"नामवर सिंह": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " खास" to " ख़ास") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - " खरीद" to " ख़रीद") |
||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
नामवर सिंह बनारस के ईश्वर गंगी मुहल्ले में रहते थें। 1940 ई. में उन्होंने नवयुवक साहित्यिक संघ, नामक एवं साहित्यिक संस्था अपने सहयोगी पारसनाय मिश्र सेवक के साथ निमित की थी, जिसमें हर सप्ताह एक साहित्यिक गोष्ठी होती थी। 1944 ई. से नामवर भी इसकी गंगी मुहल्ले में शामिल होते थे। ठाकुर प्रसाद सिंह ने ईश्वर गंगी मुहल्ले में भारतेन्दु विद्यालय एंव ईश्वर गंगी पुस्तकालय की स्थापना की थी। 1947 ई.में उनकी नियुक्ति बलदेव इंटर कॉलेज, बडा़गांव में हो गई। नवयुवक साहित्य संघ की जिम्मेवारी उन्होंने नामवर और सेवक जी को दे दी। इसकी गोष्ठियां टाकुर प्रसाद सिंह के बगैर भी बरसों चलती रही। बाद में इसका नाम सिर्फ साहित्यिक संघ हो गया। इसकी गोष्टियों में बनारस के तत्कालीन प्रायः सभी साहित्यकार उपस्थित होते थे। नामवर के साथ त्रिलोचन एवं साही की इसमें नियमित उपस्थिति होती थी। नामवर की काव्य-प्रतिभा के निर्माण में इस संस्था का भी अप्रतिम योगदान है। | नामवर सिंह बनारस के ईश्वर गंगी मुहल्ले में रहते थें। 1940 ई. में उन्होंने नवयुवक साहित्यिक संघ, नामक एवं साहित्यिक संस्था अपने सहयोगी पारसनाय मिश्र सेवक के साथ निमित की थी, जिसमें हर सप्ताह एक साहित्यिक गोष्ठी होती थी। 1944 ई. से नामवर भी इसकी गंगी मुहल्ले में शामिल होते थे। ठाकुर प्रसाद सिंह ने ईश्वर गंगी मुहल्ले में भारतेन्दु विद्यालय एंव ईश्वर गंगी पुस्तकालय की स्थापना की थी। 1947 ई.में उनकी नियुक्ति बलदेव इंटर कॉलेज, बडा़गांव में हो गई। नवयुवक साहित्य संघ की जिम्मेवारी उन्होंने नामवर और सेवक जी को दे दी। इसकी गोष्ठियां टाकुर प्रसाद सिंह के बगैर भी बरसों चलती रही। बाद में इसका नाम सिर्फ साहित्यिक संघ हो गया। इसकी गोष्टियों में बनारस के तत्कालीन प्रायः सभी साहित्यकार उपस्थित होते थे। नामवर के साथ त्रिलोचन एवं साही की इसमें नियमित उपस्थिति होती थी। नामवर की काव्य-प्रतिभा के निर्माण में इस संस्था का भी अप्रतिम योगदान है। | ||
====पहली कविता==== | ====पहली कविता==== | ||
नामवर सिंह के स्कूल के छात्र –संघ से एक मासिक [[पत्रिका]] निकलती थी- क्षत्रिय मित्र। सरस्वती प्रसाद सिंह उसके संपादक थे। आगे चलकर शम्भूनाथ सिंह उसके संपादक हुए। कुछ समय तक त्रिलोचन ने भी उसका संपादन किया था। कवि नामवर की कवितांए उसमें छपने लगी। पहली कविता 'दीवाली' शीर्षक से छपी। दूसरी कविता थी-सुमन रो मत, छेड़ गानाः त्रिलोचन ने पढने की ओर, ख़ासकर आधुनिक साहित्य, उन्हें प्रेरित किया। उनकी ही प्रेरणा से उन्होंने पहली बार दो पुस्तकें | नामवर सिंह के स्कूल के छात्र –संघ से एक मासिक [[पत्रिका]] निकलती थी- क्षत्रिय मित्र। सरस्वती प्रसाद सिंह उसके संपादक थे। आगे चलकर शम्भूनाथ सिंह उसके संपादक हुए। कुछ समय तक त्रिलोचन ने भी उसका संपादन किया था। कवि नामवर की कवितांए उसमें छपने लगी। पहली कविता 'दीवाली' शीर्षक से छपी। दूसरी कविता थी-सुमन रो मत, छेड़ गानाः त्रिलोचन ने पढने की ओर, ख़ासकर आधुनिक साहित्य, उन्हें प्रेरित किया। उनकी ही प्रेरणा से उन्होंने पहली बार दो पुस्तकें ख़रीदी। पहली निराला की अनामिका,एवं दूसरी इलाचन्द्र जोशी द्रारा अनूदित गोकी की आवारा की डायरी। बनारस में सरसौली भवन में सागर सिंह नामक एक साहित्यिक व्यकित रहते थे। उनके घर पर प्रगातिशील लेखक संघ की एक गोष्ठी हुई थी, जिसमें त्रिलोचन कवि नामवर को भी ले गए थे यहीं पहली बार शिवदान सिंह चौहान और शमशेर बहादुर सिंह से परिचय हआ। यह बनारस की पहली गोष्ठी थी जिसमें उन्होंने कविता-पाठ किया। | ||
==कार्यक्षेत्र== | ==कार्यक्षेत्र== | ||
====अध्यापन==== | ====अध्यापन==== |
14:28, 21 फ़रवरी 2013 का अवतरण
नामवर सिंह
| |
पूरा नाम | डॉ. नामवर सिंह |
जन्म | 1 मई, 1927 |
जन्म भूमि | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
मुख्य रचनाएँ | आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, छायावाद, इतिहास और आलोचना, कविता के नए प्रतिमान आदि |
भाषा | हिन्दी |
शिक्षा | एम.ए., पी.एच.डी. (हिन्दी) |
पुरस्कार-उपाधि | शलाका सम्मान” (1991) एवं “साहित्य भूषण सम्मान" (1993) |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 16:38, 9 सितम्बर 2012 (IST)
|
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
नामवर सिंह हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और प्रमुख समकालीन आलोचक हैं।
जीवन परिचय
नामवर सिंह का जन्म 1 मई, 1927 को वाराणसी ज़िले के जीयनपुर नामक गाँव में हुआ। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उन्होंने हिन्दी में एम.ए. और पी.एच डी. की उपाधि ली। 82 वर्ष की उम्र पूर्ण कर चुके नामवरजी विगत 65 से भी अधिक वर्षो से साहित्य के क्षेत्र में हैं। पिछले 30-35 वर्षों से वे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर व्याख्यान भी दे रहे हैं। जब वे गांव में थे तो ब्रजभाषा में प्रायः श्रृंगारिक कविताएं लिखा करते थे। अब उन्होंने खड़ी बोली हिंदी में लिखना शुरू किया।
बनारस निवासी
नामवर सिंह बनारस के ईश्वर गंगी मुहल्ले में रहते थें। 1940 ई. में उन्होंने नवयुवक साहित्यिक संघ, नामक एवं साहित्यिक संस्था अपने सहयोगी पारसनाय मिश्र सेवक के साथ निमित की थी, जिसमें हर सप्ताह एक साहित्यिक गोष्ठी होती थी। 1944 ई. से नामवर भी इसकी गंगी मुहल्ले में शामिल होते थे। ठाकुर प्रसाद सिंह ने ईश्वर गंगी मुहल्ले में भारतेन्दु विद्यालय एंव ईश्वर गंगी पुस्तकालय की स्थापना की थी। 1947 ई.में उनकी नियुक्ति बलदेव इंटर कॉलेज, बडा़गांव में हो गई। नवयुवक साहित्य संघ की जिम्मेवारी उन्होंने नामवर और सेवक जी को दे दी। इसकी गोष्ठियां टाकुर प्रसाद सिंह के बगैर भी बरसों चलती रही। बाद में इसका नाम सिर्फ साहित्यिक संघ हो गया। इसकी गोष्टियों में बनारस के तत्कालीन प्रायः सभी साहित्यकार उपस्थित होते थे। नामवर के साथ त्रिलोचन एवं साही की इसमें नियमित उपस्थिति होती थी। नामवर की काव्य-प्रतिभा के निर्माण में इस संस्था का भी अप्रतिम योगदान है।
पहली कविता
नामवर सिंह के स्कूल के छात्र –संघ से एक मासिक पत्रिका निकलती थी- क्षत्रिय मित्र। सरस्वती प्रसाद सिंह उसके संपादक थे। आगे चलकर शम्भूनाथ सिंह उसके संपादक हुए। कुछ समय तक त्रिलोचन ने भी उसका संपादन किया था। कवि नामवर की कवितांए उसमें छपने लगी। पहली कविता 'दीवाली' शीर्षक से छपी। दूसरी कविता थी-सुमन रो मत, छेड़ गानाः त्रिलोचन ने पढने की ओर, ख़ासकर आधुनिक साहित्य, उन्हें प्रेरित किया। उनकी ही प्रेरणा से उन्होंने पहली बार दो पुस्तकें ख़रीदी। पहली निराला की अनामिका,एवं दूसरी इलाचन्द्र जोशी द्रारा अनूदित गोकी की आवारा की डायरी। बनारस में सरसौली भवन में सागर सिंह नामक एक साहित्यिक व्यकित रहते थे। उनके घर पर प्रगातिशील लेखक संघ की एक गोष्ठी हुई थी, जिसमें त्रिलोचन कवि नामवर को भी ले गए थे यहीं पहली बार शिवदान सिंह चौहान और शमशेर बहादुर सिंह से परिचय हआ। यह बनारस की पहली गोष्ठी थी जिसमें उन्होंने कविता-पाठ किया।
कार्यक्षेत्र
अध्यापन
नामवर सिंह ने अध्यापन कार्य का आरम्भ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (1953-1959) किया और फिर जोधपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष (1970-74), आगरा विश्वविद्यालय के क.मु. हिन्दी विद्यापीठ के प्रोफेसर निदेशक (1974), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में भारतीय भाषा केन्द्र के संस्थापक अध्यक्ष तथा हिन्दी प्रोफेसर (1965-92) और अब उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर इमेरिट्स हैं। नामवर सिंह महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रहे।
|
|
कृतियाँ
- 1996 बकलम खुद
- हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग
- पृथ्वीराज रासो की भाषा,
- आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ,
- छायावाद, इतिहास और आलोचना ।
सम्मान और पुरस्कार
- हिन्दी अकादमी, दिल्ली का “शलाका सम्मान” (1991)
- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का “साहित्य भूषण सम्मान" (1993)
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख