"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/1": अवतरणों में अंतर
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{अनेकान्तवाद निम्नलिखित में से किसका क्रोड सिद्धांत एवं [[दर्शन]] है? | {अनेकान्तवाद निम्नलिखित में से किसका क्रोड सिद्धांत एवं [[दर्शन]] है? | ||
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||[[चित्र:Gomateswara.jpg|right|80px|गोमतेश्वर की प्रतिमा, श्रवणबेलगोला]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो 'जिन' के अनुयायी हों। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। वस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन अनुयायी की पहली पहचान होती है। यहाँ तक कि [[जैन धर्म]] के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी होते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं। '[[स्यादवाद]]' या 'अनेकांतवाद' या 'सप्तभंगी' का सिद्धान्त इस धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]] | ||[[चित्र:Gomateswara.jpg|right|80px|गोमतेश्वर की प्रतिमा, श्रवणबेलगोला]]'जैन धर्म' [[भारत]] की श्रमण परम्परा से निकला [[धर्म]] और [[दर्शन]] है। 'जैन' उन्हें कहते हैं, जो 'जिन' के अनुयायी हों। जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म। वस्त्र-हीन बदन, शुद्ध शाकाहारी भोजन और निर्मल वाणी एक जैन अनुयायी की पहली पहचान होती है। यहाँ तक कि [[जैन धर्म]] के अन्य लोग भी शुद्ध शाकाहारी होते हैं तथा अपने धर्म के प्रति बड़े सचेत रहते हैं। '[[स्यादवाद]]' या 'अनेकांतवाद' या 'सप्तभंगी' का सिद्धान्त इस धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जैन धर्म]] | ||
{[[सिन्धु सभ्यता]] से सम्बद्ध किन स्थलों से [[चावल]] की खेती के प्रमाण मिले हैं? | {[[सिन्धु सभ्यता]] से सम्बद्ध किन स्थलों से [[चावल]] की खेती के प्रमाण मिले हैं? | ||
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-[[मोहनजोदड़ो]] और [[हड़प्पा]] | -[[मोहनजोदड़ो]] और [[हड़प्पा]] | ||
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||[[चित्र:Lothal-1.jpg|right|120px|लोथल के अवशेष]]'लोथल' [[गुजरात]] के [[अहमदाबाद ज़िला|अहमदाबाद ज़िले]] में भोगावा नदी के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। यहाँ की खुदाई वर्ष [[1954]]-[[1955]] ई. में रंगनाथ राव के नेतृत्व में की गई थी। [[लोथल]] में दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी। यह छः खण्डों में विभक्त था। लोथल में गढ़ी और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे। यहाँ से अन्य अवशेषों में [[चावल]], [[फ़ारस]] की मुहरों एवं घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियों के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लोथल]], [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]] | ||[[चित्र:Lothal-1.jpg|right|120px|लोथल के अवशेष]]'लोथल' [[गुजरात]] के [[अहमदाबाद ज़िला|अहमदाबाद ज़िले]] में भोगावा नदी के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। यहाँ की खुदाई वर्ष [[1954]]-[[1955]] ई. में रंगनाथ राव के नेतृत्व में की गई थी। [[लोथल]] में दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी। यह छः खण्डों में विभक्त था। लोथल में गढ़ी और नगर दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से घिरे हुए थे। यहाँ से अन्य अवशेषों में [[चावल]], [[फ़ारस]] की मुहरों एवं घोड़ों की लघु मृण्मूर्तियों के [[अवशेष]] प्राप्त हुए हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लोथल]], [[रंगपुर (गुजरात)|रंगपुर]] | ||
{'व्यक्तिगत सत्याग्रह' में [[विनोबा भावे]] को प्रथम सत्याग्रही चुना गया था। दूसरा सत्याग्रही कौन था? | {'व्यक्तिगत सत्याग्रह' में [[विनोबा भावे]] को प्रथम सत्याग्रही चुना गया था। दूसरा सत्याग्रही कौन था? | ||
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-[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] | -[[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] | ||
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||[[चित्र:Jawaharlal-Nehru-And-Mahatma-Gandhi.jpg|right|100px|[[गाँधीजी]] तथा [[जवाहरलाल नेहरू]]]]पंडित जवाहरलाल नेहरू संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में 'गुटनिरपेक्ष' नीतियों के लिए विख्यात हुए थे। [[1930]] और [[1940]] के दशक में [[भारत]] के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से वे एक थे। [[जवाहरलाल नेहरू]] पहले राष्ट्राध्यक्ष थे, जिन्होंने [[1963]] ई. में [[रूस]], [[इंग्लैण्ड]] तथा [[अमेरिका]] के बीच आंशिक परमाणविक परीक्षण-निषेध संधि पर हस्ताक्षर किये जाने का स्वागत किया था। [[लोकसभा]] के कुछ उपचुनावों में कांग्रेसी उम्मीदवारों की विफलता के कारण [[कांग्रेस]] ने उन्हें सुझाव दिया कि वे अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करें, ताकि कांग्रेस के कुछ गण्यमान्य नेता दल को पुनर्गठित करने में अपना पूर्ण समय दे सकें।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] | ||[[चित्र:Jawaharlal-Nehru-And-Mahatma-Gandhi.jpg|right|100px|[[गाँधीजी]] तथा [[जवाहरलाल नेहरू]]]]पंडित जवाहरलाल नेहरू संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में 'गुटनिरपेक्ष' नीतियों के लिए विख्यात हुए थे। [[1930]] और [[1940]] के दशक में [[भारत]] के स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से वे एक थे। [[जवाहरलाल नेहरू]] पहले राष्ट्राध्यक्ष थे, जिन्होंने [[1963]] ई. में [[रूस]], [[इंग्लैण्ड]] तथा [[अमेरिका]] के बीच आंशिक परमाणविक परीक्षण-निषेध संधि पर हस्ताक्षर किये जाने का स्वागत किया था। [[लोकसभा]] के कुछ उपचुनावों में कांग्रेसी उम्मीदवारों की विफलता के कारण [[कांग्रेस]] ने उन्हें सुझाव दिया कि वे अपने मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करें, ताकि कांग्रेस के कुछ गण्यमान्य नेता दल को पुनर्गठित करने में अपना पूर्ण समय दे सकें।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पंडित जवाहरलाल नेहरू]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही सुमेलित नहीं है? | {निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही सुमेलित नहीं है? | ||
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-इक्ता - नागरिक एवं सैन्य सेवा के लिए दिया जाने वाला राजस्व नियत कार्य। | -इक्ता - नागरिक एवं सैन्य सेवा के लिए दिया जाने वाला राजस्व नियत कार्य। | ||
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||[[चित्र:Akbar.jpg|right|80px|बादशाह अकबर]]'मनसब' [[मुग़लकालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल शासन काल]] में [[अकबर|बादशाह अकबर]] के समय दिया जाने वाला एक 'पद' या 'ओहदा' होता था। राज्य के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को उनके [[मनसब]] के अनुसार ही वेतन दिया जाता था। मनसब प्रणाली [[मुग़ल साम्राज्य]] की रीढ़ समझी जाती थी। जिस व्यक्ति को मनसब दिया जाता था, उसे '[[मनसबदार]]' कहते थे। अकबर ने कुछ [[राजपूत]] राजाओं, जैसे- [[भगवान दास]], [[राजा मानसिंह]], [[बीरबल]] एवं [[टोडरमल]] को उच्च मनसब प्रदान किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मनसब]] | ||[[चित्र:Akbar.jpg|right|80px|बादशाह अकबर]]'मनसब' [[मुग़लकालीन शासन व्यवस्था|मुग़ल शासन काल]] में [[अकबर|बादशाह अकबर]] के समय दिया जाने वाला एक 'पद' या 'ओहदा' होता था। राज्य के अधिकारियों तथा कर्मचारियों को उनके [[मनसब]] के अनुसार ही वेतन दिया जाता था। मनसब प्रणाली [[मुग़ल साम्राज्य]] की रीढ़ समझी जाती थी। जिस व्यक्ति को मनसब दिया जाता था, उसे '[[मनसबदार]]' कहते थे। अकबर ने कुछ [[राजपूत]] राजाओं, जैसे- [[भगवान दास]], [[राजा मानसिंह]], [[बीरबल]] एवं [[टोडरमल]] को उच्च मनसब प्रदान किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मनसब]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन '[[काकोरी काण्ड]]' से संबंधित नहीं था? | {निम्नलिखित में से कौन '[[काकोरी काण्ड]]' से संबंधित नहीं था? | ||
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-[[रामप्रसाद बिस्मिल]] | -[[रामप्रसाद बिस्मिल]] | ||
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||[[चित्र:Ram-Prasad-Bismil.jpg|right|100px|रामप्रसाद बिस्मिल]][[उत्तर प्रदेश]] में [[लखनऊ]] के पास स्थित 'काकोरी' नामक स्थान [[आधुनिक भारत]] में प्रमुख चर्चा का विषय बना था। [[9 अगस्त]], [[1925]] को इस स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा। यह घटना इतिहास में '''[[काकोरी काण्ड]]''' के नाम से जानी जाती है। क्रांतिकारी [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्रवाई के तहत यह कार्य करने की योजना बनाई थी। इस डकैती में अशफ़ाकउल्ला ख़ान, [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]], सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त और रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। 'काकोरी काण्ड' के मुक़दमें ने काफ़ी लोगों का ध्यान आकर्षित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काकोरी काण्ड]] | ||[[चित्र:Ram-Prasad-Bismil.jpg|right|100px|रामप्रसाद बिस्मिल]][[उत्तर प्रदेश]] में [[लखनऊ]] के पास स्थित 'काकोरी' नामक स्थान [[आधुनिक भारत]] में प्रमुख चर्चा का विषय बना था। [[9 अगस्त]], [[1925]] को इस स्थान पर देशभक्तों ने रेल विभाग की ले जाई जा रही संगृहीत धनराशि को लूटा। यह घटना इतिहास में '''[[काकोरी काण्ड]]''' के नाम से जानी जाती है। क्रांतिकारी [[रामप्रसाद बिस्मिल]] के नेतृत्व में 10 लोगों ने सुनियोजित कार्रवाई के तहत यह कार्य करने की योजना बनाई थी। इस डकैती में अशफ़ाकउल्ला ख़ान, [[चन्द्रशेखर आज़ाद]], [[राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी]], सचीन्द्र सान्याल, मन्मथनाथ गुप्त और रामप्रसाद बिस्मिल आदि शामिल थे। 'काकोरी काण्ड' के मुक़दमें ने काफ़ी लोगों का ध्यान आकर्षित किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[काकोरी काण्ड]] | ||
{'[[कटारमल सूर्य मन्दिर]]' कहाँ पर अवस्थित है? | {'[[कटारमल सूर्य मन्दिर]]' कहाँ पर अवस्थित है? | ||
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-[[नैनीताल]] | -[[नैनीताल]] | ||
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||[[चित्र:Katarmal-Sun-Temple-Almora-Uttarakhand.jpg|right|100px|कटारमल सूर्य मन्दिर]]'कटारमल सूर्य मन्दिर' [[उत्तराखण्ड]] में [[अल्मोड़ा]] के [[कटारमल]] नामक स्थान पर स्थित है। इस कारण इसे '[[कटारमल सूर्य मन्दिर]]' कहा जाता है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे [[कुमाऊँ मंडल]] का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि [[उड़ीसा]] के '[[कोणार्क सूर्य मन्दिर]]' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। इस सूर्य मंदिर का [[इतिहास]] बहुत पुराना है। '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' द्वारा इस मन्दिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अल्मोड़ा]] | ||[[चित्र:Katarmal-Sun-Temple-Almora-Uttarakhand.jpg|right|100px|कटारमल सूर्य मन्दिर]]'कटारमल सूर्य मन्दिर' [[उत्तराखण्ड]] में [[अल्मोड़ा]] के [[कटारमल]] नामक स्थान पर स्थित है। इस कारण इसे '[[कटारमल सूर्य मन्दिर]]' कहा जाता है। यह सूर्य मन्दिर न सिर्फ़ समूचे [[कुमाऊँ मंडल]] का सबसे विशाल, ऊँचा और अनूठा मन्दिर है, बल्कि [[उड़ीसा]] के '[[कोणार्क सूर्य मन्दिर]]' के बाद एकमात्र प्राचीन सूर्य मन्दिर भी है। इस सूर्य मंदिर का [[इतिहास]] बहुत पुराना है। '[[भारतीय पुरातत्त्व विभाग]]' द्वारा इस मन्दिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अल्मोड़ा]] | ||
{निम्नलिखित में से किस सुल्तान ने ख़लीफ़ा से 'खिलअत' प्राप्त किया? | {निम्नलिखित में से किस सुल्तान ने ख़लीफ़ा से 'खिलअत' प्राप्त किया? | ||
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-[[क़ुतुबुद्दीन ऐबक|क़ुतुबुद्दीन]] | -[[क़ुतुबुद्दीन ऐबक|क़ुतुबुद्दीन]] | ||
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||[[चित्र:Iltutmish-Tomb-Qutab-Minar.jpg|right|100px|इल्तुतमिश का मक़बरा, क़ुतुब मीनार, दिल्ली]]इल्तुतमिश एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध उसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे '''अमीर-उल-उमरा''' नामक महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किया था। क्योंकि अकस्मात् मुत्यु के कारण [[कुतुबद्दीन ऐबक]] किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः [[लाहौर]] के तुर्क अधिकारियों ने ऐबक के विवादित पुत्र [[आरामशाह]] को लाहौर की गद्दी पर बैठाया। परन्तु [[दिल्ली]] के तुर्की सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन ऐबक के दामाद [[इल्तुतमिश]] को दिल्ली आमंत्रित कर राज्य सिंहासन पर बैठाया गया। [[फ़रवरी]], 1229 में [[बग़दाद]] के ख़लीफ़ा से इल्तुतमिश को सम्मान में ‘खिलअत’ एवं प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इल्तुतमिश]] | ||[[चित्र:Iltutmish-Tomb-Qutab-Minar.jpg|right|100px|इल्तुतमिश का मक़बरा, क़ुतुब मीनार, दिल्ली]]इल्तुतमिश एक इल्बारी तुर्क था। खोखरों के विरुद्ध उसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर [[मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे '''अमीर-उल-उमरा''' नामक महत्त्वपूर्ण पद प्रदान किया था। क्योंकि अकस्मात् मुत्यु के कारण [[कुतुबद्दीन ऐबक]] किसी उत्तराधिकारी का चुनाव नहीं कर सका था। अतः [[लाहौर]] के तुर्क अधिकारियों ने ऐबक के विवादित पुत्र [[आरामशाह]] को लाहौर की गद्दी पर बैठाया। परन्तु [[दिल्ली]] के तुर्की सरदारों एवं नागरिकों के विरोध के फलस्वरूप कुतुबद्दीन ऐबक के दामाद [[इल्तुतमिश]] को दिल्ली आमंत्रित कर राज्य सिंहासन पर बैठाया गया। [[फ़रवरी]], 1229 में [[बग़दाद]] के ख़लीफ़ा से इल्तुतमिश को सम्मान में ‘खिलअत’ एवं प्रमाणपत्र प्राप्त हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[इल्तुतमिश]] | ||
{'मेरी मान्यता है कि कोई भी राष्ट्र [[धर्म]] के बिना वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता।' यह कथन किसका है? | {'मेरी मान्यता है कि कोई भी राष्ट्र [[धर्म]] के बिना वास्तविक प्रगति नहीं कर सकता।' यह कथन किसका है? | ||
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-[[स्वामी विवेकानन्द]] | -[[स्वामी विवेकानन्द]] | ||
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||[[चित्र:Statue-of-Gandhiji-2.jpg|right|100px|लंदन स्थित गाँधीजी की प्रतिमा]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। वर्ष [[1942]] के ग्रीष्म में [[महात्मा गाँधी]] ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से तत्काल भारत छोड़ने की माँग की। फ़ाँसीवादी शक्तियों, विशेषकर [[जापान]] के ख़िलाफ़ युद्ध महत्त्वपूर्ण चरण में था। अंग्रेज़ों ने तुरन्त ही प्रतिक्रिया दिखाई और [[कांग्रेस]] के समूचे नेतृत्व को गिरफ़्तार कर लिया तथा पार्टी को हमेशा के लिए कुचल देने का प्रयास किया। इसके फलस्वरूप हिंसा भड़क उठी, जिसे सख़्ती से दबा दिया गया। [[भारत]] और ब्रिटेन के बीच की दूरी पहले से भी कहीं अधिक बढ़ गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गांधी]] | ||[[चित्र:Statue-of-Gandhiji-2.jpg|right|100px|लंदन स्थित गाँधीजी की प्रतिमा]]महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ '[[भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन]]' का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। वर्ष [[1942]] के ग्रीष्म में [[महात्मा गाँधी]] ने [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] से तत्काल भारत छोड़ने की माँग की। फ़ाँसीवादी शक्तियों, विशेषकर [[जापान]] के ख़िलाफ़ युद्ध महत्त्वपूर्ण चरण में था। अंग्रेज़ों ने तुरन्त ही प्रतिक्रिया दिखाई और [[कांग्रेस]] के समूचे नेतृत्व को गिरफ़्तार कर लिया तथा पार्टी को हमेशा के लिए कुचल देने का प्रयास किया। इसके फलस्वरूप हिंसा भड़क उठी, जिसे सख़्ती से दबा दिया गया। [[भारत]] और ब्रिटेन के बीच की दूरी पहले से भी कहीं अधिक बढ़ गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महात्मा गांधी]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] ग्रंथ सुजान राय भंडारी द्वारा लिखा गया था? | {निम्नलिखित में से कौन-सा [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] ग्रंथ सुजान राय भंडारी द्वारा लिखा गया था? | ||
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-इबरतनामा | -इबरतनामा | ||
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+मुन्तखब-उत-तवारीख | +मुन्तखब-उत-तवारीख | ||
{निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही सुमेलित है? | {निम्नलिखित में से कौन सा युग्म सही सुमेलित है? | ||
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-[[बक्सर का युद्ध]] - [[मीर ज़ाफ़र]] विरुद्ध [[रॉबर्ट क्लाइव]] | -[[बक्सर का युद्ध]] - [[मीर ज़ाफ़र]] विरुद्ध [[रॉबर्ट क्लाइव]] | ||
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||'वाडीवाश का युद्ध' वर्ष 1760 में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] और [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] के मध्य लड़ा गया था। युद्ध में फ़्राँसीसियों की हार हुई और उन्हें [[पाण्डिचेरी]] अंग्रेज़ों को सौंपना पड़ा। इस विजय के साथ ही अंग्रेज़ों ने [[भारत]] में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति पूरी तरह से समाप्त कर दी। इसके बाद 1763 ई. में सम्पन्न हुई 'पेरिस सन्धि' के द्वारा अंग्रेज़ों ने [[चन्द्रनगर]] को छोड़कर शेष अन्य प्रदेश, जो फ़्राँसीसियों के अधिकार में 1749 ई. तक थे, वापस कर दिये और ये क्षेत्र भारत के स्वतंत्र होने तक इनके पास बने रहे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वाडीवाश का युद्ध]] | ||'वाडीवाश का युद्ध' वर्ष 1760 में [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] और [[फ़्राँसीसी|फ़्राँसीसियों]] के मध्य लड़ा गया था। युद्ध में फ़्राँसीसियों की हार हुई और उन्हें [[पाण्डिचेरी]] अंग्रेज़ों को सौंपना पड़ा। इस विजय के साथ ही अंग्रेज़ों ने [[भारत]] में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति पूरी तरह से समाप्त कर दी। इसके बाद 1763 ई. में सम्पन्न हुई 'पेरिस सन्धि' के द्वारा अंग्रेज़ों ने [[चन्द्रनगर]] को छोड़कर शेष अन्य प्रदेश, जो फ़्राँसीसियों के अधिकार में 1749 ई. तक थे, वापस कर दिये और ये क्षेत्र भारत के स्वतंत्र होने तक इनके पास बने रहे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वाडीवाश का युद्ध]] | ||
{[[लॉर्ड लॉरेंस]] के कार्यकाल में पारित 'पंजाब टेनेन्सी एक्ट' का प्रमुख उद्देश्य क्या था? | {[[लॉर्ड लॉरेंस]] के कार्यकाल में पारित 'पंजाब टेनेन्सी एक्ट' का प्रमुख उद्देश्य क्या था? | ||
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+कृषकों के दखल अधिकारों की सुरक्षा। | +कृषकों के दखल अधिकारों की सुरक्षा। | ||
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||[[चित्र:Lord Pethick Lawrence.jpg|right|80px|पेथिक लॉरेंस और गाँधीजी]]पेथिक लॉरेंस [[भारत]] में आने वाले [[अंग्रेज़]] '[[साइमन कमीशन]]' का एक सदस्य और उसका अध्यक्ष था। 'साइमन कमीशन' भारत में [[22 जनवरी]], [[1946]] ई. को आया था। [[पेथिक लॉरेंस]] भारत को स्वाधीनता प्रदान किये जाने का पक्षधर था। लॉरेंस ने अपना यह कथन भी दिया कि "भारत में [[महात्मा गाँधी]] से अच्छा [[अंग्रेज़ी]] का लेखक कोई दूसरा नहीं है। पेथिक लॉरेंस भारत की संवैधानिक सुधारों की मांग का प्रबल समर्थक था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पेथिक लॉरेंस]] | ||[[चित्र:Lord Pethick Lawrence.jpg|right|80px|पेथिक लॉरेंस और गाँधीजी]]पेथिक लॉरेंस [[भारत]] में आने वाले [[अंग्रेज़]] '[[साइमन कमीशन]]' का एक सदस्य और उसका अध्यक्ष था। 'साइमन कमीशन' भारत में [[22 जनवरी]], [[1946]] ई. को आया था। [[पेथिक लॉरेंस]] भारत को स्वाधीनता प्रदान किये जाने का पक्षधर था। लॉरेंस ने अपना यह कथन भी दिया कि "भारत में [[महात्मा गाँधी]] से अच्छा [[अंग्रेज़ी]] का लेखक कोई दूसरा नहीं है। पेथिक लॉरेंस भारत की संवैधानिक सुधारों की मांग का प्रबल समर्थक था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पेथिक लॉरेंस]] | ||
{निम्नलिखित में से किस एक [[राजपूत|राजपूत राजवंश]] द्वारा अपना उद्गम मिथकीय '[[अग्निकुल]]' से नहीं जोड़ा गया? | {निम्नलिखित में से किस एक [[राजपूत|राजपूत राजवंश]] द्वारा अपना उद्गम मिथकीय '[[अग्निकुल]]' से नहीं जोड़ा गया? | ||
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-परिहार | -परिहार | ||
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||'चन्देल वंश' [[गोंड|गोंड जनजातीय]] मूल का [[राजपूत साम्राज्य|राजपूत वंश]] था, जिसने उत्तर-मध्य [[भारत]] के [[बुंदेलखंड]] पर कुछ शताब्दियों तक शासन किया था। [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहारों]] के पतन के साथ ही [[चन्देल वंश|चन्देल]] नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में [[यमुना नदी]] से लेकर [[सागर ज़िला|सागर]], [[मध्य प्रदेश]] तक और [[धसान नदी]] से [[विंध्य पर्वतमाला|विंध्य पर्वतमालाओं]] तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध [[कालिंजर|कालिंजर का क़िला]], [[खजुराहो]], [[महोबा]] और [[अजयगढ़]] उनके प्रमुख गढ़ थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्देल वंश|चन्देल]] | ||'चन्देल वंश' [[गोंड|गोंड जनजातीय]] मूल का [[राजपूत साम्राज्य|राजपूत वंश]] था, जिसने उत्तर-मध्य [[भारत]] के [[बुंदेलखंड]] पर कुछ शताब्दियों तक शासन किया था। [[प्रतिहार साम्राज्य|प्रतिहारों]] के पतन के साथ ही [[चन्देल वंश|चन्देल]] नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में [[यमुना नदी]] से लेकर [[सागर ज़िला|सागर]], [[मध्य प्रदेश]] तक और [[धसान नदी]] से [[विंध्य पर्वतमाला|विंध्य पर्वतमालाओं]] तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध [[कालिंजर|कालिंजर का क़िला]], [[खजुराहो]], [[महोबा]] और [[अजयगढ़]] उनके प्रमुख गढ़ थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चन्देल वंश|चन्देल]] | ||
{निम्नलिखित में से किसमें विख्यात '[[गायत्री मंत्र]]' अंतर्विष्ट है? | {निम्नलिखित में से किसमें विख्यात '[[गायत्री मंत्र]]' अंतर्विष्ट है? | ||
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||[[चित्र:Rigveda.jpg|right|90px|ऋग्वेद]]ऋग्वेद के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण [[यज्ञ|यज्ञों]] के अवसर पर 'होतृ ऋषियों' द्वारा किया जाता था। [[ऋग्वेद]] की अनेक संहिताओं में 'संप्रति संहिता' ही उपलब्ध है। इस [[वेद]] के कुल मंत्रों की संख्या लगभग 10600 है। बाद में जोड़ गये दशममंडल, जिसे 'पुरुषसूक्त' के नाम से जाना जाता है, में सर्वप्रथम [[शूद्र|शूद्रों]] का उल्लेख मिलता है। [[सोम देव|सोम]] का उल्लेख नवें मण्डल में है। लोकप्रिय '[[गायत्री मंत्र]]' का उल्लेख भी ऋग्वेद के 7वें मण्डल में किया गया है। इस मण्डल के रचयिता [[वसिष्ठ]] थे। यह मण्डल [[वरुण देवता]] को समर्पित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]] | ||[[चित्र:Rigveda.jpg|right|90px|ऋग्वेद]]ऋग्वेद के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण [[यज्ञ|यज्ञों]] के अवसर पर 'होतृ ऋषियों' द्वारा किया जाता था। [[ऋग्वेद]] की अनेक संहिताओं में 'संप्रति संहिता' ही उपलब्ध है। इस [[वेद]] के कुल मंत्रों की संख्या लगभग 10600 है। बाद में जोड़ गये दशममंडल, जिसे 'पुरुषसूक्त' के नाम से जाना जाता है, में सर्वप्रथम [[शूद्र|शूद्रों]] का उल्लेख मिलता है। [[सोम देव|सोम]] का उल्लेख नवें मण्डल में है। लोकप्रिय '[[गायत्री मंत्र]]' का उल्लेख भी ऋग्वेद के 7वें मण्डल में किया गया है। इस मण्डल के रचयिता [[वसिष्ठ]] थे। यह मण्डल [[वरुण देवता]] को समर्पित है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ऋग्वेद]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा एक युग्म सही सुमेलित नहीं है? | {निम्नलिखित में से कौन-सा एक युग्म सही सुमेलित नहीं है? | ||
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-मालती - माधव नाटक | -मालती - माधव नाटक | ||
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||'मालविकाग्निमित्रम्' चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[महाकवि कालिदास]] द्वारा लिखा गया था। कालिदास द्वारा रचित इस [[संस्कृत]] ग्रंथ से [[पुष्यमित्र शुंग]] एवं उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा [[शुंग वंश|शुंग]] एवं [[यवन]] संघर्ष का उल्लेख मिलता है। यह श्रृंगार रस प्रधान पाँच अंकों का नाटक है। यह कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता, जो '[[विक्रमोर्वशीय]]' अथवा '[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]' में है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मालविकाग्निमित्रम्]] | ||'मालविकाग्निमित्रम्' चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पांचवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में [[महाकवि कालिदास]] द्वारा लिखा गया था। कालिदास द्वारा रचित इस [[संस्कृत]] ग्रंथ से [[पुष्यमित्र शुंग]] एवं उसके पुत्र [[अग्निमित्र]] के समय के राजनीतिक घटनाचक्र तथा [[शुंग वंश|शुंग]] एवं [[यवन]] संघर्ष का उल्लेख मिलता है। यह श्रृंगार रस प्रधान पाँच अंकों का नाटक है। यह कालिदास की प्रथम नाट्य कृति है; इसलिए इसमें वह लालित्य, माधुर्य एवं भावगाम्भीर्य दृष्टिगोचर नहीं होता, जो '[[विक्रमोर्वशीय]]' अथवा '[[अभिज्ञानशाकुन्तलम]]' में है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मालविकाग्निमित्रम्]] | ||
{'[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|स्वतंत्रता संग्राम]]' के दौरान [[अरुणा असिफ़ अली]] किस भूमिगत क्रियाकलाप की प्रमुख महिला संगठक थीं? | {'[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|स्वतंत्रता संग्राम]]' के दौरान [[अरुणा असिफ़ अली]] किस भूमिगत क्रियाकलाप की प्रमुख महिला संगठक थीं? | ||
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-[[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] | -[[सविनय अवज्ञा आंदोलन]] |
13:47, 19 फ़रवरी 2013 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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