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=भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) =
सन् [[1971]] का युद्ध [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] के बीच एक सैन्य संघर्ष था। हथियारबंद लड़ाई के दो मोर्चों पर 14 दिनों के बाद, युद्ध पाकिस्तान सेना और पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने की पूर्वी कमान के समर्पण के साथ खत्म हुआ, [[बांग्लादेश]] के स्वतंत्र राज्य पहचानने, 97,368 पश्चिम पाकिस्तानियों जो अपनी स्वतंत्रता के समय पूर्वी पाकिस्तान में थे, कुछ 79,700 पाकिस्तान सेना के सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों के कर्मियों और 12,500 नागरिकों, सहित लगभग भारत द्वारा युद्ध के कैदियों के रूप में ले जाया गया।
==राजनीतिक हलचल==
लड़ाई शुरू होने से दो महीने पहले [[अक्तूबर]] [[1971]] में [[नौसेना]] अध्यक्ष एडमिरल एसएम नंदा भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री [[इंदिरा गाँधी]] से मिलने गए। नौसेना की तैयारियों के बारे में बताने के बाद उन्होंने श्रीमती गांधी से पूछा अगर नौसेना [[कराची]] पर हमला करें, तो क्या इससे सरकार को राजनीतिक रूप से कोई आपत्ति हो सकती है। इंदिरा गांधी ने हाँ या न कहने के बजाए सवाल पूछा कि आप ऐसा पूछ क्यों रहे हैं। नंदा ने जवाब दिया कि [[1965]] में नौसेना से ख़ास तौर से कहा गया था कि वह भारतीय समुद्री सीमा से बाहर कोई कार्रवाई न करें, जिससे उसके सामने कई परेशानियाँ उठ खड़ी हुई थीं। इंदिरा गांधी ने कुछ देर सोचा और कहा, 'वेल एडमिरल, इफ़ देयर इज़ अ वार, देअर इज़ अ वार.' यानी अगर लड़ाई है तो लड़ाई है। एडमिरल नंदा ने उन्हें धन्यवाद दिया और कहा, ‘मैडम मुझे मेरा जवाब मिल गया।’<ref name="बी.बी.सी">{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/12/111216_karacjiattack_rf.shtml |title='इफ़ देअर इज़ अ वॉर, देअर इज़ अ वॉर' |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= बी.बी.सी. हिंदी|language=हिंदी }}</ref>
==हमले की योजना==                                 
सील्ड लिफ़ाफ़े में हमले के आदेश [[कराची]] पर हमले की योजना बनाई गई और [[1 दिसंबर]] [[1971]] को सभी पोतों को कराची पर हमला करने के सील्ड लिफ़ाफे में आदेश दे दिए गए। पूरा वेस्टर्न फ़्लीट [[2 दिसंबर]] को [[मुंबई]] से कूच कर गया। उनसे कहा गया कि युद्ध शुरू होने के बाद ही वह उस सील्ड लिफ़ाफ़े को खोलें। योजना थी कि नौसैनिक बेड़ा दिन के दौरान कराची से 250 किलोमीटर के वृत्त पर रहेगा और शाम होते-होते उसके 150 किलोमीटर की दूरी पर पहुँच जाएगा। अंधेरे में हमला करने के बाद पौ फटने से पहले वह अपनी तीव्रतम रफ़्तार से चलते हुए कराची से 150 दूर आ जाएगा, ताकि वह पाकिस्तानी बमवर्षकों की पहुँच से बाहर आ जाए और हमला भी रूस की ओसा क्लास मिसाइल बोट से किया जाएगा। वह वहाँ खुद से चल कर नहीं जाएंगी, बल्कि उन्हें नाइलोन की रस्सियों से खींच कर ले जाया जाएगा। ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत पहला हमला निपट, निर्घट और वीर मिसाइल बोट्स ने किया। प्रत्येक मिसाइल बोट चार-चार मिसाइलों से लैस थीं। स्क्वार्डन कमांडर बबरू यादव निपट पर मौजूद थे। बाण की शक्ल बनाते हुए निपट सबसे आगे था उसके पीछे बाईं तरफ़ निर्घट था और दाहिना छोर वीर ने संभाला हुआ था। उसके ठीक पीछे आईएनएस किल्टन चल रहा था।<ref name="बी.बी.सी"/>
==ख़ैबर डूबा==
विजय जेरथ के नेतृत्व में कराची पर हमला हुआ था। कराची से 40 किलोमीटर दूर यादव ने अपने रडार पर हरकत महसूस की। उन्हें एक पाकिस्तानी युद्ध पोत अपनी तरफ़ आता दिखाई दिया। उस समय रात के 10 बज कर 40 मिनट हुए थे। यादव ने निर्घट को आदेश दिया कि वह अपना रास्ता बदले और पाकिस्तानी जहाज़ पर हमला करे। निर्घट ने 20 किलोमीटर की दूरी से पाकिस्तानी विध्वंसक पीएनएस ख़ैबर पर मिसाइल चलाई। ख़ैबर के नाविकों ने समझा कि उनकी तरफ़ आती हुई मिसाइल एक युद्धक विमान है। उन्होंने अपनी विमान भेदी तोपों से मिसाइल को निशाना बनाने की कोशिश की लेकिन वह अपने को मिसाइल का निशाना बनने से न रोक सके। तभी कमांडर यादव ने 17 किलोमीटर की दूरी से ख़ैबर पर एक और मिसाइल चलाने का आदेश दिया और किल्टन से भी कहा कि वह निर्घट के बग़ल में जाए। दूसरी मिसाइल लगते ही ख़ैबर की गति शून्य हो गई। पोत में आग लग गई और उससे गहरा धुँआ निकलने लगा. थोड़ी देर में ख़ैबर पानी में डूब गया. उस समय वह कराची से 35 नॉटिकल मील दूर था और समय था 11 बजकर 20 मिनट। उधर निपट ने पहले वीनस चैलेंजर पर एक मिसाइल दागी और फिर शाहजहाँ पर दूसरी मिसाइल चलाई। वीनस चैलेंजर तुरंत डूब गया जबकि शाहजहाँ को नुक़सान पहुँचा। तीसरी मिसाइल ने कीमारी के तेल टैंकर्स को निशाना बनाया जिससे दो टैंकरों में आग लग गई। इस बीच वीर ने पाकिस्तानी माइन स्वीपर पीएन एस मुहाफ़िज़ पर एक मिसाइल चलाई जिससे उसमें आग लग गई और वह बहुत तेज़ी से डूब गया। इस हमले के बाद से पाकिस्तानी नौसेना सतर्क हो गई और उसने दिन रात कराची के चारों तरफ़ छोटे विमानों से निगरानी रखनी शुरू कर दी। [[6 दिसंबर]] को नौसेना मुख्यालय ने पाकिस्तानी नौसेना का एक संदेश पकड़ा जिससे पता चला कि पाकिस्तानी वायुसेना ने एक अपने ही पोत पीएनएस ज़ुल्फ़िकार को भारतीय युद्धपोत समझते हुए उस पर ही बमबारी कर दी। पश्चिमी बेड़े के फ़्लैग ऑफ़िसर कमांडिंग एडमिरल कुरुविला ने कराची पर दूसरा मिसाइल बोट हमला करने की योजना बनाई और उसे ऑपरेशन पाइथन का नाम दिया गया।<ref name="बी.बी.सी"/>
=='विनाश' का हमला==
इस बार अकेली मिसाइल बोट विनाश, दो फ़्रिगेट्स त्रिशूल और तलवार के साथ गई। [[8 दिसंबर]] [[1971]] की रात 8 बजकर 45 मिनट का समय था। आईएनएस विनाश पर कमांडिंग ऑफ़िसर विजय जेरथ के नेतृत्व में 30 नौसैनिक कराची पर दूसरा हमला करने की तैयारी कर रहे थे। तभी बोट की बिजली फ़ेल हो गई और कंट्रोल ऑटोपाइलट पर चला गया। वह अभी भी बैटरी से मिसाइल चला सकते थे लेकिन वह अपने लक्ष्य को रडार से देख नहीं सकते थे। वह अपने आप को इस संभावना के लिए तैयार कर ही रहे थे कि क़रीब 11 बजे बोट की बिजली वापस आ गई। जेरथ ने रडार की तरफ़ देखा। एक पोत धीरे धीरे कराची बंदरगाह से निकल रहा था। जब वह पोत की पोज़ीशन देख ही रहे थे कि उनकी नज़र कीमारी तेल डिपो की तरफ़ गई। मिसाइल को जाँचने-परखने के बाद उन्होंने रेंज को मैनुअल और मैक्सिमम पर सेट किया और मिसाइल फ़ायर कर दी। जैसे ही मिसाइल ने तेल टैंकरों को हिट किया वहाँ जैसे प्रलय ही आ गई। जेरथ ने दूसरी मिसाइल से पोतों के एक समूह को निशाना बनाया। वहाँ खड़े एक ब्रिटिश जहाज़ हरमटौन में आग लग गई और पनामा का पोत गल्फ़ स्टार बरबाद होकर डूब गया। चौथी मिसाइल पीएनएस [[ढाका]] पर दागी गई लेकिन उसके कमांडर ने कौशल और बुद्धि का परिचय देते हुए अपने पोत को बचा लिया। लेकिन कीमारी तेल डिपो में लगी आग की लपटों को 60 किलोमीटर की दूरी से भी देखा जा सकता था। ऑपरेशन ख़त्म होते ही जेरथ ने संदेश भेजा, 'फ़ोर पिजंस हैपी इन द नेस्ट. रिज्वाइनिंग.' उनको जवाब मिला, ’एफ़ 15 से विनाश के लिए: इससे अच्छी [[दिवाली]] हमने आज तक नहीं देखी.’ [[कराची]] के तेल डिपो में लगी [[आग]] को सात दिनों और सात रातों तक नहीं बुझाया जा सका। अगले दिन जब [[भारतीय वायु सेना]] के विमान चालक कराची पर बमबारी करने गए तो उन्होंने रिपोर्ट दी, ‘यह [[एशिया]] का सबसे बड़ा बोनफ़ायर था।’ कराची के ऊपर इतना धुआं था कि तीन दिनों तक वहाँ सूरज की रोशनी नहीं पहुँच सकी।<ref name="बी.बी.सी"/>
==युद्ध परिणाम==
[[3 दिसंबर]] [[1971]] को [[पाकिस्तान]] की ओर से भारतीय ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान को मुक्त कराने का अभियान शुरू किया। [[भारतीय सेना]] के सामने [[ढाका]] को मुक्त कराने का लक्ष्य रखा ही नहीं गया। इसको लेकर भारतीय जनरलों में काफ़ी मतभेद भी थे पीछे जाती हुई पाकिस्तानी सेना ने पुलों के तोड़ कर भारतीय सेना की अभियान रोकने की कोशिश की लेकिन [[13 दिसंबर]] आते-आते भारतीय सैनिकों को ढाका की इमारतें नज़र आने लगी थीं। पाकिस्तान के पास ढाका की रक्षा के लिए अब भी 26400 सैनिक थे जबकि भारत के सिर्फ़ 3000 सैनिक ढाका की सीमा के बाहर थे, लेकिन पाकिस्तानियों का मनोबल गिरता चला जा रहा था। 1971 की लड़ाई में सीमा सुरक्षा बल और मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों के आत्मसमर्पण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर भी यह एक तरफ़ा लडा़ई नहीं थी। हिली और जमालपुर सेक्टर में भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पडा। लड़ाई से पहले [[भारत]] के लिए पलायन करते पूर्वी पाकिस्तानी शरणार्थी, एक समय भारत में [[बांग्लादेश]] के क़रीब डेढ़ करोड़ शरणार्थी पहुँच गए थे। लाखों बंगालियों ने अपने घरों को छोड़ कर शरणार्थी के रूप में पड़ोसी भारत में शरण लेने का फ़ैसला किया। मुक्ति बाहिनी ने पाकिस्तानी सैनिकों पर कई जगह घात लगा कर हमला किया और पकड़ में आने पर उन्हें भारतीय सैनिकों के हवाले कर दिया। रज़ाकारों और पाकिस्तान समर्थित तत्वों को स्थानीय लोगों और मुक्ति बाहिनी का कोप भाजन बनना पड़ा।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/multimedia/2011/12/111215_1971war_gallery_pp.shtml |title=तेरह दिन का युद्ध और एक राष्ट्र का जन्म |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= बी.बी.सी. हिंदी|language=हिंदी }}</ref>


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2011/12/111214_1971_jacobiv_rf.shtml तीस मिनट में हथियार डालिए वर्ना....]
==संबंधित लेख==
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__NOTOC__
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
=भारत-पाकिस्तान युद्ध (1947) =
[[14 अगस्त]] [[1947]] को लाखों लोगों के [[रक्त]] से [[पाकिस्तान]] ने अपने इतिहास का पहला पन्ना लिखा था। अभी वह रक्तिम स्याही सूखी भी नहीं थी कि दो महीने बाद ही [[22 अक्तूबर]], [[1947]] को पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। आक्रमणकारी वर्दीधारी पाकिस्तानी सैनिक नहीं थे बल्कि कबाइली थे और कबाइलियों के साथ थे उन्हीं के वेश में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी। उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत से 5000 से अधिक कबाइली 22 अक्तूबर, 1947 को अचानक [[कश्मीर]] में घुस आए। उनके शरीर पर सेना की वर्दी भले ही नहीं थी, लेकिन हाथों में बंदूकें, मशीनगनें और मोर्टार थे। पहले हमला सीमांत स्थित नगरों दोमल और मुजफ्फराबाद पर हुआ। इसके बाद गिलगित, स्कार्दू, हाजीपीर दर्रा, पुंछ, राजौरी, झांगर, छम्ब और पीरपंजाल की पहाड़ियों पर कबाइली हमला हुआ। उनका इरादा इन रास्तों से होते हुए [[श्रीनगर]] पर कब्जा करने का था। इसी उद्देश्य से [[कश्मीर घाटी]], गुरेज सेक्टर और टिटवाल पर भी हमला किया। इस अभियान को "आपरेशन गुलमर्ग' नाम दिया गया। सबसे बड़ा हमला मुजफ्फराबाद की ओर से हुआ। एक तो यहां मौजूद राज्य पुलिस के जवान संख्या में कम थे और दूसरा पुंछ के लोग भी हमलावरों में शामिल हो गए। मुजफ्फराबाद पूरी तरह से बर्बाद हो गया। वहां के नागरिक मारे गए, महिलाओं से बलात्कार किया गया। मुजफ्फराबाद को तबाह करने के बाद कबाइलियों का अगला निशाना थे उड़ी और बारामूला। [[23 अक्तूबर]], 1947 को उड़ी में घमासान युद्ध हुआ। हमलावरों को रोकने के लिए ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व में वहां मौजूद सेना उड़ी में वह पुल ध्वस्त करने में कामयाब हुई, जिससे हमलावरों को गुजरना था। एक पठान की गोली लगने से ब्रिगेडियर राजेन्द्र सिंह वहीं शहीद हो गए। लेकिन हमलावर आगे नहीं बढ़ पाए। खीझ मिटाने के लिए उन्होंने उसी क्षेत्र में जमकर लूटपाट की, महिलाओं से बलात्कार किया।<ref name="पाञ्चजन्य">{{cite web |url=http://panchjanya.com/arch/2001/8/19/File4.htm |title=54 साल, 4 युद्ध |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2013 |last=गुप्ता  |first=विनीता |authorlink= |format= |publisher= पाञ्चजन्य|language=हिंदी }}</ref>
==भारतीय सेना का जवाब==
कश्मीर के महाराजा हरी सिंह इस अचानक हमले से स्तब्ध थे। अपने को अकेला पा रहे थे। [[24 अक्तूबर]] को उन्होंने [[भारत]] से सैनिक सहायता की अपील की। उस समय [[लार्ड माउंटबेटन]] के नेतृत्व में सुरक्षा समिति ने इस अपील पर विचार किया और कश्मीर में सेना भेजने को राजी हो गई लेकिन हमारे राजनेताओं ने कहा कि कश्मीर के भारत में आधिकारिक विलय के बिना वहां सेना नहीं भेजी जा सकती। महाराजा तक यह बात पहुंची तो उन्होंने 26 अक्तूबर को भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। उसके तुरंत बाद भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर में कबाइलियों का सामना करने के लिए विमान और सड़क मार्ग से पहुंच गई। बारामूला में कर्नल रंजीत राय के नेतृत्व में सिख बटालियन काफी बहादुरी से लड़ी लेकिन [[बारामूला]] और पट्टन शहरों को नहीं बचा पाई। बारामूला में कर्नल राय शहीद हो गए बाद में उन्हें [[महावीर चक्र]] से अलंकृत किया गया। बारामूला में भारत के 109 जवान शहीद हुए और 369 घायल हुए। उधर श्रीनगर की [[वायुसेना]] पट्टी की ओर तेजी से बढ़ रहे हमलावरों को 4 कुमाऊं रेजीमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में मात्र एक कम्पनी ने रोका। इसी कार्रवाई में मेजर शर्मा शहीद हुए और मरणोपरान्त उन्हें भारत का पहला [[परमवीर चक्र]] दिया गया।<ref name="पाञ्चजन्य"/>
==युद्ध विराम की घोषणा==
वर्ष 1947 में [[नवम्बर]] का महीना आते-आते [[भारतीय सेना]] ने कबाइलियों को घाटी से लगभग खदेड़ दिया। मीरपुर-कोटली और पुंछ तक ही वे सीमित रह गए। लेकिन इसी दौरान पाकिस्तानी सेना प्रत्यक्ष रूप से उड़ी, टिटवाल और कश्मीर के अन्य सेक्टरों में युद्ध के लिए पहुंच गई। [[कारगिल]] में भी पाकिस्तानी सेना ने धावा बोल दिया। इस ऊंचाई पर कारगिल और [[जोजिला दर्रा|जोजिला दर्रे]] पर हमारे सैनिकों और टैंकों ने कमाल दिखाया और दुश्मन भाग खड़ा हुआ। [[9 नवम्बर]] को 161 इंनफेंटरी ब्रिगेड ने बारामूला को आक्रमणकारियों से मुक्त कराया और चार दिन बाद उड़ी से हमलावरों को भागना पड़ा। इस प्रकार भारतीय सेना ने कश्मीर बचाने का अपना प्राथमिक लक्ष्य हासिल कर लिया। लेकिन पाकिस्तान ने [[जम्मू-कश्मीर]] के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया। हमारी सेना ने [[14 सितम्बर]] [[1948]] को जोजिला की दुर्गम ऊंचाइयों पर विजय प्राप्त कर [[लेह]] को सुरक्षित बचा लिया। इधर हमारी सेनाएं दुश्मन से जूझ रही थीं उधर [[30 दिसम्बर]] 1947 को [[भारत के प्रधानमंत्री]] [[ जवाहरलाल नेहरू|पं. जवाहरलाल नेहरू]] संयुक्त राष्ट्र में इस मामले को ले गए। विचार-विमर्श शुरू हुआ इधर [[13 अगस्त]], [[1948]] को संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव पारित किया और [[1 जनवरी]] [[1949]] को युद्धविराम की घोषणा हो गई। जो सेनाएं जिस क्षेत्र में थीं, उसे युद्ध विराम रेखा मान लिया गया। तब तक हमारी सेनाओं ने पाकिस्तानी सेना और कबाइलियों द्वारा कब्जाए गए 842,583 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर दुबारा कब्जा कर लिया था। हमारी सेनाएं और आगे बढ़ रही थीं कि युद्ध विराम की घोषणा हो गई और जम्मू-कश्मीर का कुछ भाग पाकिस्तान के कब्जे में चला गया जिसे आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। गिलगित, मीरपुर, मुजफ्फराबाद, बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया।<ref name="पाञ्चजन्य"/>
==सैनिक शहीद==
1947-48 में 14 महीने चले इस युद्ध में 1,500 सैनिक शहीद हुए, 3500 घायल हुए और 1000 लापता हुए। अधिकांश लापता युद्धबंदी के रूप में पाकिस्तान ले जाए गए। पाकिस्तान की ओर से अनुमानत: 20,000 लोग इससे प्रभावित हुए और 6000 मारे गए।<ref name="पाञ्चजन्य"/>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://www.pravakta.com/the-first-indo-pak-war-1947-a-unique-war पहला भारत-पाक युद्ध 1947 : एक अनोखा युद्ध]
==संबंधित लेख==
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__NOTOC__
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1 |प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
=भारत-पाकिस्तान युद्ध (1965)=
[[भारत]]-[[पाकिस्तान]] के बीच सीमा विवाद पर जारी तनाव ने [[1965]] में युद्ध का रूप ले लिया। भारतीय फ़ौजों ने पश्चिमी पाकिस्तान पर [[लाहौर]] का लक्ष्य कर हमले किए। तत्तकालीन रक्षा मंत्री यशवंतराव चह्वाण ने कहा कि पाकिस्तानी सेना के हमले के जवाब में कार्रवाई की गई। पाकिस्तानी सेना ने भारतीय राज्य [[पंजाब]] पर हवाई हमले किए। तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अय्यूब ख़ान ने भारत के ख़िलाफ़ पूर्ण युद्ध की घोषणा कर दी। तीन हफ़्तों तक चली भीषण लड़ाई के बाद दोनों देश संयुक्त राष्ट्र प्रायोजित युद्धविराम पर सहमत हो गए। भारतीय [[प्रधानमंत्री]] [[लालबहादुर शास्त्री|लाल बहादुर शास्त्री]] और अयूब ख़ान के बीच ताशकंद में बैठक हुई जिसमें एक घोषणापत्र पर दोनों ने दस्तख़त किए। इसके तहत दोनों नेताओं ने सारे द्विपक्षीय मसले शांतिपूर्ण तरीके से हल करने का संकल्प लिया। दोनों नेता अपनी-अपनी सेना को [[अगस्त]], [[1965]] से पहले की सीमा पर वापस बुलाने पर सहमत हो गए। लाल बहादुर शास्त्री की [[ताशकंद घोषणा|ताशकंद समझौते]] के एक दिन बाद ही रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई।<ref>{{cite web |url=http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/1241_india_landmark/page5.shtml |title=आज़ाद भारत: मुख्य पड़ाव |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2013 |last=|first=|authorlink= |format= |publisher= बीबीसी|language=हिंदी }}</ref>
==ऑपरेशन जिब्राल्टर मिशन==
जानकार कहते हैं कि युद्ध [[भारत]] ने नहीं छेड़ा। युद्ध के लिए भारत को पाकिस्तान ने उकसाया। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद अली दुर्रानी भी स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान ने भारत को युद्ध के लिए उकसाया। [[मार्च]] के महीने में ही पाकिस्तान ने सीमा पर छोटी मोटी घुसपैठ और गोलीबारी करनी शुरू कर दी थी। तब [[ब्रिटेन]] की मध्यस्थता पर मामला सुलझ गया था। लेकिन पाकिस्तान के इरादे कुछ और ही थे। पाकिस्तान [[कश्मीर]] की जनता को अपने घुसपैठियों की मदद से भड़का कर भारत के खिलाफ विद्रोह करवाना चाहता था। उसने इस मिशन का नाम रखा - 'ऑपरेशन जिब्राल्टर'।
[[5 अगस्त]] को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ आधिकारिक तौर पर युद्ध छेड़ दिया। पाकिस्तान के 30-40 हजार सैनिक भारत की सीमा में घुस गए। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि भारत को कश्मीर में घुसपैठियों से मुकाबला करने में उलझा कर वो कश्मीरियों को भ्रमित कर सकेगा। इस दौरान कश्मीरी जनता भी भारतीय सेना के खिलाफ विद्रोह कर देगी और कश्मीर का भारतीय हिस्सा भी पाकिस्तान के हाथ में आ जाएगा। भारत चीन से युद्ध हारने के बाद इस हालत में नहीं था कि फिर से एक युद्ध झेल सके। इसी चीज का फायदा पाकिस्तान ने उठाया। उसी दिन भारतीय सरकार को पाकिस्तानी सेना के कश्मीर में घुसने की खबर मिली। कश्मीर बचाने की जुगत में [[भारतीय सेना]] ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए अन्तरराष्ट्रीय नियंत्रण रेखा पार कर रहे घुसपैठियों पर हमला बोल दिया। एक तरफ पाकिस्तान के घुसपैठिए कश्मीर के रास्ते अंदर घुसते जा रहे थे तो दूसरी तरफ भारतीय सेना पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला कर रही थी। शुरूआत में भारतीय सेना को सफलता मिलती गई। उसने तीन पहाड़ों इलाकों को पाकिस्तानी घुसपैठियों के कब्जे से आज़ाद करा लिया।<ref name="Paradise">{{cite web |url=http://oyepages.com/blog/view/id/5051e99f54c881fb0b000000 |title=सन् 1965 का भारत-पाक युद्ध : कुछ यादें |accessmonthday=15 फ़रवरी |accessyear=2013 |last=|first=|authorlink= |format= |publisher= Blogger’s Paradise|language=हिंदी }}</ref>
=='ग्रैंड स्लेम' अभियान==
एक हफ्ते के भीतर ही पाक ने टिथवाल, उड़ी और पुंछ के कुछ महत्वपूर्ण इलाकों में कब्जा कर लिया। लेकिन, [[15 अगस्त]] 1965 का दिन भारत के लिए शुभ रहा। 15 अगस्त को पाक में घुसी भारतीय सेना को अतिरिक्त टुकड़ियों का समर्थन मिल गया और भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले [[कश्मीर]] में 8 किलोमीटर अंदर घुस कर हाजी पीर दर्रे पर अपना झंडा लहरा दिया। एक समय पाकिस्तान को लगने लगा कि प्रमुख शहर मुजफ्फराबाद भी भारत के हाथ में चला जाएगा। [[भारतीय सेना]] का मनोबल तोड़ने के लिए पाकिस्तान ने 'ग्रैंड स्लेम' अभियान चलाया और कश्मीर के अखनूर और [[जम्मू]] पर हमला बोल दिया। चूंकि शेष भारत से कश्मीर में रसद और अन्य राहत पहुंचाने के लिए यह महत्वपूर्ण इलाके थे, इसलिए भारत को झटका लगा। जब [[थल सेना]] से काम नहीं चल पाया तो भारत ने हवाई हमले करने शुरू किए। इसके जवाब में पाकिस्तान ने [[श्रीनगर]] और [[पंजाब]] राज्य पर हमले करने शुरू कर दिए। अखनूर पर पाक हमले को लेकर भारत चिंतित हो गया था। भारत जानता था कि अखनूर पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया तो पूरा कश्मीर भारत के हाथ से निकल जाएगा। भारत पूरी ताकत से अखनूर को पाक हमले से बचाने की कोशिश कर रहा था। भारत के हवाई हमलों को विफल करने के लिए पाक ने श्रीनगर के हवाई ठिकानों पर हमले किए जिससे भारत घबरा गया। पाकिस्तान की बेहतर स्थिति और भारत की कमजोर स्थिति के बावजूद पाकिस्तान का 'ग्रैंड स्लेम' अभियान फेल हो गया। भारत के लिए यह राहत की बात थी। इस विफलता की वजह भारत नहीं बल्कि खुद पाकिस्तान था। दरअसल जब अखनूर पाक के कब्जे में आने ही वाला था, ऐन मौके पर पाकिस्तान के सैनिक कमांडर को बदल दिया गया। युद्ध के निर्णायक मोड़ पर खड़ी पाक सेना इस बदलाव से भ्रमित हो गई। 24 घंटों तक पाक सेना आगे नहीं बढ़ पाई और ये 24 घंटे भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहे। इन घंटों में भारत को अखनूर की रक्षा के लिये अतिरिक्त सैनिक और सामान लाने का अभूतपूर्व मौका मिला और अखनूर पाकिस्तान के हाथों में जाते जाते बच गया। कहा जाता है कि खुद भारतीय सैन्य कमांडर भी हैरान हो गए कि जीत के मुहाने पर आकर पाकिस्तान हार की वजहें क्यों पैदा कर रहा है।<ref name="Paradise"/>
==अमेरिका का हस्तक्षेप==
[[6 सितंबर]] [[1965]] को भारत पाकिस्तान के बीच की वास्तविक सीमा रेखा इच्छोगिल नहर को पार करके भारतीय सेना पाकिस्तान में घुस गई। तेजी से आक्रमण करती हुई भारतीय थल सेना का कारवां बढ़ता रहा और भारतीय सेना लाहौर हवाई अड्डे के नजदीक पहुंच गई। यहां एक रोचक वाकया हो गया। [[अमेरिका]] ने भारत से अपील की कि कुछ समय के लिए युद्धविराम किया जाए ताकि वो अपने नागरिकों को लाहौर से बाहर निकाल सके। भारतीय सेना ने अम‌ेरिका की बात मान ली और इस वजह से भारत को नुकसान भी हुआ। इसी युद्ध विराम के समय में पाकिस्तान ने भारत में खेमकरण पर हमला कर उस पर कब्जा कर लिया।
==खेमकरण और मुनाबाओ पर पाकिस्तान का कब्जा==
[[8 दिसंबर]] को पाकिस्तान ने मुनाबाओ पर हमला कर दिया। दरअसल पाकिस्तान [[लाहौर]] में हमला करने को तैयार भारतीय सेना का ध्यान बंटाना चाहता था। मुनाबाओ में पाकिस्तान को रोकने के लिए मराठा रेजिमेंट भेजी गई। मराठा सैनिकों ने जमकर पाक का मुकाबला किया लेकिन रसद की कमी और कम सैनिक होने के चलते मराठा सैनिक शहीद हो गए। फलस्वरूप 10 दिसंबर को पाकिस्तान ने मुनाबाओ पर कब्जा कर लिया। खेमकरण पर कब्जे के बाद पाकिस्तान [[अमृतसर]] पर कब्जा करना चाहता था लेकिन अपने देश में भारतीय सेना की बढ़त देखकर उसे कदम रोकने पड़े। [[12 सितंबर]] तक जंग में कुछ ठहराव आया। दोनों ही देशों की सेना जीते हुए हिस्से पर ध्यान दे रही थी।<ref name="Paradise"/>
==युद्ध परिणाम==
इस युद्ध में [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] ने बहुत कुछ खोया। इस जंग में [[भारतीय सेना]] के करीब 3000 और पाकिस्तान के करीब 3800 जवान मारे गए। भारत ने युद्ध में पाकिस्तान के 710 वर्ग किलोमीटर इलाके और पाकिस्तान ने भारत के 210 वर्ग किलोमीटर इलाके को अपने कब्जे में ले लिया था। भारत ने पाकिस्तान के जिन इलाकों पर जीत हासिल की, ‌उनमें सियालकोट, लाहौर और कश्मीर के कुछ अति उपजाऊ क्षेत्र भी शामिल थे। दूसरी तरफ पाकिस्तान ने भारत के छंब और सिंध जैसे रेतीले इलाकों पर कब्जा किया। क्षेत्रफल के हिसाब से देखा जाए तो युद्ध के इस चरण में भारत फायदे में था और पाकिस्तान नुकसान में। आखिरकार वह समय आया जब संयुक्त राष्ट्र की पहल पर दोनों देश युद्ध विराम को राजी हुए। [[रूस]] के ताशकंद में भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब ख़ाँ के बीच [[11 जनवरी]], सन [[1966]] को समझौता हुआ। दोनों ने एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके अपने विवादित मुद्दों को बातचीत से हल करने का भरोसा दिलाया और यह तय किया कि 25 फरवरी तक दोनों देश नियंत्रण रेखा अपनी सेनाएं हटा लेंगे। दोनों देश इस बात पर राजी हुए कि [[5 अगस्त]] से पहले की स्थिति का पालन करेंगे और जीती हुई जमीन से कब्जा छोड़ देंगे।
[[ताशकंद घोषणा|ताशकंद समझौते]] कुछ ही घंटों बाद शास्त्री जी की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। आधिकारिक तौर पर कहा गया कि ताशकंद की भयंकर सर्दी के चलते शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा। जबकि, कुछ लोग ये भी दावा करते हैं कि एक षड्यंत्र के जरिए उनकी हत्या की गई। कुछ जानकार यह भी संभावना जताते हैं कि भारत पाक समझौते में कुछ मसलों पर आम राय कायम न होने के चलते शास्त्री जी तनाव में आ गए और उन्हें दिल का दौरा पड़ा।<ref name="Paradise"/>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==बाहरी कड़ियाँ==
*[http://hindi.in.com/showstory.php?id=506912 1965 के युद्ध में पाक ने उकसाया था भारत को]
==संबंधित लेख==
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06:55, 17 फ़रवरी 2013 का अवतरण