"गर्भाधान संस्कार": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
No edit summary
छो (Text replace - "==टीका-टिप्पणी==" to "==टीका टिप्पणी और संदर्भ==")
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
*पितृ-ऋण उऋण होने के लिए ही संतान-उत्पादनार्थ यह संस्कार किया जाता है।  
*पितृ-ऋण उऋण होने के लिए ही संतान-उत्पादनार्थ यह संस्कार किया जाता है।  
*इस संस्कार से बीज तथा गर्भ से सम्बन्धित मलिनता आदि दोष दूर हो जाते हैं। जिससे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
*इस संस्कार से बीज तथा गर्भ से सम्बन्धित मलिनता आदि दोष दूर हो जाते हैं। जिससे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
==टीका-टिप्पणी==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==सम्बंधित लिंक==
==सम्बंधित लिंक==

13:40, 16 जून 2010 का अवतरण

  • हिन्दू धर्म संस्कारों में गर्भाधान—संस्कार प्रथम संस्कार है।
  • यहीं से बालक का निर्माण होता है।
  • गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के पश्चात दम्पती-युगल को पुत्र उत्पन्न करने के लिए मान्यता दी गयी है।
  • इसलिये शास्त्र में कहा गया है कि- उत्तम संतान प्राप्त करने के लिए सबसे पहले गर्भाधान-संस्कार करना होता है।[1]
  • पितृ-ऋण उऋण होने के लिए ही संतान-उत्पादनार्थ यह संस्कार किया जाता है।
  • इस संस्कार से बीज तथा गर्भ से सम्बन्धित मलिनता आदि दोष दूर हो जाते हैं। जिससे उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'गर्भाधानं प्रथमतः' (व्यासस्मृति 1।16)।

सम्बंधित लिंक