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<poem>बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
<poem>बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी || (मतला)
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी (मतला)
ख़ता किसी कि हो लेकिन खुली जो उनकी ज़बाँ
ख़ता किसी कि हो लेकिन खुली जो उनकी ज़बाँ
तो हो ही जाते हैं दो एक वार हम पर भी || (दूसरा शे'र) --- अकबर इलाहाबादी<ref>{{cite web |url=http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn/forum/topics/5170231:Topic:260947 |title=ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ  |accessmonthday=23 फ़रवरी |accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=open books online |language=हिंदी }}</ref></poem>
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09:40, 23 फ़रवरी 2013 का अवतरण

मतला ग़ज़ल का पहला शे'र होता है जिसके दोनों मिसरों में क़ाफ़िया रदीफ़़ होता है।

उदाहरण

बहुत रहा है कभी लुत्फ़-ए-यार हम पर भी
गुज़र चुकी है ये फ़स्ल-ए-बहार हम पर भी ॥ (मतला)
ख़ता किसी कि हो लेकिन खुली जो उनकी ज़बाँ
तो हो ही जाते हैं दो एक वार हम पर भी ॥ (दूसरा शे'र) --- अकबर इलाहाबादी[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ (हिंदी) open books online। अभिगमन तिथि: 23 फ़रवरी, 2013।

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