"जीना अपने ही में -सुमित्रानंदन पंत": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - "वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण)
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
|मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977
|मृत्यु=[[28 दिसंबर]], 1977
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]]
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[उत्तर प्रदेश]]
|मुख्य रचनाएँ=वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि  
|मुख्य रचनाएँ=[[वीणा -सुमित्रानन्दन पंत|वीणा]], [[पल्लव -सुमित्रानन्दन पंत|पल्लव]], चिदंबरा, [[युगवाणी -सुमित्रानन्दन पंत|युगवाणी]], [[लोकायतन -सुमित्रानन्दन पंत|लोकायतन]], हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, [[युगपथ -सुमित्रानन्दन पंत|युगपथ]], [[स्वर्णकिरण -सुमित्रानन्दन पंत|स्वर्णकिरण]], कला और बूढ़ा चाँद आदि  
|यू-ट्यूब लिंक=
|यू-ट्यूब लिंक=
|शीर्षक 1=
|शीर्षक 1=

07:13, 14 सितम्बर 2012 का अवतरण

जीना अपने ही में -सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
सुमित्रानंदन पंत
कवि सुमित्रानंदन पंत
जन्म 20 मई 1900
जन्म स्थान कौसानी, उत्तराखण्ड, भारत
मृत्यु 28 दिसंबर, 1977
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, लोकायतन, हार, आत्मकथात्मक संस्मरण- साठ वर्ष, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सुमित्रानंदन पंत की रचनाएँ

जीना अपने ही में
एक महान कर्म है,
जीने का हो सदुपयोग
यह मनुज धर्म है।

अपने ही में रहना
एक प्रबुद्ध कला है,
जग के हित रहने में
सबका सहज भला है।

जग का प्यार मिले
जन्मों के पुण्य चाहिए,
जग जीवन को
प्रेम सिन्धु में डूब थाहिए।

ज्ञानी बनकर
मत नीरस उपदेश दीजिए,
लोक कर्म भव सत्य
प्रथम सत्कर्म कीजिए।





संबंधित लेख