"असुर": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
*असु=प्राण, र=वाला (प्राणवान् अथवा शक्तिमान) बाद में धीरे-धीरे यह भौतिक शक्ति का प्रतीक हो गया। [[ऋग्वेद]] में 'असुर' वरुण तथा दूसरे देवों के [[विशेषण]] रूप में व्यवहृत हुआ है, जिसमें उनके रहस्यमय गुणों का पता लगाता है। किंतु परवर्ती [[युग]] में असुर का प्रयोग देवों (सुरों) के शत्रु रूप में प्रसिद्ध हो गया। असुरदेवों के बड़े भ्राता हैं एवं दोनों प्रजापति के पुत्र हैं।  
'''असुर''' [[देवता|देवताओं]] के सबसे प्रबल शत्रुओं में गिने जाते थे। पौराणिक धर्म ग्रंथों और [[हिन्दू]] मान्यताओं के अनुसार भी असुरों और देवों में सदा युद्ध होता रहा। असुरों ने [[भारत]] में अनेकों वर्ष तक शासन किया था। इसके बाद उन्होंने [[ईरान]] के निकटवर्ती राज्यों पर विजय प्राप्त की और वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। [[ईसाई|ईसाईयों]] की धार्मिक पुस्तक '[[बाईबल]]' मे भी असुर राजाओं का उल्लेख यहुदियों को क़ैद कर उन्हें दास बनाने के रूप में हुआ है। भारत में भी जाति प्रथा को आरम्भ करने वाले असुर थे। असुर लोग आर्य धर्म के विरोधी और निरंकुश व्यवस्था को अपनाने वाले थे।
*असुरों ने लगातार देवों के साथ युद्ध किया और प्राय: विजयी होते रहे। उनमें से कुछ ने तो सारे विश्व पर अपना साम्राज्य स्थापित किया, जब तक कि उनका संहार [[इन्द्र]], [[विष्णु]], [[शिव]] आदि देवों ने नहीं किया। देवों के शत्रु होने के कारण उन्हें दुष्ट दैत्य कहा गया है, किंतु सामान्य रूप से वे दुष्ट नहीं थे। उनके गुरु [[भृगु|भृगुपुत्र]] शुक्र थे जो देवगुरु [[बृहस्पति]] के तुल्य ही ज्ञानी और राजनयिक थे।  
{{tocright}}
*[[महाभारत]] एवं प्रचलित दूसरी कथाओं के वर्णन में असुरों के गुणों पर प्रकाश डाला गया है। साधारण विश्वास में वे मानव से श्रेष्ठ गुणों वाले विद्याधरों की कोटि में आते हैं। [[कथासरित्सागर]] की आठवीं तरङ्ग में एक प्रेम पूर्ण कथा में किसी में असुर का वर्णन नायक के साथ हुआ है।  
==असुर का अर्थ==
*[[संस्कृत]] के धार्मिक ग्रंथों में असुर, दैत्य एवं दानव में कोई अंतर नहीं दिखाया गया है, किंतु प्रारम्भिक अवस्था में 'दैत्य एवं दानव' असुर जाति के दो विभाग समझे गये थे। दैत्य '[[दिति]]' के पुत्र एवं दानव 'दनु' के पुत्र थे।  
असुर शब्द 'असु' अर्थात 'प्राण', और '' अर्थात 'वाला' (प्राणवान् अथवा शक्तिमान) से मिलकर बना है। बाद के समय में धीरे-धीरे असुर भौतिक शक्ति का प्रतीक हो गया। [[ऋग्वेद]] में 'असुर' [[वरुण देवता|वरुण]] तथा दूसरे देवों के [[विशेषण]] रूप में व्यवहृत हुआ है, जिसमें उनके रहस्यमय गुणों का पता लगाता है। किंतु परवर्ती [[युग]] में असुर का प्रयोग देवों (सुरों) के शत्रु रूप में प्रसिद्ध हो गया। असुर देवों के बड़े भ्राता हैं एवं दोनों प्रजापति के पुत्र हैं।
*देवताओं के प्रतिद्वन्द्वी रूप में 'असुर' का अर्थ होगा- जो सुर नहीं है;<ref>विरोध में नञ्- तत्पुरुष</ref> अथवा जिसके पास सुर नहीं है; उनके पर्याय है: 
====देवताओं से संघर्ष====
असुरों ने लगातार देवों के साथ युद्ध किया और इनमें से कई युद्धों में वे प्राय: विजयी भी होते रहे। उनमें से कुछ ने तो सारे विश्व पर अपना साम्राज्य स्थापित किया, जब तक कि उनका संहार [[इन्द्र]], [[विष्णु]], [[शिव]] आदि देवों ने नहीं किया। देवों के शत्रु होने के कारण उन्हें ही असुरों ही दुष्ट दैत्य कहा गया है, किंतु सामान्य रूप से वे दुष्ट नहीं थे। उनके गुरु [[भृगु]] के पुत्र [[शुक्राचार्य]] थे, जो देवगुरु [[बृहस्पति]] के तुल्य ही ज्ञानी और राजनयिक थे।
==ग्रंथों में उल्लेख==
[[महाभारत]] एवं अन्य प्रचलित दूसरी कथाओं के वर्णन में असुरों के गुणों पर प्रकाश डाला गया है। साधारण विश्वास में वे मानव से श्रेष्ठ गुणों वाले विद्याधरों की कोटि में आते हैं। '[[कथासरित्सागर]]' की आठवीं तरङ्ग में एक प्रेम पूर्ण कथा में किसी असुर का वर्णन नायक के साथ हुआ है। [[संस्कृत]] के धार्मिक ग्रंथों में असुर, दैत्य एवं दानव में कोई अंतर नहीं दिखाया गया है, किंतु प्रारम्भिक अवस्था में दैत्य एवं दानव असुर जाति के दो विभाग समझे गये थे। दैत्य '[[दिति]]' के पुत्र एवं दानव 'दनु' के पुत्र थे।
====अन्य पर्याय====
देवताओं के प्रतिद्वन्द्वी रूप में 'असुर' का अर्थ होगा- "जो सुर नहीं है"<ref>विरोध में नञ्- तत्पुरुष</ref> अथवा "जिसके पास सुर नहीं है"। असुरों के अन्य पर्याय निम्नलिखित हैं-
#दैत्य  
#दैत्य  
#दैतेय  
#दैतेय  
पंक्ति 19: पंक्ति 24:
अप्रतिग्रहणात्तस्या दैतेयाश्चासुरा: स्मृता:॥</poem>
अप्रतिग्रहणात्तस्या दैतेयाश्चासुरा: स्मृता:॥</poem>


{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
|आधार=  
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
[[Category:रामायण]]
==संबंधित लेख==
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक चरित्र]][[Category:रामायण]][[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

10:40, 12 जनवरी 2013 का अवतरण

असुर देवताओं के सबसे प्रबल शत्रुओं में गिने जाते थे। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भी असुरों और देवों में सदा युद्ध होता रहा। असुरों ने भारत में अनेकों वर्ष तक शासन किया था। इसके बाद उन्होंने ईरान के निकटवर्ती राज्यों पर विजय प्राप्त की और वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित किया। ईसाईयों की धार्मिक पुस्तक 'बाईबल' मे भी असुर राजाओं का उल्लेख यहुदियों को क़ैद कर उन्हें दास बनाने के रूप में हुआ है। भारत में भी जाति प्रथा को आरम्भ करने वाले असुर थे। असुर लोग आर्य धर्म के विरोधी और निरंकुश व्यवस्था को अपनाने वाले थे।

असुर का अर्थ

असुर शब्द 'असु' अर्थात 'प्राण', और 'र' अर्थात 'वाला' (प्राणवान् अथवा शक्तिमान) से मिलकर बना है। बाद के समय में धीरे-धीरे असुर भौतिक शक्ति का प्रतीक हो गया। ऋग्वेद में 'असुर' वरुण तथा दूसरे देवों के विशेषण रूप में व्यवहृत हुआ है, जिसमें उनके रहस्यमय गुणों का पता लगाता है। किंतु परवर्ती युग में असुर का प्रयोग देवों (सुरों) के शत्रु रूप में प्रसिद्ध हो गया। असुर देवों के बड़े भ्राता हैं एवं दोनों प्रजापति के पुत्र हैं।

देवताओं से संघर्ष

असुरों ने लगातार देवों के साथ युद्ध किया और इनमें से कई युद्धों में वे प्राय: विजयी भी होते रहे। उनमें से कुछ ने तो सारे विश्व पर अपना साम्राज्य स्थापित किया, जब तक कि उनका संहार इन्द्र, विष्णु, शिव आदि देवों ने नहीं किया। देवों के शत्रु होने के कारण उन्हें ही असुरों ही दुष्ट दैत्य कहा गया है, किंतु सामान्य रूप से वे दुष्ट नहीं थे। उनके गुरु भृगु के पुत्र शुक्राचार्य थे, जो देवगुरु बृहस्पति के तुल्य ही ज्ञानी और राजनयिक थे।

ग्रंथों में उल्लेख

महाभारत एवं अन्य प्रचलित दूसरी कथाओं के वर्णन में असुरों के गुणों पर प्रकाश डाला गया है। साधारण विश्वास में वे मानव से श्रेष्ठ गुणों वाले विद्याधरों की कोटि में आते हैं। 'कथासरित्सागर' की आठवीं तरङ्ग में एक प्रेम पूर्ण कथा में किसी असुर का वर्णन नायक के साथ हुआ है। संस्कृत के धार्मिक ग्रंथों में असुर, दैत्य एवं दानव में कोई अंतर नहीं दिखाया गया है, किंतु प्रारम्भिक अवस्था में दैत्य एवं दानव असुर जाति के दो विभाग समझे गये थे। दैत्य 'दिति' के पुत्र एवं दानव 'दनु' के पुत्र थे।

अन्य पर्याय

देवताओं के प्रतिद्वन्द्वी रूप में 'असुर' का अर्थ होगा- "जो सुर नहीं है"[1] अथवा "जिसके पास सुर नहीं है"। असुरों के अन्य पर्याय निम्नलिखित हैं-

  1. दैत्य
  2. दैतेय
  3. दनुज
  4. इन्द्रारि
  5. दानव
  6. शुक्रशिष्य
  7. दितिसुत
  8. पूर्वदेव
  9. सुरद्विट्
  10. देवरिपु
  11. देवारि
  • रामायण में असुर की उत्पत्ति और प्रकार से बतायी गयी है:

सुराप्रतिग्रहाद् देवा: सुरा[2] इत्यभिविश्रुता:।
अप्रतिग्रहणात्तस्या दैतेयाश्चासुरा: स्मृता:॥


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विरोध में नञ्- तत्पुरुष
  2. मादक तत्त्व का उपयोग करने के कारण देवता लोग सुर कहलाये, किंतु ऐसा न करने से दैतेय लोग असुर कहलाये।

संबंधित लेख