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'''काका हाथरसी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Kaka Hathrasi'') (वास्तविक नाम- प्रभुलाल गर्ग, जन्म- [[18 सितंबर]], [[1906]], [[हाथरस]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- 18 सितंबर, [[1995]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध [[हिन्दी]] हास्य [[कवि]] थे। उन्हें हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताओं का पर्याय माना जाता है। काका हाथरसी की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही थी, वर्तमान में भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं। भले ही काका हाथरसी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताए, जिन्हें वे 'फुलझडियाँ' कहा करते थे, सदैव हमे गुदगुदाती रहेंगी।  
'''काका हाथरसी''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Kaka Hathrasi'') (वास्तविक नाम- प्रभुलाल गर्ग, जन्म- [[18 सितंबर]], [[1906]], [[हाथरस]], [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- 18 सितंबर, [[1995]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध [[हिन्दी]] हास्य [[कवि]] थे। उन्हें हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताओं का पर्याय माना जाता है। काका हाथरसी की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही थी, वर्तमान में भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं। भले ही काका हाथरसी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताए, जिन्हें वे 'फुलझडियाँ' कहा करते थे, सदैव हमे गुदगुदाती रहेंगी।  
==जीवन परिचय==
==जीवन परिचय==
काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर, 1906 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[हाथरस ज़िला|हाथरस ज़िले]] में हुआ था। उनके [[पिता]] का नाम शिवलाल गर्ग और [[माता]] का नाम बरफ़ी देवी था। जब वे मात्र 15 दिन के थे, तभी [[प्लेग]] की महामारी ने उनके पिता को छीन लिया और परिवार के दुर्दिन आरम्भ हो गये। भयंकर ग़रीबी में भी काका ने अपना संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही [[कविता]] रचना और [[संगीत]] शिक्षा का समंवय बनाये रखा। उन्होंने हास्य कविताओं के साथ-साथ [[संगीत]] पर भी पुस्तकें भी लिखीं और संगीत पर एक मासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 'काका के कारतूस' और 'काका की फुलझडियाँ' जैसे स्तम्भों के द्वारा अपने पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए वे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति भी सचेत रहते थे। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना [[1933]] में "गुलदस्ता" मासिक पत्रिका में उनके वास्तविक नाम से छपी थी।<ref>{{cite web |url=http://hindi-blog-list.blogspot.com/2011/09/18-september-kaka-hathrasi-anniversary.html |title=काका हाथरसी का जन्मदिन और पुण्यतिथि (18 सितम्बर) |accessmonthday=21 अक्टूबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग सूची |language=हिन्दी }}</ref>
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<blockquote>दिन अट्ठारह सितंबर, अग्रवाल परिवार।  
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उन्नीस सौ छ: में लिया, काका ने अवतार।<ref name="bss"/></blockquote>
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====काका परिवार====
====परिवार====
काका के प्रपितामह [[गोकुल]]-[[महावन]] से आकर हाथरस में बस गए और यहाँ बर्तन-विक्रय का काम (व्यापार) किया। बर्तन के व्यापारी को उन दिनों कसेरे कहा जाता था। पितामह (बाबा) श्री सीताराम कसेरे ने अपने पिता के व्यवसाय को चालू रखा। उसके बाद बँटवारा होने पर बर्तन की दुकान परिवार की दूसरी शाखा पर चली गईं। परिणामत: इनके पिताजी को बर्तनों की एक दुकान पर मुनीमगीरी करनी पड़ी।<ref name="bss"/>  
काका हाथरसी के प्रपितामह [[गोकुल]], [[महावन]] से आकर हाथरस में बस गए थे और यहाँ उन्होंने बर्तन-विक्रय का काम (व्यापार) प्रारम्भ किया था। बर्तन के व्यापारी को उन दिनों 'कसेरे' कहा जाता था। पितामह (बाबा) श्री सीताराम कसेरे ने अपने पिता के व्यवसाय को नियमित रूप से चलायमान रखा। उसके बाद बँटवारा होने पर बर्तन की दुकान परिवार की दूसरी शाखा पर चली गईं। परिणामत: काका जी के पिता को बर्तनों की एक दुकान पर मुनीमगीरी करनी पड़ी।<ref name="bss"/>  
====आठ रुपए मासिक से पलता परिवार====  
==प्लेग का कहर==  
काका का जन्म 1906 में ऐसे समय में हुआ जब [[प्लेग]] की भयंकर बीमारी ने हज़ारों घरों को उज़ाड़ दिया था। यह बीमारी देश के जिस भाग में फैलती, उसके गाँवों और शहरों को वीरान बनाती चली जाती थी। शहर से गाँवों और गाँवों से नगरों की ओर व्याकुलता से भागती हुई भीड़ हृदय को कंपित कर देती थी। कितने ही घर उजड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए, महिलाएँ विधवा हो गईं। किसी-किसी घर में तो नन्हें-मुन्नों को पालने वाला तक न बचा। अभी काका केवल 15 दिन के ही शिशु थे, कि इनके पिताजी को [[प्लेग]] की बीमारी हो गयी। 20 वर्षीय माता बरफ़ी देवी, जिन्होंने अभी संसारी जीवन जानने-समझने का प्रयत्न ही किया था, इस वज्रपात से व्याकुल हो उठीं। मानों सारा विश्व उनके लिए सूना और अंधकारमय हो गया। उन दिनों घर में माताजी, बड़े भाई भजनलाल और एक बड़ी बहिन किरन देवी और काका कुल चार प्राणी साधन-विहीन रह गए।<ref name="bss">{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=3464 |title= मेरा जीवन ए-वन|accessmonthday=21 अक्टूबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language=हिन्दी }}</ref>
काका का जन्म [[1906]] में ऐसे समय में हुआ था, जब [[प्लेग]] की भयंकर बीमारी ने हज़ारों घरों को उज़ाड़ दिया। यह बीमारी देश के जिस भाग में फैलती, उसके गाँवों और शहरों को वीरान बनाती चली जाती थी। शहर से गाँवों और गाँवों से नगरों की ओर व्याकुलता से भागती हुई भीड़ [[हृदय]] को कंपित कर देती थी। कितने ही घर उजड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए, महिलाएँ विधवा हो गईं। किसी-किसी घर में तो नन्हें-मुन्नों को पालने वाला तक नहीं बचा था। अभी काका केवल 15 दिन के ही शिशु थे, कि इनके पिताजी को [[प्लेग]] की बीमारी हो गयी। 20 वर्षीय माता बरफ़ी देवी, जिन्होंने अभी संसारी जीवन जानने-समझने का प्रयत्न ही किया था, इस वज्रपात से व्याकुल हो उठीं। मानों सारा विश्व उनके लिए सूना और अंधकारमय हो गया। उन दिनों घर में माताजी, बड़े भाई भजनलाल और एक बड़ी बहिन किरन देवी और काका कुल चार प्राणी साधन-विहीन रह गए।
 
====शिक्षा====
काका हाथरसी ने [[हास्य रस]] से ओत-प्रोत कविताओं के साथ-साथ [[संगीत]] पर भी पुस्तकें भी लिखी थी। उन्होंने [[संगीत]] पर एक मासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 'काका के कारतूस' और 'काका की फुलझडियाँ' जैसे स्तम्भों के द्वारा अपने पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए वे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति भी सचेत रहते थे। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना [[1933]] में "गुलदस्ता" मासिक पत्रिका में उनके वास्तविक नाम से छपी थी।<ref>{{cite web |url=http://hindi-blog-list.blogspot.com/2011/09/18-september-kaka-hathrasi-anniversary.html |title=काका हाथरसी का जन्मदिन और पुण्यतिथि (18 सितम्बर) |accessmonthday=21 अक्टूबर |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग सूची |language=हिन्दी }}</ref>
==मुख्य रचनाएँ==
==मुख्य रचनाएँ==
काका हाथरसी की मुख्य कविता संग्रह इस प्रकार है-
काका हाथरसी के मुख्य कविता संग्रह इस प्रकार हैं-
* काका की फुलझड़ियाँ   
#काका की फुलझड़ियाँ   
* काका के प्रहसन  
#काका के प्रहसन  
* लूटनीति मंथन करि   
#लूटनीति मंथन करि   
* खिलखिलाहट   
#खिलखिलाहट   
* काका तरंग   
#काका तरंग   
* जय बोलो बेईमान की   
#जय बोलो बेईमान की   
* यार सप्तक   
#यार सप्तक   
* काका के व्यंग्य बाण  
#काका के व्यंग्य बाण
 
==योगदान==
==योगदान==
जीवन के संघर्षों के बीच हास्य की फुलझड़ियाँ जलाने वाले काका ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिये गर्ग ऐंड कम्पनी की स्थापना की जिसका नाम बाद में संगीत कार्यालय हाथरस हुआ। भारतीय संगीत के सन्दर्भ में विभिन्न भाषा और [[लिपि]] में किये गये कार्यों को उन्होंने जतन से इकट्ठा करके प्रकाशित किया। उनकी लिखी पुस्तकें संगीत विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों के रूप में प्रयुक्त हुईं। 1935 से संगीत कार्यालय ने मासिक पत्रिका "संगीत" का प्रकाशन भी आरम्भ किया जो कि अब तक अनवरत चल रहा है। उन्होंने हास्य कवियों के लिये काका हाथरसी पुरस्कार और संगीत के क्षेत्र में काका हाथरसी संगीत सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी ने अपने जीवनकाल में हास्यरस को भरपूर जिया था वे और हास्यरस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्यरस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही [[हिन्दी]] के प्रसार में अविस्मरणीय योग दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों हिन्दी-प्रेमियों के [[हृदय]] को छुआ।
जीवन के संघर्षों के बीच हास्य की फुलझड़ियाँ जलाने वाले काका हाथरसी ने [[1932]] में [[हाथरस]] में [[संगीत]] की उन्नति के लिये 'गर्ग ऐंड कम्पनी' की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में 'संगीत कार्यालय हाथरस' हुआ। भारतीय संगीत के सन्दर्भ में विभिन्न [[भाषा]] और [[लिपि]] में किये गये कार्यों को उन्होंने जतन से इकट्ठा करके प्रकाशित किया। उनकी लिखी पुस्तकें संगीत विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों के रूप में प्रयुक्त हुईं। [[1935]] से संगीत कार्यालय ने मासिक पत्रिका "संगीत" का प्रकाशन भी आरम्भ किया, जो कि अब तक अनवरत चल रहा है।
 
====पुरस्कारों की शुरुआत====
==निधन==
काका हाथरसी नाम पर ही कवियों के लिये 'काका हाथरसी पुरस्कार' और संगीत के क्षेत्र में 'काका हाथरसी संगीत' सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में [[हास्य रस]] को भरपूर जिया था। वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही [[हिन्दी]] के प्रसार में अविस्मरणीय योगदान दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों [[हिन्दी] के प्रेमियों के [[हृदय]] को छुआ।
18 सितंबर, 1906 को जन्म लेने वाले काका हाथरसी का निधन भी 18 सितंबर को ही सन् 1995 में हुआ।  
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[[18 सितंबर]], [[1906]] को जन्म लेने वाले काका हाथरसी का निधन भी 18 सितंबर को ही सन [[1995]] में हुआ।  


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13:50, 12 जून 2013 का अवतरण

काका हाथरसी
काका हाथरसी
काका हाथरसी
पूरा नाम प्रभुलाल गर्ग उर्फ़ काका हाथरसी
जन्म 18 सितंबर, 1906
जन्म भूमि हाथरस, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 18 सितंबर, 1995
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र हास्य कवि, लेखक
मुख्य रचनाएँ 'काका की फुलझड़ियाँ', 'काका के प्रहसन', 'लूटनीति मंथन करि', 'खिलखिलाहट' आदि।
भाषा हिन्दी
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री
प्रसिद्धि हास्य कवि।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आपके नाम से चलाया गया 'काका हाथरसी पुरस्कार' प्रतिवर्ष एक सर्वश्रेष्ठ हास्य कवि को प्रदान किया जाता है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
काका हाथरसी की रचनाएँ

काका हाथरसी (अंग्रेज़ी:Kaka Hathrasi) (वास्तविक नाम- प्रभुलाल गर्ग, जन्म- 18 सितंबर, 1906, हाथरस, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 18 सितंबर, 1995) भारत के प्रसिद्ध हिन्दी हास्य कवि थे। उन्हें हिन्दी हास्य व्यंग्य कविताओं का पर्याय माना जाता है। काका हाथरसी की शैली की छाप उनकी पीढ़ी के अन्य कवियों पर तो पड़ी ही थी, वर्तमान में भी अनेक लेखक और व्यंग्य कवि काका की रचनाओं की शैली अपनाकर लाखों श्रोताओं और पाठकों का मनोरंजन कर रहे हैं। उनकी रचनाएँ समाज में व्याप्त दोषों, कुरीतियों, भ्रष्टाचार और राजनीतिक कुशासन की ओर सबका ध्यान आकृष्ट करती हैं। भले ही काका हाथरसी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी हास्य कविताए, जिन्हें वे 'फुलझडियाँ' कहा करते थे, सदैव हमे गुदगुदाती रहेंगी।

जीवन परिचय

काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर, 1906 ई. में उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवलाल गर्ग और माता का नाम बरफ़ी देवी था। जब वे मात्र 15 दिन के थे, तभी प्लेग की महामारी ने उनके पिता को छीन लिया और परिवार के दुर्दिन आरम्भ हो गये। भयंकर ग़रीबी में भी काका ने अपना संघर्ष जारी रखते हुए छोटी-मोटी नौकरियों के साथ ही कविता रचना और संगीत शिक्षा का समंवय बनाये रखा।[1]

दिन अट्ठारह सितंबर, अग्रवाल परिवार। उन्नीस सौ छ: में लिया, काका ने अवतार।[1]

परिवार

काका हाथरसी के प्रपितामह गोकुल, महावन से आकर हाथरस में बस गए थे और यहाँ उन्होंने बर्तन-विक्रय का काम (व्यापार) प्रारम्भ किया था। बर्तन के व्यापारी को उन दिनों 'कसेरे' कहा जाता था। पितामह (बाबा) श्री सीताराम कसेरे ने अपने पिता के व्यवसाय को नियमित रूप से चलायमान रखा। उसके बाद बँटवारा होने पर बर्तन की दुकान परिवार की दूसरी शाखा पर चली गईं। परिणामत: काका जी के पिता को बर्तनों की एक दुकान पर मुनीमगीरी करनी पड़ी।[1]

प्लेग का कहर

काका का जन्म 1906 में ऐसे समय में हुआ था, जब प्लेग की भयंकर बीमारी ने हज़ारों घरों को उज़ाड़ दिया। यह बीमारी देश के जिस भाग में फैलती, उसके गाँवों और शहरों को वीरान बनाती चली जाती थी। शहर से गाँवों और गाँवों से नगरों की ओर व्याकुलता से भागती हुई भीड़ हृदय को कंपित कर देती थी। कितने ही घर उजड़ गए, बच्चे अनाथ हो गए, महिलाएँ विधवा हो गईं। किसी-किसी घर में तो नन्हें-मुन्नों को पालने वाला तक नहीं बचा था। अभी काका केवल 15 दिन के ही शिशु थे, कि इनके पिताजी को प्लेग की बीमारी हो गयी। 20 वर्षीय माता बरफ़ी देवी, जिन्होंने अभी संसारी जीवन जानने-समझने का प्रयत्न ही किया था, इस वज्रपात से व्याकुल हो उठीं। मानों सारा विश्व उनके लिए सूना और अंधकारमय हो गया। उन दिनों घर में माताजी, बड़े भाई भजनलाल और एक बड़ी बहिन किरन देवी और काका कुल चार प्राणी साधन-विहीन रह गए।

शिक्षा

काका हाथरसी ने हास्य रस से ओत-प्रोत कविताओं के साथ-साथ संगीत पर भी पुस्तकें भी लिखी थी। उन्होंने संगीत पर एक मासिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। 'काका के कारतूस' और 'काका की फुलझडियाँ' जैसे स्तम्भों के द्वारा अपने पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए वे अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारियों के प्रति भी सचेत रहते थे। उनकी प्रथम प्रकाशित रचना 1933 में "गुलदस्ता" मासिक पत्रिका में उनके वास्तविक नाम से छपी थी।[2]

मुख्य रचनाएँ

काका हाथरसी के मुख्य कविता संग्रह इस प्रकार हैं-

  1. काका की फुलझड़ियाँ
  2. काका के प्रहसन
  3. लूटनीति मंथन करि
  4. खिलखिलाहट
  5. काका तरंग
  6. जय बोलो बेईमान की
  7. यार सप्तक
  8. काका के व्यंग्य बाण

योगदान

जीवन के संघर्षों के बीच हास्य की फुलझड़ियाँ जलाने वाले काका हाथरसी ने 1932 में हाथरस में संगीत की उन्नति के लिये 'गर्ग ऐंड कम्पनी' की स्थापना की थी, जिसका नाम बाद में 'संगीत कार्यालय हाथरस' हुआ। भारतीय संगीत के सन्दर्भ में विभिन्न भाषा और लिपि में किये गये कार्यों को उन्होंने जतन से इकट्ठा करके प्रकाशित किया। उनकी लिखी पुस्तकें संगीत विद्यालयों में पाठ्य-पुस्तकों के रूप में प्रयुक्त हुईं। 1935 से संगीत कार्यालय ने मासिक पत्रिका "संगीत" का प्रकाशन भी आरम्भ किया, जो कि अब तक अनवरत चल रहा है।

पुरस्कारों की शुरुआत

काका हाथरसी नाम पर ही कवियों के लिये 'काका हाथरसी पुरस्कार' और संगीत के क्षेत्र में 'काका हाथरसी संगीत' सम्मान भी आरम्भ किये। काका हाथरसी ने अपने जीवन काल में हास्य रस को भरपूर जिया था। वे और हास्य रस आपस में इतने घुलमिल गए हैं कि हास्य रस कहते ही उनका चित्र सामने आ जाता है। उन्होंने कवि सम्मेलनों, गोष्ठियों, रेडियो और टी. वी. के माध्यम से हास्य-कविता और साथ ही हिन्दी के प्रसार में अविस्मरणीय योगदान दिया है। उन्होंने साधारण जनता के लिए सीधी और सरल भाषा में ऐसी रचनाएँ लिखीं, जिन्होंने देश और विदेश में बसे हुए करोड़ों [[हिन्दी] के प्रेमियों के हृदय को छुआ।

निधन

18 सितंबर, 1906 को जन्म लेने वाले काका हाथरसी का निधन भी 18 सितंबर को ही सन 1995 में हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मेरा जीवन ए-वन (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 21 अक्टूबर, 2011।
  2. काका हाथरसी का जन्मदिन और पुण्यतिथि (18 सितम्बर) (हिन्दी) (एच.टी.एम.एल) सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग सूची। अभिगमन तिथि: 21 अक्टूबर, 2011।

बाहरी कड़ियाँ

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