"विघ्नेश्वर अष्टविनायक": अवतरणों में अंतर

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'''विघ्नेश्वर अष्टविनायक''' का मंदिर कुकड़ी नदी के किनारे ओझर नामक गाँव में स्थित है। यह भगवान [[गणेश]] के '[[अष्टविनायक]]' पीठों में से एक है। अन्य मंदिरों की तरह ही विघ्नेश्वर का मंदिर भी पूर्वमुखी है और यहाँ एक दीपमाला भी है, जिसके पास द्वारपालक हैं। मंदिर की मूर्ति पूर्वमुखी है और साथ ही सिन्दूर तथा तेल से संलेपित है। इसकी आँखों और नाभि में [[हीरा]] जड़ा है, जो एक सुंदर दृश्य बनाता है।
'''विघ्नेश्वर अष्टविनायक''' का मंदिर [[महाराष्ट्र]] में कुकड़ी नदी के किनारे ओझर नामक गाँव में स्थित है। यह भगवान [[गणेश]] के '[[अष्टविनायक]]' पीठों में से एक है। अन्य मंदिरों की तरह ही विघ्नेश्वर का मंदिर भी पूर्वमुखी है और यहाँ एक दीपमाला भी है, जिसके पास द्वारपालक हैं। मंदिर की मूर्ति पूर्वमुखी है और साथ ही सिन्दूर तथा तेल से संलेपित है। इसकी [[आँख|आँखों]] और नाभि में [[हीरा]] जड़ा हुआ है, जो एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।
==मान्यता==
==मान्यता==
इस मंदिर के नामकरण के पीछे माना जाता है कि विघ्नेश्वर नामक एक [[दैत्य]] का वध करने के कारण ही इसका नाम 'विघ्नेश्वर विनायक' हुआ था। तभी से यहाँ भगवान श्री गणेश सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले माने जाते हैं। एक अन्य कथानुसार अभयदान मांगते समय विघनसुर दैत्य की प्रार्थना थी कि गणेशजी के नाम के पहले उसका भी नाम लिया जाए, इसलिए गणपति को विघ्नहर्ता या विघ्नेश्वर का नाम यहीं से मिला।
इस मंदिर के नामकरण के पीछे माना जाता है कि विघ्नेश्वर नामक एक [[दैत्य]] का वध करने के कारण ही इसका नाम 'विघ्नेश्वर विनायक' हुआ था। तभी से यहाँ भगवान श्री गणेश सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले माने जाते हैं। एक अन्य कथानुसार अभयदान मांगते समय विघनसुर दैत्य की प्रार्थना थी कि गणेशजी के नाम के पहले उसका भी नाम लिया जाए, इसलिए गणपति को विघ्नहर्ता या विघ्नेश्वर का नाम यहीं से मिला।
 
====मंदिर तथा मूर्ति====
भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर [[पुणे]]-[[नासिक]] महामार्ग पर ओझर नाम के गांव मे है। मंदिर चारों पक्षों पर ऊँची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है और उसका शिखर सोने से निर्मित है। यह मंदिर कुकड़ी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का मुख पूरब की ओर है और वह पत्थर कि मजबूत दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर का बाहरी कक्ष 20 फुट लंबा है और अंदर का कक्ष 10 फुट लंबा है। मंदिर में स्थापित मूर्ति की सूँड़ बायीं ओर है और इसकी आँखों और नाभि में हीरे जड़े हैं। रिद्धि और सिद्धि कि मूर्तियाँ गणेशजी के दोनो तरफ़ रखी हुई हैं। कहा जाता है कि मंदिर का शीर्ष सोने का बना है और इसे चिमाजी अप्पा ने पुर्तग़ाली शासकों को हराने के बाद निर्मित करवाया था। मंदिर सन 1785 के आस-पास बना था। कथा के हिसाब से इंद्र देव ने राजा अभिनंदन की पूजा मे विघ्न डालने के लिये एक विघनसुर नामक दानव का निर्माण किया। किंतु वह दानव एक कदम आगे गया और उसने सभी वैदिक और धार्मिक कृत्यों को नष्ट कर दिया। तब भगवान गणेश ने भक्तों की प्रार्थना पूर्ण करने के लिये उसे हराया। कथानुसार हारने के बाद दानव ने गणेशजी से दया कि प्रार्थना की और गणेश जी ने उसकी प्रार्थना मान ली। लेकीन एक शर्त रख दी कि जहाँ कहीं भी गणेशजी की [[पूजा]] हो राही होगी, वहाँ विघनसुर नहीं जायेगा। दानव ने शर्त मान ली और गणेशजी से प्रार्थना कि की गणेशजी के नाम के साथ उसका नाम भी जोड़ा जाये। तभी से गणेश का नाम 'विघ्नहर' पडा। ओझर के गणेशजी को श्री विघ्नेश्वर विनायक के नाम से जाना जाता है।
भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर [[पुणे]]-[[नासिक]] महामार्ग पर ओझर नाम के गांव मे है। मंदिर चारों पक्षों पर ऊँची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है और उसका शिखर [[सोना|सोने]] से निर्मित है। यह मंदिर कुकड़ी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का मुख पूरब की ओर है और वह पत्थर की मजबूत दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर का बाहरी कक्ष 20 फुट लंबा है और अंदर का कक्ष 10 फुट लंबा है। मंदिर में स्थापित मूर्ति की सूँड़ बायीं ओर है और इसकी आँखों और नाभि में हीरे जड़े हैं। रिद्धि और सिद्धि कि मूर्तियाँ गणेशजी के दोनो तरफ़ रखी हुई हैं। कहा जाता है कि मंदिर का शीर्ष सोने का बना है और इसे चिमाजी अप्पा ने [[पुर्तग़ाली]] शासकों को हराने के बाद निर्मित करवाया था। मंदिर सन 1785 के आस-पास बना था। कथा के हिसाब से [[इंद्र]] ने राजा अभिनंदन की [[पूजा]] मे विघ्न डालने के लिये एक विघनसुर नामक दानव का निर्माण किया था। किंतु वह दानव एक कदम आगे गया और उसने सभी वैदिक और धार्मिक कृत्यों को नष्ट कर दिया। तब भगवान गणेश ने भक्तों की प्रार्थना पूर्ण करने के लिये उसे हराया। कथानुसार हारने के बाद दानव ने गणेशजी से दया कि प्रार्थना की और गणेश जी ने उसकी प्रार्थना मान ली। लेकीन एक शर्त रख दी कि जहाँ कहीं भी गणेशजी की पूजा हो रही होगी, वहाँ विघनसुर नहीं जायेगा। दानव ने शर्त मान ली और गणेशजी से प्रार्थना की कि गणेशजी के नाम के साथ उसका नाम भी जोड़ा जाये। तभी से गणेश का नाम 'विघ्नहर' पडा। ओझर के गणेशजी को श्री विघ्नेश्वर विनायक के नाम से जाना जाता है।<ref>{{cite web |url= http://hi.bappamorya.com/GaneshotsavSummary.aspx|title=गणेशोत्सव सार|accessmonthday=31 जनवरी|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>


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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/864313.cms जननायक गणनायक अष्टविनायक]
*[http://ganjawalavishal.blogspot.in/2012/09/blog-post_28.html विघ्नेश्वर गणेश मंदिर]
*[http://astrobix.com/hindudharm/post/shree-ashtavinayak-yatra-shri-siddhivinayak-siddhatek.aspx श्री अष्टविनायक]
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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10:23, 31 जनवरी 2013 का अवतरण

विघ्नेश्वर अष्टविनायक का मंदिर महाराष्ट्र में कुकड़ी नदी के किनारे ओझर नामक गाँव में स्थित है। यह भगवान गणेश के 'अष्टविनायक' पीठों में से एक है। अन्य मंदिरों की तरह ही विघ्नेश्वर का मंदिर भी पूर्वमुखी है और यहाँ एक दीपमाला भी है, जिसके पास द्वारपालक हैं। मंदिर की मूर्ति पूर्वमुखी है और साथ ही सिन्दूर तथा तेल से संलेपित है। इसकी आँखों और नाभि में हीरा जड़ा हुआ है, जो एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है।

मान्यता

इस मंदिर के नामकरण के पीछे माना जाता है कि विघ्नेश्वर नामक एक दैत्य का वध करने के कारण ही इसका नाम 'विघ्नेश्वर विनायक' हुआ था। तभी से यहाँ भगवान श्री गणेश सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले माने जाते हैं। एक अन्य कथानुसार अभयदान मांगते समय विघनसुर दैत्य की प्रार्थना थी कि गणेशजी के नाम के पहले उसका भी नाम लिया जाए, इसलिए गणपति को विघ्नहर्ता या विघ्नेश्वर का नाम यहीं से मिला।

मंदिर तथा मूर्ति

भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर पुणे-नासिक महामार्ग पर ओझर नाम के गांव मे है। मंदिर चारों पक्षों पर ऊँची पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है और उसका शिखर सोने से निर्मित है। यह मंदिर कुकड़ी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर का मुख पूरब की ओर है और वह पत्थर की मजबूत दीवार से घिरा हुआ है। मंदिर का बाहरी कक्ष 20 फुट लंबा है और अंदर का कक्ष 10 फुट लंबा है। मंदिर में स्थापित मूर्ति की सूँड़ बायीं ओर है और इसकी आँखों और नाभि में हीरे जड़े हैं। रिद्धि और सिद्धि कि मूर्तियाँ गणेशजी के दोनो तरफ़ रखी हुई हैं। कहा जाता है कि मंदिर का शीर्ष सोने का बना है और इसे चिमाजी अप्पा ने पुर्तग़ाली शासकों को हराने के बाद निर्मित करवाया था। मंदिर सन 1785 के आस-पास बना था। कथा के हिसाब से इंद्र ने राजा अभिनंदन की पूजा मे विघ्न डालने के लिये एक विघनसुर नामक दानव का निर्माण किया था। किंतु वह दानव एक कदम आगे गया और उसने सभी वैदिक और धार्मिक कृत्यों को नष्ट कर दिया। तब भगवान गणेश ने भक्तों की प्रार्थना पूर्ण करने के लिये उसे हराया। कथानुसार हारने के बाद दानव ने गणेशजी से दया कि प्रार्थना की और गणेश जी ने उसकी प्रार्थना मान ली। लेकीन एक शर्त रख दी कि जहाँ कहीं भी गणेशजी की पूजा हो रही होगी, वहाँ विघनसुर नहीं जायेगा। दानव ने शर्त मान ली और गणेशजी से प्रार्थना की कि गणेशजी के नाम के साथ उसका नाम भी जोड़ा जाये। तभी से गणेश का नाम 'विघ्नहर' पडा। ओझर के गणेशजी को श्री विघ्नेश्वर विनायक के नाम से जाना जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गणेशोत्सव सार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 31 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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