"सदस्य वार्ता:डा.राजेंद्र तेला": अवतरणों में अंतर

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== क्रोध  ==


हर ज्ञानी,महापुरुष ने सदा एक ही बात कही है
क्रोध नहीं करना चाहिए .
ग्रन्थ साक्षी हैं ,देवताओं से लेकर महापुरुष,योगी और महाऋषी भी क्रोध से नहीं बच सके .
क्रोध मनुष्य के स्वभाव का अभिन्न अंग है.
परमात्मा द्वारा दी हुयी इस भावना का अर्थ असहमती की अभिव्यक्ति ही तो है
पर उस में विवेक खोना ,जिह्वा एवं स्वयं पर से नियंत्रण खोना घातक होता है.
इसकी परिणीति अनयंत्रित व्यवहार और कार्य में होती है .जिस से बहुत भारी अनर्थ हो सकता है ,सब को निरंतर ऐसा होते दिखता भी है.
अतः क्रोध करना अनुचित तो है ही ,पर साथ में क्रोध आने पर,अपना विवेक बनाए रखना,जिह्वा और मन मष्तिष्क पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है.
असहमती अवश्य प्रकट करनी चाहिए पर विवेक पूर्ण तरीके से .
15-11-2011-20
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:क्रोध ]]
== पूजा-अर्चना  ==
संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाले परमात्मा को भिन्न नामों से पुकारा जाता है अपनी अपनी आस्था और धर्म के अनुसार राम ,कृष्ण,शिव,जीसस क्राइस्ट,पैगम्बर मोहम्मद,गुरु नानक,गौतम बुद्ध ,महावीर ,जोराष्ट्र ,भिन्न भिन्न सम्प्रादायों के गुरुओं आदि के नामों से धर्मावलम्बी उन्हें याद करते उनका नमन व् अपने धार्मिक मूल्यों एवं आस्था के अनुसार
उनकी पूजा करते हैं एवं सम्मान प्रकट करते है
पर पूजा,अर्चना अर्थ हीन हो जाती है अगर हम उनके बताये रास्ते पर नहीं चलते .
हमारे कार्य कलापों एवं व्यवहार में उनके द्वारा दी गयी शिक्षा अगर परिलक्षित नहीं होती हो तो ये अधर्म कहलायेगा
अपने ईश या इष्ट को प्रसन्न करने के लिए पूजा ,अर्चना से अधिक आवश्यक है,उनके द्वारा स्थापित मूल्यों एवं सत्य मार्ग पर चलना .
अन्यथा पूजा,म्रत्यु और अनहोनी से बचने के लिए उन्हें याद करने से अधिक नहीं होती है.
मात्र दिखावा भर रह जाती है और स्वयं को धोखा देने के सामान होती है
संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाला परमात्मा अगर है ,तो ध्यान रहना चाहिए वो सब देखता है
ऐसा कार्य या व्यवहार जो उसे मान्य नहीं है ,उसकी दृष्टि से छुपा नहीं रहता
15-11-2011-22
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:पूजा-अर्चना ]]
== दृढ रहना ==
समय काल और प्रचलित
मान्यताओं से लड़ने वाला
साहसी और विद्रोही
कहलाता है
उसका दृढ रहना भी
अत्यावश्यक है ,
क्योंकि उसका विरोध
भी निश्चित है
14-11-2011-17
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:दृढ रहना]]
== धन और गुण  ==
धन से अच्‍छे गुण नहीं मिलते,
धन अच्‍छे गुणों से मिलता है !
-सुकरात
महान दार्शनिक सुकरात के समय में यह कथन उचित रहा होगा .
आज के समय में मेरा मानना है
धन का सम्बन्ध अच्छे  गुणों से नहीं होता ,
वरन धन आज के समय में
अधिकतर अवांछनीय तरीकों से कमाया जाता है
या कहिये धन कमाने का व्यक्ती के गुणों  से कोई सम्बन्ध नहीं होता
अच्छे गुण किसी भी धन से अधिक होते हैं
08-11-2011
1759-27-11-11-25
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:धन और गुण ]]
== इमानदारी ==
इमानदारी की बात करना आसान है
इमानदारी रखना बहुत कठिन है
22-11-2011-34
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:इमानदारी]]
== भय और भ्रम ==
भय और भ्रम में
अधिक फर्क नहीं होता
दोनों मनुष्य के जीवन को
कंटकाकीर्ण कर देते हैं
जीवन भर चैन नहीं
लेने देते
26-11-2011-39
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:Enter new category name]][[Category:भय और भ्रम]]
== सहमती -असहमती ==
किसी प्रश्न के उत्तर में
या विषय पर
मौन रहना,सहमती माना जा
सकता है
असहमत हो तो,मौन ना रहे
अपने विचार
अवश्य प्रकट करने चाहिए
वो भी इस तरह से कि
जिससे आप सहमत ना हो
उसे बुरा नहीं लगे
27-11-2011-40
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:सहमती -असहमती]][[Category:अनमोल_वचन]]
== मनोविकार ==
शरीर के विकार की
चिकित्सा दवा से होती है
मनोविकार की चिकित्सा
ध्यान,आत्म चिंतन
आत्म अन्वेषण
से होती है
29-11-2011-42
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:मनोविकार]][[Category:अनमोल_वचन]]
== मानसिक शांती ==
जिस प्रकार
भरे हुए संदूक में
सामान रखने के लिए
कुछ सामान बाहर
निकालना पडेगा
उसी प्रकार
मानसिक शांती के लिए
पुरानी बातों को
मष्तिष्क से बाहर
निकालना
आवश्यक होता है
उन्हें भूलना पड़ता है
मन मष्तिष्क  को
शांत रखने के लिए
ध्यान करें
आत्म चिंतन और
आत्म अन्वेषण करें
परमात्मा में विश्वास रखें
समय सदा
एक सा नहीं रहता
मानसिक अशांती के
समय
मनपसंद कार्य में
मन लगाने का प्रयत्न करें
29-11-2011-41
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:मानसिक शांती]]
== जात,पात,धर्म,भाषा और प्रांत ==
जात,पात,धर्म,भाषा और प्रांत की बात पर
विश्वास रखना
फिर आपस में प्रेम भाई चारे की बात करना ,
मिथ्या आशा और विचार है
22-11-2011-36
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:अनमोल_वचन]][[Category:जात,पात,धर्म,भाषा और प्रांत]]
== संयम ==
जीत का नशा
सर पर चढ़ता
हार का दुःख
दिल-ओ-दिमाग पर
असर करता
दोनों स्थितियों में
संयम रखना
आवश्यक होता
23-11-2011-35
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:संयम]][[Category:अनमोल_वचन]]
== आडम्बर ==
खुद के आडम्बर का
पता नहीं चलता
दूसरों का बुरा लगता
22-11-2011-33
डा राजेंद्र तेला,"निरंतर”[[Category:अनमोल_वचन]]

11:23, 20 नवम्बर 2012 का अवतरण