"भोगराजू पट्टाभि सीतारामैया": अवतरणों में अंतर

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==जन्म तथा शिक्षा==
==जन्म तथा शिक्षा==
पट्टाभि सीतारामैया का जन्म 24 दिसम्बर, 1880 ई. को आंध्र प्रदेश के नेल्लौर तालुके में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] आठ रुपये प्रति महीने के वेतन पर गृहस्थी चलाते थे। जब सीतारामैया चार-पाँच वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहांत हो गया। अनेक कठिन परिस्थितियों के आने पर भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने बाद काकीनाड़ा के एक धनी वकील की कन्या से उनका [[विवाह]] हो गया। इसके बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और मछलीपट्टम में चिकित्स के रूप में व्यवसायिक जीवन में लग गए।
पट्टाभि सीतारामैया का जन्म 24 दिसम्बर, 1880 ई. को आंध्र प्रदेश के नेल्लौर तालुके में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनके [[पिता]] आठ रुपये प्रति महीने के वेतन पर गृहस्थी चलाते थे। जब सीतारामैया चार-पाँच वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहांत हो गया। अनेक कठिन परिस्थितियों के आने पर भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने बाद काकीनाड़ा के एक धनी वकील की कन्या से उनका [[विवाह]] हो गया। इसके बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और मछलीपट्टम में चिकित्स के रूप में व्यवसायिक जीवन में लग गए।
====कांग्रेस से सम्पर्क====
राष्ट्रीयता की भावना उनके अंदर आरंभ से ही विद्यमान थी। '[[बंग भंग]]' के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन का उन पर प्रभाव पड़ा था। कॉलेज के दिनों से ही वे [[कांग्रेस]] के समर्क में आ चुके थे। राष्ट्रीय विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने 'जन्मभूमि' नामक एक साहित्यिक पत्र भी निकाला था। सन [[1916]] से [[1952]] तक वे 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के और अनेक बार कार्य समिति के सदस्य भी रहे।
==जेल यात्रा==
[[महात्मा गाँधी]] के प्रभाव से सन [[1920]] में '[[असहयोग आन्दोलन]]' के समय उन्होंने चिकित्सा कार्य त्याग दिया। उसके बाद प्रत्येक आंदोलन में भाग लेने के कारण [[1930]], [[1932]] और [[1942]] में जेल की सजाएँ भोगीं। देशी रियासतों में राष्ट्रीय जाग्रति लाने में उनका बड़ा योगदान था। आंध्र प्रदेश में 'सहकारिता आंदोलन' और 'राष्ट्रीय बीमा कंपनियाँ' आंरभ करने का श्रेय भी सीतारामैया को जाता है।
==कांग्रेस अध्यक्ष का पद==
सीतारामैया [[1939]] में '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के अध्यक्ष पद के लिए खड़ा होने को लेकर अत्यंत चर्चा में रहे थे। सामान्य तौर पर कांग्रेस का अध्यक्ष सर्वसम्मति से निर्वाचित होता था। वर्ष [[1938]] में अध्यक्ष निर्वाचित हुए [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] ने 1939 में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ने का निर्णय किया। नेताजी बोस ने कहा कि "कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव विभिन्न समस्याओं और कार्यक्रमों के आधार पर ही लड़ा जाना चाहिए"। सुभाषचन्द्र बोस [[जनवरी]], 1939 में महात्मा गाँधी का आशीर्वाद प्राप्त सीतारामैया से 1,377 के मुकाबले 1,580 मतों से जीत गए। सीतारामैया जी की हार पर गाँधीजी ने बयान दिया कि "सीतारामैया की हार उनसे अधिक मेरी हार है"। बाद में वर्ष [[1948]] की [[जयपुर]] कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गए थे। [[1952]] से [[1957]] तक वे [[मध्य प्रदेश]] के [[राज्यपाल]] पद पर भी रहे।
====रचना कार्य====
स्वतत्रंता के बाद पट्टाभि सीतारामैया ने राजनीतिक पद के लिए कोई भी चुनाव नहीं लड़ा। उनकी ख्याति एक लेखक के रूप में भी बहुत अधिक थी। उनके द्वारा रचित मुख्य ग्रंथ हैं-
#सिक्सटी इयर्स आँफ कांग्रेस
#फेदर्स एण्ड-स्टोन्स
#नेशनल एजुकेशन
#इंडियन नेशनलिज्म
#रिडिस्ट्रिब्यूशन आँफ स्टेट्स
#हिस्ट्री आँफ दि कांग्रेस


राष्ट्रीयता की भावना उनके अंदर आरंभ से ही विद्यमान थी। 'बंग-भंग' के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन का उन पर प्रभाव पड़ा था। कॉलेज के दिनों से ही वे [[कांग्रेस]] के समर्क में आ चुके थे। राष्ट्रीय विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने 'जन्मभूमि' नामक एक साहित्यिक पत्र भी निकाला था। सन [[1916]] से [[1952]] तक वे 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के और अनेक बार कार्य समिति के सदस्य भी रहे। [[महात्मा गाँधी]] के प्रभाव से सन [[1920]] में '[[असहयोग आन्दोलन]]' के समय उन्होंने चिकित्सा कार्य त्याग दिया। उसके बाद प्रत्येक आंदोलन में भाग लेने के कारण [[1930]], [[1932]] और [[1942]] में जेल की सजाएँ भोगीं। देशी रियासतों में राष्ट्रीय जाग्रति लाने में उनका बड़ा योगदान था। आंध्र प्रदेश में 'सहकारिता आंदोलन' और 'राष्ट्रीय बीमा कंपनियाँ' आंरभ करने का श्रेय भी सीतारामैया को जाता है। सन [[1939]] में कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन में [[नेताजी सुभाषचंद्र बोस]] से आपके पराजित हो जाने पर गाँधीजी ने कहा था कि "पट्टाभि की हार मेरी हार है"। बाद में वर्ष [[1948]] की [[जयपुर]] कांग्रेस के आप अध्यक्ष चुने गए थे। [[1952]] से [[1957]] तक वे [[मध्य प्रदेश]] के [[राज्यपाल]] पद पर भी रहे। स्वतत्रंता के बाद पट्टाभि सीतारामैया ने राजनीतिक पद के लिए कोई भी चुनाव नहीं लड़ा। उनकी ख्याति एक लेखक के रूप में भी बहुत अधिक थी। उनके द्वारा रचित मुख्य ग्रंथ हैं- 'सिक्सटी इयर्स आँफ कांग्रेस', 'फेदर्स एण्ड-स्टोन्स', 'नेशनल एजुकेशन', 'इंडियन नेशनलिज्म', 'रिडिस्ट्रिब्यूशन आँफ स्टेट्स' और 'हिस्ट्री आँफ दि कांग्रेस'। उनकी अंतिम पुस्तक अपने विषय प्रामाणिक और सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक है। इसका पहला भाग सन [[1935]] में और दूसरा भाग [[1947]] में प्रकाशित हुआ था। [[17 दिसम्बर]], [[1959]] ई. को उनका देहांत हो गया।
उनकी अंतिम पुस्तक अपने विषय प्रामाणिक और सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक है। इसका पहला भाग सन [[1935]] में और दूसरा भाग [[1947]] में प्रकाशित हुआ था। [[17 दिसम्बर]], [[1959]] ई. को उनका देहांत हो गया।


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08:35, 25 नवम्बर 2012 का अवतरण

भोगराजू पट्टाभि सीतारामैया (जन्म- 24 दिसम्बर, 1880, आन्ध्र प्रदेश; मृत्यु- 17 दिसम्बर, 1959) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, गाँधीवादी और पत्रकार थे। इन्होंने दक्षिण भारत में स्वतंत्रता की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आपने राष्ट्रीय हितों को दूसरे हितों के मुकाबले हमेशा प्राथमिकता में रखा। सीतारामैया राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के प्रमुख सहयोगियों में से एक थे। जब सन 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष के निर्वाचन में पट्टाभि सीतारामैया सुभाषचन्द्र बोस से पराजित हो गए, तब महात्मा गाँधी ने उनकी हार को अपनी हार कहा। भारत की आज़ादी के बाद वर्ष 1952 से 1957 तक वे मध्य प्रदेश राज्य के राज्यपाल रहे थे। सीतारामैया एक लेखक के तौर पर भी जाने जाते थे। उन्होंने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' का इतिहास भी लिखा था।

जन्म तथा शिक्षा

पट्टाभि सीतारामैया का जन्म 24 दिसम्बर, 1880 ई. को आंध्र प्रदेश के नेल्लौर तालुके में एक निर्धन परिवार में हुआ था। उनके पिता आठ रुपये प्रति महीने के वेतन पर गृहस्थी चलाते थे। जब सीतारामैया चार-पाँच वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहांत हो गया। अनेक कठिन परिस्थितियों के आने पर भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने बाद काकीनाड़ा के एक धनी वकील की कन्या से उनका विवाह हो गया। इसके बाद उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और मछलीपट्टम में चिकित्स के रूप में व्यवसायिक जीवन में लग गए।

कांग्रेस से सम्पर्क

राष्ट्रीयता की भावना उनके अंदर आरंभ से ही विद्यमान थी। 'बंग भंग' के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन का उन पर प्रभाव पड़ा था। कॉलेज के दिनों से ही वे कांग्रेस के समर्क में आ चुके थे। राष्ट्रीय विचारों के प्रचार के लिए उन्होंने 'जन्मभूमि' नामक एक साहित्यिक पत्र भी निकाला था। सन 1916 से 1952 तक वे 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के और अनेक बार कार्य समिति के सदस्य भी रहे।

जेल यात्रा

महात्मा गाँधी के प्रभाव से सन 1920 में 'असहयोग आन्दोलन' के समय उन्होंने चिकित्सा कार्य त्याग दिया। उसके बाद प्रत्येक आंदोलन में भाग लेने के कारण 1930, 1932 और 1942 में जेल की सजाएँ भोगीं। देशी रियासतों में राष्ट्रीय जाग्रति लाने में उनका बड़ा योगदान था। आंध्र प्रदेश में 'सहकारिता आंदोलन' और 'राष्ट्रीय बीमा कंपनियाँ' आंरभ करने का श्रेय भी सीतारामैया को जाता है।

कांग्रेस अध्यक्ष का पद

सीतारामैया 1939 में 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के अध्यक्ष पद के लिए खड़ा होने को लेकर अत्यंत चर्चा में रहे थे। सामान्य तौर पर कांग्रेस का अध्यक्ष सर्वसम्मति से निर्वाचित होता था। वर्ष 1938 में अध्यक्ष निर्वाचित हुए नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने 1939 में भी कांग्रेस अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ने का निर्णय किया। नेताजी बोस ने कहा कि "कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव विभिन्न समस्याओं और कार्यक्रमों के आधार पर ही लड़ा जाना चाहिए"। सुभाषचन्द्र बोस जनवरी, 1939 में महात्मा गाँधी का आशीर्वाद प्राप्त सीतारामैया से 1,377 के मुकाबले 1,580 मतों से जीत गए। सीतारामैया जी की हार पर गाँधीजी ने बयान दिया कि "सीतारामैया की हार उनसे अधिक मेरी हार है"। बाद में वर्ष 1948 की जयपुर कांग्रेस के वे अध्यक्ष चुने गए थे। 1952 से 1957 तक वे मध्य प्रदेश के राज्यपाल पद पर भी रहे।

रचना कार्य

स्वतत्रंता के बाद पट्टाभि सीतारामैया ने राजनीतिक पद के लिए कोई भी चुनाव नहीं लड़ा। उनकी ख्याति एक लेखक के रूप में भी बहुत अधिक थी। उनके द्वारा रचित मुख्य ग्रंथ हैं-

  1. सिक्सटी इयर्स आँफ कांग्रेस
  2. फेदर्स एण्ड-स्टोन्स
  3. नेशनल एजुकेशन
  4. इंडियन नेशनलिज्म
  5. रिडिस्ट्रिब्यूशन आँफ स्टेट्स
  6. हिस्ट्री आँफ दि कांग्रेस

उनकी अंतिम पुस्तक अपने विषय प्रामाणिक और सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक है। इसका पहला भाग सन 1935 में और दूसरा भाग 1947 में प्रकाशित हुआ था। 17 दिसम्बर, 1959 ई. को उनका देहांत हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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