"हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी": अवतरणों में अंतर
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उज्जयिनी के मार्ग में एक पाकड़ का पेड़ था। उस पर हंस और काग रहते थे। एक दिन गरमी के समय थका हुआ, कोई मुसाफिर उस पेड़ के नीचे धनुषबाण रखकर सो गया। वहाँ थोड़ी देर में उसके मुख पर से वृक्ष की छाया ढल गई। फिर सूर्य के तेज से उसके मुख को तपता हुआ देख कर उस पेड़ पर बैठे हुए हँस ने दया विचार कर पंखों को पसार फिर उसके मुख पर छाया कर दी। फिर गहरी नींद के आनंद से उसने मुख फाड़ दिया। | उज्जयिनी के मार्ग में एक पाकड़ का पेड़ था। उस पर हंस और काग रहते थे। एक दिन गरमी के समय थका हुआ, कोई मुसाफिर उस पेड़ के नीचे धनुषबाण रखकर सो गया। वहाँ थोड़ी देर में उसके मुख पर से वृक्ष की छाया ढल गई। फिर सूर्य के तेज से उसके मुख को तपता हुआ देख कर उस पेड़ पर बैठे हुए हँस ने दया विचार कर पंखों को पसार फिर उसके मुख पर छाया कर दी। फिर गहरी नींद के आनंद से उसने मुख फाड़ दिया। |
14:11, 11 अप्रैल 2013 का अवतरण
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4. हंस, कौआ और एक मुसाफिर की कहानी
उज्जयिनी के मार्ग में एक पाकड़ का पेड़ था। उस पर हंस और काग रहते थे। एक दिन गरमी के समय थका हुआ, कोई मुसाफिर उस पेड़ के नीचे धनुषबाण रखकर सो गया। वहाँ थोड़ी देर में उसके मुख पर से वृक्ष की छाया ढल गई। फिर सूर्य के तेज से उसके मुख को तपता हुआ देख कर उस पेड़ पर बैठे हुए हँस ने दया विचार कर पंखों को पसार फिर उसके मुख पर छाया कर दी। फिर गहरी नींद के आनंद से उसने मुख फाड़ दिया।
बाद में पराये सुख को नहीं सहने वाला वह काब दुष्ट स्वभाव से उसके मुख में बीट करके उड़ गया। फिर जो उस बटोही ने उठ कर ऊपर जब देखा तब हंस दीख गया, उसे बाण मारा उसे बाण से मार दिया और हंस मर गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ