"सेमल वृक्ष": अवतरणों में अंतर
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[[संस्कृत]] में सेमल वृक्ष का नाम 'शाल्मली' है। इसका वैज्ञानिक नाम 'बामवेक्स सेइबा' है, जबकि सामान्य रूप से इसे [[अंग्रेज़ी]] में 'काँटन ट्री' के नाम से भी पुकारा जाता है। इसका यह नाम सेमल के सूखे फलों के अंदर पाए जाने वाले उन बेहद मुलायम रेशों के कारण पड़ा है, जो दिखने में [[कपास]] या रूई की तरह होते हैं। इस उष्णकटिबंधीय वृक्ष का सीधा उर्ध्वाधर तना होता है। इसकी पत्तियाँ डेशिडुअस होतीं हैं। इसके लाल पुष्प की पाँच पंखुड़ियाँ होतीं हैं। ये वसंत ऋतु के पहले ही आ जातीं हैं। इसका [[फल]] एक कैपसूल जैसा होता है। फल पकने पर श्वेत रंग के रेशे, कुछ कुछ कपास की तरह के निकालते हैं। इसके तने पर एक इंच तक के मजबूत कांटे भरे होते हैं। सेमल की लकड़ी इमारती काम के लिए प्रयोग नहीं होती। | [[संस्कृत]] में सेमल वृक्ष का नाम 'शाल्मली' है। इसका वैज्ञानिक नाम 'बामवेक्स सेइबा' है, जबकि सामान्य रूप से इसे [[अंग्रेज़ी]] में 'काँटन ट्री' के नाम से भी पुकारा जाता है। इसका यह नाम सेमल के सूखे फलों के अंदर पाए जाने वाले उन बेहद मुलायम रेशों के कारण पड़ा है, जो दिखने में [[कपास]] या रूई की तरह होते हैं। इस उष्णकटिबंधीय वृक्ष का सीधा उर्ध्वाधर तना होता है। इसकी पत्तियाँ डेशिडुअस होतीं हैं। इसके लाल पुष्प की पाँच पंखुड़ियाँ होतीं हैं। ये वसंत ऋतु के पहले ही आ जातीं हैं। इसका [[फल]] एक कैपसूल जैसा होता है। फल पकने पर श्वेत रंग के रेशे, कुछ कुछ कपास की तरह के निकालते हैं। इसके तने पर एक इंच तक के मजबूत कांटे भरे होते हैं। सेमल की लकड़ी इमारती काम के लिए प्रयोग नहीं होती। | ||
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सेमल वृक्ष पाँच सौ मीटर की ऊँचाई से लेकर पन्द्रह सौ मीटर की ऊँचाई तक होता है। इसका पेड़ काफ़ी बड़ा होता है। [[अप्रैल]] के [[माह]] में इस पर [[फूल]] निकलते है। इनका उपयोग [[सब्जियाँ|सब्जी]] के रूप में किया जाता है। फूल निकलने के बाद इस पर जो फल लगता है, वह [[केला|केले]] के आकार का होता है। इसका उपयोग कच्चा व सूखाकर सब्जी के रूप में किया जाता है। इसके फूलों की बाज़ार में भारी माँग है। | |||
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सेमल के तने पर मोटे तीक्ष्ण काँटे होते हैं, जिस कारण [[संस्कृत]] में इसे 'कंटक द्रुम' नाम भी मिला है। इसके तने पर जो काँटे उगते हैं, वे पेड़ के बड़ा होने पर कम होते जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि युवावस्था में पेड़ को जानवरों से सुरक्षा की जरूरत होती है, जबकि बड़ा होने पर यह आवश्यकता समाप्त हो जाती है। सेमल के मोटे तने पर गोल घेरे में निकलती टहनियाँ इसे ज्यामितीय सुंदरता प्रदान करती हैं। पलाश के तो केवल फूल ही सुंदर होते हैं, परंतु सेमल का तना, इसकी शाखाएँ और हस्ताकार घनी हरी पत्तियाँ भी कम खूबसूरत नहीं होतीं। इसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे बाग़-बगीचों और सड़कों के किनारे, छायादार पेड़ के रूप में बड़ी संख्या में लगाया जाता है। बसंत के जोर पकड़ते ही [[मार्च]] तक यह पर्णविहीन, सूखा-सा दिखाई देने वाला वृक्ष हज़ारों प्यालेनुमा गहरे [[लाल रंग]] के फूलों से लद जाता है।<ref name="ab"/> इसके इस पर्णविहीन एवं फिर फूलों से भरे हुए स्वरूप को देखकर ही मन कह उठता है- | |||
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क्या खूब छाई है, सेमल पर बहार।"</poem></blockquote> | |||
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फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं, उन बीजों से रूई निकलती है, जो मुलायम व सफ़ेद होती है। इस रूई का प्रयोग कई कामों में किया जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सेमल का उपयोग लोग पहले तो करते थे, लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं किया जाता था। सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। इसके फूल बाज़ार में 15 से 20 रूपये कि.ग्रा. तक बिकते हैं। इसके अतिरिक्त फल भी 10 से 15 रुपये और बीज तो 50 से 70 रुपये कि.ग्रा. तक आसानी से बेचे जा सकते हैं। सेमल वृक्ष से व्यवसाय करने वाले लोग एक सीजन में तीस से चालीस हज़ार [[रुपया]] तक कमा लेते हैं। सेमल केवल सब्जी तक सीमित नही है, उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण इसकी बड़े बाजारों में भारी माँग है।<ref>{{cite web |url=http://www.jagran.com/uttarakhand/tehri-garhwal-9038706.html|title=सेमल एक फायदे अनेक|accessmonthday=07 अप्रैल|accessyear=2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
====प्राप्ति स्थान==== | |||
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==विभिन्न रोगों में सहायक== | ==विभिन्न रोगों में सहायक== | ||
सेमल वृक्ष के [[फल]], [[फूल]], पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान करने में प्रयोग किया जाता है। जैसे- | सेमल वृक्ष के [[फल]], [[फूल]], पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान करने में प्रयोग किया जाता है। जैसे- | ||
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*[http://www.jkhealthworld.com/hindi_healthworld/node/22?q=node/1436 सेमल] | *[http://www.jkhealthworld.com/hindi_healthworld/node/22?q=node/1436 सेमल] | ||
*[http://indiantrenches.blogspot.in/2011/11/blog-post_06.html सेमल] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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08:19, 7 अप्रैल 2013 का अवतरण
सेमल वृक्ष उन पेड़-पौधों में से एक है, जिनका उपयोग मनुष्य काफ़ी लम्बे समय से विभिन्न प्रकार के लाभ अर्जित करने के लिए करता रहा है। इस वृक्ष से अनेक प्रकार के लाभ मनुष्य और पशु-पक्षियों को प्राप्त हैं। जंगलों व गाँवों के आस-पास कुदरती रूप से उगने वाले सेमल के वृक्ष आय का जरिया भी बनते हैं। सेमल के वृक्ष को कई लोग 'सेमर' भी कहते हैं। पाँच पंखुड़ियों वाले सेमल के लाल फूल आकार में सामान्य फूलों से कहीं ज़्यादा बड़े होते हैं। इसके फूलों की बाज़ार में भारी माँग है। फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं, उन बीजों से रूई निकलती है, जो मुलायम व सफ़ेद रंग की होती है।
वैज्ञानिक तथ्य
संस्कृत में सेमल वृक्ष का नाम 'शाल्मली' है। इसका वैज्ञानिक नाम 'बामवेक्स सेइबा' है, जबकि सामान्य रूप से इसे अंग्रेज़ी में 'काँटन ट्री' के नाम से भी पुकारा जाता है। इसका यह नाम सेमल के सूखे फलों के अंदर पाए जाने वाले उन बेहद मुलायम रेशों के कारण पड़ा है, जो दिखने में कपास या रूई की तरह होते हैं। इस उष्णकटिबंधीय वृक्ष का सीधा उर्ध्वाधर तना होता है। इसकी पत्तियाँ डेशिडुअस होतीं हैं। इसके लाल पुष्प की पाँच पंखुड़ियाँ होतीं हैं। ये वसंत ऋतु के पहले ही आ जातीं हैं। इसका फल एक कैपसूल जैसा होता है। फल पकने पर श्वेत रंग के रेशे, कुछ कुछ कपास की तरह के निकालते हैं। इसके तने पर एक इंच तक के मजबूत कांटे भरे होते हैं। सेमल की लकड़ी इमारती काम के लिए प्रयोग नहीं होती।
आकार व फल
सेमल वृक्ष पाँच सौ मीटर की ऊँचाई से लेकर पन्द्रह सौ मीटर की ऊँचाई तक होता है। इसका पेड़ काफ़ी बड़ा होता है। अप्रैल के माह में इस पर फूल निकलते है। इनका उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। फूल निकलने के बाद इस पर जो फल लगता है, वह केले के आकार का होता है। इसका उपयोग कच्चा व सूखाकर सब्जी के रूप में किया जाता है। इसके फूलों की बाज़ार में भारी माँग है।
काँटे तथा तना
सेमल के तने पर मोटे तीक्ष्ण काँटे होते हैं, जिस कारण संस्कृत में इसे 'कंटक द्रुम' नाम भी मिला है। इसके तने पर जो काँटे उगते हैं, वे पेड़ के बड़ा होने पर कम होते जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि युवावस्था में पेड़ को जानवरों से सुरक्षा की जरूरत होती है, जबकि बड़ा होने पर यह आवश्यकता समाप्त हो जाती है। सेमल के मोटे तने पर गोल घेरे में निकलती टहनियाँ इसे ज्यामितीय सुंदरता प्रदान करती हैं। पलाश के तो केवल फूल ही सुंदर होते हैं, परंतु सेमल का तना, इसकी शाखाएँ और हस्ताकार घनी हरी पत्तियाँ भी कम खूबसूरत नहीं होतीं। इसकी इन्हीं विशेषताओं के कारण इसे बाग़-बगीचों और सड़कों के किनारे, छायादार पेड़ के रूप में बड़ी संख्या में लगाया जाता है। बसंत के जोर पकड़ते ही मार्च तक यह पर्णविहीन, सूखा-सा दिखाई देने वाला वृक्ष हज़ारों प्यालेनुमा गहरे लाल रंग के फूलों से लद जाता है।[1] इसके इस पर्णविहीन एवं फिर फूलों से भरे हुए स्वरूप को देखकर ही मन कह उठता है-
"पत्ता नहीं एक, फूल हज़ार
क्या खूब छाई है, सेमल पर बहार।"
रोजगार का साधन
फल के पकने पर जो बीज निकलते हैं, उन बीजों से रूई निकलती है, जो मुलायम व सफ़ेद होती है। इस रूई का प्रयोग कई कामों में किया जाता है। दिलचस्प तथ्य यह है कि सेमल का उपयोग लोग पहले तो करते थे, लेकिन उस समय इसे व्यावसायिक रूप में प्रयोग नहीं किया जाता था। सेमल से कुछ समय के लिए लोगों को रोजगार भी मिल जाता है। इसके फूल बाज़ार में 15 से 20 रूपये कि.ग्रा. तक बिकते हैं। इसके अतिरिक्त फल भी 10 से 15 रुपये और बीज तो 50 से 70 रुपये कि.ग्रा. तक आसानी से बेचे जा सकते हैं। सेमल वृक्ष से व्यवसाय करने वाले लोग एक सीजन में तीस से चालीस हज़ार रुपया तक कमा लेते हैं। सेमल केवल सब्जी तक सीमित नही है, उसका औषधीय उपयोग भी है, जिस कारण इसकी बड़े बाजारों में भारी माँग है।[2]
प्राप्ति स्थान
भारत ही नहीं, दुनिया के सुंदरतम वृक्षों में सेमल वृक्ष की गिनती होती है। दक्षिण-पूर्वी एशिया का यह पेड़ ऑस्ट्रेलिया, हाँगकाँग, अफ्रीका और हवाई द्वीप के बाग़-बगीचों का एक महत्वपूर्ण सदस्य है। पंद्रह से पैंतीस मीटर की ऊँचाई का यह एक भव्य और तेजी से बढ़ने वाला, घनी पत्तियों का स्वामी, पर्णपाती पेड़ है। इसके फूलों और पुंकेसरों की संख्या और रचना के कारण अंग्रेज़ इसे 'शेविंग ब्रश ट्री' भी कहते हैं।[1]
विभिन्न रोगों में सहायक
सेमल वृक्ष के फल, फूल, पत्तियाँ और छाल आदि का विभिन्न प्रकार के रोगों का निदान करने में प्रयोग किया जाता है। जैसे-
- प्रदर रोग - सेमल के फलों को घी और सेंधा नमक के साथ साग के रूप में बनाकर खाने से स्त्रियों का प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
- जख्म - इस वृक्ष की छाल को पीस कर लेप करने से जख्म जल्दी भर जाता है।
- रक्तपित्त - सेमल के एक से दो ग्राम फूलों का चूर्ण शहद के साथ दिन में दो बार रोगी को देने से रक्तपित्त का रोग ठीक हो जाता है।
- अतिसार - सेमल वृक्ष के पत्तों के डंठल का ठंडा काढ़ा दिन में तीन बार 50 से 100 मिलीलीटर की मात्रा में रोगी को देने से अतिसार (दस्त) बंद हो जाते हैं।
- आग से जलने पर - इस वृक्ष की रूई को जला कर उसकी राख को शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम मिलता है।
- नपुंसकता - दस ग्राम सेमल के फल का चूर्ण, दस ग्राम चीनी और 100 मिलीलीटर पानी के साथ घोट कर सुबह-शाम लेने से बाजीकरण होता है और नपुंसकता भी दूर हो जाती है।
- पेचिश - यदि पेचिश आदि की शिकायत हो तो सेमल के फूल का ऊपरी बक्कल रात में पानी में भिगों दें। सुबह उस पानी में मिश्री मिलाकर पीने से पेचिश का रोग दूर हो जाता है।
- प्रदर रोग - सेमल के फूलों की सब्जी देशी घी में भूनकर सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
- गिल्टी या ट्यूमर - सेमल के पत्तों को पीसकर लगाने या बाँधने से गाँठों की सूजन कम हो जाती है।
- रक्तप्रदर - इस वृक्ष की गोंद एक से तीन ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तप्रदर में बहुत अधिक लाभ मिलता है।
- नपुंसकता - सेमल वृक्ष की छाल के 20 मिलीलीटर रस में मिश्री मिलाकर पीने से शरीर में वीर्य बढ़ता है और मैथुन शक्ति बढ़ती है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 सेमल पर छाई है बहार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 07 अप्रैल, 2013।
- ↑ सेमल एक फायदे अनेक (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 07 अप्रैल, 2013।
बाहरी कड़ियाँ
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