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के एस सुदर्शन का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में 1931 में हुआ था। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशंस में बीटेक डिग्री प्राप्त की। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आर एस एस शाखा में भाग लिया। 1954 में वे संघ के प्रचारक नियुक्त किए गए।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में 18 जून, 1931 में हुआ था। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशंस में बीटेक डिग्री प्राप्त की। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आर एस एस शाखा में भाग लिया। 1954 में पहली बार सुदर्शन आरएसएस के प्रचारक बने।


1964 में रायगढ़ जिले में सुदर्शन बतौर संघ के प्रचारक बनाए गए। बाद में वे मध्य प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। इसके बाद संघ में उन्होंने कई तरह की अहम जिम्मेदारियां संभाली। सुदर्शन करीब छह दशकों तक आर एस एस प्रचारक रहे। 2000 में वे सरसंघचालक बने और 2009 तक इस पद पर रहे।
1964 में रायगढ़ जिले में सुदर्शन बतौर संघ के प्रचारक बनाए गए। बाद में वे मध्य प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। इसके बाद संघ में उन्होंने कई तरह की अहम जिम्मेदारियां संभाली। सुदर्शन करीब छह दशकों तक आर एस एस प्रचारक रहे। 10 मार्च, 2000 को आरएसएस प्रमुख बने। 21 मार्च, 2009 तक वह इस पद पर रहे। बीजेपी की हार के बाद 2005 में के एस सुदर्शन ने कहा था लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी को युवा पीढ़ी के नेताओं के लिए अब जगह बनानी होगी। वह संघ के अंदर एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों के आलोचक रहे थे।





13:37, 15 सितम्बर 2012 का अवतरण

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर एस एस) के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में 18 जून, 1931 में हुआ था। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से टेलीकम्युनिकेशंस में बीटेक डिग्री प्राप्त की। महज 9 साल की उम्र में ही उन्होंने पहली बार आर एस एस शाखा में भाग लिया। 1954 में पहली बार सुदर्शन आरएसएस के प्रचारक बने।

1964 में रायगढ़ जिले में सुदर्शन बतौर संघ के प्रचारक बनाए गए। बाद में वे मध्य प्रदेश के प्रांत प्रचारक बने। इसके बाद संघ में उन्होंने कई तरह की अहम जिम्मेदारियां संभाली। सुदर्शन करीब छह दशकों तक आर एस एस प्रचारक रहे। 10 मार्च, 2000 को आरएसएस प्रमुख बने। 21 मार्च, 2009 तक वह इस पद पर रहे। बीजेपी की हार के बाद 2005 में के एस सुदर्शन ने कहा था लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी को युवा पीढ़ी के नेताओं के लिए अब जगह बनानी होगी। वह संघ के अंदर एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों के आलोचक रहे थे।


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