"उज्जयिनी शक्तिपीठ": अवतरणों में अंतर

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भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।<ref>[[स्कंद पुराण]], अवंतिका खण्ड उज्जयिनी माहात्म्य</ref></poem></blockquote>
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।<ref>[[स्कंद पुराण]], अवंतिका खण्ड उज्जयिनी माहात्म्य</ref></poem></blockquote>
==तीर्थस्थल==
==तीर्थस्थल==
कहते हैं- प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव [[कमल|कमलपुष्पों]] से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहारदीवारी से घिरा है। मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी के प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में [[महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], [[सरस्वती|महासरस्वती]] की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीपस्तंभ हैं। [[शिवपुराण]] के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें [[विक्रमादित्य]] की आराध्या माना जाता है। [[स्कंद पुराण]]<ref>[[स्कंद पुराण]] के अवंतिका खण्ड (उज्जयिनी माहात्म्य)</ref> में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों [[नवरात्र|नवरात्रों]] में यहाँ उनकी महापूजा होती है-  
कहते हैं- प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव [[कमल|कमलपुष्पों]] से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहारदीवारी से घिरा है। मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती [[अन्नपूर्णा देवी|अन्नपूर्णा]] की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी के प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में [[महालक्ष्मी]], [[महाकाली]], [[सरस्वती|महासरस्वती]] की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीपस्तंभ हैं। [[शिवपुराण]] के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें [[विक्रमादित्य]] की आराध्या माना जाता है। [[स्कंद पुराण]]<ref>[[स्कंद पुराण]] के अवंतिका खण्ड (उज्जयिनी माहात्म्य)</ref> में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों [[नवरात्र|नवरात्रों]] में यहाँ उनकी महापूजा होती है-  
:नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया  
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तथा दोनों दीपस्तंभों पर [[दीपक|दीप]] जलाए जाते हैं। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े [[नगाड़ा|नगाड़े]] रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं।  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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07:03, 17 नवम्बर 2012 का अवतरण

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उज्जयिनी शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।

भूत-भावना महाकालेश्वर की क्रीड़ा-स्थली अवंतिका (उज्जैन) पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है। वहीं पार्वती हरसिद्धि देवी का मंदिर शक्तिपीठ, रुद्रसागर या रुद्र सरोवर नाम से तालाब के निकट है, जहाँ सती की कुहनी का पतन हुआ था। अतः वहाँ कुहनी की पूजा होती है। यहाँ की शक्ति 'मंगल चण्डिका' तथा भैरव 'मांगल्य कपिलांबर हैं-

उज्जयिन्यां कूर्परं व मांगल्य कपिलाम्बरः।
भैरवः सिद्धिदः साक्षात् देवी मंगल चण्डिका।[1]

तीर्थस्थल

कहते हैं- प्राचीन मंदिर रुद्र सरोवर के तट पर स्थित था तथा सरोवर सदैव कमलपुष्पों से परिपूर्ण रहता था। इसके पश्चिमी तट पर 'देवी हरसिद्धि का तथा पूर्वी तट पर 'महाकालेश्वर का मंदिर था। 18वीं शताब्दी में इन मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ। वर्तमान हरसिद्धि मंदिर चहारदीवारी से घिरा है। मंदिर के मुख्य पीठ पर प्रतिमा के स्थान पर 'श्रीयंत्र' है। इस पर सिंदूर चढ़ाया जाता है, अन्य प्रतिमाओं पर नहीं और उसके पीछे भगवती अन्नपूर्णा की प्रतिमा है। गर्भगृह में हरसिद्धि देवी के प्रतिमा की पूजा होती है। मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती की प्रतिमाएँ हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर बावड़ी है, जिसके बीच में एक स्तंभ है, जिस पर संवत् 1447 अंकित है तथा पास ही में सप्तसागर सरोवर है। मंदिर के जगमोहन के सामने दो बड़े दीपस्तंभ हैं। शिवपुराण के अनुसार यहाँ श्रीयंत्र की पूजा होती है। इन्हें विक्रमादित्य की आराध्या माना जाता है। स्कंद पुराण[2] में देवी हरसिद्धि का उल्लेख है। मंदिर परिसर में आदिशक्ति महामाया का भी मंदिर है, जहाँ सदैव ज्योति प्रज्जवलित होती रहती है तथा दोनों नवरात्रों में यहाँ उनकी महापूजा होती है-

नवम्यां पूजिता देवी हरसिद्धि हरप्रिया

तथा दोनों दीपस्तंभों पर दीप जलाए जाते हैं। मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते ही वाहन सिंह की प्रतिमा है। द्वार के दाईं ओर दो बड़े नगाड़े रखे हैं, जो प्रातः सायं आरती के समय बजाए जाते हैं।

प्रसंगवश हरसिद्धि देवी का एक मंदिर द्वारका (सौराष्ट्र) में भी है। दोनों स्थानों (उज्जयिनी तथा द्वारका) पर देवी की मूर्तियाँ एक जैसी हैं। इंदौर से 80 किलोमीटर दूर पुणे मार्ग पर स्थित उज्जैन प्राचीन काल से ही तीर्थस्थल रहा है। यहाँ का महाकालेश्वर मंदिर (ज्योतिर्लिंग) तथा बड़ा गणेश मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर आदि दर्शनीय हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्कंद पुराण, अवंतिका खण्ड उज्जयिनी माहात्म्य
  2. स्कंद पुराण के अवंतिका खण्ड (उज्जयिनी माहात्म्य)

बाहरी कड़ियाँ

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