"यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त": अवतरणों में अंतर
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यतीन्द्र मोहन ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। [[1911]] में वे [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हुए। यह सम्पर्क बढ़ता गया। [[1920]] की कोलकाता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया। किसानों और मजदूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था। | यतीन्द्र मोहन ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। [[1911]] में वे [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हुए। यह सम्पर्क बढ़ता गया। [[1920]] की कोलकाता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया। किसानों और मजदूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था। | ||
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[[1921]] में सिलहट में चाय बाग़ानों के मजदूरों के शोषण के विरुद्ध यतीन्द्र मोहन के प्रयत्न से बाग़ानों के साथ-साथ रेलवे और जहाज़ों में भी हड़ताल हो गई थी। इस पर उन्हें गिररफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। स्वराज पार्टी बनने पर यतीन्द्र उसकी ओर से बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद सम्भाला। अपने जनहित के कार्यों से वे इतने लोकप्रिय बन गये थे कि उन्हें पांच बार [[कोलकाता]] का मेयर चुना गया। [[पंडित मोतीलाल नेहरू]] की अध्यक्षता में हुए [[1928]] के कोलकाता अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त ही थे। [[ | [[1921]] में सिलहट में चाय बाग़ानों के मजदूरों के शोषण के विरुद्ध यतीन्द्र मोहन के प्रयत्न से बाग़ानों के साथ-साथ रेलवे और जहाज़ों में भी हड़ताल हो गई थी। इस पर उन्हें गिररफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। स्वराज पार्टी बनने पर यतीन्द्र उसकी ओर से बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद सम्भाला। अपने जनहित के कार्यों से वे इतने लोकप्रिय बन गये थे कि उन्हें पांच बार [[कोलकाता]] का मेयर चुना गया। [[पंडित मोतीलाल नेहरू]] की अध्यक्षता में हुए [[1928]] के कोलकाता अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त ही थे। रंगून (अब [[यांगून]]) में उन्होंने बर्मा (अब [[म्यांमार]]) को [[भारत]] से अलग करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में एक भाषण दिया तो राजद्रोह का आरोप लगाकर वे फिर से गिरफ़्तार कर लिये गए। | ||
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[[1930]] में [[कांग्रेस]] को सरकार ने गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया। यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। लेकिन सरकार ने उन्हें पहले ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उनकी पत्नी नेल्लि सेन गुप्त भी गिरफ़्तार की गईं। [[1931]] में उनका नाम पुन: अध्यक्ष पद के लिए लिया गया था, किन्तु उन्होंने [[सरदार पटेल]] के पक्ष में कराची कांग्रेस की अध्यक्षता से अपना नाम वापस ले लिया। 1931 में वे स्वास्थ्य सुधार के लिए विदेश गए, लेकिन [[1932]] में स्वदेश लौटते ही पुन: गिरफ़्तार कर लिये गए। | [[1930]] में [[कांग्रेस]] को सरकार ने गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया। यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। लेकिन सरकार ने उन्हें पहले ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उनकी पत्नी नेल्लि सेन गुप्त भी गिरफ़्तार की गईं। [[1931]] में उनका नाम पुन: अध्यक्ष पद के लिए लिया गया था, किन्तु उन्होंने [[सरदार पटेल]] के पक्ष में कराची कांग्रेस की अध्यक्षता से अपना नाम वापस ले लिया। 1931 में वे स्वास्थ्य सुधार के लिए विदेश गए, लेकिन [[1932]] में स्वदेश लौटते ही पुन: गिरफ़्तार कर लिये गए। |
07:46, 22 जनवरी 2013 का अवतरण
यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त (जन्म- 22 फ़रवरी, 1885 ई.; मृत्यु- 22 जुलाई, 1933 ई.) भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायकों में से एक थे। इन्होंने 1909 ई. में इंग्लैंड से अपनी बैरिस्टरी पूर्ण की थी। इन्होंने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत शुरू की और साथ ही मजदूरों के हित के लिए सदैव कार्य करते रहे। यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त को पाँच बार कोलकाता का मेयर चुना गया था। इन्होंने एक अंग्रेज़ युवती से विवाह किया था, जिसने देश को स्वाधीन कराने कि लिए अपने पति के समान ही जेल की सजाएँ भोगीं।
जन्म तथा शिक्षा
स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख नायक यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त का जन्म 22 फ़रवरी, 1885 ई. को चटगांव में हुआ था। उनके पिता जात्रमोहन सेन गुप्त बड़े लोकप्रिय व्यक्ति तथा बंगाल विधान परिषद के सदस्य थे। यतीन्द्र मोहन बंगाल में शिक्षा पूरी करने के बाद 1904 ई. में इंग्लैंड गए और 1909 ई. में बैरिस्टर बनकर स्वदेश वापस आए। भारत आने से पहले उन्होंने 'नेल्लि ग्रे' नाम की एक अंग्रेज़ लड़की से विवाह कर लिया था। समय आने पर श्रीमती नेल्लि सेन गुप्त ने भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख भाग लिया।
व्यावसायिक जीवन
यतीन्द्र मोहन ने कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत और रिपन लॉ कॉलेज में अध्यापक के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन आरम्भ किया। 1911 में वे कांग्रेस में सम्मिलित हुए। यह सम्पर्क बढ़ता गया। 1920 की कोलकाता कांग्रेस में उन्होंने प्रमुख रूप से भाग लिया। किसानों और मजदूरों को संगठित करने की ओर उनका ध्यान विशेष रूप से था।
जेल यात्राएँ
1921 में सिलहट में चाय बाग़ानों के मजदूरों के शोषण के विरुद्ध यतीन्द्र मोहन के प्रयत्न से बाग़ानों के साथ-साथ रेलवे और जहाज़ों में भी हड़ताल हो गई थी। इस पर उन्हें गिररफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया। स्वराज पार्टी बनने पर यतीन्द्र उसकी ओर से बंगाल विधान परिषद के सदस्य चुने गए। 1925 में उन्होंने कोलकाता के मेयर का पद सम्भाला। अपने जनहित के कार्यों से वे इतने लोकप्रिय बन गये थे कि उन्हें पांच बार कोलकाता का मेयर चुना गया। पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुए 1928 के कोलकाता अधिवेशन के स्वागताध्यक्ष यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त ही थे। रंगून (अब यांगून) में उन्होंने बर्मा (अब म्यांमार) को भारत से अलग करने के सरकारी प्रस्ताव के विरोध में एक भाषण दिया तो राजद्रोह का आरोप लगाकर वे फिर से गिरफ़्तार कर लिये गए।
अध्यक्ष का पद
1930 में कांग्रेस को सरकार ने गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया। यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष चुने गए। लेकिन सरकार ने उन्हें पहले ही उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। उनकी पत्नी नेल्लि सेन गुप्त भी गिरफ़्तार की गईं। 1931 में उनका नाम पुन: अध्यक्ष पद के लिए लिया गया था, किन्तु उन्होंने सरदार पटेल के पक्ष में कराची कांग्रेस की अध्यक्षता से अपना नाम वापस ले लिया। 1931 में वे स्वास्थ्य सुधार के लिए विदेश गए, लेकिन 1932 में स्वदेश लौटते ही पुन: गिरफ़्तार कर लिये गए।
कांग्रेस अधिवेशन
1933 में कोलकाता में कांग्रेस का अधिवेशन प्रस्तावित था, जिसकी अध्यक्षता महामना मदन मोहन मालवीय जी को करनी थी, लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें मार्ग में ही गिरफ़्तार कर लिया और कोलकाता जाने से रोक दिया। इसके बाद पुलिस के सारे बन्धनों को तोड़ते हुए श्रीमती नेल्लि सेन गुप्त ने इस अधिवेशन की अध्यक्षता की। परन्तु वे अपने भाषण के कुछ शब्द ही बोल पाई थीं कि उन्हें भी गिरफ़्तार कर लिया गया।
देहान्त
यतीन्द्र मोहन सेन गुप्त को अस्वस्थ अवस्था में ही जेल में बन्द रखा गया था। 22 जुलाई, 1933 को रांची में उनका देहान्त हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 669 |
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