बिहूरेनो बिरिना पात
1962 : मानुहे मानुहर बाबे ।।एच.एम.वी./4ई २५७१४
अस्त आकाशरे
नतून नागिनी तुमि ।।एच.एम.वी./4ई २५७१५
आकाशीगंगा बिसरा नाई
विश्वविजयी नौजवान
(गीतकार : ज्योतिप्रसाद आगरवाला)
लुइतर पाररे आमि डेका लरा ।।एच.एम.वी./4ई २५७१६
(गीतकार : ज्योतिप्रसाद)
1963 : फूट गोधूलिते कपिली खूटित ।।एच.एम.वी./4ई २५७१८
तुमिये मोर कल्पनारे
सियांगरे गलं लोहितरे खामति ।।एच.एम.वी./4ई २५७२०
रूम जुम नेपूर बजाई
डुग डुग डुग डुग डंबरू ।।एच.एम.वी./4ई २५७२३
चिर युगमीया ढौ तुलि
1964 : नतून निमाती नियररे निशा ।।एच.एम.वी./4ई २५७२६
मदाररे फूल हेनो पूजातो नेलागे
नेकांदिबा नेकाांदिबा मोरे नतून कइना ।।एच.एम.वी./4ई २५७२६
जीवनरे कांदोनखिनि
रणवलांत नहऊं ।।एच.एम.वी./७ईपीई१०१९
कत जोवानर मृत्यु होल (चार गीत)
हू हू धूमूहा आहिलेऊ
काहिनी एटि लिखा
1965 : कत जोवानर मृत्यु होल ।।एच.एम.वी./4ई २५७२९
रणक्लांत नहऊं
हू हू धूमूहा आहिले ।।एच.एम.वी./4ई २५७३०
चित्रलेखा चित्रलेखा
1966 : सौ काजल काजल मेघ ।।एच.एम.वी./4ई २५७३१
जीवरे बेउला ओ
(कविता हजारिका के साथ)
आकाशीयानरे ।।एच.एम.वी./4ईईपीई १०२७
आह आह उलाई आह
गांवर तरा गांवे गांवे
(गीतकार : ज्योतिप्रसाद आगरवाला)
ब्रह्मपुत्रर दूटि पार दलंगे ।।एच.एम.वी./५ईपीई ३००६१
धूमूहा नाहिबि
नतून निमाती नियररे निशा
मदाररे फूल हेनो
1976 : विस्तीर्ण पाररे
ओ दिसांमुखर डेकाटि
मई विसारिसों
(गीतकार : निर्मलप्रभा बरदलै)
विक्षुब्ध विश्व कंठई ।।एच.एम.वी./५ईडीई ३०११
1968 : प्रथम नहय द्वितीय नहय ।।एच.एम.वी./ईसीएलपी २३४७
नतून निमाती नियररे निशा
मिठा मिठा बोहागर
नतून नागिनी तुमि
अस्त आकाशेर
मइनाजान मइनाजान
शिवांगर गोधूलि
आकाशीगंगा बिसरा नाई
मदाररे फूल हेनो
चिर युगमीया ढौ तुलि
कलिर कृष्ण बुलि नोजोकाबा
1969 : आमि असमिया नहऊं दुखीया ।।एच.एम.वी./4ई २५७३५
मइनाजान मइना जान ।।एच.एम.वी./एन८७०७९
मिठा मिठा बोहागर
दिनबोर मोर सोनर सजात नरले ।।एच.एम.वी./४५एन८७०७३
(रवीन्द्र संगीत)
आमि भाइटी भंटी ।।एच.एम.वी./एन४७०८०
(ऋतुपर्ण शर्मा के साथ)
बोहागी ओ बोहागी ।।एच.एम.वी./4ई२५७३७
(गीतकार : हेमेन हजारिका)
(रुनुमी भट्टाचार्य के साथ)
मई कोहिमारे आधुनिका डालिमी
(रुनुमी भट्टाचार्य के साथ)
1970 : चतरै बिहूरे गीत बान्धै ।।एच.एम.वी./ई4एलपी२४६३
सागर तीरत परि रलो
(गीतकार : निर्मलप्रभा भट्टाचार्य)
मई एटी यायावर
सुसुक सामाककै दीपालीजनीये ।।एच.एम.वी./एसईडीई३०२५
(जयन्त हजारिका के साथ)
चित्रलेखा चित्रलेखा
(जयन्त हजारिका के साथ)
एटुकुरा आलसुवा मेघ भांहि जाय ।।एच.एम.वी./एसईडीई३०३१
की करों करों उपाय
मोर मन चातकर
1971 : आवेलिर रामधेनु ।।एच.एम.वी./ईसीएलपी३०४३
शीतरे सेमेका राति ।।एच.एम.वी./एसईडीई३०४३
विमूर्त मोर निशाटि
मोर गान हउक
ऑटो रिक्शा चलाऊं ।।एच.एम.वी./एसईडीई३०४५
(जयन्त हजारिका के साथ)
1972 : जय जय नवजात बंगलादेश ।।एच.एम.वी./७ईपीई२५०२
तोमार उशाह कंहूवा कोमल
एका-बेंकार बाटेरे
गंगा मोर मां
1973 : बरदैसिला ने सरूदैसिला ने ।।एच.एम.वी./७ईपीई२५१०
(रुनुमी भट्टाचार्य के साथ)
देहि ऐ एई हेन बतरत
1974 : सराये सिकुने ।।एच.एम.वी./४५एन८७१७३
सेनेहीर फटा रिहा
साहब जाय आगते
(मोहम्मद रफी के साथ)
प्रेम प्रेम बुलि ।।एच.एम.वी./७ईपीई२५१८
(गीतकार : लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा)
1975 : सकला टेंगाटि अकले नेखाबि ।।एच.एम.वी./७ईपीई२५२९
सुउच्च पहाडर
बर बरिबा जाय मेनेका (लोकगीत) ।।एच.एम.वी./७ईपीई१२९
आई तोक किहेरे पूजिम
(गीतकार : मुकुल बरुवा)
राधे कला नुबुलिबि मोक (लोकगीत)
ओ मोर गुरुदेव
1976 : मई जोन आजीवन उरनीया मौ
मुक्तिकामी लक्षजनर
शैशवते धेमालिते
भांग भांग शिल भांग ।।एच.एम.वी./ईजीएसटी२६५२
सुन सुन रे सुर बैरी (गीतकार : शंकरदेव)
राइज आजि भावरीया
युवती अनामिका गोस्वामी
स्नेहे आमार शत श्रावनर
गुपुते गुपुते
जिलिकाब लुइतरे पार
मोर एकेटि सुरत
(गीतकार : लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा)
मई एटि यायावर
1977 : सेंदूर सेंदूर फोंटटिये ।।एच.एम.वी./७ईपीई२५४१
मोर मन बाघ
जीवन जोरा ज्यातिये यदि
मई एई माटिरे लरा
(गीतकार : निर्मलप्रभा बरदलै)
1978 : जोनाकी परुवार ।।एच.एम.वी./ईसीएसडी२६५३
(भास्कर दास के साथ)
मई जेतीया एई जीवनर
एंधार कातिर निशाते
(अंजू देवी के साथ)
नामरे कठीया (अंजू देवी के साथ)
ओ काजल बरन कन्या (भास्कर दास के साथ)
तुमि नतून पुरुष
काकिनी तामोलर
(भास्कर दास के साथ)
असम आमार रूपही
कविता आवृत्ति सप्तर्षि
1979 : शारदी रानी तोमार देखों नाम ।।एच.एम.वी./एस/४एसएनएलपी२०१५
आह आह उलाई आह
कपिली कपिली रांढाली सोवाली
मदाररे फूल हेनो
गौरीपुरीया गाभरू देखिलों
प्रतिध्वनि सुनो मई
नेकांदिबा नेकांदिबा मोरे नतून कईना
1980 : महाबाहु ब्रह्मपुत्र ।।एच.एम.वी.
आजि ब्रह्मपुत्र होल
आमि असमिया नहऊं दुखीया
बोहागे माथो एटि ऋतु नहय
1981 : लुइतपरीया डेका बन्धु ।।एच.एम.वी.
नतून नतून साह
महालाई हांसि बोले
तेज दिलों प्राण दिलों
शिहूटो उलोवादि बिहूटि आहिले
तप्त तीखारे अग्निशक्ति
अहो हो महो ओ देशर हके मरों
1982 : जाय व्रत संकल्प भागि ।।एच.एम.वी.
माज निशा मोर
आहिन महीया
आहिल बीन बोरागी
अल्लार बिने केऊ नाई
किनो पखीये (गीतकार : पार्वतीप्रसाद बरुवा)
1983 : मेघे गिर गिर करे ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी२८१५४
डिफू होल तोमार नाम
बोहाग माथो एटि ऋतु नहय ।।एच.एम.वी.(एस/४५एनएलपी२५५१)
महाबाहु ब्रह्मपुत्र
आजि ब्रह्मपुत्र होल
डुग डुग डग डंबरू
आमि असमिया नहऊं दुखीया
रिम झिम बरखुने
सुसुक सामाककै ।।एच.एम.वी./एसपीएचओ२३०८८
(जयंत हजारिका के साथ)
मई जेन आजीवन
मधुमालती टोपनिजोवा
चित्रलेखा चित्रलेखा
माज निशा मोर
आपन नादे
(जयन्त हजारिका के साथ)
कीनो लीला प्रभु
(जयन्त हजारिका के साथ)
मोर गीतर हेजार श्रोता
लुइतर सोंतत
(जयन्त हजारिका के साथ)
आजि तोक किहेरे पूजिम
1984 : पार्वती प्रसाद बरुवा रचित ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी२८१५४
ग्यारह गीत
उत्स : ग्यारह गीत ईसीएसडी२६५२/७६ ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी२८१५५
उत्स ईसीएलपी२३४७ के नौ गीत ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी२८१५६
तोमार देखों नाम पत्रलेखा
1986 : कत जोवानर मृत्यु होल ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी२८०३८
अस्त आकाशरे
आकाशीगंगा
एटुकुडा आलसुवा मेघ
हय साहब हय
प्रेम प्रेम बूलि
गंगा मोर मां
नेकांदिबा नेकांदिबा
कलिर कृष्ण
आह आह उलाई आह
मोर गान हउक
शीतरे सेमेका राति
विमूर्त एई रात्रि
1987 : मानुहे मानुहर बाबे ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी२८०८७
बिहुरेनो बिरिना
नेकांदिबा नेकांदिबा
रंग किनिबा कोने
नतून नागिनी तुमि
आकाशीगंगा
फूट गोधूलिते
डुग डुग डुग डंबरू
एटि कलि दूटि पात
चिरयुगमीया ढौ तुलि
कानाई पार करा
तुमिये मोर कल्पनारे
अस्त आकाशर
परहि पुवाते टुलुंगा नावते
1988 : शारदी रानी तोमार नाम ।।एच.एम.वी./एसटीएचवी/२९०९९
आह आह उलाई आह
कपिली कपिली
मदाररे फूल हेनो
गौरीपुरीया गाभरू
प्रतिध्वनि सुनो
नेकांदिबा नेकांदिबा
लुइतपरीया डेकाबन्धु
अहो हो महो हो
महात्माई हासिल बोले
लुइतत भूतूंगाई उलाल शिहू
तेज दिलों प्राण दिलों
लप्त तीखारे अग्नि शक्ति
अग्नियुगर फिरंगति मई
नतून नतून साह
जिकमिक दीवालिर बंति ज्वले
ओ मोर धरित्री आई
मोर मरमे मरम बिसारि जाय
शहीद प्रणामो तोमाक
जीवन सिन्धु बहु बिन्दुरे हय पूर्ण
मोर गातो देखोन
अतीतर बुरंजी
गुइये पोरा तिरासीर
1989 : समयर गति आजि एन. के. ००८
(गीत और संगीत : मणि महन्त)
पिंधिलों कतना माला
(गीतकार : नगेन बोरा, संगीत : भूपेन उजीर)
आजि ईदर महफिलत
(गीतकार : नुरूल हक, संगीत : मोहम्मद हुसैन)
तुमि असमिया
(गीत एवं संगीत : रसानन्द भोगोई)
आमार समाजर
(गीतकार : नगोन बोरा, संगीत : जयन्त नाथ)
पोहर पियासी पाहरि नेजाबा
(गीतकार : नुरूल हक, संगीत : मोहम्मद हुसैन)
आकौ प्रणाम करों
(गीतकार : हीरेन गोहाईं)
ओ सिपारर बान्धै टी सीरीज़/०६०८
सेंदूर सेंदूर
तेजरे कमलापति
आई सरस्वती
अपरूपा अपरूपा
1990 : तुमि होवा मोर घरर लखिमी बोवारी टी सीरीज़ एचएफ़/१२०
ओ सपोन तुमि किय निशा करा आमनि
किय कर तोई अहंकार
मई एटि शिक्षित निवनुवा
धाननि पथारत लखिमी नामिसे
हाविसे जाविसे बांहरे पात
बोहागीर पुवातेई कथा एटि करूं
शोणितपुरर उषाई
(आठों गीतों की रचना : सूर्य हजारिका)
मई आहिसों ।।एच.एम.वी./टीपीएचवी/२८१२४९
अनामिका विदाई
पाहाड भैयामर संगमथलीत
तुमिये मोर कल्पनारे
सुख नाई मोर
कहुंवा वन मोर अशान्त मन
जय वा पराजय (संगीत : हैयन्ती शुक्ल)
ओ मोर प्रिय जयगन (गीत-संगीत : अनिल दत्त)
1991 : एई बोहाग ज्वलन्त अरुण आरएए4/९१०९
चराईपुंगर कपौ चराई (संध्या मेनन के साथ)
बिहूरे उरूका निशा (संध्या मेनन के साथ)
जिन्दाबाद नेल्सन मंडेला
सेनेहरे आई (संध्या मेनन के साथ)
रूपही तोर
1992 : गोदावरी नैरे पारर (लता मंगेशकर के साथ)
चयनिका चयनिका (आशा भोंसले के साथ)
गुवाहाटीर कोनो एटा मीठा गोधूलि
बिहूटि बसरि आहिबा
असमी आईरे लालिता पालिता (उषा मंगेशकर के साथ)
उदंग उदंग गा (उषा मंगेशकर के साथ)
भालकै पुनर सोवाजोन (आशा भोंसले)
दूयो मुखा मुखी (लता मंगेशकर के साथ)
बांग्ला गीतों के कैसेट व रिकार्ड
1954 : रेल चले। ओगायेर सीमा नाय ।।एच.एम.वी./जीई२४७१३
1957 : आंका आंका ए पथेर ।।एच.एम.वी./जीई२४८६२
गुम गुम मेघ गरजाय
(हेमन्त मुखर्जी के साथ)
1968 : सहस्र जने मोक प्रश्न करे ।।एच.एम.वी./एन८३२७४
तोई काजल काजल दीघि
1969 : विस्तीर्ण दुपारेर ।।एच.एम.वी./४५जीई२५३६९
1971 : ए शहर प्रान्त/गंगा आकार मां ।।एच.एम.वी./४५जीई२५४१६
1976 : साजिए तोपाटि ।।एच.एम.वी.एस/७ईपीई
सुउच्च पाहाडेर
गोपने गोपने
गाव्यगीति ।।एच.एम.वी./ईसीपीएस
(रचना : अजय भट्टाचार्य)
रंगीबा नावरे आमार
1978 : आमि एक यायावर ।।एच.एम.वी./एस/४५
एनएलपी२००७
1974 : विस्तीर्ण दुपारे ।।एच.एम.वी./एस४५
एनएलपी२०१९
1980 : त्रिधारा ।।एच.एम.वी./एल.पी. ईएससीडी२६०५
1989 : स्मृतिर बालूचरे
1990 : स्वर्गेर फोन आलदा
1991 : नदीर नाम भाल बासा
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{{संदर्भ ग्रंथ}}


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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14:22, 8 सितम्बर 2012 का अवतरण

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भूपेन हज़ारिका
भूपेन हज़ारिका
भूपेन हज़ारिका
पूरा नाम भूपेन हज़ारिका
जन्म 8 सितंबर, 1926
जन्म भूमि शदिया, असम
मृत्यु 5 नवंबर, 2011
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
पति/पत्नी प्रियम पटेल
कर्म-क्षेत्र लेखन, पत्रकारिता, गायन, संगीत निर्देशक, फ़िल्मकार
विषय लोक संगीत, बंगाली, असमिया और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में गीत गाए
शिक्षा राजनीतिक विज्ञान में स्नात्तोकत्तर, पीएचडी
विद्यालय बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, कोलंबिया यूनिवर्सिटी
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री, दादा साहब फाल्के पुरस्कार
नागरिकता भारतीय

भूपेन हज़ारिका (अंग्रेज़ी: Bhupen Hazarika, जन्म:- 8 सितंबर, 1926 - मृत्यु: 5 नवंबर, 2011) भारत के ऐसे विलक्षण कलाकार थे जो अपने गीत खुद लिखते थे, संगीतबद्ध करते थे और गाते थे। भूपेन हज़ारिका को दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता है। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फ़िल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया है। भूपेंद्र हज़ारिका पहले शख़्सियत थे जिन्होंने असमिया संस्कृति को विश्व मंच तक पहुंचाया था।

जीवन परिचय

डॉ. भूपेन हज़ारिका बहु–आयामी व्यक्तित्व के धनी थे। असम–रत्न हज़ारिका जी असम अथवा भारत के ही नहीं पूरे संसार के लिए वे एक विश्व रत्न थे। वे संगीत रचनाकार, सुरकार, संगीतकार, संगीत–निर्देशक, वाद्य–यंत्र वादक, अभिनेता, सिनेमा निर्देशक तो थे ही साथ ही साथ एक अच्छे कवि, गद्यकार, निबंधकार, नाट्यकार आदि भी थे। वे समन्वयवादी थे, कल्याणकारी थे, शांतिदूत थे। वे मानवतावादी थे, मानव के कल्याण के लिए स्वप्नदृष्टा थे।[1]

जन्म

भूपेन हज़ारिका का जन्म सन 1926 के 8 सितम्बर को शदिया (असम) में हुआ था। नीलकांत हज़ारिका उनके पिता थे। वे स्कूल उप–परिदर्शक थे। बाद में वे एस.डी.सी. बने थे। माँ का नाम था शांतिप्रिया हज़ारिका। भूपेन हज़ारिका के सात भाई और तीन बहने थीं। वे ज्येष्ठ थे।[1]

शिक्षा

बचपन में भूपेन हज़ारिका की शिक्षा गुवाहाटी के सेणाराम हाईस्कूल में, धुबुरी की एक पाठशाला में, फिर गुवाहाटी के कॉटन कलेजियेट स्कूल में और अंत में छठी कक्षा में (सन 1935 में) तेजपुर सरकारी उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में हुई। सन 1940 में तेजपुर से वे मैट्रिक की परीक्षा पास करते हैं। सन 1941 में कॉटन कॉलेज में (उच्चत्तर माध्यमिक़ कला शाखा में) दाख़िला लिया। सन 1942 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में स्नातक में उनका दाखिला होता है। सन 1944 में सम्मानसह (honours) शिक्षा में स्नातक की उपाधि मिलती है। सन 1946 में उसी विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि मिलती है। सन 1949 को वे पी.एच.डी. हेतु अमरीका की यात्रा करते हैं। सन 1952 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त होती है। उनकी गवेषणा का विषय था– "Roll of Mass Communication in India's Adult Education"[1]

दाम्पत्य जीवन

भूपेन हज़ारिका की 23 वर्ष की उम्र में ही सन 1950 में 1 अगस्त को न्यूयार्क शहर में प्रियम पटेल के साथ उनकी शादी होती है। प्रियम काम्पला, यूगांडार के प्रसिद्ध चिकित्सक मूलजी भाई पटेल और उनकी पत्नी मणिबेन पटेल की बेटी हैं। इनका मूल निवास स्थान गुजरात है। गुजरात के नियम के हिसाब से औरत के स्वामी का नाम और बेटा–बेटी को बाप का नाम बीच में लिखने की परम्परा है। इसी कारण पत्नी का नाम शादी के पश्चात् प्रियम भूपेन हज़ारिका (अथवा प्रियम बि. हज़ारिका) और बेटे का नाम कोल्लाक भूपेन्द्र हज़ारिका (अथवा कोल्लाक बि. हज़ारिका/पूर्णांग भूपेन्द्र हज़ारिका/तेज भूपेन्द्र हज़ारिका) पड़ा। कोल्लाक को असम के लोग तेज हज़ारिका से ही जानते हैं। कोल्लाक न्यूयार्क में तथा प्रियम कनाडा में रहती हैं। कोल्लाक व्यवसाय करते हैं।[1]

प्रारंभिक जीवन

हज़ारिका की पहचान न सिर्फ उत्तर- पूर्वी भारत के मशहूर गायक, लेखक, संगीत निर्देशक बल्कि फ़िल्मकार के रूप में भी होती है। अद्भुत प्रतिभा वाले इस कलाकार का जन्म 8 सितंबर, 1926 को भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के सादिया में हुआ। उनके पिता नीलकांत हज़ारिका तब सादिया के कमिश्नर साहब की पत्नी को असमिया भाषा सिखाते थे। वहीं के एक स्थानीय स्कूल में वो शिक्षण का कार्य भी करते थे। घर पर उनकी शुरुआती शिक्षा-दीक्षा हुई। मां के गले की आवाज़ अद्भुत थी। छोटे भूपेन उस समय मां से बंग संगीत सुनते थे। वो भी अपनी मां के साथ गला मिलाकर गाते थे। कुछ दिनों बाद पिता को गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में नौकरी मिल गई। वहां के सोनाराम स्कूल में पहली बार तीसरी कक्षा में भूपेन का दाखिला हुआ। वैसे बीच में साल भर के लिए उन्हें धूबरी में जाना पड़ा था। उस समय प्रमथेश बड़ुवा धूबरी में अपनी फ़िल्म "मुक्ति" की शूटिंग के सिलसिले में आए थे। प्रमथेश उनके पिता के अच्छे मित्र थे, इसलिए भूपेन को उन्हें बहुत क़रीब से देखने का मौक़ा मिला था। 1940 में बहुमुखी प्रतिभा के धनी भूपने हज़ारिका ने केवल 13 साल 9 महीने की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा तेजपुर से की। धूबरी के बाद वो लोग फिर गुवाहटी वापस आ गए। तब तक गुवाहटी के कॉटन कॉलेजिएट स्कूल में उनकी पढ़ाई भी शुरू हो गई थी, साथ में शुरू हो गया था गायन और चित्रकारी भी। यहां उन्होंने अपने मामा के घर में रह कर पढ़ाई की। इस बीच यहां के आईपीटीए के दो सदस्य विष्णुप्रसाद आभा और ज्योतिप्रसाद अग्रवाल से इनका परिचय हुआ। इनके सानिध्य में रहकर किशोर भूपेन के दिलो-दिमाग में आम आदमी के गीत-संगीत की बात छा गई। इस उम्र में ही आम आदमी के लिए कुछ करने की बात वो सोचने लगे। इसके बाद 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। फिर अचानक उन्हें ऎसा लगा कि वो असम में और पढ़ाई जारी नहीं रखेंगे। यह सोचने के बाद ही वो तत्काल कोलकता चले आए। सन् 1942 के कोलकता के डलहौजी में जापान ने बम गिराया। एक दहशत से कांप उठा कोलकता। अनगिनत लोगों ने पलायन किया, उन्हीं की तरह भूपेन भी बनारस चले आए। यहां उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वहां से उन्होंने 1946 में स्नातक और फिर राजनीतिक विज्ञान में स्नात्तोकत्तर किया। उस समय यहां के आचार्य पंडित जवाहरलाल नेहर और उपाचार्य सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णण थे। राधाकृण्णजी के क्लास में गीता का व्याख्यान सुनने का सौभाग्य भूपेन को भी मिला था। यही नहीं उस्ताद बिस्मिल्ला के घर के पास के रास्ते पर खड़े होकर शहनाई पर उनकी भैरवी सुनने का सौभाग्य भी उन्हें मिला। मगर तब तक उनके घर की हालात बहुत बदल चुकी थी। पिताजी नौकरी से रिटायर हो गए थे। 145 रूपए पेंशन मिलता था। तब दस भाई-बहनों में सबसे बड़े भूपेन को बाध्य होकर गुवाहाटी आना पड़ा। बीबीआर कॉलेज में अध्यापन की नौकरी शुरू कर दी। शुरुआती वेतन था 125 रुपये प्रतिमाह। कुछ दिन बाद ही उन्हें गुवाहाटी रेडियो में मौक़ा मिल गया। साल होते-होते उनका तबादल दिल्ली हो गया, वहीं उनका परिचय डॉक्टर नारायण मेनन के साथ हुआ। उनकी मदद से उन्हें अमेरिका में मॉस कम्युनिकेशन पर शोध करने की स्कॉलरशिप मिल गई। घर की हालत अच्छी नहीं थी। ऎसे में नौकरी छोड़कर फिर से पढ़ाई शुरू करने में बड़ा जोखिम था, लेकिन उनके अंदर शायद छिपा हुआ था किसी यायावर का मन। 12 सितंबर 1949 को वो अमेरिका चले गए। न्यूयॉर्क स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और उन्होंने पीएचडी (डॉक्टरेट) की डिग्री प्राप्त की। यहां पर अचानक पॉल राबसन के साथ उनका परिचय हुआ। भूपेन को उनका घनिष्ठ सानिध्य मिला। यहीं पर उन्होंने पॉल से सीखा मिसीमिपी नदी को कोसते हुए एक गाना,"वल्र्ड मैन रीवर,यू डोंट सी नथिंग...। बस उन्होंने लिख डाला, "विस्तीर्ण दुपारे, असंख्यो मानुषेर हाहाकार सुने, निशब्दे निरवे ओ गंगा तुमी, ओ गंगा बहिचो केनो..." (विस्तृत फैले हुए दो किनारे, असंख्य लोगों की वेदनापूर्ण हाहाकार सुनकर भी ओ गंगा तुम नि:शब्द होकर बहती हो क्यों...) वैसे तब तक शांतिनिकेतन में पढ़ी-लिखी बरोदरा की लड़की प्रियवंदा से भूपेन का परिचय हो गया था। प्रियवंदा रहती थीं न्यूयॉर्क में। उन दोनों की शादी 1950 में हुई। अब यह अलग बात है कि यह शादी ज़्यादा दिनों तक नहीं टिकी।

अमेरिका से लौटते समय अफ्रीका भी घूमकर लौटे थे भूपेन दा। जहाज़ से प्रशांत महासागर का रूप देखकर वो भावुक हो गए। लिख डाला, "सागर संगमे सातार केटेचि केतो, कखनो तो होई नेई... (सागर-संगम में कितनी बार तैरा हूं, पर कभी भी थकान महसूस नहीं किया है ...)। अपने एक इंटरव्यू में भूपेन दा ने कहा है, "मेरे अंतिम यात्रा में मेरे इस गाने को ही बजाया जाए। यही मेरे जीवन यात्रा का गाना है। भूपेन हज़ारिका ने अपने जीवन में बहुत कम गाने गाए हैं, लेकिन जो गाने गाए है, वो मनुष्य के दिल को छू गया है। उस दौर के सारे धाकड़ संगीतज्ञ हेमांग विश्वास, सचिनदेव बर्मन, हेमंत मुखर्जी का प्यार उन्हें मिला था। उन्ही दिनों वो गण नाट्य संघ के साथ जुड़ गए। अपने गानों को लेकर वो विश्व भ्रमण कर चुके थे। कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर के एकमात्र प्रिय अमियकुमार चक्रवर्ती से भी भूपेन दा को बहुत मदद मिली थी।

भूपेन की गायकी से जुड़ा एक मजेदार वाक्या है। एक बार उन्हें कॉलेज में आए नए विद्यार्थियों के लिए रखे गए स्वागत समारोह में एक भाषण पढ़ना था। भूपेन के पिता ने उन्हें वो भाषण लिख कर भी दिया था। लेकिन स्टेज पर आते ही भूपेन वह भाषण भूल गए और वहां उन्होंने एक गाना सुनाया। वहां उपस्थित सभी लोगों को भूपेन ने अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर दिया और इसके बाद वो अपने कॉलेज में लोकप्रिय हो गए। इसके बाद भूपेन ने संगीत से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। और धीरे-धीरे संगीत के क्षेत्र में खुद को स्थापित किया।

गीत संगीत का सफर

भूपेन हज़ारिका एक बहुमुखी प्रतिभा संपन्न कलाकार थे। बचपन में ही उन्होंने अपना पहला गीत लिखा और 10 वर्ष की आयु में उसे गाया भी। असमिया भाषा की फ़िल्मों से भी उनका नाता बचपन में ही जुड़ गया था। उन्होंने असमिया भाषा में निर्मित दूसरी फ़िल्म इंद्रमालती के लिए 1939 में बारह वर्ष की आयु मॆं काम भी किया। सुर सम्राट हज़ारिका ने क़रीब 70 साल तक अपनी आवाज़ से पूर्वोत्तर के साथ बॉलीवुड में भी छाए रहे। हज़ारिका ने अपनी फ़िल्म का निर्देशन 1956 में किया। उन्होंने एरा बतर सुर से अपनी फ़िल्म का पहला निर्देशन किया।

हज़ारिका ने होश संभालते ही गीत संगीत को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बना लिया और 60 साल तक लगातार भारतीय संगीत जगत में सक्रिय योगदान दिया। उनके गंगा नदी पर लिखे और गाए गीत काफ़ी प्रसिद्ध हुए। हज़ारिका ने बंगाली, असमिया और हिंदी समेत कई भारतीय भाषाओं में गीत गाए हैं। आज भूपेन हज़ारिका के गाए कई प्रसिद्ध गीत है। फ़िल्म रूदाली के गीत 'दिल हूं हूं करे' के जरिए हज़ारिका हिंदी फ़िल्म जगत में छा गए। इसके अलावा हज़ारिका ने दमन फ़िल्म में 'गुम सुम' गाना भी गाया। भूपेन ने 'मैं और मेरा साया, एक कली दो पत्तियां, हां आवारा हूं, उस दिन की बात है' जैसे कई सारे हिंदी गानों को गाया था। 'ओ गंगा बहती हो क्यों' को अपनी आवाज़ और संगीत दी है। बिहू के गीतों में भूपेन हज़ारिका ने अपनी चिरजीवी आवाज़ दी है। यही नहीं, ‘गांधी टू हिटलर’ फ़िल्म में महात्मा गांधी के प्रसिद्ध भजन ‘वैष्णव जन’ को उन्होंने ही अपनी आवाज़ दी।

हज़ारिका ने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति, एक पल, सिराज, प्रतिमूर्ति, दो राहें, साज, गजगामिनी, दमन, क्यों और चिंगारी जैसी हिंदी फ़िल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। यही नहीं उन्होंने हिंदी फ़िल्म स्वीकृति और सिराज जैसी फ़िल्मों को निर्देशित कर फ़िल्म निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा का लौहा मनवाया। हज़ारिका ने हिंदी फ़िल्म एक पल में बतौर अभिनेता के तौर पर भी काम किया। हज़ारिका ने 2006 में फ़िल्म 'चिंगारी' में भी गाना गाया।

पुरस्कार

दो-दो बार लौटा कर तीसरी बार उन्हें पद्मश्री सम्मान ग्रहण किया था। "चमेली मेमसाहब" के संगीत के लिए उन्हें राष्ट्रपति का सम्मान भी मिल चुका है और कभी कम्युनिस्ट होने की वजह से अपने निवास स्थान से भी दूर होना पड़ा है, जबकि इसमें उनका कोई दोष नहीं था। 1993 में असोम साहित्य सभा के अध्यक्ष भी रहे। वर्ष 2004 में उन्हें राजनीति में शिरकत की तथा भाजपा की तरफ से 2004 में चुनाव भी लड़ा।

हज़ारिका को असमिया फ़िल्मों उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए 1992 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाज़ा गया था। इसके अलावा उन्हें नेशनल अवॉर्ड एज दि बेस्ट रीजनल फ़िल्म (1975), कला क्षेत्र में पद्म भूषण (2001), असोम रत्न (2009) और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड (2009) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

निधन

प्रख्यात गायक और संगीतकार भूपेन हज़ारिका का 5 नवंबर 2011 को मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूबाई अंबानी अस्पताल में निधन हो गया था। उनका निधन शाम लगभग 4:37 बजे हुआ था। वह 86 वर्ष के थे। भूपेन हज़ारिका लम्बे समय से निमोनिया से बीमार थे।

फ़िल्म जगत में भूपेन हज़ारिका

फिल्म के गायक एवं अभिनेता के रूप में सर्वप्रथम काम किया

1. इन्द्रमालती (असमिया फ़िल्म, निर्देशक ज्योतिप्रसाद आगरवाला) : 1939

फिल्म में सर्वप्रथम पार्श्वगायन

1. जयमती : 1936
2. शोणित कुंवरी : 1936

कहानी और पटकथा लेखन

1. एरा बाटर सुर : 1956
2. माहुत बन्धुरे : 1958
3. शकुन्तला : 1961
4. लटिघटि : 1966
5. चिकमिक बिजुली : 1969
6. रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आरू जयमती : 1976
7. भाग्य : 1968

फिल्म का निर्देशन

1. एरा बाटर सुर : 1956
2. माहुत बन्धुरे : 1958
3. शकुन्तला : 1961
4. प्रतिध्वनि : 1964
5. लटिघटी : 1966
6. भाग्य : 1968
7. चिकमिक बिजुली : 1969
8. मेरा धरम मेरी मां : 1975
9. रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आरू जयमती : 1976
10. मन प्रजापति : 1979
11. सिराज : 1989
12. मिरि जियरी : 1990

भूपेन हज़ारिका को दी गयी विविध उपाधियां

1. सुधाकण्ठ
2. पद्मश्री
3. संगीत सूर्य
4. सुर के जादूगर
5. कलारत्न
6. धरती के गन्धर्व
7. असम गन्धर्व
8. गन्धर्व कुंवर
9. कला-काण्डारी
10. शिल्पी शिरोमणि
11. बीसवीं सदी के संस्कृतिदूत
12. यायावर शिल्पी
13. विश्वबन्धु
14. विश्वकण्ठ

भूपेन हज़ारिका ने जिन फ़िल्मों में संगीत दिया

असमिया

1. सती बेउला : 1948
2. सिराज : 1948
3. पियलि फुकन : 1955
4. एरा बाटर सुर : 1956
5. धुमुहा : 1957
6. केंचा सोन : 1959
7. शकुन्तला : 1961
8. पुवति निशार सपोन : 1959
9. मणिराम देवान : 1963
10. प्रतिध्वनि : 1964
11. लटिघटि : 1966
12. भाग्य : 1968
13. चिकमिक बिजुली : 1969
14. चमेली मेमसाब : 1975
15. खोज : 1975
16. पलाशर रंग : 1976
17. रूपकुंवर ज्योतिप्रसाद आरू जयमती : 1976
18. वनहंस : 1976
19. वनजुई : 1977
20. वृन्दावन : 1978
21. मन प्रजापति : 1979
22. अकन : 1980
23. अपरूपा : 1980
24. मां : 1983
25. अंगीकार : 1985
26. युगे-युगे संग्राम : 1986
27. संकल्प : 1986
28. स्वीकारोक्ति : 1986
29. प्रतिशोध : 1987
30. सिराज : 1989
31. मिरि जियरी : 1990
32. पानी : 1990

बांग्ला

1. जीवन तृष्णा : 1957
2. कौडी ओ कमल : 1957
3. असमाप्त : 1957
4. माहुत बन्धुरे : 1958
5. जोनाकीर आलो : 1958
6. दुई बेचारा : 1959
7. एखाने पिंजड : 1971
8. महुआ : 1977
10. सीमाना पेरिए (बांग्लादेश) : 1977
11. नागिनी कन्यार काहिनी : 1979
12. कालो सिन्दूर : 1984
13. चमेली मेमसाब :
14. कोमल गान्धार :
15. बन्धु :

हिन्दी

1. आरोप : 1973
2. मेरा धरम मेरी मां : 1975
3. अपेक्षा : 1984
4. एक पल : 1986 5. लोहित किनारे (दूरदर्शन के लिए धारावाहिक) : 1988
6. चमेली मेमसाब :
7. रूदाली : 1992
8. गजगामिनी : 2000
9. दमन : 2000

भोजपुरी

1. छठ मैया की महिमा :

कार्बी

1. रिंग आंग तंग :


जिन मशहूर कलाकारों ने भूपेन हज़ारिका के लिखे गीतों को उनके ही संगीत निर्देशन में गाया
लता मंगेशकर

जोनाकरे राति असमीरे माटी : (एरा बांहर सुर) : 1956

हेमन्त मुखर्जी

रौद पुवाबर कारणे (एरा बांहर सुर) : 1956
जीवन डिंगा बाई थाका बान्धो (एरा बांहर सुर) : 1956

इला बसु

प्रथम प्रहर रात्रि (शकुन्तला) : 1961
वनरे पखीटी (शकुन्तला) : 1961
नव मल्लिकार (शकुन्तला) : 1961
जीवनटो यदि अभिनय हय (लटिघटि) : 1966

तलत महमूद

लिएन माकाऊ कोन पाहाडर शिखरते (प्रतिध्वनि) : 1964

सुमन कल्याणपुर

ओय ओय आकाश सुबो (प्रतिध्वनि) : 1964
मिलनेर शुभक्षण (चिकमिक बिजुली) : 1969
बिजुलीर पोहर मोर नाई (चिकमिक बिजुली) : 1969

किशोर कुमार

पखीराज घोडा (चिकमिक बिजुली) : 1969

मुकेश

घर आमार माटिर हय (चिकमिक बिजुली) : 1969

मोहम्मद रफी

रमजानरे रोजा होल
सेनेहरे सैयद
साहब जाय आगते

उषा मंगेशकर

सिनाकी मोर मनर मानुह (खोज) : 1974
जिलमिलीया कोमल बाली (खोज) : 1974
असम देशर बागीचारे सोवाली (चमेली मेमसाब) : 1975
हाउवा नाई बातास नाई (चमेली मेमसाब) : 1975
हायरे प्राणेर बाचा मोर (चमेली मेमसाब) : 1975
क ख ग घ (चमेली मेमसाब) : 1975
तुमि बियार निशार (रिकार्ड) : 1978
ओ मालती कथा एटा कऊं शुना (रिकार्ड) : 1978
राधाचूडार फूल गूजि (रिकार्ड) : 1978
श्याम कानू दूर है नायावा (रिकार्ड) : 1980

आशा भोंसले

पखीराज घोडा (चिकमिक बिजुली) : 1969
ओ अभिमानी बन्धु (मन प्रजापति) : 1978
एई धुनीया गोधूली लग्न (मन प्रजापति) : 1978

शबाना यासमीन

विमूर्त एई रात्रि मोर (सीमाना पेरिये)


भूपेन हज़ारिका का साहित्यिक योगदान

गद्य

1. सुन्दरर न दिगन्त
2. सुन्दरर सरू बड आलियेदि
3. समयर पखी घोडात उठि
4. ज्योति ककाईदेऊ
5. विष्णु ककाईदेऊ
6. कृष्टिर पथारे-पथारे
7. दिहिंगे दिपांगे
8. बोहाग माथो एटि ऋतु नहय
9. बन्हिमान लुइतर पारे-पारे
10. नंदन तत्वर कर्मीसकल
11. मई एटि यायावर
12. संपादकीय

गीत संग्रह

1. जिलिकाबो लुइतरे पार
2. संग्राम लग्न आजि
3. आगलि बांहरे लाहरी गगना
4. बन्हिमान ब्रह्मपुत्र
5. गीतावली

शिशु साहित्य

1. भूपेन मामार गीते माते अ आ क ख

पटकथा

1. चिकमिक बिजुली
2. एरा बाटर सुर
3. माहुत बन्धुरे

पत्रिकाओं का संपादन

1. न्यू इंडिया - न्यूयार्क, 1949-50
अमेरिका में भारतीय छात्र संघ का मुखपत्र
2. गति (कला पत्रिका) - गुवाहाटी, 1964-67
3. बिन्दु (लघु पत्रिका) - गुवाहाटी, 1970
4. आमार प्रतिनिधि (मासिक पत्रिका) - कलकत्ता, 1964-80
5. प्रतिध्वनि (मासिक पत्रिका) - गुवाहाटी


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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 मेधि, डॉ. दिलीप। भूपेन हज़ारिका का जीवन-दर्शन और व्यक्तित्व (हिन्दी) (पी.एच.पी) ज्ञानकोश। अभिगमन तिथि: 8 सितम्बर, 2012।

बाहरी कड़ियाँ

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साँचा:गायक