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|+style="text-align:left; padding-left:10px; font-size:18px"|<font color="#003366">[[भारतकोश सम्पादकीय 22 फ़रवरी 2013|भारतकोश सम्पादकीय <small>-आदित्य चौधरी</small>]]</font> | |||
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[[चित्र:Kabir-ka-kamaal.jpg|right|120px|link=भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013]] | |||
<center>[[भारतकोश सम्पादकीय19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]]</center> | |||
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सहज होना आनंददायक तो है लेकिन सहज होना बहुत मुश्किल है। सरल और सहज तो आप 'होते' हैं 'बन' नहीं सकते फिर भी प्रयास करते रहने में क्या बुराई है...। सहजता राम जैसी कि तैयार हुए 'राज सिंहासन' के लिए और पल भर में ही जाना पड़ा 'वनवास' के लिए। [[राम]] वन को भी सहजता से ही गए। [[महावीर]] सहजता में इतने गहरे उतर गए कि 'निवस्त्र' ही रहे। [[रामकृष्ण परमहंस]] कहीं बारात में नाच होता देखते तो स्वयं भी नाचने लग जाते। [[जनक]] महलों में रहकर भी 'विदेह' कहलाए। [[चैतन्य महाप्रभु]] की सहज भक्ति के कारण तो मुस्लिम भी 'कृष्ण भक्त' हो गए और इन भक्तों ने वृन्दावन में अनेक भव्य मंदिर बनवा दिए। [[चाणक्य|विष्णुगुप्त चाणक्य]] [[चंद्रगुप्त मौर्य|चंद्रगुप्त]] को मगध का 'शासक' बना कर वापस 'शिक्षक' बन गए। [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|...पूरा पढ़ें]] | |||
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| [[भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी|पिछले लेख]] → | |||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 22 फ़रवरी 2013|प्रतीक्षा की सोच]] · | |||
| [[भारतकोश सम्पादकीय 25 जनवरी 2013|अहम का वहम]] | |||
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|}<noinclude>[[Category:मुखपृष्ठ के साँचे]]</noinclude> |
13:13, 19 मार्च 2013 का अवतरण
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