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'''साड़ी''' भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्म पहनावा है। पांच या छह मीटर लंबे कपड़े के टुकड़े के रूप में तैयार साड़ी रेशमी, सूती या कृत्रिम कच्चे माल की बनी होती है, जो छापे, बुने डिज़ाइन वाली साड़ी का एक छोर एक कंधे के उपर से होकर बाई या दाई ओर लटकता छोड़ दिया जाता है अथवा सिर पर ओढ़ा जाता है। | '''साड़ी''' भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्म पहनावा है। पांच या छह मीटर लंबे कपड़े के टुकड़े के रूप में तैयार साड़ी रेशमी, सूती या कृत्रिम कच्चे माल की बनी होती है, जो छापे, बुने डिज़ाइन वाली साड़ी का एक छोर एक कंधे के उपर से होकर बाई या दाई ओर लटकता छोड़ दिया जाता है अथवा सिर पर ओढ़ा जाता है। | ||
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17:44, 19 नवम्बर 2012 का अवतरण
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साड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों का प्रमुख बाह्म पहनावा है। पांच या छह मीटर लंबे कपड़े के टुकड़े के रूप में तैयार साड़ी रेशमी, सूती या कृत्रिम कच्चे माल की बनी होती है, जो छापे, बुने डिज़ाइन वाली साड़ी का एक छोर एक कंधे के उपर से होकर बाई या दाई ओर लटकता छोड़ दिया जाता है अथवा सिर पर ओढ़ा जाता है।
इतिहास
दूसरी शताब्दी ई.पू. की मूर्तियों में पुरुषों और स्त्रियों के शरीर के ऊपरी भाग को अनावृत दर्शाया गया है। ये कमर के गिर्द साड़ी इस प्रकार लपेटे हुए हैं कि पैरों के बीच सामने वाले भाग में चुन्नटें बन जाती हैं। इसमें 12वीं सदी तक कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ। भारत के उत्तरी और मध्य भाग को जीतने के बाद मुसलमानों ने ज़ोर दिया कि शरीर को पूरी तरह ढका जाए। हिंदू महिलाएं साड़ी को एक छोटे अंग वस्त्र (ब्लाउज) तथा लहंगे (पेटीकोट) के साथ पहनती हैं, जिसमें साड़ी को खोंसकर कमर से पैर तक एक लंबा घेरा बना लिया जाता हौ। महाराष्ट्र में अक्सर नौगज़ी साड़ी लांधदार बांधी जाती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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