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*भूपरिक्रमा [[विद्यापति]] का पहला ग्रंथ माना जाता है।
'''भूपरिक्रमा''' [[विद्यापति]] का पहला ग्रंथ माना जाता है।
*भूपरिक्रमा नामक एक अत्यन्त प्रभावकारी ग्रन्थ की रचना महाकवि विद्यापति ठाकुर ने महाराज देवसिंह की आज्ञा से की थी।  
*भूपरिक्रमा नामक एक अत्यन्त प्रभावकारी ग्रन्थ की रचना महाकवि विद्यापति ठाकुर ने महाराज देवसिंह की आज्ञा से की थी।  
*इस ग्रन्थ में बलदेवजी द्वारा की गयी भूपरिक्रमा का वर्णन है और नैमिषारण्य से [[मिथिला]] तक के सभी तीर्थ स्थलों का वर्णन है।  
*इस ग्रन्थ में बलदेवजी द्वारा की गयी भूपरिक्रमा का वर्णन है और नैमिषारण्य से [[मिथिला]] तक के सभी तीर्थ स्थलों का वर्णन है।  
*भूपरिक्रमा को महाकवि का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है।
*इनवार वंशीय जिन राजा या रानियों के आदेश से कविश्रेष्ठ विद्यापति ठाकुर ने ग्रन्थ रचना की, उनमें सबसे वयोवृद्ध देवसिंह ही थे।  
*इनवार वंशीय जिन राजा या रानियों के आदेश से कविश्रेष्ठ विद्यापति ठाकुर ने ग्रन्थ रचना की, उनमें सबसे वयोवृद्ध देवसिंह ही थे।  
*[[भाषा]] और शैली की दृष्टि से भी मालूम होता है कि यह कवि की प्रथम रचना है।<ref>{{cite web |url=http://vimisahitya.wordpress.com/2007/10/29/vidyapati/|title=विद्यापति|accessmonthday=2 जून|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
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भूपरिक्रमा विद्यापति का पहला ग्रंथ माना जाता है।

  • भूपरिक्रमा नामक एक अत्यन्त प्रभावकारी ग्रन्थ की रचना महाकवि विद्यापति ठाकुर ने महाराज देवसिंह की आज्ञा से की थी।
  • इस ग्रन्थ में बलदेवजी द्वारा की गयी भूपरिक्रमा का वर्णन है और नैमिषारण्य से मिथिला तक के सभी तीर्थ स्थलों का वर्णन है।
  • इनवार वंशीय जिन राजा या रानियों के आदेश से कविश्रेष्ठ विद्यापति ठाकुर ने ग्रन्थ रचना की, उनमें सबसे वयोवृद्ध देवसिंह ही थे।
  • भाषा और शैली की दृष्टि से भी मालूम होता है कि यह कवि की प्रथम रचना है।[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. विद्यापति (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 2 जून, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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