"डोल पूर्णिमा": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Dol-purnima.jpg|thumb|डोल पूर्णिमा अथवा डोल यात्रा, [[पश्चिम बंगाल]]]] | |||
'''डोल पूर्णिमा''' अथवा '''डोल यात्रा''' [[पश्चिम बंगाल]] में [[होली]] को कहा जाता है। इस दौरान [[रंग|रंगों]] के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रृंगार करते हैं। सुबह से ही [[नृत्य]] और [[संगीत]] का कार्यक्रम चलता है। घरों में मीठे पकवान और बनते हैं। इस पर्व को डोल यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर [[राधा]]-[[कृष्ण]] की प्रतिमा झूले में स्थापित की जाती है और महिलाएँ बारी-बारी से इसे झुलाती हैं। शेष महिलाएँ इसके चारों ओर नृत्य करती हैं। पूरे उत्सव के दौरान पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते रहते हैं और बदले में महिलाएँ भी उन्हें रंग-[[गुलाल]] लगाती हैं। | '''डोल पूर्णिमा''' अथवा '''डोल यात्रा''' [[पश्चिम बंगाल]] में [[होली]] को कहा जाता है। इस दौरान [[रंग|रंगों]] के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रृंगार करते हैं। सुबह से ही [[नृत्य]] और [[संगीत]] का कार्यक्रम चलता है। घरों में मीठे पकवान और बनते हैं। इस पर्व को डोल यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर [[राधा]]-[[कृष्ण]] की प्रतिमा झूले में स्थापित की जाती है और महिलाएँ बारी-बारी से इसे झुलाती हैं। शेष महिलाएँ इसके चारों ओर नृत्य करती हैं। पूरे उत्सव के दौरान पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते रहते हैं और बदले में महिलाएँ भी उन्हें रंग-[[गुलाल]] लगाती हैं। | ||
;[[उड़ीसा]] में भी होली को 'डोल पूर्णिमा' कहते हैं और [[जगन्नाथ रथयात्रा उड़ीसा|भगवान जगन्नाथ जी]] की डोली निकाली जाती है। | ;[[उड़ीसा]] में भी होली को 'डोल पूर्णिमा' कहते हैं और [[जगन्नाथ रथयात्रा उड़ीसा|भगवान जगन्नाथ जी]] की डोली निकाली जाती है। |
10:24, 17 मार्च 2013 का अवतरण
डोल पूर्णिमा अथवा डोल यात्रा पश्चिम बंगाल में होली को कहा जाता है। इस दौरान रंगों के साथ पूरे बंगाल की समृद्ध संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। इस दिन लोग बसंती रंग के कपड़े पहनते हैं और फूलों से श्रृंगार करते हैं। सुबह से ही नृत्य और संगीत का कार्यक्रम चलता है। घरों में मीठे पकवान और बनते हैं। इस पर्व को डोल यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। इस मौके पर राधा-कृष्ण की प्रतिमा झूले में स्थापित की जाती है और महिलाएँ बारी-बारी से इसे झुलाती हैं। शेष महिलाएँ इसके चारों ओर नृत्य करती हैं। पूरे उत्सव के दौरान पुरुष महिलाओं पर रंग फेंकते रहते हैं और बदले में महिलाएँ भी उन्हें रंग-गुलाल लगाती हैं।
- उड़ीसा में भी होली को 'डोल पूर्णिमा' कहते हैं और भगवान जगन्नाथ जी की डोली निकाली जाती है।
वसन्तोत्सव
गुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर ने होली के ही दिन शान्ति निकेतन में वसन्तोत्सव का आयोजन किया था, तब से आज तक इसे यहाँ बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
इन्हें भी देखें: मथुरा होली चित्र वीथिका, बरसाना होली चित्र वीथिका एवं बलदेव होली चित्र वीथिका
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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