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'''गुलज़ारीलाल नन्दा''' (जन्म- [[4 जुलाई]], [[1898]], [[सियालकोट]], [[पश्चिमी पंजाब|पंजाब]], [[पाकिस्तान]]; मृत्यु- [[15 जनवरी]], [[1998]]) [[भारत]] के तेरह प्रधानमंत्रियों के अतिरिक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने इस ज़िम्मेदारी को दो बार निभाया। यह प्रासंगिक ही था कि [[कार्यवाहक प्रधानमंत्री]] के रूप में गुलज़ारी लाल नंदा के व्यक्तित्व और कर्तव्य को भी यहाँ पर प्रस्तुत किया जाता। दरअसल भारत की संवैधानिक परम्परा में यह प्रावधान है कि यदि किसी [[प्रधानमंत्री]] की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाए और नया प्रधानमंत्री चुना जाना तत्काल सम्भव न हो तो कार्यवाहक अथवा अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति तब तक के लिए की जा सकती है, जब तक की नया प्रधानमंत्री विधिक रूप से नियुक्त नहीं कर दिया जाता। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्रधानमंत्री के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] पार्टी के प्रति समर्पित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] की मृत्यु के बाद [[1964]] में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। दूसरी बार [[लाल बहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद [[1966]] में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया।
'''गुलज़ारीलाल नन्दा''' (जन्म- [[4 जुलाई]], [[1898]], [[सियालकोट]], [[पश्चिमी पंजाब|पंजाब]], [[पाकिस्तान]]; मृत्यु- [[15 जनवरी]], [[1998]]) [[भारत]] के तेरह प्रधानमंत्रियों के अतिरिक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने इस ज़िम्मेदारी को दो बार निभाया। यह प्रासंगिक ही था कि [[कार्यवाहक प्रधानमंत्री]] के रूप में गुलज़ारी लाल नंदा के व्यक्तित्व और कर्तव्य को भी यहाँ पर प्रस्तुत किया जाता। दरअसल भारत की संवैधानिक परम्परा में यह प्रावधान है कि यदि किसी [[प्रधानमंत्री]] की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाए और नया प्रधानमंत्री चुना जाना तत्काल सम्भव न हो तो कार्यवाहक अथवा अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति तब तक के लिए की जा सकती है, जब तक की नया प्रधानमंत्री विधिक रूप से नियुक्त नहीं कर दिया जाता। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्रधानमंत्री के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता। [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस|कांग्रेस]] पार्टी के प्रति समर्पित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] की मृत्यु के बाद [[1964]] में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। दूसरी बार [[लाल बहादुर शास्त्री]] की मृत्यु के बाद [[1966]] में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया।
==जन्म एवं परिवार==
==जन्म एवं परिवार==
नंदाजी के रूप में विख्यात गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म [[4 जुलाई]], [[1898]] को [[सियालकोट]] में हुआ था, जो अब पश्चिमी [[पाकिस्तान]] का हिस्सा है। इनके पिता का नाम 'बुलाकी राम नंदा' तथा माता का नाम 'श्रीमती ईश्वर देवी नंदा' था। नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने [[लाहौर]] के 'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। गुलज़ारी लाल नंदा ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की। इनका विवाह [[1916]] में 18 वर्ष की उम्र में ही लक्ष्मी देवी के साथ सम्पन्न हो गया था। इनके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री सम्मिलित हुए।
नंदाजी के रूप में विख्यात गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म [[4 जुलाई]], [[1898]] को [[सियालकोट]] में हुआ था, जो अब पश्चिमी [[पाकिस्तान]] का हिस्सा है। इनके पिता का नाम 'बुलाकी राम नंदा' तथा माता का नाम 'श्रीमती ईश्वर देवी नंदा' था। नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने [[लाहौर]] के 'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' तथा [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] में अध्ययन किया। गुलज़ारी लाल नंदा ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की। इनका [[विवाह]] [[1916]] में 18 [[वर्ष]] की उम्र में ही 'लक्ष्मी देवी' के साथ सम्पन्न हो गया था। इनके परिवार में दो [[पुत्र]] और एक [[पुत्री]] सम्मिलित हुए।
 
==व्यावसायिक जीवन==
==व्यावसायिक जीवन==
गुलज़ारी लाल नंदा एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। इस कारण [[भारत]] के स्वाधीनता संग्राम में इनका काफ़ी योगदान रहा। नंदाजी का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था। [[1921]] में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। नंदाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने [[मुम्बई]] के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। [[अहमदाबाद]] की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और [[1922]] से [[1946]] तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। [[1932]] में [[सत्याग्रह आन्दोलन]] के दौरान और [[1942]]-[[1944]] में [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा।
गुलज़ारी लाल नंदा एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। इस कारण [[भारत]] के स्वाधीनता संग्राम में इनका काफ़ी योगदान रहा। नंदाजी का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था। [[1921]] में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। नंदाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने [[मुम्बई]] के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। [[अहमदाबाद]] की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और [[1922]] से [[1946]] तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। [[1932]] में [[सत्याग्रह आन्दोलन]] के दौरान और [[1942]]-[[1944]] में [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा।

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गुलज़ारीलाल नन्दा
पूरा नाम गुलज़ारीलाल नन्दा
जन्म 4 जुलाई, 1898
जन्म भूमि सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान
मृत्यु 15 जनवरी, 1998
पति/पत्नी लक्ष्मी देवी
संतान दो पुत्र और एक पुत्री
नागरिकता भारतीय
पद दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री
कार्य काल 27 मई, 1964 से 9 जून, 1964 और 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी, 1966
शिक्षा स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि
विद्यालय फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
जेल यात्रा सत्याग्रह आन्दोलन (1932), भारत छोड़ो आन्दोलन (1942-1944)
पुरस्कार-उपाधि भारत रत्न, पद्म विभूषण
रचनाएँ सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन।
कार्यक्षेत्र अध्यापक, लेखक, लेबर एसोसिएशन के सचिव

गुलज़ारीलाल नन्दा (जन्म- 4 जुलाई, 1898, सियालकोट, पंजाब, पाकिस्तान; मृत्यु- 15 जनवरी, 1998) भारत के तेरह प्रधानमंत्रियों के अतिरिक्त कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में अब तक के एकमात्र ऐसे व्यक्ति रहे, जिन्होंने इस ज़िम्मेदारी को दो बार निभाया। यह प्रासंगिक ही था कि कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में गुलज़ारी लाल नंदा के व्यक्तित्व और कर्तव्य को भी यहाँ पर प्रस्तुत किया जाता। दरअसल भारत की संवैधानिक परम्परा में यह प्रावधान है कि यदि किसी प्रधानमंत्री की उसके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाए और नया प्रधानमंत्री चुना जाना तत्काल सम्भव न हो तो कार्यवाहक अथवा अंतरिम प्रधानमंत्री की नियुक्ति तब तक के लिए की जा सकती है, जब तक की नया प्रधानमंत्री विधिक रूप से नियुक्त नहीं कर दिया जाता। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार प्रधानमंत्री के पद को रिक्त नहीं रखा जा सकता। कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पित गुलज़ारी लाल नंदा प्रथम बार पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 में कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाए गए। दूसरी बार लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में यह कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने। इनका कार्यकाल दोनों बार उसी समय तक सीमित रहा जब तक की कांग्रेस पार्टी ने अपने नए नेता का चयन नहीं कर लिया।

जन्म एवं परिवार

नंदाजी के रूप में विख्यात गुलज़ारी लाल नंदा का जन्म 4 जुलाई, 1898 को सियालकोट में हुआ था, जो अब पश्चिमी पाकिस्तान का हिस्सा है। इनके पिता का नाम 'बुलाकी राम नंदा' तथा माता का नाम 'श्रीमती ईश्वर देवी नंदा' था। नंदा की प्राथमिक शिक्षा सियालकोट में ही सम्पन्न हुई। इसके बाद उन्होंने लाहौर के 'फ़ोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज' तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। गुलज़ारी लाल नंदा ने कला संकाय में स्नातकोत्तर एवं क़ानून की स्नातक उपाधि प्राप्त की। इनका विवाह 1916 में 18 वर्ष की उम्र में ही 'लक्ष्मी देवी' के साथ सम्पन्न हो गया था। इनके परिवार में दो पुत्र और एक पुत्री सम्मिलित हुए।

व्यावसायिक जीवन

गुलज़ारी लाल नंदा एक राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। इस कारण भारत के स्वाधीनता संग्राम में इनका काफ़ी योगदान रहा। नंदाजी का जीवन आरम्भ से ही राष्ट्र के प्रति समर्पित था। 1921 में उन्होंने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। नंदाजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने मुम्बई के नेशनल कॉलेज में अर्थशास्त्र के व्याख्याता के रूप में अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। अहमदाबाद की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री में यह लेबर एसोसिएशन के सचिव भी रहे और 1922 से 1946 तक का लम्बा समय इन्होंने इस पद पर गुज़ारा। यह श्रमिकों की समस्याओं को लेकर सदैव जागरूक रहे और उनका निदान करने का प्रयास करते रहे। 1932 में सत्याग्रह आन्दोलन के दौरान और 1942-1944 में भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इन्हें जेल भी जाना पड़ा।

राजनीतिक जीवन

नंदाजी मुम्बई की विधानसभा में 1937 से 1939 तक और 1947 से 1950 तक विधायक रहे। इस दौरान उन्होंने श्रम एवं आवास मंत्रालय का कार्यभार मुम्बई सरकार में रहते हुए देखा। 1947 में 'इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की स्थापना हुई और इसका श्रेय नंदाजी को जाता है। मुम्बई सरकार में रहने के दौरान गुलज़ारी लाल नंदा की प्रतिभा को रेखांकित करने के बाद इन्हें कांग्रेस आलाक़मान ने दिल्ली बुला लिया। यह 1950-1951, 1952-1953 और 1960-1963 में भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष पद पर रहे। ऐसे में भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में इनका काफ़ी सहयोग पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने निम्नवत् प्रकार से केन्द्रीय सरकार को सहयोग प्रदान किया-

  • गुलज़ारी लाल नंदा केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में कैबिनेट मंत्री रहे और स्वतंत्र मंत्रालयों का कार्यभार सम्भाला।
  • नंदाजी ने योजना मंत्रालय का कार्यभार सितम्बर 1951 से मई 1952 तक निष्ठापूर्वक सम्भाला।
  • नंदाजी ने योजना आयोग एवं नदी घाटी परियोजनाओं का कार्य मई 1952 से जून 1955 तक देखा।
  • नंदाजी ने योजना, सिंचाई एवं ऊर्जा के मंत्रालयिक कार्यों को अप्रैल 1957 से 1967 तक देखा।
  • नंदाजी ने श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय का कार्य मार्च 1963 से जनवरी 1964 तक सफलतापूर्वक देखा।

कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद पर

नंदाजी ने मंत्रिमण्डल में वरिष्ठतम सहयोगी होने के कारण दो बार कार्यवाहक प्रधानमंत्री का दायित्व सम्भाला। इनका प्रथम कार्यकाल 27 मई, 1964 से 9 जून, 1964 तक रहा, जब पंडिल जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था। दूसरा कार्यकाल 11 जनवरी 1966 से 24 जनवरी, 1966 तक रहा, जब लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में देहान्त हुआ। नंदाजी प्रथम पाँच आम चुनावों में लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। गुलज़ारी लाल नंदा ने प्रत्येक विभाग में समर्पित भाव से कार्य किया और जनता ने इन्हें सराहा। यह गांधीवादी विचारधारा के साथ जुड़े रहे थे और लोकतांत्रिक मूल्यों में इनकी गहरी आस्था थी। नंदाजी धर्मनिरपेक्ष एवं समाजवादी समाज की कल्पना करते थे। वह आजीवन ग़रीबों की सहायता के लिए प्रस्तुत रहे। गुलज़ारी लाल नंदा वृद्धावस्था के बावज़ूद 'भारत सेवक समाज' को अपनी सेवाएँ प्रदान करते रहे। यह संगठन उन्होंने स्वयं बनाया था और वह आजीवन इसकी देखरेख करते रहे। नंदाजी ने नैतिक मूल्यों पर आधारित राजनीति की थी। उम्र के अन्तिम पड़ाव पर पहुँचने के बाद उन्होंने राजनीति में हुए परिवर्तन को देश के लिए घातक बताया। राजनीति में अपराधी तत्वों का सक्रिय होना इन्हें चिंतित करता था। इस सम्बन्ध में उन्होंने कहा था कि अपराधिक स्तर की राजनीति कैंसर के समान घातक साबित होगी।

लेखन कार्य

नंदाजी ने एक लेखक की भूमिका अदा करते हुए कई पुस्तकों की रचना की। जिनके नाम इस प्रकार हैं- सम आस्पेक्ट्स ऑफ़ खादी, अप्रोच टू द सेकंड फ़ाइव इयर प्लान, गुरु तेगबहादुर, संत एंड सेवियर, हिस्ट्री ऑफ़ एडजस्टमेंट इन द अहमदाबाद टेक्सटाल्स, फॉर ए मौरल रिवोल्युशन तथा सम बेसिक कंसीड्रेशन।

पुरस्कार

गुलज़ारीलाल नन्दा को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न (1997) और दूसरा सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान 'पद्म विभूषण' प्रदान किया गया।

निधन

नंदा दीर्घायु हुए और 100 वर्ष की अवस्था में इनका निधन 15 जनवरी, 1998 को हुआ। इन्हें एक स्वच्छ छवि वाले गांधीवादी राजनेता के रूप में सदैव याद रखा जाएगा।


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