"बख्शी ग्रन्थावली-4": अवतरणों में अंतर
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'''बख्शी ग्रन्थावली-4''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का चौथा खण्ड है। इस खण्ड में उनके साहित्यिक निबन्ध को प्रस्तुत किया गया है। | '''बख्शी ग्रन्थावली-4''' [[हिंदी]] के प्रसिद्ध साहित्यकार [[पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी]] की 'बख्शी ग्रन्थावली' का चौथा खण्ड है। इस खण्ड में उनके साहित्यिक निबन्ध को प्रस्तुत किया गया है। | ||
बख्शी लिखते हैं, 'यह सौभाग्य की बात है कि [[साहित्य]] के क्षेत्र में एकमात्र अर्थ सिद्धि के उद्देश्य से साहित्य का काम नहीं चल सकता। साहित्य में असन्तोष के लिए स्थान नहीं है। साहित्य आनन्द की सृष्टि है।' साहित्य वही श्रेष्ठ है जिसमें रचनाकार के जीवन दर्शन सम्बन्धी अटूट आत्मविश्वास की अप्रतिम धारा प्रवाहित है। ऐसे साहित्य की रचना अविराम साधक में होती है। जहाँ शब्दों का मूल्य नहीं होता बल्कि उन शब्दों के भीतर छिपे हुए अर्थपूर्ण व्यक्तित्त्व का मूल्य सर्वोपरि है। बख्शी के साहित्यिक निबन्धों को पढ़ने से पाठकों का सहजता से विश्व-साहित्य से परिचय हो जाता है। कारण बख्शी जी साहित्यिक निबन्धों में अनेक विश्व प्रसिद्ध कथा, कविता एवं निबन्धों का सार तत्व प्रस्तुत करते हैं। साहित्यिक गतिविधियों के तुलनात्मक अध्ययन में बख्शी एक असाधारण प्रतिभा स्तभ्म हैं। बख्शी जी की लेखनी साहित्य की सभी विधाओं पर चली परन्तु यह मूलत: वरिष्ठ निबन्धकार के रूप में साहित्य जगत में प्रसिद्ध हैं। इनके निबन्धों में कथा रस व कथाओं में निबन्धात्मक तत्त्व नज़र आते हैं। यही कारण है कि इनके निबन्ध आत्मकथात्मक निबन्ध कहलाते हैं। 'स्मृति' नामक निबन्ध में बख्शी जी शैशवकालीन बातों का स्मरण करते हुए तत्कालीन सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक परिवेश की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। बख्शी जी का अधिकांश निबन्ध साहित्य आत्मप्रकाशन की पृष्ठभूमि पर स्थित है।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref> | बख्शी लिखते हैं, 'यह सौभाग्य की बात है कि [[साहित्य]] के क्षेत्र में एकमात्र अर्थ सिद्धि के उद्देश्य से साहित्य का काम नहीं चल सकता। साहित्य में असन्तोष के लिए स्थान नहीं है। साहित्य आनन्द की सृष्टि है।' साहित्य वही श्रेष्ठ है जिसमें रचनाकार के जीवन दर्शन सम्बन्धी अटूट आत्मविश्वास की अप्रतिम धारा प्रवाहित है। ऐसे साहित्य की रचना अविराम साधक में होती है। जहाँ शब्दों का मूल्य नहीं होता बल्कि उन शब्दों के भीतर छिपे हुए अर्थपूर्ण व्यक्तित्त्व का मूल्य सर्वोपरि है। बख्शी के साहित्यिक निबन्धों को पढ़ने से पाठकों का सहजता से विश्व-साहित्य से परिचय हो जाता है। कारण बख्शी जी साहित्यिक निबन्धों में अनेक विश्व प्रसिद्ध कथा, [[कविता]] एवं [[निबन्ध|निबन्धों]] का सार तत्व प्रस्तुत करते हैं। साहित्यिक गतिविधियों के तुलनात्मक अध्ययन में बख्शी एक असाधारण प्रतिभा स्तभ्म हैं। बख्शी जी की लेखनी साहित्य की सभी विधाओं पर चली परन्तु यह मूलत: वरिष्ठ निबन्धकार के रूप में साहित्य जगत में प्रसिद्ध हैं। इनके निबन्धों में कथा रस व कथाओं में निबन्धात्मक तत्त्व नज़र आते हैं। यही कारण है कि इनके निबन्ध '''आत्मकथात्मक निबन्ध''' कहलाते हैं। 'स्मृति' नामक निबन्ध में बख्शी जी शैशवकालीन बातों का स्मरण करते हुए तत्कालीन सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक परिवेश की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। बख्शी जी का अधिकांश निबन्ध साहित्य आत्मप्रकाशन की पृष्ठभूमि पर स्थित है।<ref>{{cite web |url=http://vaniprakashanblog.blogspot.in/2012/06/blog-post_07.html |title=सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में |accessmonthday=13 दिसम्बर |accessyear=2012 |last=श्रीवास्तव |first=डॉ. नलिनी |authorlink= |format=एच.टी.एम.एल |publisher=वाणी प्रकाशन (ब्लॉग) |language=हिंदी }}</ref> | ||
04:09, 17 जुलाई 2013 का अवतरण
बख्शी ग्रन्थावली-4
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लेखक | पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी |
मूल शीर्षक | बख्शी ग्रन्थावली |
संपादक | डॉ. नलिनी श्रीवास्तव |
प्रकाशक | वाणी प्रकाशन |
ISBN | 81-8143-513-03 |
देश | भारत |
भाषा | हिंदी |
विधा | साहित्यिक निबन्ध |
बख्शी ग्रन्थावली-4 हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की 'बख्शी ग्रन्थावली' का चौथा खण्ड है। इस खण्ड में उनके साहित्यिक निबन्ध को प्रस्तुत किया गया है।
बख्शी लिखते हैं, 'यह सौभाग्य की बात है कि साहित्य के क्षेत्र में एकमात्र अर्थ सिद्धि के उद्देश्य से साहित्य का काम नहीं चल सकता। साहित्य में असन्तोष के लिए स्थान नहीं है। साहित्य आनन्द की सृष्टि है।' साहित्य वही श्रेष्ठ है जिसमें रचनाकार के जीवन दर्शन सम्बन्धी अटूट आत्मविश्वास की अप्रतिम धारा प्रवाहित है। ऐसे साहित्य की रचना अविराम साधक में होती है। जहाँ शब्दों का मूल्य नहीं होता बल्कि उन शब्दों के भीतर छिपे हुए अर्थपूर्ण व्यक्तित्त्व का मूल्य सर्वोपरि है। बख्शी के साहित्यिक निबन्धों को पढ़ने से पाठकों का सहजता से विश्व-साहित्य से परिचय हो जाता है। कारण बख्शी जी साहित्यिक निबन्धों में अनेक विश्व प्रसिद्ध कथा, कविता एवं निबन्धों का सार तत्व प्रस्तुत करते हैं। साहित्यिक गतिविधियों के तुलनात्मक अध्ययन में बख्शी एक असाधारण प्रतिभा स्तभ्म हैं। बख्शी जी की लेखनी साहित्य की सभी विधाओं पर चली परन्तु यह मूलत: वरिष्ठ निबन्धकार के रूप में साहित्य जगत में प्रसिद्ध हैं। इनके निबन्धों में कथा रस व कथाओं में निबन्धात्मक तत्त्व नज़र आते हैं। यही कारण है कि इनके निबन्ध आत्मकथात्मक निबन्ध कहलाते हैं। 'स्मृति' नामक निबन्ध में बख्शी जी शैशवकालीन बातों का स्मरण करते हुए तत्कालीन सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक परिवेश की झाँकी प्रस्तुत करते हैं। बख्शी जी का अधिकांश निबन्ध साहित्य आत्मप्रकाशन की पृष्ठभूमि पर स्थित है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रीवास्तव, डॉ. नलिनी। सम्पूर्ण बख्शी ग्रन्थावली आठ खण्डों में (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) वाणी प्रकाशन (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 13 दिसम्बर, 2012।