"पुरुषोत्तम दास टंडन": अवतरणों में अंतर

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'''पुरुषोत्तम दास टंडन''' ([[अंग्रेज़ी]]: Purushottam Das Tandon, जन्म- [[1 अगस्त]], [[1882]], [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[1 जुलाई]], [[1962]]) '[[आधुनिक भारत]]' के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे। वे 'राजर्षि' के नाम से भी विख्यात थे। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था। [[हिन्दी]] को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किये थे। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले आज़ादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आज़ादी मिल जाने के बाद आज़ादी को बनाये रखने का। वर्ष [[1950]] में वे '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। पुरुषोत्तम दास टंडन को [[भारत]] के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया है।
'''पुरुषोत्तम दास टंडन''' ([[अंग्रेज़ी]]: Purushottam Das Tandon, जन्म- [[1 अगस्त]], [[1882]], [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[1 जुलाई]], [[1962]]) '[[आधुनिक भारत]]' के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे। वे 'राजर्षि' के नाम से भी विख्यात थे। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था। [[हिन्दी]] को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किये थे। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले आज़ादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आज़ादी मिल जाने के बाद आज़ादी को बनाये रखने का। वर्ष [[1950]] में वे '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। पुरुषोत्तम दास टंडन को [[भारत]] के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया है। वर्ष [[1961]] में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान '[[भारत रत्न]]' से भी सम्मानित किया गया था।
==जन्म==
==जन्म तथा शिक्षा==
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 1 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद नगर में हुआ था।  
पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 01 अगस्त, 1882 को [[उत्तर प्रदेश]] के प्राचीनतम और धार्मिक शहर [[इलाहाबाद]] में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय 'सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय' में हुई थी। इसके बाद उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की और एम.ए. इतिहास विषय से किया। वर्ष [[1906]] में वकालत की प्रैक्टिस के लिए पुरुषोत्तम जी ने 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय' में काम करना शुरू किया।
==शिक्षा==
====विधायी जीवन====
पुरुषोत्तम दास टंडन की प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय में हुई। इसके बाद उन्होंने लॉ की डिग्री हासिल की और 1906 में लॉ की प्रैक्टिस के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम करना शुरू किया।  
पुरुषोत्तम जी के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से भी अधिक समय तक [[उत्तर प्रदेश]] की [[विधानसभा]] के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, [[लोक सभा]] और [[राज्य सभा]] के भी सदस्य रहे थे। वे समर्पित राजनयिक, [[हिन्दी]] के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक थे। 
==विधायी जीवन==
==क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत==
टंडन के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, लोकसभा और राज्यसभा के भी सदस्य रहे। वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे। 
पुरुषोत्तम दास टंडन ने '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' के साथ वर्ष [[1899]] से ही काम करना शुरु कर दिया था। क्रांतिकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' के 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से निष्कासित कर दिया गया था। बाद में [[1903]] में अपने [[पिता]] के निधन के बाद उन्होंने एक अन्य कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। वर्ष [[1919]] में देश को झकझोर कर रख देने वाली घटना '[[जलियाँवाला बाग़|जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड]]' का अध्ययन करने वाली कांग्रेस पार्टी की समिति के वह एक सदस्य बनाये गए थे। [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] के कहने पर पुरुषोत्तम जी ने वकालत को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने '[[रॉलेट एक्ट]]' विरोधी [[सत्याग्रह]] में सक्रियता से भाग लिया।
==आन्दोलन में सक्रियता से भाग==
==जेल यात्रा व आन्दोलन==
पुरुषोत्तम दास टंडन ने रॉलेट एक्ट विरोधी सत्याग्रह में सक्रियता से भाग लिया। असहयोग आन्दोलन के दौरान उन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी तथा आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने इलाहाबाद में कृषक आन्दोलन का संचालन किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में [[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] का संचालन किया। उन्होंने किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा 1937 ई. में इसके अध्यक्ष बने। उन्होंने भारत विभाजन का डटकर विरोध किया। 1951 ई. में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने, किंतु बाद में भाषयी राज्यों के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने पर उन्होंने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। वे [[हिन्दी]] को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे।
वर्ष [[1930]] में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे '[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]]' के सिलसिले में वे [[बस्ती ज़िला|बस्ती]] में गिरफ्तार हुए और उन्हें कारावास का दण्ड मिला। बाद के समय में उन्होंने [[इलाहाबाद]] में 'कृषक आन्दोलन' का संचालन किया। उन्होंने [[उत्तर प्रदेश]] में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' का संचालन किया। किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा [[1937]] ई. में इसके अध्यक्ष भी नियुक्त हुए। पुरुषोत्तम दास टंडन ने [[भारत]] के विभाजन का डटकर विरोध किया। [[1931]] में [[लंदन]] में आयोजित 'गोलमेज सम्मेलन' से गाँधीजी के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें [[जवाहर लाल नेहरू]] के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे। उन्होंने [[बिहार]] में [[कृषि]] को बढ़ावा देने के लिए काफ़ी कार्य किए थे। वर्ष [[1933]] में वे बिहार की 'प्रादेशिक किसान सभा' के अध्यक्ष चुने गए थे। 'बिहार किसान आंदोलन' के साथ सहानुभूति रखते हुए उन्होंने विकास के अनेक कार्य सम्पन्न कराये।
==गोलमेज़ सम्मेलन==
 
1931 में लंदन में आयोजित [[गोलमेज़ सम्मेलन]] से [[गांधी जी]] के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था उनमें [[जवाहरलाल नेहरू]] के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे।
[[1951]] ई. में वे [[कांग्रेस]] के अध्यक्ष बने, किंतु बाद में भाषायी राज्यों के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने पर उन्होंने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। वे [[हिन्दी]] को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे।
==हिंदी को आगे बढ़ाने के प्रयास==
==हिंदी को आगे बढ़ाने के प्रयास==
हिंदी को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान देने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किया। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन  ने [[10 अक्टूबर]], 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के प्रांगण में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। इसी क्रम में 1918 में उन्होंने ‘हिंदी विद्यापीठ’ और 1947 में ‘हिंदी रक्षक दल’ की स्थापना की। '''वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले 'आज़ादी प्राप्त करने का' और आज़ादी  के बाद 'आज़ादी को बनाये रखने का'  साधन  मानते थे।''' राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिंदी के प्रबल पक्षधर थे। वह हिंदी में भारत की मिट्टी की सुगंध महसूस करते थे। हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में स्पष्ट घोषणा की गई कि अब से राजकीय सभाओं, कांग्रेस की प्रांतीय सभाओं और अन्य सम्मेलनों में अंग्रेज़ी का एक शब्द भी सुनाई न पड़े।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/07/01/profile-of-purushottam-das-tandon/ |title=हिंदी के कर्ता-धर्ता : भारत रत्न राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन |accessmonthday=[[21 जुलाई]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जंक्शन |language=हिंदी }}</ref>
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==राजनीतिक रिकार्ड==  
==राजनीतिक रिकार्ड==  
आजादी के बाद [[1951]] में हुए देश के पहले चुनाव में पांच प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए थे। इसके बाद [[1952]] में हुए उप चुनाव में [[इलाहाबाद|इलाहाबाद पश्चिम]] में [[कांग्रेस]] के पुरुषोत्तम दास टंडन निर्विरोध जीते। [[1962]] में [[टिहरी गढ़वाल]] से वहां के राजा मानवेंद्रशाह ने जब चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उनके मुकाबले कोई प्रत्याशी आगे नहीं आया। इस चुनाव में [[भारतीय जनसंघ|जनसंघ]] के रंगीलाल ने परचा भरा था लेकिन वापस ले लिया था।
आज़ादी के बाद [[1951]] में हुए देश के पहले चुनाव में पांच प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए थे। इसके बाद [[1952]] में हुए उप चुनाव में [[इलाहाबाद|इलाहाबाद पश्चिम]] में [[कांग्रेस]] के पुरुषोत्तम दास टंडन निर्विरोध जीते। [[1962]] में [[टिहरी गढ़वाल]] से वहां के राजा मानवेंद्रशाह ने जब चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उनके मुकाबले कोई प्रत्याशी आगे नहीं आया। इस चुनाव में [[भारतीय जनसंघ|जनसंघ]] के रंगीलाल ने परचा भरा था, लेकिन वापस ले लिया था।
==कार्यकाल==
==कार्यकाल==
आज़ादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। [[31 जुलाई]], 1937 से लेकर [[10 अगस्त]], 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा को संबोधित किया।
आज़ादी के बाद उन्होंने [[उत्तर प्रदेश]] की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। [[31 जुलाई]], [[1937]] से लेकर [[10 अगस्त]], [[1950]] तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधान सभा को संबोधित किया।
==पुरस्कार==
==पुरस्कार==
1961 में [[हिंदी भाषा]] को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। [[23 अप्रैल]], [[1961]] को उन्हें भारत सरकार द्वारा '[[भारत रत्न]]' की उपाधि से विभूषित किया गया।
[[1961]] में [[हिंदी भाषा]] को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। [[23 अप्रैल]], [[1961]] को उन्हें भारत सरकार द्वारा '[[भारत रत्न]]' की उपाधि से विभूषित किया गया।
==निधन==
==निधन==
[[1 जुलाई]], 1962 को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया।
[[1 जुलाई]], [[1962]] को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया।
 


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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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12:37, 5 जून 2013 का अवतरण

पुरुषोत्तम दास टंडन

पुरुषोत्तम दास टंडन (अंग्रेज़ी: Purushottam Das Tandon, जन्म- 1 अगस्त, 1882, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1 जुलाई, 1962) 'आधुनिक भारत' के प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों में से एक थे। वे 'राजर्षि' के नाम से भी विख्यात थे। उन्होंने अपना जीवन एक वकील के रूप में प्रारम्भ किया था। हिन्दी को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किये थे। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले आज़ादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आज़ादी मिल जाने के बाद आज़ादी को बनाये रखने का। वर्ष 1950 में वे 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। पुरुषोत्तम दास टंडन को भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना, नयी लहर, नयी क्रान्ति पैदा करने वाला कर्मयोगी कहा गया है। वर्ष 1961 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया था।

जन्म तथा शिक्षा

पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म 01 अगस्त, 1882 को उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम और धार्मिक शहर इलाहाबाद में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय 'सिटी एंग्लो वर्नाक्यूलर विद्यालय' में हुई थी। इसके बाद उन्होंने एल.एल.बी. की डिग्री हासिल की और एम.ए. इतिहास विषय से किया। वर्ष 1906 में वकालत की प्रैक्टिस के लिए पुरुषोत्तम जी ने 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय' में काम करना शुरू किया।

विधायी जीवन

पुरुषोत्तम जी के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से भी अधिक समय तक उत्तर प्रदेश की विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा, लोक सभा और राज्य सभा के भी सदस्य रहे थे। वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक थे। 

क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत

पुरुषोत्तम दास टंडन ने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' के साथ वर्ष 1899 से ही काम करना शुरु कर दिया था। क्रांतिकारी कार्यकलापों के कारण उन्हें 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' के 'म्योर सेण्ट्रल कॉलेज' से निष्कासित कर दिया गया था। बाद में 1903 में अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने एक अन्य कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। वर्ष 1919 में देश को झकझोर कर रख देने वाली घटना 'जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड' का अध्ययन करने वाली कांग्रेस पार्टी की समिति के वह एक सदस्य बनाये गए थे। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के कहने पर पुरुषोत्तम जी ने वकालत को छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। उन्होंने 'रॉलेट एक्ट' विरोधी सत्याग्रह में सक्रियता से भाग लिया।

जेल यात्रा व आन्दोलन

वर्ष 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाये जा रहे 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' के सिलसिले में वे बस्ती में गिरफ्तार हुए और उन्हें कारावास का दण्ड मिला। बाद के समय में उन्होंने इलाहाबाद में 'कृषक आन्दोलन' का संचालन किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' का संचालन किया। किसानों में लगान की नाअदायगी का आन्दोलन भी चलाया। वे संयुक्त प्रांत व्यवस्थापिका परिषद् के सदस्य बने तथा 1937 ई. में इसके अध्यक्ष भी नियुक्त हुए। पुरुषोत्तम दास टंडन ने भारत के विभाजन का डटकर विरोध किया। 1931 में लंदन में आयोजित 'गोलमेज सम्मेलन' से गाँधीजी के वापस लौटने से पहले जिन स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार किया गया था, उनमें जवाहर लाल नेहरू के साथ पुरुषोत्तम दास टंडन भी थे। उन्होंने बिहार में कृषि को बढ़ावा देने के लिए काफ़ी कार्य किए थे। वर्ष 1933 में वे बिहार की 'प्रादेशिक किसान सभा' के अध्यक्ष चुने गए थे। 'बिहार किसान आंदोलन' के साथ सहानुभूति रखते हुए उन्होंने विकास के अनेक कार्य सम्पन्न कराये।

1951 ई. में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने, किंतु बाद में भाषायी राज्यों के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने पर उन्होंने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। वे हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के प्रबल समर्थक थे।

हिंदी को आगे बढ़ाने के प्रयास

हिंदी को आगे बढ़ाने और इसे राष्ट्रभाषा का स्थान देने के लिए पुरुषोत्तम दास जी ने काफ़ी प्रयास किया। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन  ने 10 अक्टूबर, 1910 को नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के प्रांगण में हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की। इसी क्रम में 1918 में उन्होंने ‘हिंदी विद्यापीठ’ और 1947 में ‘हिंदी रक्षक दल’ की स्थापना की। वे हिन्दी को देश की आज़ादी के पहले 'आज़ादी प्राप्त करने का' और आज़ादी  के बाद 'आज़ादी को बनाये रखने का'  साधन  मानते थे। राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन हिंदी के प्रबल पक्षधर थे। वह हिंदी में भारत की मिट्टी की सुगंध महसूस करते थे। हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में स्पष्ट घोषणा की गई कि अब से राजकीय सभाओं, कांग्रेस की प्रांतीय सभाओं और अन्य सम्मेलनों में अंग्रेज़ी का एक शब्द भी सुनाई न पड़े।[1]

राजनीतिक रिकार्ड

आज़ादी के बाद 1951 में हुए देश के पहले चुनाव में पांच प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए थे। इसके बाद 1952 में हुए उप चुनाव में इलाहाबाद पश्चिम में कांग्रेस के पुरुषोत्तम दास टंडन निर्विरोध जीते। 1962 में टिहरी गढ़वाल से वहां के राजा मानवेंद्रशाह ने जब चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उनके मुकाबले कोई प्रत्याशी आगे नहीं आया। इस चुनाव में जनसंघ के रंगीलाल ने परचा भरा था, लेकिन वापस ले लिया था।

कार्यकाल

आज़ादी के बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के प्रवक्ता के रुप में 13 साल तक काम किया। 31 जुलाई, 1937 से लेकर 10 अगस्त, 1950 तक के लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधान सभा को संबोधित किया।

पुरस्कार

1961 में हिंदी भाषा को देश में अग्रणी स्थान दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार दिया गया। 23 अप्रैल, 1961 को उन्हें भारत सरकार द्वारा 'भारत रत्न' की उपाधि से विभूषित किया गया।

निधन

1 जुलाई, 1962 को हिंदी के परम प्रेमी पुरुषोत्तम दास टंडन जी का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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