"चूड़ाकरण संस्कार": अवतरणों में अंतर
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13:46, 16 जून 2010 का अवतरण
- हिन्दू धर्म संस्कारोंमें चूड़ाकरण संस्कार अष्टम संस्कार है।
- अन्नप्राशन संस्कार करने के पश्चात चूड़ाकरण-संस्कार करने का विधान है।
- यह संस्कार पहले या तीसरे वर्ष में कर लेना चाहिये। मनुस्मृति[1]के कथनानुसार द्विजातियों का पहले या तीसरे वर्ष में (अथवा कुलाचार के अनुसार) मुण्डन कराना चाहिये—ऐसा वेद का आदेश है।
- इसका कारण यह है कि माता के गर्भ से आये हुए सिर के बाल अर्थात केश अशुद्ध होते हैं। दूसरी बात वे झड़ते भी रहते हैं।
- जिससे शिशु के तेज की वृद्धि नहीं हो पाती है।
- इन केशों को मुँडवाकर शिशु की शिखा (चोटी) रखी जाती है।
- शिखा से आयु और तेज की वृद्ध होती है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ मनुस्मृति (2।35)