"गोपीनाथ बोरदोलोई": अवतरणों में अंतर
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'''गोपीनाथ बोरदोलोई''' [[भारत]] के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और [[असम]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] थे। इन्हें 'आधुनिक असम का निर्माता' भी कहा गया है। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। 1941 ई. में [[व्यक्तिगत सत्याग्रह]] में भाग लेने के कारण इन्हें कारावास जाना पड़ा | '''गोपीनाथ बोरदोलोई''' (जन्म- [[10 जून]], [[1890]], [[असम]]; मृत्यु- [[5 अगस्त]], [[1950]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और [[असम]] के प्रथम [[मुख्यमंत्री]] थे। इन्हें 'आधुनिक असम का निर्माता' भी कहा गया है। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। [[1941]] ई. में '[[व्यक्तिगत सत्याग्रह]]' में भाग लेने के कारण इन्हें कारावास जाना पड़ा था। वर्ष [[1942]] ई. में '[[भारत छोड़ो आन्दोलन]]' में भागीदारी के कारण गोपीनाथ बोरदोलाई को पुन: सज़ा हुई। गोपीनाथ ने असम के विकास के लिए अथक प्रयास किये थे। उन्होंने राज्य के औद्योगीकरण पर विशेष बल दिया और [[गौहाटी]] में कई विश्वविद्यालयों की स्थापना करवायी। असम के लिए उन्होंने जो उपयोगी कार्य किए उनके कारण वहाँ की जनता ने उन्हें ‘लोकप्रिय’ की उपाधि दी थी। वस्तुतः असम के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। | ||
==जन्म एवं शिक्षा== | ==जन्म एवं शिक्षा== | ||
गोपीनाथ बोरदोलोई प्रगतिवादी विचारों वाले व्यक्ति थे तथा असम का आधुनिकीकरण करना चाहते थे। गोपीनाथ का जन्म 10 जून, 1890 ई. को असम | गोपीनाथ बोरदोलोई प्रगतिवादी विचारों वाले व्यक्ति थे तथा असम का आधुनिकीकरण करना चाहते थे। गोपीनाथ बोरदोलाई का जन्म 10 जून, 1890 ई. को [[असम]] में नौगाँव ज़िले के 'रोहा' नामक स्थान पर हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम बुद्धेश्वर बोरदोलोई तथा [[माता]] का नाम प्रानेश्वरी बोरदोलोई था। इनके [[ब्राह्मण]] पूर्वज [[उत्तर प्रदेश]] से जाकर असम में बस गए थे। जब ये मात्र 12 साल के ही थे, तभी इनकी माता का देहांत हो गया था। गोपीनाथ ने [[1907]] में मैट्रिक की परीक्षा और [[1909]] में इण्टरमीडिएट की परीक्षा [[गुवाहाटी]] के 'कॉटन कॉलेज' से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) चले गए। कलकत्ता में बी.ए. करने के बाद [[1914]] में उन्होंने एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। तीन साल उन्होंने कानून की शिक्षा ग्रहण करने के बाद गुवाहाटी लौटने का निश्चय किया।<ref name="aa">{{cite web |url=http://www.pressnote.in/profile---gopinath-barodoloi_124141.html#.Ue5vBKzpySp|title=असम के महान सपूत- गोपीनाथ बोरदोलाई|accessmonthday=23 जुलाई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
==== | ==क्रांतिकारी जीवन में प्रवेश== | ||
गुवाहाटी लौटने पर गोपीनाथजी 'सोनाराम हाईस्कूल' के प्रधानाध्यापक पद पर कार्य करने लगे। [[1917]] में उन्होंने वकालत शुरू की। यह वह जमाना था, जब [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] ने देश की आजादी के लिए [[अहिंसा व्रत|अहिंसा]] और '[[असहयोग आन्दोलन]]' प्रारम्भ किया था। अनेक नेताओं ने उस समय गाँधीजी के आदेश के अनुरूप सरकारी नौकरियाँ छोड दी थीं और 'असहयोग आन्दोलन' में कूद पडे थे। गोपीनाथ बोरदोलोई भी बिना किसी हिचक से अपनी चलती हुई वकालत को छोडकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। इस समय उनके साथ [[असम]] के अन्य नेता भी स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगे। इन नेताओं में प्रमुख थे- नवीनचन्द्र बोरदोलोई, चन्द्रनाथ शर्मा, कुलाधार चलिहा, तरुणराम फूकन आदि। वकालत छोडने के बाद के बाद सबसे पहले गोपीनाथजी ने दक्षिण कामरूप और गोआलपाड़ा ज़िले का पैदल दौरा किया। इस दौरे में तरुणराम फूकन उनके साथ थे। उन्होंने जनता को संदेश दिया कि- "वे विदेशी माल का बहिष्कार करें, [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के काम में असहयोग करें और विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खद्दर धारण करें। विदेशी वस्त्रों की [[होली]] के साथ-साथ खद्दर के लिए चरखे और सूत कातें।" इसका परिणाम यह हुआ कि गोपीनाथ बोरदोलोई और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक वर्ष कैद की सजा दी गई। उसके बाद से उन्हने अपने आपको पूरी तरह देश के 'स्वतन्त्रता संग्राम' के लिए समर्पित कर दिया।<ref name="aa"/> | |||
==कांग्रेस सदस्य== | |||
[[1926]] में गोपीनाथ बोरदोलोई ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। उन्होंने [[कांग्रेस]] के 41वें अधिवेशन में भाग लेने के बाद जहाँ अपनी लोकप्रियता में वृद्धि की, वहाँ वे सामाजिक जीवन से भी अधिक जुडते गए। [[1932]] में वे [[गुवाहाटी]] के नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। उस समय [[असम]] की स्थिति एक पिछडे प्रदेश की थी। न तो उसका अपना पृथक उच्च न्यायालय था, न ही कोई विश्वविद्यालय। गोपीनाथजी के प्रयत्नों से यह दोनों बातें सम्भव हो सकीं। [[1939]] में जब कांग्रेस ने प्रदेश विधान सभाओं के लिए चुनाव में भाग लेने को निश्चय किया तो गोपीनाथ बोरदोलोई असम से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए और [[मुख्यमंत्री]] बने। उसके बाद से वे पूरी तरह से असम की जनता के लिए समर्पित हो गए। वे "शेर-ए-असम" ही नहीं थे, "भारत-रत्न" भी थे। | |||
==विश्वविद्यालयों की स्थापना== | ==विश्वविद्यालयों की स्थापना== | ||
1929 ई. में सरकारी विद्यालयों में राजनीतिक गतिविधियों पर रोक के संबंध में सरकार का आदेश निकला, तो बोरदोलोई ने ऐसे विद्यालयों के बहिष्कार का आंदोलन चलाया। परंतु वे शिक्षा के महत्त्व को समझते थे। उनके प्रयत्न से गौहाटी में 'कामरूप अकादमी' और 'बरुआ कॉलेज' की स्थापना हुई। आगे चलकर जब उन्होंने प्रशासन का दायित्व संभाला तो 'गौहाटी विश्वविद्यालय', 'असम मेडिकल कॉलेज' तथा अनेक तकनीकी संस्थाओं की स्थापना में सक्रिय सहयोग दिया। | 1929 ई. में सरकारी विद्यालयों में राजनीतिक गतिविधियों पर रोक के संबंध में सरकार का आदेश निकला, तो बोरदोलोई ने ऐसे विद्यालयों के बहिष्कार का आंदोलन चलाया। परंतु वे शिक्षा के महत्त्व को समझते थे। उनके प्रयत्न से गौहाटी में 'कामरूप अकादमी' और 'बरुआ कॉलेज' की स्थापना हुई। आगे चलकर जब उन्होंने प्रशासन का दायित्व संभाला तो 'गौहाटी विश्वविद्यालय', 'असम मेडिकल कॉलेज' तथा अनेक तकनीकी संस्थाओं की स्थापना में सक्रिय सहयोग दिया। |
12:21, 23 जुलाई 2013 का अवतरण
गोपीनाथ बोरदोलोई
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जन्म | 10 जून, 1890 ई. |
जन्म भूमि | रोहा, ज़िला नौगाँव, असम |
मृत्यु | 5 अगस्त, 1950 ई. |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | राजनीतिज्ञ |
पार्टी | कांग्रेस |
पद | मुख्यमंत्री |
शिक्षा | बी.ए., एम.ए., क़ानून की डिग्री |
विद्यालय | कलकत्ता विश्वविद्यालय |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी |
पुरस्कार-उपाधि | 'भारत रत्न' (1999 ई.) |
विशेष योगदान | 'कामरूप अकादमी' (गौहाटी), 'बरुआ कॉलेज', 'गौहाटी विश्वविद्यालय' और 'असम मेडिकल कॉलेज' आदि की स्थापना इन्हीं के प्रयासों द्वारा हुई थी। |
गोपीनाथ बोरदोलोई (जन्म- 10 जून, 1890, असम; मृत्यु- 5 अगस्त, 1950) भारत के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और असम के प्रथम मुख्यमंत्री थे। इन्हें 'आधुनिक असम का निर्माता' भी कहा गया है। इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था। 1941 ई. में 'व्यक्तिगत सत्याग्रह' में भाग लेने के कारण इन्हें कारावास जाना पड़ा था। वर्ष 1942 ई. में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' में भागीदारी के कारण गोपीनाथ बोरदोलाई को पुन: सज़ा हुई। गोपीनाथ ने असम के विकास के लिए अथक प्रयास किये थे। उन्होंने राज्य के औद्योगीकरण पर विशेष बल दिया और गौहाटी में कई विश्वविद्यालयों की स्थापना करवायी। असम के लिए उन्होंने जो उपयोगी कार्य किए उनके कारण वहाँ की जनता ने उन्हें ‘लोकप्रिय’ की उपाधि दी थी। वस्तुतः असम के लिए उन्होंने जो कुछ भी किया, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
जन्म एवं शिक्षा
गोपीनाथ बोरदोलोई प्रगतिवादी विचारों वाले व्यक्ति थे तथा असम का आधुनिकीकरण करना चाहते थे। गोपीनाथ बोरदोलाई का जन्म 10 जून, 1890 ई. को असम में नौगाँव ज़िले के 'रोहा' नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम बुद्धेश्वर बोरदोलोई तथा माता का नाम प्रानेश्वरी बोरदोलोई था। इनके ब्राह्मण पूर्वज उत्तर प्रदेश से जाकर असम में बस गए थे। जब ये मात्र 12 साल के ही थे, तभी इनकी माता का देहांत हो गया था। गोपीनाथ ने 1907 में मैट्रिक की परीक्षा और 1909 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा गुवाहाटी के 'कॉटन कॉलेज' से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए वे कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गए। कलकत्ता में बी.ए. करने के बाद 1914 में उन्होंने एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। तीन साल उन्होंने कानून की शिक्षा ग्रहण करने के बाद गुवाहाटी लौटने का निश्चय किया।[1]
क्रांतिकारी जीवन में प्रवेश
गुवाहाटी लौटने पर गोपीनाथजी 'सोनाराम हाईस्कूल' के प्रधानाध्यापक पद पर कार्य करने लगे। 1917 में उन्होंने वकालत शुरू की। यह वह जमाना था, जब राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने देश की आजादी के लिए अहिंसा और 'असहयोग आन्दोलन' प्रारम्भ किया था। अनेक नेताओं ने उस समय गाँधीजी के आदेश के अनुरूप सरकारी नौकरियाँ छोड दी थीं और 'असहयोग आन्दोलन' में कूद पडे थे। गोपीनाथ बोरदोलोई भी बिना किसी हिचक से अपनी चलती हुई वकालत को छोडकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। इस समय उनके साथ असम के अन्य नेता भी स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगे। इन नेताओं में प्रमुख थे- नवीनचन्द्र बोरदोलोई, चन्द्रनाथ शर्मा, कुलाधार चलिहा, तरुणराम फूकन आदि। वकालत छोडने के बाद के बाद सबसे पहले गोपीनाथजी ने दक्षिण कामरूप और गोआलपाड़ा ज़िले का पैदल दौरा किया। इस दौरे में तरुणराम फूकन उनके साथ थे। उन्होंने जनता को संदेश दिया कि- "वे विदेशी माल का बहिष्कार करें, अंग्रेज़ों के काम में असहयोग करें और विदेशी वस्त्रों के स्थान पर खद्दर धारण करें। विदेशी वस्त्रों की होली के साथ-साथ खद्दर के लिए चरखे और सूत कातें।" इसका परिणाम यह हुआ कि गोपीनाथ बोरदोलोई और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक वर्ष कैद की सजा दी गई। उसके बाद से उन्हने अपने आपको पूरी तरह देश के 'स्वतन्त्रता संग्राम' के लिए समर्पित कर दिया।[1]
कांग्रेस सदस्य
1926 में गोपीनाथ बोरदोलोई ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया। उन्होंने कांग्रेस के 41वें अधिवेशन में भाग लेने के बाद जहाँ अपनी लोकप्रियता में वृद्धि की, वहाँ वे सामाजिक जीवन से भी अधिक जुडते गए। 1932 में वे गुवाहाटी के नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष चुने गए। उस समय असम की स्थिति एक पिछडे प्रदेश की थी। न तो उसका अपना पृथक उच्च न्यायालय था, न ही कोई विश्वविद्यालय। गोपीनाथजी के प्रयत्नों से यह दोनों बातें सम्भव हो सकीं। 1939 में जब कांग्रेस ने प्रदेश विधान सभाओं के लिए चुनाव में भाग लेने को निश्चय किया तो गोपीनाथ बोरदोलोई असम से कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए और मुख्यमंत्री बने। उसके बाद से वे पूरी तरह से असम की जनता के लिए समर्पित हो गए। वे "शेर-ए-असम" ही नहीं थे, "भारत-रत्न" भी थे।
विश्वविद्यालयों की स्थापना
1929 ई. में सरकारी विद्यालयों में राजनीतिक गतिविधियों पर रोक के संबंध में सरकार का आदेश निकला, तो बोरदोलोई ने ऐसे विद्यालयों के बहिष्कार का आंदोलन चलाया। परंतु वे शिक्षा के महत्त्व को समझते थे। उनके प्रयत्न से गौहाटी में 'कामरूप अकादमी' और 'बरुआ कॉलेज' की स्थापना हुई। आगे चलकर जब उन्होंने प्रशासन का दायित्व संभाला तो 'गौहाटी विश्वविद्यालय', 'असम मेडिकल कॉलेज' तथा अनेक तकनीकी संस्थाओं की स्थापना में सक्रिय सहयोग दिया।
जेल यात्रा
1938 ई. में असम में जो पहला लोकप्रिय मंत्रिमंडल बना उसके मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोरदोलोई ही थे। इस बीच उन्होंने असम में अफ़ीम पर प्रतिबंध लगाने का ऐतिहासिक काम किया। विश्वयुद्ध आरंभ होने पर उन्होंने भी इस्तीफ़ा दे दिया और जेल की सज़ा भोगी। युद्ध की समाप्ति के बाद वे दुबारा असम के मुख्यमंत्री बने। स्वतंत्रता के बाद का यह समय नवनिर्माण का काल था।
निधन
बोरदोलोई के नेतृत्व में असम प्रदेश में नवनिर्माण की पक्की आधारशिला रखी गई थी, इसलिए उन्हें 'आधुनिक असम का निर्माता' भी कहा जाता है। 5 अगस्त, 1950 ई. में जब वे 60 वर्ष के थे, उनका देहांत हो गया। इनकी मृत्यु के बाद 1999 ई. में इन्हें देश का प्रमुख सम्मान भारत रत्न दिया गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 असम के महान सपूत- गोपीनाथ बोरदोलाई (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 जुलाई, 2013।
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