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;मारकण्डेय महादेव मंदिर(श्री मारकंडेश्वर महादेव शिव मंदिर)
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भारतीय जनसमानस को आज भी तीर्थ स्थलों पर सिद्धी और शान्ति प्राप्त होती है। समय-समय पर पृथ्वी पर ऐसे तपस्वी पैदा हुए हैं जिन्होने अपने तप के बल पर भाग्य की लेखनी को पलट दिया है। गंगा-गोमती के संगम पर स्थित मारकण्डेय महादेव तीर्थ धाम इसकी अनुपम मिशाल है। मारकण्डेय महादेव (Markande Mahadev) (मार्कंडेय/मार्कडेय/मारकंडेय/मारकंडे) की महिमा से मण्डित यह पुण्य स्थली हमेशा सबको अपने तरफ अकर्षित करता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दूसरे दिन राम नाम लिखा बेलपत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।
'''मारकण्डेय महादेव मंदिर''' [[उत्तर प्रदेश]] के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं। काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी [[काशी]], जो 'कैथी' के नाम से वर्तमान समय में प्रचलित है। [[मारकण्डेय|ऋषि मारकण्डेय]] [[शैव]]-[[वैष्णव|वैशणव]] एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हैं। मारकण्डेय महादेव मंदिर के [[शिवलिंग]] पर जो बेल पत्र चढ़ाया जाता है, उस पर [[चन्दन]] से [[श्रीराम]] का नाम लिखा जाता है। मान्यता है कि '[[महाशिवरात्रि]]' के दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।
==स्थिति==
भारतीय जनमानस को आज भी तीर्थ स्थलों पर सिद्धी और शान्ति प्राप्त होती है। समय-समय पर [[पृथ्वी]] पर ऐसे तपस्वी पैदा हुए हैं, जिन्होने अपने तप के बल पर भाग्य की लेखनी को पलट दिया है। [[गंगा]]-[[गोमती नदी|गोमती]] के संगम पर स्थित 'मारकण्डेय महादेव तीर्थ धाम' इसकी अनुपम मिशाल है। [[उत्तर प्रदेश]] के [[वाराणसी]] जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर चौबेपुर के कैथी ग्राम के उत्तरी सीमा पर बना 'श्रीमारकण्डेय धाम' अपार जन आस्था का प्रमुख केन्द्र है। तमाम तरह की परेशानियों से ग्रसित लोग अपने दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं।
==कथा==
मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती दोनों पुत्रहीन थे। वे [[नैमिषारण्य]] सीतापुर में तपस्यारत थे। वहाँ बहुत-से [[ऋषि]] भी तपस्यारत थे। वे लोग मृकण्ड ऋषि को देख कर अक्सर ताना स्वरूप कहते थे कि- "बिना पुत्रो गति नाश्ति" अर्थात "बिना पुत्र के गति नहीं होती।" मृकण्ड ऋषि को बहुत ग्लानी होती थी। वे पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ सीतापुर छोड़कर [[विंध्याचल]] चले आये। वहाँ इन्होंने घोर तपस्या प्रारम्भ की। इनकी साधना से प्रसन्न होकर [[ब्रह्मा]] ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि हमारी लेखनी को मिटाने वाले सिर्फ एक मात्र भगवान [[शंकर]] हैं। आप शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के संगम तपोवन 'कैथी' जाकर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये।


उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर चौबेपुर के कैथी ग्राम के उत्तरी सीमा पर बना श्रीमारकण्डेय धाम अपार जन आस्था का प्रमुख केन्द्र है। तमाम तरह के परेशानियों से ग्रस्ति लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहां आते हैं। काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी जो कैथी के नाम से वर्तामान समय में प्रचलित है।
कुछ वर्षों बाद प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिया और वर माँगने के लिए कहा। मृकण्ड ऋषि ने याचना कि- "भगवान मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।" इस पर शिव ने कहा- "तुम्हें अधिक आयु वाले अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर मात्र सोलह वर्ष की आयु वाला एक गुणवान पुत्र।" मुनि ने कहा कि- "प्रभु! मुझे गुणवान पुत्र ही चाहिए।" समय आने पर मुनि के यहाँ [[मारकण्डेय]] नामक पुत्र का जन्म हुआ। बालक को मृकण्ड ऋषि ने शिक्षा-दिक्षा के लिए [[आश्रम]] भेजा। समय बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मारकण्डेय जी को [[माता]]-[[पिता]] का दुःख न देखा गया। वे कारण जानने के लिए हठ करने लगे। बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने सारा वृतान्त कह बताया। मारकण्डेय समझ गये कि [[ब्रह्मा]] की लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूँ तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए। मारकण्डेय [[गंगा]]-[[गोमती]] के संगम पर बैठ कर घनघोर तपस्या में लीन हो गये। [[शिव]] पार्थिव वाचन [[पूजा]] करते हुए उम्र के बारह साल बीतने को आये। एक दिन [[यमराज]] ने बालक मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमराज के दूत का साहस टूट गया। उसने जाकर यमराज को सारा हाल बताया। तब जाकर यमराज स्वयं बालक को लेन भैंसे पर सवार होकर आये। जब यमराज बालक मारकण्डेय को लेने आये, तब वह शंकर जी की तपस्या में लीन था तथा [[शंकर]] [[पार्वती]] स्वयं उसकी रक्षा में वहाँ मौजूद थें। बालक मारकण्डेय का ध्यान तोड़ने के लिए यमराज दूर से भय दिखा प्रहार करने लगे। तब मारकण्डेय जी घबरा गये और उनके हाथ से [[शिवलिंग]] ज़मीन पर जा गिरा। शिव पार्थिव गिरते ही मृत्यु लोक से अनादि तक शिवलिंग का स्वरूप हो गया। यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर [[भक्त]] की रक्षा करने हेतु प्रकट हो गये और [[मारकण्डेय]] को यमराज से बचाया और यमराज को सचेत करते हुए कहा कि "चाहे संसार इधर से उधर हो जाए, [[सूर्य]] और [[चन्द्रमा]] बदल जाए, किन्तु मेरे परम भक्त मारकण्डये का तुम कुछ अनिष्ट नहीं कर सकते। इस बालक की आयु काल की गणना मेरे दिनों से होगी।
 
मृकण्डु ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती दोनों पुत्रहीन थे नैमिषारण्ड सीतापुर में तपस्यारत थे। वहां बहुत से ऋषि भी तपस्यारत थे। वे लोग मृकण्डु ऋषि को देख कर अक्सर ताना स्वरूप कहते कि बिना पुत्रो गति नाश्ति अर्थात बिना पुत्र के गति नहीं होती। मृकण्डु ऋषि को बहुत ग्लानी हुई, वे पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ सीतापुर छोड़कर विंध्याचल चले आये। वहां इन्होने घोर तपस्या किया इनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रम्हा जी ने उन्हे पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि हमारी लेखनी को मिटाने वाले सिर्फ एक मात्र शंकर जी हैं। आप शंकर जी की उपासना कर उन्हे प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्डु ऋषि गंगा-गोमती के संगम तपोवन कैथी जाकर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये। कुछ वर्षों बाद प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हे दर्शन दिया और वर मागने के लिए कहा। मृकण्डु ऋषि ने याचना किया कि भगवान मुझे पुत्ररत्न की प्राप्ति हो तब शंकर जी ने वरदान दिया कि तुम्हे एक पुत्र प्राप्त होगा मगर उसकी उम्र 12 वर्ष की होगी। यह वरदान पाकर मृकण्डु ऋषि काफ़ी प्रसन्न हुए। कुछ समय बाद उन्हे एक बालक प्राप्त हुआ जिसका नाम मारकण्डेय रखा गया। बालक को मृकण्डु ऋषि ने शिकक्षा- दिकक्षा के लिए आश्रम भेजा। समय बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्डु ऋषि को सताने लगी दोनो दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मारकण्डेय जी को माता-पिता का दुःख न देखा गया। कारण जानने के लिए हठ करने लगे बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्डु ऋषि ने सारा वृतान्त बताया। मारकण्डेय जी समझ गये कि ब्रम्हा जी के लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूं तो इस संकट में भी शंकर जी की शरण लेनी चाहिए। मारकण्डेय जी गंगा-गोमती के संगम पर बैठ कर घनघोर तपस्या में लीन हो गये। शिव पार्थिव वाचन पूजा करते हुए उम्र के बारह साल बीतने को आये। एक दिन यमराज ने बालक मारकण्डे को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमराज के दूत का साहस टूट गया वह जाकर यमराज को सारा हाल बताया तब जाकर यमराज स्वयं बालक को लेन भैंसे पर सवार होकर आये। जब यमराज बालक मारकण्डेय को लेने आये तब वह शंकर जी की तपस्या में लीन था तथा शंकर व पार्वती जी स्वयं उसके रक्षा में वहां मौजूद थें। बालक मारकण्डे का ध्यान तोड़ने के लिए यमराज दूर से भय दिखा प्रहार करने लगे तब मारकण्डेय जी घबरा गये और उनके हाथ से शिव पार्थिव ज़मीन पर जा गिरा, शिव पार्थिव गिरते ही मृत्यु लोक से तक अनादि शिव लिंग का स्वरूप हो गया। यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर भक्त की रक्षा करने हेतु प्रकट होकर मारकण्डे जी को यमराज से बचाया और यमराज को सचेत करते हुए कहा कि चाहे संसार इधर से उधर हो जाए, सूर्य और चन्द्रमा बदल जाए किन्तु मेरे परम भक्त मारकण्डये का तुम कुछ अनिष्ट नही कर सकते। इस बालक की आयु काल की गणना मेरे दिनों से होगी।
[[चित्र:markande ji2.gif|मारकण्डेय महादेव मंदिर|thumb|300px]]
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तब से गंगा-गोमती के तट पर बसा कैथी गांव मारकण्डे जी के नाम से विख्यात है। यहां का तपोवन काफ़ी विख्यात है। यह गर्ग, पराशर, श्रृंगी, उद्याल आदि ऋषियों की पतोस्थली रहा है। इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ती के लिए श्रृ्रगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था जिसके परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को पुत्र प्राप्त हुआ था। यही वह तपोस्थली है जहां राजा रघु द्वारा ग्यारह बार हरिवंश पुराण का परायण करने पर उन्हे उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ था। पुत्र कामना के लिए यह स्थल काफ़ी दुर्लभ है। हरिवंश पुराण का परायण तथा संतान गोपाल मंत्र का जाप कार्य सिद्धि के लिए विशेष मायने रखता है। पुत्र इच्छा पुर्ति के लिए इससे बढ़ कर सिद्धपीठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। मारकण्डे महादेव के इस तपोस्थली पर हर समय पति-पत्नि का जोड़ा पीत वस्त्र धारण कर गाठ जोड़े पुत्र प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण का पाठ कराते हैं। इस जगह आ कर पूजा-अर्चना के बाद लोगों को मनोकामना सिद्धि मिलती है।
==पुत्र प्राप्ति स्थल==
 
तब से गंगा-गोमती के तट पर बसा 'कैथी' गाँव मारकण्डेय जी के नाम से विख्यात है। यहाँ का तपोवन काफ़ी विख्यात है। यह गर्ग, पराशर, श्रृंगी, उद्याल आदि ऋषियों की तपोस्थली रहा है। इसी स्थान पर [[राजा दशरथ]] को पुत्र प्राप्ती के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि [[यज्ञ]] कराया था, जिसके परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को पुत्र प्राप्त हुआ था। यही वह तपोस्थली है, जहाँ राजा रघु द्वारा ग्यारह बार 'हरिवंशपुराण' का परायण करने पर उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ था। पुत्र कामना के लिए यह स्थल काफ़ी दुर्लभ है। 'हरिवंशपुराण' का परायण तथा 'संतान गोपाल मंत्र' का जाप कार्य सिद्धि के लिए विशेष मायने रखता है। पुत्र इच्छा पुर्ति के लिए इससे बढ़ कर सिद्धपीठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। 'मारकण्डे महादेव' के इस तपोस्थली पर हर समय पति-पत्नि का जोड़ा पीत वस्त्र धारण कर गाठ जोड़े पुत्र प्राप्ति के लिए 'हरिवंशपुराण' का पाठ कराते हैं। इस जगह आकर [[पूजा]]-अर्चना के बाद लोगों को मनोकामना सिद्धि मिलती है।
ऋषि मारकण्डेय शैव-वैशणव एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है। यहां शिव लिंग पर जो बेल पत्र चढ़ाया जाता है, उसपर चन्दन से राम नाम लिखा जाता है। यहां के पुजारी गोस्वामी जाति के लोग ही होते हैं तथा जो भी शिव अर्पण किया जाता है उसके निर्माल्य का अधिकार गोस्वामी ही होते हैं। प्रसाद के स्वरूप में लोगों को केवल बेलपत्र एवं भभूत मिलता है।
 
 


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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13:30, 28 मई 2013 का अवतरण

मारकण्डेय महादेव मंदिर

मारकण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं। काशीराज दिवोदास की बसाई दूसरी काशी, जो 'कैथी' के नाम से वर्तमान समय में प्रचलित है। ऋषि मारकण्डेय शैव-वैशणव एकता के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हैं। मारकण्डेय महादेव मंदिर के शिवलिंग पर जो बेल पत्र चढ़ाया जाता है, उस पर चन्दन से श्रीराम का नाम लिखा जाता है। मान्यता है कि 'महाशिवरात्रि' के दूसरे दिन श्रीराम नाम लिखा बेल पत्र अर्पित करने से पुत्र रत्न की प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है।

स्थिति

भारतीय जनमानस को आज भी तीर्थ स्थलों पर सिद्धी और शान्ति प्राप्त होती है। समय-समय पर पृथ्वी पर ऐसे तपस्वी पैदा हुए हैं, जिन्होने अपने तप के बल पर भाग्य की लेखनी को पलट दिया है। गंगा-गोमती के संगम पर स्थित 'मारकण्डेय महादेव तीर्थ धाम' इसकी अनुपम मिशाल है। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर गंगा-गोमती के संगम पर चौबेपुर के कैथी ग्राम के उत्तरी सीमा पर बना 'श्रीमारकण्डेय धाम' अपार जन आस्था का प्रमुख केन्द्र है। तमाम तरह की परेशानियों से ग्रसित लोग अपने दुःखों को दूर करने के लिए यहाँ आते हैं।

कथा

मृकण्ड ऋषि तथा उनकी पत्नि मरन्धती दोनों पुत्रहीन थे। वे नैमिषारण्य सीतापुर में तपस्यारत थे। वहाँ बहुत-से ऋषि भी तपस्यारत थे। वे लोग मृकण्ड ऋषि को देख कर अक्सर ताना स्वरूप कहते थे कि- "बिना पुत्रो गति नाश्ति" अर्थात "बिना पुत्र के गति नहीं होती।" मृकण्ड ऋषि को बहुत ग्लानी होती थी। वे पुत्र प्राप्ति की कामना के साथ सीतापुर छोड़कर विंध्याचल चले आये। वहाँ इन्होंने घोर तपस्या प्रारम्भ की। इनकी साधना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का रास्ता बताया कि हमारी लेखनी को मिटाने वाले सिर्फ एक मात्र भगवान शंकर हैं। आप शंकर जी की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करके पुत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस बात से प्रसन्न होकर मृकण्ड ऋषि गंगा-गोमती के संगम तपोवन 'कैथी' जाकर भगवान शंकर की घोर उपासना में लीन हो गये।

कुछ वर्षों बाद प्रसन्न होकर शंकर जी ने उन्हें दर्शन दिया और वर माँगने के लिए कहा। मृकण्ड ऋषि ने याचना कि- "भगवान मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हो।" इस पर शिव ने कहा- "तुम्हें अधिक आयु वाले अनेक गुणहीन पुत्र चाहिए या फिर मात्र सोलह वर्ष की आयु वाला एक गुणवान पुत्र।" मुनि ने कहा कि- "प्रभु! मुझे गुणवान पुत्र ही चाहिए।" समय आने पर मुनि के यहाँ मारकण्डेय नामक पुत्र का जन्म हुआ। बालक को मृकण्ड ऋषि ने शिक्षा-दिक्षा के लिए आश्रम भेजा। समय बीतने के साथ बालक की अल्प आयु की चिन्ता मृकण्ड ऋषि को सताने लगी। दोनों दम्पत्ति दुःखी रहने लगे। मारकण्डेय जी को माता-पिता का दुःख न देखा गया। वे कारण जानने के लिए हठ करने लगे। बाल हठ के आगे विवश होकर मृकण्ड ऋषि ने सारा वृतान्त कह बताया। मारकण्डेय समझ गये कि ब्रह्मा की लेखनी को मिटा कर जब भगवान शंकर के आशिर्वाद से मैं पैदा हुआ हूँ तो इस संकट में भी शंकर जी की ही शरण लेनी चाहिए। मारकण्डेय गंगा-गोमती के संगम पर बैठ कर घनघोर तपस्या में लीन हो गये। शिव पार्थिव वाचन पूजा करते हुए उम्र के बारह साल बीतने को आये। एक दिन यमराज ने बालक मारकण्डेय को लेने के लिए अपने दूत को भेजा। भगवान शंकर की तपस्या में लीन बालक को देख यमराज के दूत का साहस टूट गया। उसने जाकर यमराज को सारा हाल बताया। तब जाकर यमराज स्वयं बालक को लेन भैंसे पर सवार होकर आये। जब यमराज बालक मारकण्डेय को लेने आये, तब वह शंकर जी की तपस्या में लीन था तथा शंकरपार्वती स्वयं उसकी रक्षा में वहाँ मौजूद थें। बालक मारकण्डेय का ध्यान तोड़ने के लिए यमराज दूर से भय दिखा प्रहार करने लगे। तब मारकण्डेय जी घबरा गये और उनके हाथ से शिवलिंग ज़मीन पर जा गिरा। शिव पार्थिव गिरते ही मृत्यु लोक से अनादि तक शिवलिंग का स्वरूप हो गया। यमराज का त्रास देखकर भगवान शंकर भक्त की रक्षा करने हेतु प्रकट हो गये और मारकण्डेय को यमराज से बचाया और यमराज को सचेत करते हुए कहा कि "चाहे संसार इधर से उधर हो जाए, सूर्य और चन्द्रमा बदल जाए, किन्तु मेरे परम भक्त मारकण्डये का तुम कुछ अनिष्ट नहीं कर सकते। इस बालक की आयु काल की गणना मेरे दिनों से होगी।

मारकण्डेय महादेव मंदिर

पुत्र प्राप्ति स्थल

तब से गंगा-गोमती के तट पर बसा 'कैथी' गाँव मारकण्डेय जी के नाम से विख्यात है। यहाँ का तपोवन काफ़ी विख्यात है। यह गर्ग, पराशर, श्रृंगी, उद्याल आदि ऋषियों की तपोस्थली रहा है। इसी स्थान पर राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ती के लिए श्रृंगी ऋषि ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था, जिसके परिणाम स्वरूप राजा दशरथ को पुत्र प्राप्त हुआ था। यही वह तपोस्थली है, जहाँ राजा रघु द्वारा ग्यारह बार 'हरिवंशपुराण' का परायण करने पर उन्हें उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ था। पुत्र कामना के लिए यह स्थल काफ़ी दुर्लभ है। 'हरिवंशपुराण' का परायण तथा 'संतान गोपाल मंत्र' का जाप कार्य सिद्धि के लिए विशेष मायने रखता है। पुत्र इच्छा पुर्ति के लिए इससे बढ़ कर सिद्धपीठ स्थान कोई दूसरा नहीं है। 'मारकण्डे महादेव' के इस तपोस्थली पर हर समय पति-पत्नि का जोड़ा पीत वस्त्र धारण कर गाठ जोड़े पुत्र प्राप्ति के लिए 'हरिवंशपुराण' का पाठ कराते हैं। इस जगह आकर पूजा-अर्चना के बाद लोगों को मनोकामना सिद्धि मिलती है।


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