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;सम्पादकीय पृष्ठ- [[कबीर का कमाल -आदित्य चौधरी]]
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<center>[[भारतकोश सम्पादकीय19 मार्च 2013|कबीर का कमाल]]</center>
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               दुनिया की रीत निराली है। लोग प्रयासों को नहीं, परिणामों को देख शाबाशी देते हैं। पश्चाताप को नहीं, प्रायश्चित को सराहते हैं। खेती को नहीं, फ़सल को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा फूल की होती है न कि बीज की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा किया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|...पूरा पढ़ें]]
               दुनिया की रीत निराली है। लोग प्रयासों को नहीं, परिणामों को देख शाबाशी देते हैं। पश्चाताप को नहीं, प्रायश्चित को सराहते हैं। खेती को नहीं, फ़सल को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा फूल की होती है न कि बीज की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा किया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। [[भारतकोश सम्पादकीय 19 मार्च 2013|...पूरा पढ़ें]]

14:46, 19 मार्च 2013 का अवतरण

भारतकोश सम्पादकीय -आदित्य चौधरी
चित्र:Kabir-ka-kamaal.jpg
कबीर का कमाल

              दुनिया की रीत निराली है। लोग प्रयासों को नहीं, परिणामों को देख शाबाशी देते हैं। पश्चाताप को नहीं, प्रायश्चित को सराहते हैं। खेती को नहीं, फ़सल को देखकर मुग्ध होते हैं। सुन्दरता की प्रशंसा फूल की होती है न कि बीज की। इसलिए कबीर के इस क़िस्से से हम यह समझ सकते हैं कि कबीर ने किसी को सफ़ाई नहीं दी कि वह स्त्री झूठ बोल रही है बल्कि उस स्त्री के मुख से ही सच कहलवा किया और वह भी पूर्णत: अहिंसक तरीक़े से। ...पूरा पढ़ें

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