"जानकी वल्लभ शास्त्री": अवतरणों में अंतर
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जानकी वल्लभ शास्त्री ने मात्र 11 वर्ष की वय में ही इन्होंने [[1927]] में बिहार-[[उड़ीसा]] की प्रथमा परीक्षा (सरकारी [[संस्कृत]] परीक्षा) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शास्त्री की उपाधि 16 वर्ष की आयु में प्राप्तकर ये [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] चले गए। ये वहां [[1932]] से [[1938]] तक रहे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा तो संस्कृत में ही हुई थी, लेकिन अपने श्रम से उन्होंने [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] का प्रभूत ज्ञान प्राप्त किया। वह [[रवींद्रनाथ टैगोर|रवींद्रनाथ]] के गीत सुनते थे और उन्हें गाते भी थे। | जानकी वल्लभ शास्त्री ने मात्र 11 वर्ष की वय में ही इन्होंने [[1927]] में बिहार-[[उड़ीसा]] की प्रथमा परीक्षा (सरकारी [[संस्कृत]] परीक्षा) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शास्त्री की उपाधि 16 वर्ष की आयु में प्राप्तकर ये [[काशी हिन्दू विश्वविद्यालय]] चले गए। ये वहां [[1932]] से [[1938]] तक रहे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा तो संस्कृत में ही हुई थी, लेकिन अपने श्रम से उन्होंने [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] का प्रभूत ज्ञान प्राप्त किया। वह [[रवींद्रनाथ टैगोर|रवींद्रनाथ]] के गीत सुनते थे और उन्हें गाते भी थे। | ||
==सम्मान और पुरस्कार== | |||
== | * राजेंद्र शिखर पुरस्कार | ||
* भारत भारती पुरस्कार | |||
* शिव सहाय पूजन पुरस्कार | |||
==रचनाएँ== | |||
जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत 'किसने बांसुरी बजाई' बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें [[जयशंकर प्रसाद|प्रसाद]], [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|निराला]], [[सुमित्रानंदन पंत|पंत]] और [[महादेवी वर्मा|महादेवी]] के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है, लेकिन सचाई यह है कि वे [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] और श्रीधर पाठक द्वारा प्रवर्तित और विकसित उस स्वच्छंद धारा के अंतिम कवि थे, जो छायावादी अतिशय लाक्षणिकता और भावात्मक रहस्यात्मकता से मुक्त थी। शास्त्रीजी ने कहानियाँ, काव्य-नाटक, आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास और आलोचना भी लिखी है। उनका उपन्यास 'कालिदास' भी बृहत प्रसिद्ध हुआ था। | जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत 'किसने बांसुरी बजाई' बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें [[जयशंकर प्रसाद|प्रसाद]], [[सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला|निराला]], [[सुमित्रानंदन पंत|पंत]] और [[महादेवी वर्मा|महादेवी]] के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है, लेकिन सचाई यह है कि वे [[भारतेंदु हरिश्चंद्र|भारतेंदु]] और श्रीधर पाठक द्वारा प्रवर्तित और विकसित उस स्वच्छंद धारा के अंतिम कवि थे, जो छायावादी अतिशय लाक्षणिकता और भावात्मक रहस्यात्मकता से मुक्त थी। शास्त्रीजी ने कहानियाँ, काव्य-नाटक, आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास और आलोचना भी लिखी है। उनका उपन्यास 'कालिदास' भी बृहत प्रसिद्ध हुआ था। | ||
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13:14, 29 जनवरी 2013 का अवतरण
जानकी वल्लभ शास्त्री
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पूरा नाम | जानकी वल्लभ शास्त्री |
जन्म | 5 फरवरी 1916 |
जन्म भूमि | गया, बिहार |
मृत्यु | 7 अप्रैल 2011 |
मृत्यु स्थान | मुज़फ्फरपुर, बिहार |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | राधा, काकली, कालिदास आदि |
भाषा | हिन्दी |
पुरस्कार-उपाधि | राजेंद्र शिखर पुरस्कार, भारत भारती पुरस्कार, शिव सहाय पूजन पुरस्कार |
प्रसिद्धि | कवि, लेखक |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत 'किसने बांसुरी बजाई' बहुत लोकप्रिय हुआ। |
अद्यतन | 15:07, 10 अप्रॅल 2012 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
जानकी वल्लभ शास्त्री (अंग्रेज़ी: Janaki Ballabh Shashtri, जन्म: 5 फरवरी 1916 - मृत्यु: 7 अप्रैल 2011) प्रसिद्ध कवि थे। जानकी वल्लभ शास्त्री उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित भी किया है उन थोड़े-से कवियों में रहे हैं, जिन्हें हिंदी कविता के पाठकों से बहुत मान-सम्मान मिला है। आचार्य का काव्य संसार बहुत ही विविध और व्यापक है। प्रारंभ में उन्होंने संस्कृत में कविताएँ लिखीं। फिर महाकवि निराला की प्रेरणा से हिंदी में आए।
जन्म
जानकी वल्लभ शास्त्री का जन्म 5 फरवरी 1916 में बिहार के मैगरा गाँव में हुआ था। इनके पिता स्व. रामानुग्रह शर्मा था। उन्हें पशुओं का पालन करना बहुत पसंद था। उनके यहाँ दर्जनों गउएं, सांड, बछड़े तथा बिल्लियाँ और कुत्ते थे। पशुओं से उन्हें इतना प्रेम था कि गाय क्या, बछड़ों को भी बेचते नहीं थे और उनके मरने पर उन्हें अपने आवास के परिसर में दफ़न करते थे। उनका दाना-पानी जुटाने में उनका परेशान रहना स्वाभाविक था।
शिक्षा
जानकी वल्लभ शास्त्री ने मात्र 11 वर्ष की वय में ही इन्होंने 1927 में बिहार-उड़ीसा की प्रथमा परीक्षा (सरकारी संस्कृत परीक्षा) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शास्त्री की उपाधि 16 वर्ष की आयु में प्राप्तकर ये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए। ये वहां 1932 से 1938 तक रहे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा तो संस्कृत में ही हुई थी, लेकिन अपने श्रम से उन्होंने अंग्रेज़ी और बांग्ला का प्रभूत ज्ञान प्राप्त किया। वह रवींद्रनाथ के गीत सुनते थे और उन्हें गाते भी थे।
सम्मान और पुरस्कार
- राजेंद्र शिखर पुरस्कार
- भारत भारती पुरस्कार
- शिव सहाय पूजन पुरस्कार
रचनाएँ
जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत 'किसने बांसुरी बजाई' बहुत लोकप्रिय हुआ। प्रो. नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि कहा है, लेकिन सचाई यह है कि वे भारतेंदु और श्रीधर पाठक द्वारा प्रवर्तित और विकसित उस स्वच्छंद धारा के अंतिम कवि थे, जो छायावादी अतिशय लाक्षणिकता और भावात्मक रहस्यात्मकता से मुक्त थी। शास्त्रीजी ने कहानियाँ, काव्य-नाटक, आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास और आलोचना भी लिखी है। उनका उपन्यास 'कालिदास' भी बृहत प्रसिद्ध हुआ था।
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निधन
जानकी वल्लभ शास्त्री का निधन 7 अप्रैल 2011 में हुआ था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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