"एक्सप्रेस वे": अवतरणों में अंतर
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एक्सप्रेस वे शहरी विकास के नए युग की शरूआत के साथ देश के क्रमागत विकास की चाल को भी तेज करते हैं। पिछले पांच दशक से भारत में जिन राजमार्गो और एक्सप्रेस वे की चर्चा होती रही, उसे मूर्त रूप में ढालने का वास्तविक प्रयास तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। 1999 ने वाजपेयी ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को सुप्तावस्था से जगाकर सक्रिय किया, उन्होंने देश के चारों मेट्रो शहरों को उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम कॉरीडोर से जोडने के लिए "स्वर्णिम चतुर्भुज योजना" बनाई और इसके कार्यान्वयन का जिम्मा "हर कीमत पर पूरा करने के आदेश के साथ" बी.सी. खंडूरी को सौंपा। ये किसी कीर्तिमान से कम न था, क्योंकि नौकरशाह, रीयल एस्टेट मालिक, जमींदारों के विरोध के बावजूद यह योजना 95 प्रतिशत तक पूरी हो पाई और आज वास्तविकता सबके सामने है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.patrika.com/print/emailarticle.aspx?id=36525|title= विकास की रफ्तार को गति देते एक्सप्रेस वे |accessmonthday=5 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}} </ref> | एक्सप्रेस वे शहरी विकास के नए युग की शरूआत के साथ देश के क्रमागत विकास की चाल को भी तेज करते हैं। पिछले पांच दशक से भारत में जिन राजमार्गो और एक्सप्रेस वे की चर्चा होती रही, उसे मूर्त रूप में ढालने का वास्तविक प्रयास तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। 1999 ने वाजपेयी ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को सुप्तावस्था से जगाकर सक्रिय किया, उन्होंने देश के चारों मेट्रो शहरों को उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम कॉरीडोर से जोडने के लिए "स्वर्णिम चतुर्भुज योजना" बनाई और इसके कार्यान्वयन का जिम्मा "हर कीमत पर पूरा करने के आदेश के साथ" बी.सी. खंडूरी को सौंपा। ये किसी कीर्तिमान से कम न था, क्योंकि नौकरशाह, रीयल एस्टेट मालिक, जमींदारों के विरोध के बावजूद यह योजना 95 प्रतिशत तक पूरी हो पाई और आज वास्तविकता सबके सामने है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://www.patrika.com/print/emailarticle.aspx?id=36525|title= विकास की रफ्तार को गति देते एक्सप्रेस वे |accessmonthday=5 सितम्बर|accessyear=2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}} </ref> | ||
==जापान से तकनीकी सहायता== | ==जापान से तकनीकी सहायता== | ||
एक्सप्रेस मार्गो के विकास के लिए [[जापान]], भारत के साथ "टेक्नोलॉजी ट्रांसफर" करने का इच्छुक है। ख़ास तौर से हाई-स्पीड कॉरिडोर्स के लिए। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने आर्थिक पुनरूत्थान करते हुए, सबसे पहले सड़कों की बदतर हालत पर ध्यान दिया था। [[1956]] में 23 प्रतिशत राष्ट्रीय मार्ग पक्के थे, लेकिन आज जापान के चारों मुख्य द्वीप और ओकिनावा | एक्सप्रेस मार्गो के विकास के लिए [[जापान]], भारत के साथ "टेक्नोलॉजी ट्रांसफर" करने का इच्छुक है। ख़ास तौर से हाई-स्पीड कॉरिडोर्स के लिए। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने आर्थिक पुनरूत्थान करते हुए, सबसे पहले सड़कों की बदतर हालत पर ध्यान दिया था। [[1956]] में 23 प्रतिशत राष्ट्रीय मार्ग पक्के थे, लेकिन आज जापान के चारों मुख्य द्वीप और ओकिनावा क़रीब 7000 कि.मी. के एक्सप्रेस वे नेटवर्क से जुड़े हैं।<ref name="mcc"/> | ||
==भारत में पहला एक्सप्रेस वे== | ==भारत में पहला एक्सप्रेस वे== | ||
भारत की आर्थिक राजधानी [[मुम्बई]] और शैक्षिक केन्द्र [[पूना]] के बीच 'पहला एक्सप्रेस वे' का निर्माण किया गया। यह एक्सप्रेस वे छ: लेन का बनाया गया है। 93 कि.मी. (58 मील) लंबाई वाला यह राजमार्ग अन्य सड़कों से अलग है। इस एक्सप्रेस पर [[मुंबई]] और पुणे के बीच में वाहन चालन का आनंद महसूस कर सकते हैं। पुराने समय में सफर करने के मुकाबले एक्सप्रेस वे से 2-3 घंटे में गंतव्य तक पहुँच जाते हैं। जबकि एन.एच. 4 (राष्ट्रीय राजमार्ग 4) से जाने पर 4-5 घंटे का समय लग जाता है। इस तरह व्यावसायिक रूप से दो महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच यात्रा के समय में काफ़ी बचत हो गई। यह वन वे तो है ही, इसकी सुरंगों को भी अलग-अलग बनाया गया है। सड़क के दोनों ओर बाड़ लगाई है ताकि जानवर आदि वाहनों की गति में कोई बाधा पैदा न करें। इस पर दो पहिया वाहन, तिपहिया और ट्रैक्टर की अनुमति नहीं है। जगह-जगह पेट्रोल पंप, ढाबे, कार्यशालाओं, शौचालय, आपातकालीन फ़ोन, प्राथमिक चिकित्सा, सी.सी.टी.वी. आदि की व्यवस्था से सुसज्जित किया गया है। साथ ही 80,000 पेड़ भी लगाये गए हैं। | भारत की आर्थिक राजधानी [[मुम्बई]] और शैक्षिक केन्द्र [[पूना]] के बीच 'पहला एक्सप्रेस वे' का निर्माण किया गया। यह एक्सप्रेस वे छ: लेन का बनाया गया है। 93 कि.मी. (58 मील) लंबाई वाला यह राजमार्ग अन्य सड़कों से अलग है। इस एक्सप्रेस पर [[मुंबई]] और पुणे के बीच में वाहन चालन का आनंद महसूस कर सकते हैं। पुराने समय में सफर करने के मुकाबले एक्सप्रेस वे से 2-3 घंटे में गंतव्य तक पहुँच जाते हैं। जबकि एन.एच. 4 (राष्ट्रीय राजमार्ग 4) से जाने पर 4-5 घंटे का समय लग जाता है। इस तरह व्यावसायिक रूप से दो महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच यात्रा के समय में काफ़ी बचत हो गई। यह वन वे तो है ही, इसकी सुरंगों को भी अलग-अलग बनाया गया है। सड़क के दोनों ओर बाड़ लगाई है ताकि जानवर आदि वाहनों की गति में कोई बाधा पैदा न करें। इस पर दो पहिया वाहन, तिपहिया और ट्रैक्टर की अनुमति नहीं है। जगह-जगह पेट्रोल पंप, ढाबे, कार्यशालाओं, शौचालय, आपातकालीन फ़ोन, प्राथमिक चिकित्सा, सी.सी.टी.वी. आदि की व्यवस्था से सुसज्जित किया गया है। साथ ही 80,000 पेड़ भी लगाये गए हैं। |
14:15, 24 नवम्बर 2012 का अवतरण
एक्सप्रेस वे यातायात के लिए एक सड़क मार्ग हैं। वर्तमान में भारत संकरी सड़कों से एक्सप्रेस वे पर आ गया है। यात्रा का समय कम करने और वाहनों को द्रुतगति से दौड़ाने के लिए इन एक्सप्रेस वे को बनाया गया है। पहले एकल रोड पर भी वाहन आसानी से आ जा सकते थे। बाद में इन सड़कों पर ट्रैफिक का दबाव बढ़ने लगा, उन्हीं समस्याओं का समाधान एक्सप्रेस वे के रूप में निकाला गया, लेकिन आज इसकी ज़रूरत ने एक्सप्रेस वे योजना को ही महत्त्वपूर्ण बना दिया। मुख्य शहरों के एयरपोर्ट, व्यावसायिक केंद्रों से जोड़कर एक्सप्रेस वे ने कम समय में शहरों को जोड़ दिया है।
स्वर्णिम चतुर्भुज योजना
एक्सप्रेस वे शहरी विकास के नए युग की शरूआत के साथ देश के क्रमागत विकास की चाल को भी तेज करते हैं। पिछले पांच दशक से भारत में जिन राजमार्गो और एक्सप्रेस वे की चर्चा होती रही, उसे मूर्त रूप में ढालने का वास्तविक प्रयास तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। 1999 ने वाजपेयी ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को सुप्तावस्था से जगाकर सक्रिय किया, उन्होंने देश के चारों मेट्रो शहरों को उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम कॉरीडोर से जोडने के लिए "स्वर्णिम चतुर्भुज योजना" बनाई और इसके कार्यान्वयन का जिम्मा "हर कीमत पर पूरा करने के आदेश के साथ" बी.सी. खंडूरी को सौंपा। ये किसी कीर्तिमान से कम न था, क्योंकि नौकरशाह, रीयल एस्टेट मालिक, जमींदारों के विरोध के बावजूद यह योजना 95 प्रतिशत तक पूरी हो पाई और आज वास्तविकता सबके सामने है।[1]
जापान से तकनीकी सहायता
एक्सप्रेस मार्गो के विकास के लिए जापान, भारत के साथ "टेक्नोलॉजी ट्रांसफर" करने का इच्छुक है। ख़ास तौर से हाई-स्पीड कॉरिडोर्स के लिए। गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान ने आर्थिक पुनरूत्थान करते हुए, सबसे पहले सड़कों की बदतर हालत पर ध्यान दिया था। 1956 में 23 प्रतिशत राष्ट्रीय मार्ग पक्के थे, लेकिन आज जापान के चारों मुख्य द्वीप और ओकिनावा क़रीब 7000 कि.मी. के एक्सप्रेस वे नेटवर्क से जुड़े हैं।[1]
भारत में पहला एक्सप्रेस वे
भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई और शैक्षिक केन्द्र पूना के बीच 'पहला एक्सप्रेस वे' का निर्माण किया गया। यह एक्सप्रेस वे छ: लेन का बनाया गया है। 93 कि.मी. (58 मील) लंबाई वाला यह राजमार्ग अन्य सड़कों से अलग है। इस एक्सप्रेस पर मुंबई और पुणे के बीच में वाहन चालन का आनंद महसूस कर सकते हैं। पुराने समय में सफर करने के मुकाबले एक्सप्रेस वे से 2-3 घंटे में गंतव्य तक पहुँच जाते हैं। जबकि एन.एच. 4 (राष्ट्रीय राजमार्ग 4) से जाने पर 4-5 घंटे का समय लग जाता है। इस तरह व्यावसायिक रूप से दो महत्त्वपूर्ण शहरों के बीच यात्रा के समय में काफ़ी बचत हो गई। यह वन वे तो है ही, इसकी सुरंगों को भी अलग-अलग बनाया गया है। सड़क के दोनों ओर बाड़ लगाई है ताकि जानवर आदि वाहनों की गति में कोई बाधा पैदा न करें। इस पर दो पहिया वाहन, तिपहिया और ट्रैक्टर की अनुमति नहीं है। जगह-जगह पेट्रोल पंप, ढाबे, कार्यशालाओं, शौचालय, आपातकालीन फ़ोन, प्राथमिक चिकित्सा, सी.सी.टी.वी. आदि की व्यवस्था से सुसज्जित किया गया है। साथ ही 80,000 पेड़ भी लगाये गए हैं।
भारत के एक्सप्रेस वे सूची
- अहमदाबाद-वड़ोदरा
- मुम्बई-पुणे
- जयपुर किशनगढ़
- इलाहाबाद बाईपास
- दुर्गापुर एक्सप्रेस
- चेन्नई बाईपास
- दिल्ली-गुड़गाँव एक्सप्रेस वे
- नोएडा-ग्रेटर नोएडा
- दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट
- हैदराबाद ऊंचा एक्सप्रेस
- होसर रोड ऊंचा
- आउटर रिंग रोड (हैदराबाद)
- रायपुर-भिलाई-दुर्ग एक्सप्रेस
- यमुना एक्सप्रेस वे
- बंगलौर-मैसूर इंफ़्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 विकास की रफ्तार को गति देते एक्सप्रेस वे (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 5 सितम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
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