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#सिकन्दर के बाद के लेखक
#सिकन्दर के बाद के लेखक
*टेसियस और हेरोडोटस [[यूनान]] और [[रोम]] के प्राचीन लेखकों में से हैं। टेसियस 'ईरानी राजवैद्य' था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी। हेरोडोटस, जिसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है, ने 5वी. शताब्दी में ई.पू. में ‘हिस्टोरिका‘ नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और [[फ़ारस]] के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है।
*टेसियस और हेरोडोटस [[यूनान]] और [[रोम]] के प्राचीन लेखकों में से हैं। टेसियस 'ईरानी राजवैद्य' था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी। हेरोडोटस, जिसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है, ने 5वी. शताब्दी में ई.पू. में ‘हिस्टोरिका‘ नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और [[फ़ारस]] के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है।
*नियार्कस, आनेसिक्रिटस और अरिस्टोवुलास ये सभी लेखक [[सिकन्दर]] के समकालीन। इन लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है वह अपने में प्रमाणिक है।
*[[नियार्कस]], आनेसिक्रिटस और अरिस्टोवुलास ये सभी लेखक [[सिकन्दर]] के समकालीन। इन लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है वह अपने में प्रमाणिक है।
*सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था [[मेगस्थनीज]] जो यूनानी राजा [[सेल्यूकस]] का राजदूत था। उसने [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के दरबार में क़रीब 14 वर्षो तक समय व्यतीत किया। उसने ‘इण्डिका ‘ नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें तत्कालीन मौर्यवंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया था। डाइमेकस, सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था जो [[बिन्दुसार]] के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। डायोनिसियस [[मिस्र]] नरेश 'टॉलमी फिलाडेल्फस' के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक [[अशोक|सम्राट अशोक]] के राज दरबार में रहा था।
*सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था [[मेगस्थनीज]] जो यूनानी राजा [[सेल्यूकस]] का राजदूत था। उसने [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] के दरबार में क़रीब 14 वर्षो तक समय व्यतीत किया। उसने ‘इण्डिका ‘ नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें तत्कालीन मौर्यवंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया था। डाइमेकस, सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था जो [[बिन्दुसार]] के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। डायोनिसियस [[मिस्र]] नरेश 'टॉलमी फिलाडेल्फस' के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक [[अशोक|सम्राट अशोक]] के राज दरबार में रहा था।
*अन्य पुस्तकों में 'पेरीप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी', लगभग 150 ई. के आसपास टॉलमी का भूगोल, [[प्लिनी]] का 'नेचुरल हिस्टोरिका' (ई. की प्रथम सदी) महत्त्वपूर्ण है। ‘पेरीप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी‘ ग्रंथ जिसकी रचना 80 से 115 ई. के बीच हुई है, में भारतीय बन्दरगाहों एवं व्यापारिक वस्तुओं का विवरण मिलता है। प्लिनी के ‘नेचुरल हिस्टोरिका‘ से भारतीय पशु, पेड़-पौधों एवं खनिज पदार्थो की जानकारी मिलती है।
*अन्य पुस्तकों में 'पेरीप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी', लगभग 150 ई. के आसपास टॉलमी का भूगोल, [[प्लिनी]] का 'नेचुरल हिस्टोरिका' (ई. की प्रथम सदी) महत्त्वपूर्ण है। ‘पेरीप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी‘ ग्रंथ जिसकी रचना 80 से 115 ई. के बीच हुई है, में भारतीय बन्दरगाहों एवं व्यापारिक वस्तुओं का विवरण मिलता है। प्लिनी के ‘नेचुरल हिस्टोरिका‘ से भारतीय पशु, पेड़-पौधों एवं खनिज पदार्थो की जानकारी मिलती है।




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==बाहरी कड़ियाँ==
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==संबंधित लेख==
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10:15, 21 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

यूनानी लेखकों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. सिकन्दर के पूर्व के यूनानी लेखक
  2. सिकन्दर के समकालीन यूनानी लेखक
  3. सिकन्दर के बाद के लेखक
  • टेसियस और हेरोडोटस यूनान और रोम के प्राचीन लेखकों में से हैं। टेसियस 'ईरानी राजवैद्य' था, उसने भारत के विषय में समस्त जानकारी ईरानी अधिकारियों से प्राप्त की थी। हेरोडोटस, जिसे 'इतिहास का पिता' कहा जाता है, ने 5वी. शताब्दी में ई.पू. में ‘हिस्टोरिका‘ नामक पुस्तक की रचना की थी, जिसमें भारत और फ़ारस के सम्बन्धों का वर्णन किया गया है।
  • नियार्कस, आनेसिक्रिटस और अरिस्टोवुलास ये सभी लेखक सिकन्दर के समकालीन। इन लेखकों द्वारा जो भी विवरण तत्कालीन भारतीय इतिहास से जुड़ा है वह अपने में प्रमाणिक है।
  • सिकन्दर के बाद के लेखकों में महत्त्वपूर्ण था मेगस्थनीज जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत था। उसने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में क़रीब 14 वर्षो तक समय व्यतीत किया। उसने ‘इण्डिका ‘ नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें तत्कालीन मौर्यवंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण दिया था। डाइमेकस, सीरियन नरेश अन्तियोकस का राजदूत था जो बिन्दुसार के राजदरबार में काफ़ी दिनों तक रहा। डायोनिसियस मिस्र नरेश 'टॉलमी फिलाडेल्फस' के राजदूत के रूप में काफ़ी दिनों तक सम्राट अशोक के राज दरबार में रहा था।
  • अन्य पुस्तकों में 'पेरीप्लस ऑफ़ द एरिथ्रियन सी', लगभग 150 ई. के आसपास टॉलमी का भूगोल, प्लिनी का 'नेचुरल हिस्टोरिका' (ई. की प्रथम सदी) महत्त्वपूर्ण है। ‘पेरीप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी‘ ग्रंथ जिसकी रचना 80 से 115 ई. के बीच हुई है, में भारतीय बन्दरगाहों एवं व्यापारिक वस्तुओं का विवरण मिलता है। प्लिनी के ‘नेचुरल हिस्टोरिका‘ से भारतीय पशु, पेड़-पौधों एवं खनिज पदार्थो की जानकारी मिलती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख